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Old 31-10-2011, 02:05 PM   #11
Dark Saint Alaick
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Default Re: सआदत हसन मंटो की कहानियाँ

इतनी कहानियां पढने के बाद मुझे लगा कि लोग जानें कि मंटो कौन हैं ! प्रस्तुत है मंटो की नज़र में मंटो-

सआदत हसन की नजर में मंटो



मंटो के विषय में अब तक बहुत लिखा और कहा जा चुका है। उसके पक्ष में कम और विपक्ष में ज्यादा। ये विवरण अगर दृष्टिगत रखे जाएं तो कोई बुद्धिमान व्यक्ति मंटो के विषय में केाई सही राय कायम नहीं कर सकता। मैं यह लेख लिखने बैठा हूं और समझता हूं कि मंटो के विषय में अपने विचार व्यक्त करना बड़ा कठिन काम है। लेकिन एक दृष्टि से आसान भी है। इसलिए कि मुझे मंटो के निकट रहने का सौभाग्य मिला है और सच पूछिए तो मैं मंटो का हमजाद हूं।
अब तक इस व्यक्ति के विषय में जो लिखा गया है मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं है,लेकिन मैं इतना समझता हूं कि जो कुछ इन लेखों में बताया गया है, वह वास्तविकता से परे है। कुछ इसे शैतान कहते हैं,कुछ गंजा फरिश्ता। जरा ठहरिए, मैं देख लूं,कहीं वह कमबख्त सुन तो नहीं रहा। नहीं-नहीं, ठीक है। मुझे याद आ गया कि यह वक्त है जब वह पिया करता है। उसको शाम छः बजे कड़वा शरबत पीने के आदत है।
हम इकट्ठे पैदा हुए और ख्याल है कि इकट्ठे ही मरेंगे; लेकिन यह भी हो सकता है कि सआदत हसन मर जाए और मंटो न मरे और सदा मुझे यह डर बहुत दुख देता है। इसिलिए मैंने उसके साथ अपनी निभाने में कोई कसर उठा नहीं रखी। अगर वह जीवित रहा और मैं मर गया तो ऐसा होगा कि अण्डे का खोल तो बचा हुआ है और उसके अन्दर की जर्दी और सफेदी लुप्त हो गई।
अब मैं अधिक भूमिका में नहीं जाना चाहता। आपसे साफ कह देता हूं कि मंटो ऐसा वन-टू आदमी है, मैंने अपनी जिन्दगी में कभी नहीं देखा। जिसे यदि जमा किया जाए तो वह तीन बन जाए। त्रिकोण के विषय में उसका ज्ञान काफी है,लेकिन मैं जानता हूं कि अभी इसकी जरूरत नहीं हुई। ये संकेत ऐसे हैं कि जिन्हें केवल सुविज्ञ ही समझ सकते हैं।
यूँ तो मंटो को उसके जन्म से ही जानता हूं। हम दोनों इकट्ठे एक ही समय 11 मई 1912 को जन्म लिया किन्तु उसने सदा यह कोशिश की कि खुद को कुछ भी बनाए रखे,जो एक बार अपना सिर और गर्दन भीतर छुपा ले तो आप लाख ढूंढते रहें,इसका पता नहीं मिले। लेकिन मैं भी आखिर उसका हूं। मैंने उसकी प्रत्येक गतिविधि का मुआयना कर ही लिया है।
लीजिए,अब मैं आपको बताता हूं कि यह वैशाखनन्दन कहानीकार कैसे बना ? लेखक,रचनाकार,बड़े लम्बे-चैड़े लेख लिखते हैं। अपने व्यक्तित्व का प्रमाण देते हैं। शोपेनहावर,फ्रायड,हीगल,नीत्से,मार्क्स का उल्लेख करते हैं, मगर वास्तिविकता से कोसों दूर रहते हैं। मंटो का कथानक दो विरोधी तत्वों के संघर्ष का परिणाम है। उसके पिता,खुदा उन्हें माफ करे, बड़े कठोर थे और उसकी मां अत्यंत दयावान। इन दानों पाटों के बीच पिसकर यह गेहूं का दाना किस रूप् में बाहर निकला होगा, इसका अनुमान आप लगा सकते हैं।
अब मैं इसके स्कूल के जीवन की तरफ आता हूं। वह बहुत बद्धिमान बालक था और अत्यंत नटखट। उस समय उसका कद अधिक से अधिक 3 फुट 6 इंच होगा। वह अपने पिता की आखिरी संतान था। उसे अपने मां-बाप की मोहब्बत तो प्राप्त थी,लेकिन उसके तीन बड़े भाई,जो उम्र में उससे बहुत बड़े थे और विलायत में शिक्षा पा रहे थे,उनसे उसको भेंट करने का अवसर नहीं मिला था,इसलिए कि वे सौतेले थे। वे चाहता था कि वे उससे मिलें, उससे बड़े भाइयों जैसा व्यवहार करें,लेकिन उसे यह व्यवहार उस समय मिला जब साहित्य-संसार उसे बहुत बड़ा कहानीकार स्वीकार कर चुका था।
