06-07-2011, 11:00 AM | #21 | |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
Quote:
मैं यहाँ झारखण्ड के एक मुख्यमंत्री की बात करता हूँ जब ये विधायक थे काफी इमानदार और कर्त्तव्यपरायण समझे जाते थे स्वभातः भी ये बहुत अच्छे व्यक्ति थे, जनता का दुःख दर्द लेते रहते थे पर जब सत्ता मिली उसके बाद असलियत पता चली की ये तो राज्य को लगभग बेच देने का कार्य कर चुके थे मुख्यमंत्री महोदय का नाम तो सभी ने सूना ही होगा "मधु कोड़ा" (अरविन्द भाई इस पर विशेष प्रकाश डालेंगे क्योंकि बात इन्ही के प्रदेश की है)
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
|
06-07-2011, 02:17 PM | #22 |
Banned
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0 |
Re: मुद्दे कि बात
झारखंड ही क्या, अच्छे जन-प्रतिनिधि भारत में अब विलुप्त हो चुके है। दरअसल, राजनीति में घुसने वाले जीव, बाकायदा पूरी स्ट्रेटेजी के साथ मैदान में उतरते है। इसके लिए बाकायदा सबसे पहले गेटअप बदल कर झक सफेद वस्त्र धारण करते है। फिर किसी स्थापित नेता के शागिर्द बनते है। उनसे पूरा दांव-पेच सीखते है। तमाम तरह की मक्कारियों से लैस होकर फिर अपने गुरु से आशीर्वाद लेते है, और सबसे पहले भष्मासुर की तरह अपने गुरु को हो भष्म करने का प्रयत्न करते है। फिर पूरी मक्कारी के साथ, सफ़ेद कपड़ो में अपने व्यासाय की शुरुआत करते है। अब बाकायदा अपनी जमीन तैयार करते है, यानि जनता के सामने अपने वो रूप को अपने चमचो के माध्यम से पेश करते है, जिसे देखकर जनता मानने लगती है कि ये बंदा बहुत ही ईमानदार और कर्मठ है। जैसे रात में अपने चेलो से बलात्कार, डकैती और हत्या जैसे जघन्य अपराध कराएंगे और दिन में अपने उन्ही चेलो के साथ उक्त घटना के विरोध में रोड जाम करेंगे और शासन प्रशासन को खूब कोसेंगे, तथा पुतले फुकेंगे। ये मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है।
फिर चुनाव के समय अपने इसी छद्म रूप को दिखाकर चुनाव भी जीत जाते है। मगर जैसे ही चुनाव जीतते है, सबसे पहले अपना इनवेस्टमेंट को सूद समेत वसूलते है। इसके बाद प्रॉफ़िट। सारे चेलो को पिछवाड़े लात मार कर अगले चुनाव तक भगा देते है। अगर कोई चेला इसका विरोध करता है तो या तो वो पुलिस एंकाउंटर में मारा जाता है या फिर कानून कि मोटी-मोटी किताबों में से कुछ गंभीर धाराएँ लगा कर अंदर हो जाता है। मगर जैसे ही अगला चुनाव आता है, नेता जी अपने पुराने चेलो को ढूंढ लाते है, और चेले भी सबकुछ भुला कर फिर से प्रभु नाम कि माला जपने लगते है। अब भाई, बिजनेस किया है तो नफा-नुकसान तो देखना ही पड़ता है ना। Last edited by arvind; 06-07-2011 at 06:36 PM. |
06-07-2011, 02:23 PM | #23 | |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
Quote:
नागनाथ और सांपनाथ में जनता को चुनाव करना होता है डंसवाना तो हमारी नियति बन चुकी है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
|
17-07-2011, 09:45 AM | #24 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
एक बार किसी राज्य में उत्तराधिकारी को लेकर कुछ उहापोह थी .वास्तविकता यह थी कि राज्य में बहुत सारी समस्याएँ थीं,राजा को गद्दी सँभालने का अवसर मिला,राजा था चतुर .उसने विचार किया कि देश को सम्भालना भी आवश्यक है और अभी माहौल भी अनुकूल नहीं है,अतः उसने घोषणा की कि राजा अपने किसी सिपहसालार को गद्दी सौपना चाहता है सब अपनी भक्ति का प्रदर्शन करें ,उचित व्यक्ति को गद्दी सौंपी जायेगी,. राजा के एक सेनापति पर सबकी दृष्टि टिक गयी जो बुद्धिमान था,ईमानदार था (सबकी नज़र में) अनुभवी था , और उसका सबसे बड़ा गुण था कि यदि राजा उसको पूरी रात एक पैर पर खड़े होने का आदेश देता तो भी वह चूकता नहीं.