29-01-2013, 11:48 PM | #11 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
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30-01-2013, 12:13 PM | #12 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
रजनीश जी, उमर खैय्याम की रुबाइयां से रूबरू करवाने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन।
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05-02-2013, 10:42 PM | #13 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
ताहा नसीम:
पा बस्ता-ए-ज़ंजीर पे रहमत हो तेरी ज़िन्दानी-ए-तक़दीर पे रहमत हो तेरी (कैद) मयखाने सिम्त उठते क़दमों पे करम इस दस्ते-कदह गीर पे रहमत हो तेरी. (प्याला) *** प्रोफ़ेसर वाकिफ़: इंकार का मारा हुआ रोता ही रहेगा ये चर्ख ख़ुशी दहर की खोता ही रहेगा हाँ छोड़ बखेड़ों को मेरा जाम तो भर दुनियां में जो होता है वो होता ही रहेगा. दुनिया को ये फिरदौस का हैकर क्या है खबर साक़ी दे जन्नत-ओ-कौसर क्या है यां भी वही जन्नत में वही साक़ी-ओ-मय कौनीन में उन दोनों से बेहतर क्या है. |
06-02-2013, 10:04 PM | #14 | |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Quote:
रजनीश जी ज्यादा तो कुछ कहने की हिम्मत नही है हां अलेक्क जी ने जो भी कहा इन पंक्तियोंके १०० प्रतिशित सही कहा है |
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07-02-2013, 10:12 AM | #15 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Nice work! Rajnish ji.
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07-02-2013, 10:30 AM | #16 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
सोमबीर जी, आपकी खैयाम की रुबाइयों के बारे में सुन्दर प्रतिक्रिया और मेरे प्रयत्न की प्रशंसा करने के लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ. मैं चाहता हूँ कि जहाँ आप प्रशंसा योग्य सामग्री की प्रशंसा करते हैं उसी प्रकार जहाँ आपको कोई कमी दिखाई दे तो उस पर भी अपनी सम्मति से अवश्य अवगत कराते रहें ताकि भविष्य में गलतियों के दोहराव से बच सकूँ.
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09-02-2013, 11:07 PM | #17 | |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Quote:
अभिषेक जी, पुंडीर जी और सौरव पॉल जी, आप सब का इस सूत्र पर अपनी टिप्पणी देने के लिए और पसंद करने के लिए आभार प्रकट करता हूँ. धन्यवाद. |
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09-02-2013, 11:32 PM | #18 | |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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10-02-2013, 05:09 AM | #19 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
बहुत सुंदर
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
10-02-2013, 03:50 PM | #20 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
आप बिलकुल ठीक फरमा रहे हैं, अलैक जी. दोस्तोयेव्स्की और गोर्की तो विश्व साहित्य के सिरमौर हैं और इनको मैं कैसे भूल सकता हूँ (इन दोनों की मीर प्रकाशन द्वारा हिन्दी में जारी कुछ पुस्तकें बड़ी हिफाज़त से मेरे पास रखी हैं). लिस्ट बड़ी न हो जाए इस डर से यह नाम शामिल न हो सके. हाँ, पेब्लो नेरुदा को अधिक नहीं पढ़ पाया. हिंदी पत्रिकाओं तथा कुछ वेब साइट्स के माध्यम से ही उनको पढ़ा है. एक नाम यहाँ अवश्य जोड़ना चाहूंगा -अलेक्ज़ेन्डर सोल्ज्हेनित्सिन -जिनके दो उपन्यासों 'A day in the life of Evan Denisovich' तथा 'cancer Ward' ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया. फिर से इन सभी की याद दिलाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, अलैक जी.
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