अच्छा,अब उसकी कहानीकारी के विषय में सुनिए,वह अव्वल दर्जे का फ्राड हैं पहली कहानी उसने 'तमाशा' शीर्षक के अन्तगर्त लिखी जो जलियांवाला बाग की खूनी दुर्घटना के विषय में थी। यह उसने अपने नाम से नहीं छपवाई। यही कारण है कि वह पुलिस के चंगुल से बच गया।
इसके बाद उसके उर्वर मस्तिष्क में एक लहर पैदा हुई कि वह और अधिक शिक्षा प्राप्त करे। यहां यह कहना रुचिकर होगा कि उसने इण्टर परीक्षा दो बार फेल होकर पास की थी, वह थी थर्ड डीविजन में। और आपको यह सुनकर भी अचम्भा होगा कि वह उर्दू के पर्चे में नाकाम रहा।
अब लोग कहते हैं कि वह उर्दू का बहुत बड़ा अदीब हैं और मैं यह सुनकर हंसता हूं,इसलिए कि उर्दू अब भी नहीं आती। वह अल्फाज के पीछे ऐसे भागता है जैसे कोई जाली शिकारी तितलियों के पीछे। वे उसके हाथ नहीं आतीं। यही कारण है कि उसके लिखने में खूबसूरत अल्फाज की कमी है। वह लट्ठमार है लेकिन जितने लट्ठ उसकी गर्दन पर पड़े हैं उसने बड़ी खुशी से सहन किए हैं।
उसकी लट्ठबाजी लोकोक्ति के अनुसार जाटों की लट्ठबाजी नहीं है। वह बाजीगर और फकैत है। वह एक ऐसा आदमी है जो साफ और सीधी सड़क पर नहीं चलता बल्कि वह तने हुए रास्ते पर चलता है। लोग समझते हैं,अब गिरा,अब गिरा, लेकिन वह कमबख्ता आज तक नहीं गिरा- शायद गिर जाए औधें मुंह- कि फिर न उठे। लेकिन मैं जानता हूं कि मरते वक्त लोगों से कहेगा कि मैं इसलिए गिरा था कि पतन की निराश समाप्त हो जाए।
मैं इसके पूर्व कह चुका हूं कि मंटो अव्वल दर्जे का फ्राड है। इसका अन्य प्रमाण यह है कि वह अक्सर कहा करता है कि वह अफसाना नहीं सोचता,स्वयं अफसाना उसे सोचता है- यह भी फ्राड है। चुनांचे, मैं जानता हूं कि जब उसे कहानी लिखनी होती है तो उसकी वही हालात होती है जब किसी मुर्गी को अण्डा देना होता है। वह अण्डा छुपकर नहीं देता,सबके सामने देता है। उसके यार-दोस्त बैठे होते हैं,उसकी तीन बच्चियां शोर मचा रही होती हैं और वह अपनी खास कुर्सी पर उकड़ूं बैठा अण्डे देता जाता है,जो बाद में चूं-चूं करते अफसाने बन जाते हैं। उसकी पत्नि उससे बहुत नाराज है। वह उससे प्रायः कहा करती है कि तुम कहानी लिखना छोड़ दो और कोई दुकान खोल लो, लेकिन मंटो के दिमाग में जो दुकान खुली है, उसमें मनियारी के सामान से भी अधिक सामान मौजूद है। इसलिए वह प्रायः सोचा करता है कि वह कभी कोई स्टोरेज यानि शीतघर न बन जाए जहां उसके तमाम विचार और भावनाएं जम जाएं।
मैं यह लेख लिख रहा हूं और मुझे डर है कि मंटो मुझसे नाराज हो जाएगा। उसकी हर चीज सहन की जा सकती है लेकिन नाराजगी नहीं सही जा सकती। नाराजगी होने पर वह शैतान बन जाता है, लेकिन कुछ मिनटों के लिए और ये कुछ मिनट अल्लाह की पनाह........
कहानी लिखने के विषय में वह नखरे जरूर दिखाता है लेकिन मैं जानता हूं,क्योंकि उसका हमजाद हूं, वह फ्राड कर रहा है। उसने एक बार स्वयं लिखा था कि उसकी जेब में अनगिनत कहानियां पड़ी होती हैं। वास्तविकता इसके ठीक उल्टी है।
जब उसे कहानी लिखनी होगी तो वह रात को सोचेगा। उसकी समझ में कुछ नहीं आएगा। सुबह पांच बजे उठेगा और अखबारों से किसी कहानी का रस चूसने का ख्याल करेगा, लेकिन उसे नाकामी होगी। फिर वह गुसलखाने में जाएगा।वहां वह अपने शोर-भरे सिर को ठण्डा करने की कोशिश करेगा कि वह सोचने के योग्य हो सके, लेकिन नाकाम रहेगा। फिर झुंझलाकर अपनी पत्नी से बेकार का झगड़ा करना शुरू कर देगा। वहां से भी नाकामी होगी तो पान लेने चला जाएगा। पान उसकी मेज पर पड़ा रहेगा, लेकिन कहानी का कथानक उसकी समझ में फिर भी नहीं आएगा। अन्त में वह उसके मस्तिष्क में आएगा उसकी कहानी का श्री गणेश कर देगा। 'बाबू गोपिनाथ', 'टोबा टेक सिंह', 'हतक', 'मम्मी', 'मोजेल' - ये कहानियां उसने इसी फ्राड तरीके से लिखी हैं।