राजा को भी मुहं माँगी मुराद मिल गयी ,एक तीर से कई शिकार किये राजा ऩे .राजा को अपने प्रजाजनों में एक त्यागी,निरपेक्ष,निर्लोभी राजा का खिताब मिला और साथ ही कोई बुराई भलाई उसके सर पर नहीं.राज्य की बागडोर राजा के हाथ में थी और रिमोट से संचालित एक रोबोट राजा को मिला .जैसे चाहे फैसले लिए जाएँ,जिसको चाहे पुरस्कार दिया जाय,चैन की निंद्रा लो.वैसे भी यह रोबोट राजा के अहसान तले दबा था कि इतने सारे सेवकों में से राजा का कृपापात्र वह बना है.मज़े में चल रहा था सब स्याह सफेद.
धीरे धीरे सब उस रोबोट को कहने लगे कि यह तो राजा की कठपुतली है.रोबोट बेचारा बार बार सफाई देता मैं कठपुतली नहीं हूँ ,परन्तु सब हँसते और कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करता ,स्थिति यहाँ तक पहुँची कि रोबोट का एक काम प्रमुख रूप से यही बन गया ,सबको अपनी सफाई देना,मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है,मैं अपने निर्णय लेने में स्वयं सक्षम हूँ.परन्तु “राई का पहाड़”तो बनता है परन्तु यहाँ तो पहाड़ ही पहाड़ था अर्थात सारे आरोप खरे थे.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 17-07-2011 at 09:47 AM. |
17-07-2011, 09:47 AM | #25 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
भूमिका अधिक बड़ी हो गयी है,परन्तु है यथार्थ यह है कि शिक्षण क्षेत्र में अग्रणी,आर्थिक क्षेत्र में महारथी माने जाने वाले,रिजर्व बैंक ,योजना आयोग ,एशियाई विकास बैंक,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष,अंकटाड आदि शीर्ष संस्थाओं में प्रमुख पदों पर आसीन रहकर,विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित मनमोहन जी की कुछ और भी विशेषताएं हैं,जिनमें प्रमुख हैं उनकी तथाकथित ईमानदारी,विद्वता और आर्थिक विषयों में महारथ.साथ ही ,उनकी चिर-परिचित मुस्कान,और स्वामिभक्ति.
२००४ के आम चुनाव में सर्वाधिक सीट्स के साथ सत्ता में आने वाली कांग्रेस ऩे चुनाव श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में लड़ा था,परन्तु देश के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह की घोषणा कर सबको चौंकाया तथा सरदार जी को भी बाग़ बाग़ कर दिया जबकि वो कभी लोकसभा का चुनाव जीत कर लोक प्रतिनिधि नहीं बन सके थे . अब प्रश्न उठता है कि सरदार जी की जिन विशेषताओं के कारण उनको विशेष सम्मान मिला या जनता ऩे उनसे जो आशाएं लगाई थीं,वो किस सीमा तक पूर्ण हो सकीं. मनमोहन जी को आर्थिक विशेषज्ञ माना जाता है,आथिक विषयों में विशेषज्ञता की चर्चा की जाय तो बात करते हैं तो सर्वप्रथम विषय आता है महंगाई सभी जानते हैं कि महंगाई की मार से आज सभी त्रस्त हैं,स्वयं प्रधानमन्त्री मान चुके हैं,चीनी के मूल्य बढ़ने के संदर्भ में कि हमारी कुछ कमियों के कारण चीनी बेलगाम हुई.आम आदमी के मुख से छिनता दाल विहीन निवाला ,महंगी चीनी के कारण छोटी किन्तु महंगी होती चाय का प्याली आये दिन ,गैस ,डीजल पेट्रोल के कारण महंगा होता सफ़र,अन्य प्रभावित उपभोक्ता वस्तुएं,देसी घी दूध ,दही के लिए तरसता आमजन, मिलावटी रिफाइंड ,सरसों ,वनस्पति घी के आसमान छूते मूल्य……………………आदि आदि.और इन सबसे बढ़कर,अपनी कमी मानने के स्थान पर कभी गठबंधन सरकार की मजबूरियां गिनाना,अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का हवाला देना और कभी जादुई छड़ी न होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड लेना.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2011, 05:58 PM | #26 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
क्यों बचते हैं लोग “आर. एस. एस.” से?
