27-04-2012, 02:16 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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पानी की कहानी
बन के झरना ज़मीं की चाहत में ; पत्थरों तक से लड़ गया पानी . जब पहाड़ों से ज़मीं पर उतरा ; ख़ुद का रंग देख डर गया पानी . कोई बेदर्द जो पत्थर मारे ; छटपटा कर पिछड़ गया पानी . किश्तियाँ कागज़ों की खूब चलीं ; ज्यों ही गलियों में चढ़ गया पानी . बस्तियां इसलिए प्रवास में हैं ; बाढ़ बनकर पसर गया पानी . तैरना बेबसी में सीख गये ; जिनकी किश्ती में भर गया पानी . जब तलक नदी था , बहकता था ; बाँध बनते सुधर गया पानी . जिनके खेतों में मेघ बरसे नहीं ; उनके सपनों पे पड़ गया पानी . सुगबुगाहट - सी इन्कलाब की है ; सर से ऊपर गुज़र गया पानी . जिस्म विरहन का सुलगने लगता ; जब भी सावन का पड़ गया पानी . ये ज़मीं इसलिए महकती है ; उसकी ज़ुल्फों से झड़ गया पानी . क्यों उन्हें मेरी याद आये अब ; उनकी आँखों का मर गया पानी . प्यार में क्या मिला , जब पूछा गया ; मेरी आँखों में भर गया पानी . रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
27-04-2012, 02:49 PM | #2 |
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Re: पानी की कहानी
इस कविता की हर पंक्ति कुछ कहती है, मैंने जो सुना आपको बता रहा हूँ.
पर्वतों तक पे चढ़ गया पानी ; बर्फ बन के ठहर गया पानी . बन के झरना ज़मीं की चाहत में ; पत्थरों तक से लड़ गया पानी . ( पानी के संघर्ष से जीवन में संघर्षशील होने के प्रेरणा मिल रही है. ) जब पहाड़ों से ज़मीं पर उतरा ; ख़ुद का रंग देख डर गया पानी . कोई बेदर्द जो पत्थर मारे ; छटपटा कर पिछड़ गया पानी . ( प्रदूषित नदी का दर्द बयां किया है कवि ने. ) किश्तियाँ कागज़ों की खूब चलीं ; ज्यों ही गलियों में चढ़ गया पानी . बस्तियां इसलिए प्रवास में हैं ; बाढ़ बनकर पसर गया पानी . (पानी के मस्त मौजी मिजाज का सुन्दर वर्णन ) तैरना बेबसी में सीख गये ; जिनकी किश्ती में भर गया पानी . जब तलक नदी था , बहकता था ; बाँध बनते सुधर गया पानी . ( जब मुसीबत आती है तभी लोग सक्रिय होते हैं. ) जिनके खेतों में मेघ बरसे नहीं ; उनके सपनों पे पड़ गया पानी . सुगबुगाहट - सी इन्कलाब की है ; सर से ऊपर गुज़र गया पानी . (बारिस के मौसम का इंतज़ार ) जिस्म विरहन का सुलगने लगता ; जब भी सावन का पड़ गया पानी . ये ज़मीं इसलिए महकती है ; उसकी ज़ुल्फों से झड़ गया पानी . (बारिस के मौसम में विरह रस) क्यों उन्हें मेरी याद आये अब ; उनकी आँखों का मर गया पानी . प्यार में क्या मिला , जब पूछा गया ; मेरी आँखों में भर गया पानी . (सावन के मौसम में अकेली एक प्रेमिका का दर्द.)
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27-04-2012, 03:28 PM | #3 |
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Re: पानी की कहानी
वाह-वाह-वाह-वाह! मैं ज्यादा कुछ कह भी नही सकता क्योंकि जो कहना चाहता था अभिषेक जी ने पहले ही कह दिया। बहुत ही मजेदार रचना है। पानी के कई रूप देखने को मिलें। इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद!
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27-04-2012, 03:45 PM | #4 |
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Re: पानी की कहानी
बड़े भाई बहुत खुबसूरत रचना
कभी कभी शब्द कम पर जाते हैं तारीफ को
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
27-04-2012, 04:28 PM | #5 |
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Re: पानी की कहानी
जिस्म विरहन का सुलगने लगता ; जब भी सावन का पड़ गया पानी . ये ज़मीं इसलिए महकती है ; उसकी ज़ुल्फों से झड़ गया पानी . dr apni to bolti hi band hai there are no word to say |
27-04-2012, 04:52 PM | #6 |
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Re: पानी की कहानी
श्री राकेश जी, आज पानी का इतना रूप पहली बार देख रहा हूँ। क्या खूब विषय चुना है। मजेदार, मनोहारी !!!!!!!!
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28-04-2012, 12:07 AM | #7 |
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Re: पानी की कहानी
बहुत ही अच्छी कविता है.
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29-04-2012, 08:22 AM | #8 |
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Re: पानी की कहानी
सिकन्दर भाई जी को धन्यवाद!
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29-04-2012, 03:43 PM | #9 | |
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Re: पानी की कहानी
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
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01-05-2012, 08:42 AM | #10 | |
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Re: पानी की कहानी
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आपने रचना को इतनी गहराई तक महसूस किया , आपका धन्यवाद . |
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