24-02-2013, 09:00 AM | #11 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
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रोते-रोते हँसना सीखो ....! खुद हँसों औरों को भी हँसाओ, गम को जिन्दगी से दूर भगाओ,क्यों की हँसना ही जिन्दगी है |Read Forum Rules./Do not Spam./Respect Other members.
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24-02-2013, 06:37 PM | #12 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
ये हवा, ये रात, ये चांदनी,
तेरी इक अदा पे निसार हैं, मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है तुझे क्या खबर है, ओ बेखबर .. तेरी इक नज़र में है क्या असर .. जो गजब में आये तो कहर है, जो हो मेहेरबां तो करार है मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है तेरी बात बात है दिल नशीं .. कोई तुझ से बढ़ के नहीं हसीं .. है कली कली पे जो मस्तियाँ .. तेरी आँख का ये खुमार है मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
24-02-2013, 06:54 PM | #13 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
सीने में सुलगते हैं अरमां
आँखों में उदासी छाई है ये आज तेरी दुनिया से हमें तकदीर कहाँ ले आयी है सीने में सुलगते हैं अरमां ... कुछ आँख में आँसू बाकी हैं, जो मेरे गम के साथी हैं, जो मेरे गम के साथी हैं, अब दिल है न दिल के अरमां हैं, अब दिल है न दिल के अरमां हैं बस मैं हूँ मेरी तन्हाई है, सीने में सुलगते हैं अरमां ... ना तुझसे गिला कोई हमको ना कोई शिकायत दुनिया से, ना कोई शिकायत दुनिया से, दो चार कदम जब मंजिल थी, दो चार कदम जब मंजिल थी किस्मत ने ठोकर खाई है सीने में सुलगते हैं अरमां .... कुछ ऐसी आग लगी मन में, जीने भी न दे, मरने भी न दे, जीने भी न दे, मरने भी न दे, चुप हूँ तो कलेजा जलता है, चुप हूँ तो कलेजा जलता है, बोलूँ तो तेरी रुसवाई है, सीने में सुलगते हैं अरमां ....
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24-02-2013, 07:02 PM | #14 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया,
फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया वो घड़ी याद है, जब तुम से मुलाक़ात हुयी, इक इशारा हुआ, दो हाथ बंधे, बात हुई, देखते, दखते दिन ढल गया और रात हुयी, वो समा आज तलक दिल से भुलाया न गया हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया क्या खबर थी कि मिले हैं तो बिछड़ने के लिए, किस्मतें अपनी बनायी हैं बिगड़ने के लिए, प्यार का ख्वाब सजाया था, उजड़ने के लिए, इस तरह उजड़ के फिर हमसे बसाया न गया हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया याद रह जाती हैं, और वक्त गुजर जाता है, फूल खिलता ही है, और खिल के बिखर जाता है, सब चले जाते हैं, कब दर्द-ए-जिगर जाता है, दाग जो तूने दिया, दिल से मिटाया न गया । हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया
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24-02-2013, 08:55 PM | #15 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
बहुत बढ़िया जयजी, आपने तलत साहब के गाए कुछ गीत प्रस्तुत कर सूत्र को बहूपयोगी बना दिया। धन्यवाद।
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