घटना पिछले वर्ष की है, आप लोगों ने समाचार पत्रों में भी पढ़ी होगी. हमारे शहर के एक विधायक अल्प संख्यक वर्ग से हैं और बाहुबली भी हैं, जब से वो विधायक बने तो वो उस समुदाय के सभी लोगों के “चचा” हो गए. उस समुदाय के कुछ असामाजिक तत्व सक्रिय हो गए और रोजमर्रा में लूटपाट की घटना छेड़छाड़ की घटना बढ़ने लगी, एक दिन कुछ लोग एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे जिसे देखकर वहीँ पर रहने वाले एक लड़के ने उन लोगों की पिटाई कर दी, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी और असामाजिक लड़कों ने अपने वर्ग के साठ-सत्तर लोगों को जमा कर लिया जिनमें उनके चचा भी साथ थे, उन लोगों ने उस लड़के के घर पर फायरिंग की जिसने उस लड़की को बचाया था. लेकिन वो लड़का भी बहादुर था तथा अपने बचाव में उसने भी फायरिंग की, हालांकि इस प्रकरण के वक्त पुलिस मौजूद थी परन्तु वो तब तक मूक दर्शक बनी रही जब तक एस. पी. साहब नहीं आ गए. अब विधायक जी ने पुलिस पर दबाव बनाया की वो उस लड़के को गिरफ्तार करे (उल्टा चोर कोतवाल को डांटे). लेकिन उस लड़के के बचाव में कोई नहीं आया न कोई सेकुलर दल, न सरकार जिनके वो विधायक थे, न ही कोई धार्मिक संगठन……… लेकिन उसका साथ दिया आर. एस. एस. ने, और न केवल साथ दिया बल्कि उन असामाजिक तत्वों को गिरफ्तार भी करवाया जिनका साथ नेताजी दे रहे थे……….! बाद में वो लड़का भी संघ का स्वयंसेवक बन गया.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2011, 05:58 PM | #27 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
ये एक वो घटना है जो मेरी आँखों देखी है, आम तौर पर संघ के क्रिया कलाप भी आप और हम पढ़ते ही रहते हैं, की किस तरह भूकंप में या बाढ़ आदि में आर. एस. एस. के स्वयंसेवक किस तरह मदद करने सबसे पहले पहुँच जाते हैं, अभी जो लखनऊ के पास जो ट्रेन दुर्घटना हुई थी, उसमें भी मदद के लिए स्थानीय लोगों के साथ आर.एस.एस. के स्वयंसेवक पुलिस से भी पहले पहुँच गए और घायलों को अस्पताल पहुंचाया. ………. उनके द्वारा संचालित स्कूल और उनके छात्रों के विषय में भी हम जानते ही हैं की उनके स्कूलों के बच्चे ज्यादा संस्कारवान होते हैं……….. आदि वासी क्षेत्रों में उनके कार्यक्रम सबको पता हैं, “सरकार” अपने स्वार्थ के चलते तीन बार संघ पर प्रतिबन्ध लगा चुकी है और अदालत हटा चुकी है क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ की भारतीय अदालतें “संघ” के द्वारा किये गए कार्यों और उनके विचारों को गलत नहीं मानती. लेकिन फिर भी सरकार द्वारा और मिडिया द्वारा पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे राष्ट्र की सभी समस्याओं के लिए आर.एस.एस. ही जिम्मेदार है, कांग्रेस महासचिव तो हर घटना के बाद कह भी देते हैं की “इसके पीछे आर.एस.एस. का हाथ है”. वो तो सोनिया गांधी की बिमारी का पता नहीं चल पाया , वर्ना वो ये भी कह देते की सोनिया जी की बिमारी के पीछे आर.एस.एस. का हाथ है.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2011, 05:59 PM | #28 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
