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Old 09-03-2013, 04:41 PM   #1
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Default भारतीय गणितज्ञ

सिन्धु सरस्वती सभ्यता और वेदकाल से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है।
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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Old 09-03-2013, 04:42 PM   #2
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Default Re: भारतीय गणितज्ञ

ईसा पूर्व

याज्ञवल्क्य, शतपथ ब्राह्मण के एक ऋषि और ज्योतिषविद्
लगध - वेदाङ्ग ज्योतिष के रचयिता। 1350 ई पू
बौधायन, शुल्ब सूत्र 800 ई. पू
मानव, शुल्ब सूत्र 750 ई पू
आपस्तम्ब, शुल्ब सूत्र 700 ई पू
अक्षपाद गोतम, न्याय सूत्र 550 ई पू
कात्यायन, शुल्ब सूत्र 400 ई पू
पाणिनि, 400 ई पू, अष्टाध्यायी
पिङ्गल, 400 ई पू छन्दशास्त्र
भरत मुनि, 400 ई पू, अलङ्कार शास्त्र, सङ्गीत
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Old 09-03-2013, 04:43 PM   #3
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Default Re: भारतीय गणितज्ञ

ईस्वी सन् 1-1000

आर्यभट - 476-550, ज्योतिष
यातिवृषभ (लगभग 500-570) - दूरी तथा समय मापने की इकाइयों की समीक्षा
वराहमिहिर, ज्योतिष
भास्कर प्रथम, 620, ज्योतिष
ब्रह्मगुप्त - ज्योतिष
मतङ्ग मुनि - सङ्गीत
विरहङ्क (750) -
श्रीधराचार्य 750
लल्ल, 720-790, ज्योतिष
गोविन्दस्वामिन् (850)
वीरसेन
महावीर (850)
जयदेव (850)
पृथूदक, 850
हलायुध, 850
आर्यभट २, 920-1000, ज्योतिष
वटेश्वर (930)
मञ्जुल, 930
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Old 09-03-2013, 04:45 PM   #4
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Default Re: भारतीय गणितज्ञ

ईस्वी सन् 1000-1800

ब्रह्मदेव, 1060-1130
श्रीपति, 1019-1066
गोपाल -
हेमचन्द्र -
भास्कर द्वितीय - ज्योतिष
गङ्गेश उपाध्याय, 1250, नव्य न्याय
पक्षधर, नव्य न्याय
शंकर मिश्र, नव्य न्याय
माधव - ज्योतिष
परमेश्वर (1360-1455), ज्योतिष
नीलकण्ठ सोमयाजि,1444-1545 - ज्योतिष
महेन्द्र सूरी (1450)
शङ्कर वारियर (c. 1530)
वासुदेव सर्वभौम, 1450-1525, नव्य न्याय
रघुनाथ शिरोमणि, (1475-1550), नव्य न्याय
ज्येष्ठदेव , 1500-1610, ज्योतिष
अच्युत पिशराटि, 1550-1621,
मथुरानाथ तर्कवागीश, c. 1575, नव्य न्याय
जगदीश तर्कालङ्कार, c. 1625, नव्य न्याय
गदाधर भट्टाचार्य, c. 1650, नव्य न्याय
मुनीश्वर (1650)
कमलाकर (1657)
जगन्नाथ सम्राट (1730)
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Old 09-03-2013, 04:46 PM   #5
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Default Re: भारतीय गणितज्ञ

ईस्वी सन् 19वीं सदी

श्रीनिवास रामानुजन् (1887-1920)
ए ए कृष्णस्वामी अयङ्गार (1892-1953)
प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस (1893-1972
सत्येन्द्र नाथ बसु (1894-1974)
सञ्जीव शाह (1803- 1896)
रघुनाथ पुरुषोत्तम परञ्जपे
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Old 09-03-2013, 04:47 PM   #6
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ईस्वी सन् 20वीं सदी

राज चन्द्र बसु (1901-1987)
सर्वदमन चावला (1907-1995)
सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (1910-1995)
हरीश चन्द्र (1923-1983)
कलियमपुडि राधाकृष्ण राव (1920-)
श्रीराम शंकर अभयङ्कर (1930-)
वशिष्ठ नारायण सिंह
डा.सुरेश चन्द्र मिश्रा (1950-)
डा.रामेन्द्र सिंह भदौरिया (1957-)
मञ्जुल भार्गव (1975 - )
आनन्द किशोर (1991 - )
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Old 16-03-2013, 06:25 PM   #7
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महर्षि याज्ञवल्क्य /