यह अजीब बात है कि लोग उसे बड़ा विधर्मी,अश्लील व्यक्ति समझते हैं और मेरा भी ख्याल है कि वह किसी हद तक इस कोटि में आता है। प्रायः वह बड़े गन्दे विषय पर कलम उठाता है और ऐसे शब्द अपनी रचना में प्रयोग करता है जिन पर आपत्ति की गुंजाइश भी हो सकती है। लेकिन मैं जानता हूं कि जब भी उसने कोई लेख लिखा,पहले पन्ने के शीर्ष पर 786 अवश्य मिला जिसका मतलब है बिस्मिल्ला और यह व्यक्ति जो खुदा को न मानने वाला नजर आता है,कागज पर मोमिन बन जाता है। परन्तु वह कागजी मंटो है जिसे आप कागजी बादाम की तरह केवल अंगुलियों से तोड़ सकते हैं अन्यथा वह लोहे के हथौड़े से भी टूटने वाला आदमी नहीं है।
अब मैं मंटो के व्यक्तित्व की तरफ आता हूं- वह चोर है,झूठा है,विश्वाशघातक और भीड़ इकट्ठी करने वाला है। उसने प्रायः अपनी पत्नी की गफलत से लाभ उठाते हुए कई-कई सौ रुपए उठाए हैं। इधकर आठ सौ लाकर दिए और चोर आंखों से देखता रहा कि उसने कहां रखे हैं और दूसरे दिन उनमें से एक हरा नोट गायब ! उस बेचारी को जब अपने उस नुकसान का पता लगा तो उसने नौकरों को डांटना-डपटना शुरू कर दिया।
यूं तो मंटो के विषय में मशहूर है कि वह साफ-साफ कहने वाला है, लेकिन मैं इससे सहमत होने के लिए तैयार नहीं। वह अव्वल दर्जे का झूठा है। शुरू-शुरू में उसका झूठ उसके घर चल जाता था इसलिए कि उसमें मंटो का एक विशेष टच होता था,लेकिन बाद में उसकी पत्नी को पता चल गया कि अब तक उसे विशेष बात के विषय में जो कुछ कहा जाता था,झूठ था। मंटो झूठ खूब खुलकर बोलता है, लेकिन मुसीबत है कि उसके घरवाले अब यह समझने लगे हैं कि उसकी हर बात झूठी है। उस तिल की तरह जो किसी औरत ने अपने गाल पर सुरमे से बना रखा है।
वह अनपढ़ है- इस दृष्टि से कि उसने कभी मार्क्स का अध्ययन नहीं किया। फ्रायड की कोई पुस्तक आज तक उसकी दृष्टि से नहीं गुजरी। हीगल का वह केवल नाम ही जानता है। हैबल व एैमिस को वह नाम मात्र से जानता है। लेकिन मजे की बात यह है कि लोग,मेरा मतलब है कि आलोचक यह कहते हैं कि वह तमाम चिन्तकों से प्रभावित है। जहां तक मैं जानता हूं मंटो किसी दूसरे के विचारों से प्रभावित होता ही नहीं। वह समझता है कि समझाने वाले सब चुगद है। दुनिया को समझाना नहीं चाहिए,उसको स्वयं समझना चाहिए।
स्वयं को समझा-समझाकर वह एक ऐसी समझ बन गया है जो बुद्धि और समझ के परे है। कदाचित वह ऐसी उटपटांग बातें करता है कि मुझे हंसी आती है।
मैं आपसे पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मंटो,जिस पर अश्लील लेख के विषय में कई मुकदमे चल चुके हैं, बहुत शीलपसंद है। लेकिन मैं यह भी कहे बिना नहीं रह सकता कि वह एक ऐसा पायदान है, जो स्वयं को झाड़ता-फटकारता है।

-सआदत हसन 'मंटो'
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु

Last edited by Dark Saint Alaick; 31-10-2011 at 05:36 PM.
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Old 31-10-2011, 05:51 PM   #12
Sikandar_Khan
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Default Re: सआदत हसन मंटो की कहानियाँ

अलैक जी ये जानकारी मेरे लिए एकदम नई और अनोखी है
रु -ब -रु करने के लिए शुक्रिया |
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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