आर.एस.एस. एक सांस्कृतिक,सामाजिक, और पारिवारिक संगठन है. जिसका मूल उद्देश्य व्यक्ति में “चरित्र-निर्माण” है और केवल यही एक कार्य ऐसा है जिस से वास्तव में भ्रष्टाचार रहित, भयमुक्त समाज की कल्पना की जा सकती है, ये किसी क़ानून से संभव नहीं है किसी लोकपाल के बस की बात नहीं है. और ऐसे विषम कार्य को करने का बेडा आर.एस.एस. ने उठाया है संघ यदि चाहता है की अपना राष्ट्र विश्वगुरु बने तो क्या गलत है, यदि वो चाहता है की अपने राष्ट्र की धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, विरासतों को पूरी श्रद्धा के साथ आत्मसात किया जाय तो क्या गलत है. यदि संघ के विचार में राष्ट्र आराधना सर्वोपरि है और बाकी सब गौड़ तो क्या गलत है………!
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2011, 05:59 PM | #29 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
लेकिन इस सबके बावजूद, लोग संघ से कन्नी काटते हैं, और जिसका सभी भ्रष्टाचारी उलटे-सीधे तरह के आरोप लगा कर बदनाम करने की कोशिश करते हैं की कहीं लोग जागरूक हो गए तो गद्दी कैसे कायम रहेगी, जेब कैसे भरेगी. अभी हाल ही में हुए अन्ना आन्दोलन के पीछे “संघ” का हाथ होने का प्रचार भी हुआ, हालांकि अन्ना और अन्ना के साथियों ने न तो इस बात का खंडन किया न ही समर्थन, परन्तु “अन्ना” के आन्दोलन में अन्ना और उनकी टीम संघ का नाम लेने से बचती रही, और तो और “भारत माता” के चित्र पर “महात्मा गांधी” का चित्र भारी हो गया क्योंकि भारत माता के चित्र का प्रयोग तो आर.एस.एस. के लोग करते हैं. उनका बस चलता तो “वन्दे मातरम् और भारत माता की जय” भी न बोलते परन्तु जो वाक्य भारतीय जनमानस की आत्मा की आवाज बन चुके हैं भला उनको कैसे न बोलते, वर्ना जनता कैसे जुड़ती. आर.एस.एस. के भगवा रंग से इतनी दूरी बनायी गयी की स्वामी रामदेव को मंच पर आसन नहीं मिला लेकिन……….शाहबुद्दीन, आमिर खान, ओमपुरी, और कुछ राजनितिक नेताओं को आराम से मंच पर आसन मिल गया……… !
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2011, 05:59 PM | #30 |
Special Member
|
Re: मुद्दे कि बात
वास्तव में यदि निष्पक्षता सोचा जाए तो संघ किसी भी द्रष्टिकोण से कोई गलत कार्य नहीं करता है न सांप्रदायिक, न सांस्कृतिक परन्तु, न सामाजिक, न आर्थिक…….. कम से कम मैंने तो अभी तक नहीं देखा…… लेकिन राजनैतिक लोग अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए संघ को शुरू से ही निशाना बनाते आये हैं और भ्रामक प्रचार करते रहे हैं, जिस से राष्ट्र के लोग संगठित न हो सकें, जागरूक न हो सकें, और अपने अधिकारों के प्रति सजग न हो सकें……. सिर्फ व्यस्त रहें तो रोटी-कपडा और मकान की चिंता में…….! राष्ट्र का कोई भान न रहे, अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण भ्रष्टाचार में लिप्त रहें, और राजनेता अपनी रोटियाँ सेकते रहें.
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
Bookmarks |
|
|