14-05-2015, 03:01 PM | #1 |
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मुक्तक- धरा ने यूँ है झकझोरा
================================= डरे बच्चे व बूढ़े और दहशत हम जवानों में असंभव है कि सो पाएं दरकते इन मकानों में धरा ने यूँ है झकझोरा कलेजा मुँह को आ जाये कि अब तो मौत ही दिखती यहाँ हर पल ठिकानों में मुक्तक- आकाश महेशपुरी ================================= पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश. |
23-05-2015, 06:17 PM | #2 | |
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Re: मुक्तक- धरा ने यूँ है झकझोरा
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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