08-04-2011, 03:47 PM | #31 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
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08-04-2011, 03:47 PM | #32 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
महाराज दशरथ के इन दीन वचनों को सुनकर कैकेयी तनिक भी द्रवित नहीं हुई। वह बोली, "राजन्! ऐसा कहकर आप अपने वचन से हट रहे हैं। यह आपको शोभा नहीं देता। आप सूर्यवंशी हैं, अपनी प्रतिज्ञा पूरी कीजिये। प्रतिज्ञा से हटकर स्वयं को और सूर्यवंश को कलंकित मत कीजिये। आपके द्वारा अपना वचन नहीं निभाये जाने पर मैं तत्काल आपके सम्मुख ही विष पीकर अपने प्राण त्याग दूँगी। यदि ऐसा हुआ तो आप प्रतिज्ञा भंग करने के साथ ही साथ स्त्री-हत्या के भी दोषी हो जायेंगे। अतः उचित यही है कि आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें।"
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08-04-2011, 03:47 PM | #33 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
राजा दशरथ बारम्बार मूर्छित होते रहे और मूर्छा समाप्त होने पर कातर भाव से कैकेयी को मनाने का प्रयत्न करते रहे। इस प्रकार पूरी रात बीत गई। अम्बर में उषा की लालिमा फैलने लगी जिसे देखकर कैकेयी ने उग्ररूप धारण कर लिया और कहा, "राजन्! आप व्यर्थ ही समय व्यतीत कर रहे हैं। उचित यही है कि आप तत्काल राम को वन जाने की आज्ञा दीजिये और भरत के राजतिलक की घोषणा करवाइये।"
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08-04-2011, 03:47 PM | #34 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
सूर्योदय हो जाने पर गुरु वशिष्ठ मन्त्रियों के साथ राजप्रासाद के द्वार पर पहुँचे और महामन्त्री सुमन्त को महाराज के पास जाकर अपने आगमन की सूचना देने के लिये कहा। कैकेयी एवं दशरथ के संवाद से अनजान सुमन्त ने महाराज के पास जाकर कहा, "हे राजाधिराज! रात्रि का समापन हो गया है और गुरु वशिष्ठ का आगमन भी हो चुका है। अतएव आप शैया त्याग कर गुरु वशिष्ठ के पास चलिये।"
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08-04-2011, 03:48 PM | #35 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
सुमन्त के इन वचनो को सुनकर महाराज दशरथ को पुनः असह्य वेदना का अनुभव हुआ तथा वे फिर से मूर्छित हो गये। उनके इस प्रकार मूर्छित होने पर कुटिल कैकेयी बोली, "हे महामन्त्री! अपने प्रिय पुत्र के राज्याभिषेक के उल्लास के कारण महाराज रात भर सो नहीं सके हैं। उन्हें अभी-अभी ही तन्द्रा आई है। महाराज निद्रा से जागते ही राम को कुछ आवश्यक निर्देश देना चाहते हैं। तुम शीघ्र जाकर राम को यहीं बुला लाओ।"
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08-04-2011, 03:48 PM | #36 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
कैकेयी के आदेशानुसार सुमन्त रामचन्द्र को उनके महल से बुला लाये।
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08-04-2011, 03:49 PM | #37 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
राम ने अपने पिता दशरथ एवं माता कैकेयी के चरणस्पर्श किये। राम को देखकर महाराज ने एक दीर्घ श्*वास और केवल "हे राम!" कहा फिर अत्यधिक निराश होने के कारण चुप हो गये। उनके नेत्रों में अश्रु भर आए। विनम्र स्वर में राम ने कैकेयी से पूछा, "माता! पिताजी की ऐसी दशा का क्या कारण है? कहीं वे मुझसे अप्रसन्न तो नहीं हैं? यदि वे मुझसे अप्रसन्न हैं तो मेरा क्षणमात्र भी जीना व्यर्थ है।"
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08-04-2011, 03:49 PM | #38 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
कैकेयी बोलीं, "वत्स! महाराज तुमसे अप्रसन्न तो हो ही नहीं सकते। किन्तु इनके हृदय में एक विचार आया है जो कि तुम्हारे विरुद्ध है। इसीलिये ये तुमसे संकोचवश कह नहीं पा रहे हैं। देवासुर संग्राम के समय इन्होंने मुझे दो वर देने का वचन दिया था। अवसर पाकर आज मैंने इनसे वे दोनों वर माँग लिये हैं। अब तुम्हारे पिता को अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करने के लिए तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है। यदि तुम प्रतिज्ञा करोगे कि जो कुछ मैं कहूँगी, उसका तुम अवश्य पालन करोगे तो मैं तुम्हें उन वरदानों से अवगत करा सकती हूँ।"
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08-04-2011, 03:50 PM | #39 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
राम बोले, "हे माता! पिता की आज्ञा से मैं अपने प्राणों की भी आहुति दे सकता हूँ। मैं आपके चरणों की सौगन्ध खाकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि आपके वचनों का अवश्य पालन करूँगा।"
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08-04-2011, 03:51 PM | #40 |
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Re: (2) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्
राम की प्रतिज्ञा से सन्तुष्ट होकर कैकेयी ने कहा, "वत्स! मैंने पहले वर से भरत के लिये अयोध्या का राज्य और दूसरे से तुम्हारे लिये चौदह वर्ष का वनवास माँगा है। अतः अब तुम अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तत्काल वक्कल धारण करके वन को प्रस्थान करो। तुम्हारे मोह के कारण ही महाराज दुःखी हो रहे हैं इसलिए तुम्हारे वन को प्रस्थान के पश्चात् ही भरत का राज्याभिषेक होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम अपनी प्रतिज्ञा का पालन करके अपने पिता को पापरूपी सागर से अवश्य मुक्ति दिलाओगे।"
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