ये ब्रह्माजी के अवतार है।

यज्ञ में पत्नी सावित्री की जगह गायत्री को स्थान देने पर सावित्री ने श्राप दे दिया।

वे ही कालान्तर में याज्ञवल्क्य के रूप में चारण ॠषि के यहाँ जन्म लिया।

वैशम्पायन जी से यजुर्वेद संहिता एवं ॠगवेद संहिता वाष्कल मुनि से पढ़ी।

वैशम्पायन के रुष्ट हो जाने पर यजुः श्रुतियों को वमन कर दिया तब सुरम्य मन्त्रों को अन्य ॠषियों ने तीतर बनकर ग्रहण कर लिया। तत्पश्चात सूर्यनारायण भगवान से वेदाध्ययन किया।

श्री तुलसीदास जी इन्हें परम विवेकी कहा।*

इन्हें वेद ज्ञान हो जाने पर लोग बड़े उत्कट प्रश्न करते थे तब सूर्य ने कहा जो तुमसे अतिप्रश्न तथा वाद-विवाद करेगा उसका सिर फट जायेगा।

शाकल्य ॠषि ने उपहास किया तो उनका सिर फट गया
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Old 16-03-2013, 06:26 PM   #8
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वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषियों तथा उपदेष्टा आचार्यों में महर्षि याज्ञवल्क्य का स्थान सर्वोपरि है। ये महान अध्यात्म-वेत्ता, योगी, ज्ञानी, धर्मात्मा तथा श्री रामकथा के मुख्य प्रवक्ता हैं। भगवान सूर्य की प्रत्यक्ष कृपा इन्हें प्राप्त थी। पुराणों में इन्हें ब्रह्मा जी का अवतार बताया गया है। श्रीमद्भागवत*में आया है कि ये देवरात के पुत्र हैं
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Old 26-03-2013, 09:49 PM   #9
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महान खगोलविद - आर्यभट
प्राचीन भारत के महान खगोलविद व गणितज्ञ आर्यभट के बारे में काफी कुछ कहा जाता है औरलिखा जाता है, लेकिन सच्*चाई यह है कि उनके बारे में प्रामाणिक तौर पर बहुत कम जानकारीउपलब्*ध है। उनके व्*यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती।हम यह भी नहीं जानते कि वे कहां के रहनेवाले थे और उनका जन्*म किस जगह पर हुआ था। यहांप्रस्*तुत उनकी प्रतिमा का फोटो विकिपीडिया से उद्धृत है। यह प्रतिमा पुणे में है, लेकिन चूंकिआर्यभट की वेश-भूषा के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह प्रतिरूप कलाकारकी परिकल्पना की ही उत्पत्ति है।
आर्यभट के बारे में हमारी जानकारी का एकमात्र आधार उनकी अमर कृति आर्यभटीय है, जिसकेबारे में कहा जाता है कि ज्*योतिष पर प्राचीन भारत की सर्वाधिक वैज्ञानिक पुस्*तक है। आर्यभटीयआर्यभट का एकमात्र उपलब्*ध ग्रंथ है। उन्*होंने अन्*य ग्रंथों की रचना भी की होगी, पर वे वर्तमान मेंनहीं मिलते। आर्यभटीय के एक श्*लोक में आर्यभट जानकारी देते हैं कि उन्*होंने इस पुस्*तक कीरचना कुसुमपुर में की है और उस समय उनकी आयु 23 साल की थी। वे लिखते हैं : ''कलियुग के3600 वर्ष बीत चुके हैं और मेरी आयु 23 साल की है, जबकि मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूं।''
भारतीय ज्*योतिष की परंपरा के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था। इसहिसाब से 499 ईस्*वी में आर्यभटीय की रचना हुई। अत: आर्यभट का जन्*म 476 में होने की बातकही जाती है।
बिहार की मौजूदा राजधानी पटना को प्राचीनकाल में पाटलीपुत्र, पुष्*पपुर और कुसुमपुर भी कहाजाता था। इसी आधार पर माना जाता है कि आर्यभट का कुसुमपुर आधुनिक पटना ही है। लेकिनइस मत से सभी सहमत नहीं हैं। आर्यभट के ग्रंथ का दक्षिण भारत में अधिक प्रचार रहा है औरमलयालम लिपि में इस ग्रंथ की हस्*तलिखित प्रतियां मिली हैं। इस आधार पर आर्यभट के कर्नाटकया केरल का निवासी होने की संभावना भी जताई जाती है।
प्राचीन भारत के खगोलविदों में आर्यभट के विचार सर्वाधिक वैज्ञानिक व क्रांतिकारी थे। प्राचीन कालमें पृथ्*वी को स्थिर माना जाता था। किंतु आर्यभट ने कहा कि पृथ्*वी गोल है और यह अपने अक्ष परघूमती है, यानी इसकी दैनंदिन गति है। इस सत्*य वचन को कहनेवाले आर्यभट भारत के एकमात्रज्*योतिषी थे। हालांकि आर्यभट ने यह नहीं कहा था कि पृथ्*वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
आर्यभट ग्रहणों के असली कारण जानते थे। उन्*होंने स्*पष्*ट तौर पर लिखा है, '' चंद्र जब सूर्य कोढक लेता है और इसकी छाया पृथ्*वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है। इसी प्रकार पृथ्*वी की छायाजब चंद्र को ढक लेती है तो चंद्रग्रहण होता है।''
वस्*तुत: आर्यभट ने भारत में गणित-ज्*योतिष के अध्*ययन की एक स्*वस्*थ परंपरा को जन्*मदिया था। उनकी रचना आर्यभटीय भारतीय विज्ञान की ऐसी महान कृति है जो यह साबित करती हैकि उस समय हमारा देश गणित-ज्*योतिष के क्षेत्र में किसी भी अन्*य देश से पीछे नहीं था। आर्यभटने आधुनिक त्रिकोणमिति और बीजगणित की कई विधियों की खोज की थी। इस महानखगोलशास्*त्री के नाम पर ही भारत द्वारा प्रक्षेपित पहले कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गयाथा। 360 किलो का यह उपग्रह अप्रैल 1975 में छोड़ा गया था।
ध्*यान रखने की बात है कि भारत में आर्यभट नाम के एक दूसरे ज्*योतिषी भी हुए हैं, परंतु वे पहलेआर्यभट जैसे प्रसिद्ध नहीं हैं। दूसरे आर्यभट का काल ईसा की दसवीं सदी माना जाता है तथाआर्यसिद्धांत नामक उनका एक ग्रंथ भी मिलता है।
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Old 26-03-2013, 09:52 PM   #10
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एक भारतीय वैज्ञानिक के नाम से बना ‘बोसॉन’


