15-06-2012, 12:55 PM | #11 |
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Re: गुलज़ार की कहानी :: धुआँ
'बुजदिलों - आज रात एक मुसलमान को चिता पर जलाया जाएगा और तुम सब यहाँ बैठे आग की लपटें देखोगे।' कल्लू अपने अड्डे से बाहर निकला। खून खराबा उसका पेशा है तो क्या हुआ? ईमान भी तो कोई चीज़ है। 'ईमान से अज़ीज तो माँ भी नहीं होती यारों।' |
15-06-2012, 12:55 PM | #12 |
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Re: गुलज़ार की कहानी :: धुआँ
चार पाँच साथियों को लेकर कल्लू पिछली दीवार से हवेली पर चढ़ गया। बुढ़िया अकेली बैठी थी, लाश के पास। चौंकने से पहले ही कल्लू की कुल्हाड़ी सर से गुज़र गई।
चौधरी की लाश को उठवाया और मस्जिद के पिछवाड़े ले गए, जहाँ उसकी कब्र तैयार थी। जाते-जाते रमजे ने पूछा, 'सुबह चौधराइन की लाश मिलेगी तो क्या होगा?' 'बुढ़िया मर गई क्या?' 'सर तो फट गया था, सुबह तक क्या बचेगी?' कल्लू रुका और देखा चौधराइन की ख़्वाबगाह की तरफ़। पन्ना कल्लू के 'जिगरे' की बात समझ गया। 'तू चल उस्ताद, तेरा जिगरा क्या सोच रहा है मैं जानता हूँ। सब इन्तज़ाम हो जाएगा।' |
15-06-2012, 12:55 PM | #13 |
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Re: गुलज़ार की कहानी :: धुआँ
कल्लू निकल गया, कब्रिस्तान की तरफ़।
रात जब चौधरी की ख्व़ाबगाह से आसमान छुती लपटें निकल रही थी तो सारा कस्बा धुएँ से भरा हुआ था। ज़िन्दा जला दिए गए थे, और मुर्दे दफ़न हो चुके थे। |
01-11-2012, 02:07 PM | #14 |
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Re: गुलज़ार की कहानी :: धुआँ
Anjaan bhai bahut bahut shukriya ye kahani share karne ke liyeek shandaar kahani ka bahut hee shandaar ant ek alag hee theme lekar aapne ye kahani likhi wo kabile tarif hain
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01-11-2012, 02:52 PM | #15 |
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Re: गुलज़ार की कहानी :: धुआँ
बहुत ही अच्छी कहानी है ! गुलज़ारजी को कल ही प्रधानमंत्री के कर कमलों से सम्मान मिला है ! इस अवसर पर उनकी कहानी का पुनर्पाठ बहुत अच्छा लगा ! आपको धन्यवाद मित्र अनजान !
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