30-12-2012, 11:36 PM | #1 |
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इन्साफ नहीं होगा !
इन्साफ नहीं होगा !
23 साल की एक मेडिकल छात्रा का 16 दिसम्बर को दिल्ली में रेप हुआ। रेप के अलावा भी उस लड़की के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया जिसके कारण उसकी तड़प तड़प कर मृत्यु हो गई। लेकिन इस लड़की ने जैसे दिल्ली को सोते से जगा दिया। इस घटना के दौरान जैसा प्रदर्शन सामने आया वैसा शायद मैंने अपने जीवनकाल में नहीं देखा, न ही सुना। बिना किसी नेता या झंडे के, जनता प्रदर्शन करने लगी, और सरकार से मांग करने लगी की उन्हें इन्साफ चाहिए। क्या है ये इन्साफ? क्या इस जनता को सिर्फ इस एक घटना के लिए इन्साफ चाहिए या हर उस घटना के लिए इन्साफ चाहिए जो हमारे देश में आये दिन होती रहती हैं? यह कोई पहली घटना नहीं है जिसमें किसी लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या की गई हो। ना जाने मैंने ऐसी कितनी ही खबरें पढ़ी हैं। मुझे याद नहीं की कभी मैंने अखबार पढ़ा हो और उसमें एक बलात्कार की घटना का वर्णन न हो। हमारे देश में बलात्कार की घटना वैसे ही आम खबर है जैसे की भ्रष्टाचार या घोटालों की। लेकिन क्या लोगों के इन्साफ मांगने का मतलब ये है की वे सिर्फ एक लड़की के लिए इन्साफ मांग रहे हैं? नहीं, वे हर उस लड़की के लिए इन्साफ मांग रहे हैं जिसके साथ बलात्कार हुआ है। कैसे मिलेगा यह इन्साफ? क्या सभी बलात्कार के आरोपियों को फांसी पर चढ़ा देना चाहिए? नहीं, आरोपी मुजरिम नहीं होता, जबतक यह सिद्ध न हो जाये की आरोपी ने बलात्कार किया है, कोई उसे फांसी क्या, एक दिन की जेल भी दे तो वह नाइंसाफी होगी। ज़रूरी है की कड़ी सज़ा मिले और सज़ा केवल मुजरिम को ही मिले, कोई बेगुनाह झूठे आरोप में फंस कर सज़ा न पाए। बस यही एक वजह है जिसकी वजह से बलात्कार के मामलो में इन्साफ नहीं मिल पाता। कौन बेगुनाह है और कौन गुनाहगार इस बात का फैसला कर पाने में इतनी देर हो चुकी होती है की तबतक बेगुनाह का जीवन बर्बाद हो जाता है, और गुनाहगार नए गुनाहों की एक लम्बी फेहरिस्त तैयार कर देता है। क्यूँ होती है यह देर? क्यूंकि हमारे यहाँ अदालतों के पास समय ही नहीं है। केस ज्यादा हैं और जज और अदालतें कम। बलात्कार के मामले में फांसी की सज़ा रख देने से इन्साफ नहीं होगा, क्यूंकि फांसी देने के लिए पहले आरोप को सिद्ध होना पड़ता है। जबतक आरोप सिद्ध होता है, तबतक बहुत देर हो चुकी होती है। और यदि कोई बेगुनाह ऐसे मामले में फंस जाता है तो उसके बेगुनाह सिद्ध होने से पहले ही वह बर्बाद हो चुका होता है। आवशक है की ऐसे केस के फैसलों की समय सीमा तय हो और उस समय सीमा में केस के निपटारे के लिए अदालतें और जजों की संख्या बढाई जाए। लेकिन जाने क्यूँ इस बात को हमेशा किनारे कर दिया जाता है। सब कुछ हो जायेगा लेकिन अदालतें नहीं बढाई जाएँगी, जज नहीं बढाए जायेंगे। इन्साफ के कुछ और रास्ते खोज लिए जायेंगे जिनसे इन्साफ का दिखावा तो होगा लेकिन इन्साफ नहीं होगा। |
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