सत्येंद्रनाथ बोस की गिनती भारत के महान भौतिकशास्त्री और गणितज्ञ के रूप में की जाती है. आपने इन दिनों चर्चा में चल रहे हिग्स बोसोन के बारे में सुना होगा.
सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए आठ हजार वैज्ञानिकों की टीम काम कर रही है. उसी महाप्रयोग में हिग्स बोसोन की बात कही जा रही है, जिसे गॉड पार्टिकल भी कहा गया है. दरअसल, ‘बोसोन’ नाम सत्येंद्रनाथ बोस के नाम से ही लिया गया है. यह भारत के लिए गौरव की बात है. भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कलकत्ता में हुआ था. उनकी आरंभिक शिक्षा कलकत्ता में ही हुई थी. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कालेज में दाखिला लिया.
वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक प्राप्त करते रहे और उन्हें कालेज में प्रथम स्थान आता रहा. सत्येंद्रनाथ बोस ने 1915 में गणित में एमएससी परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की. उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें कॉलेज के प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया. उन दिनों भौतिक विज्ञान में नयीं-नयीं खोजें हो रही थीं. जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्स प्लांक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. इसके अनुसार, ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्से में बांटा जा सकता है.
जब बोस ने आंइस्टीन के साथ जुड़ कर काम करना शुरू किया, तो उन्होंने मिल कर दुनिया के सामने एक नया स्टैटिस्टिकल थ्योरी पेश किया, जो एक खास तरह के कणों की प्रॉपर्टी बताता है. ऐसे कण ‘बोसोन’ कहलाते हैं. इस थ्योरी को ‘बोस-आंइस्टीन स्टैटिस्टिकल’ के नाम से जाना जाता है. भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें पदम विभूषण से नवाजा.
यह भारत के लिए अफ़सोस की बात है कि 20वीं सदी के इस महान भौतिकशास्त्री को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया, जबकि बोस-आंइस्टीन थ्योरी के आधार पर आगे काम करते हुए कुछ वैज्ञानिकों को नोबेल दिया गया. वर्ष 2001 में भौतिकी में दिया गया नोबेल पुरस्कार इसी थ्योरी पर आधारित था.
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