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Old 15-02-2014, 12:05 PM   #1
rajnish manga
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Default आँसुओं में बह जाती है उदासी

आँसुओं में बह जाती है उदासी
ओशो

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे के रोने की जो कला है, वह उसके तनाव से मुक्त होने की व्यवस्था है और बच्चे पर बहुत तनाव है। बच्चे को भूख लगी है और माँ दूर है या काम में उलझी है।

बच्चे को भी क्रोध आता है। और अगर बच्चा रो ले
, तो उसका क्रोध बह जाता है और बच्चा हलका हो जाता है, लेकिन माँ उसे रोने नहीं देगी।

मनोचिकित्सक कहते हैं कि उसे रोने देना
; उसे प्रेम देना, लेकिन उसके रोने को रोकने की कोशिश मत करना। हम क्या करेंगे? बच्चे को खिलौना पकड़ा देंगे कि मत रोओ। बच्चे का मन डाइवर्ट हो जाएगा। वह खिलौना पकड़ लेगा, लेकिन रोने की जो प्रक्रिया भीतर चल रही थी, वह रुक गई और जो आँसू बहने चाहिए थे, वे अटक गए और जो हृदय हलका हो जाता बोझ से, वह हलका नहीं हो पाया। वह खिलौने से खेल लेगा, लेकिन यह जो रोना रुक गया, इसका क्या होगा? यह विष इकट्ठा हो रहा है।

मनोचिकित्सक कहते हैं कि बच्चा इतना विष इकट्ठा कर लेता है
, वही उसकी जिंदगी में दु:ख का कारण है। और वह उदास रहेगा। आप इतने उदास दिख रहे हैं, आपको पता नहीं कि यह उदासी हो सकता था न होती; अगर आप हृदयपूर्वक जीवन में रोए होते, तो ये आँसू आपकी पूरी जिंदगी पर न छाते; ये निकल गए होते। और सब तरह का रोना थैराप्यूटिक है। हृदय हलका हो जाता है।

रोने में सिर्फ आँसू ही नहीं बहते
, भीतर का शोक, भीतर का क्रोध, भीतर का हर्ष, भीतर के मनोवेश भी आँसुओं के सहारे बाहर निकल जाते हैं। और भीतर कुछ इकट्ठा नहीं होता है। तो स्क्रीम थैरेपी के लोग कहते हैं कि जब भी कोई आदमी मानसिक रूप से बीमार हो, तो उसे इतने गहरे में रोने की आवश्यकता है कि उसका रोआँ-रोआँ, उसके हृदय का कण-कण, श्वास-श्वास, धड़कन-धड़कन रोने में सम्मिलित हो जाए; एक ऐसे चीत्कार की जरूरत है, जो उसके पूरे प्राणों से निकले, जिसमें वह चीत्कार ही बन जाए।

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Old 15-02-2014, 12:12 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी

हजारों मानसिक रोगी ठीक हुए हैं चीत्कार से। और एक चीत्कार भी उनके न मालूम कितने रोगों से उन्हें मुक्त कर जाती है। लेकिन उस चीत्कार को पैदा करवाना बड़ी कठिन बात है। क्योंकि आप इतना दबाए हैं कि आप अगर रोते भी हैं तो रोना भी आपका झूठा होता है। उसमें आपके पूरे प्राण सम्मिलित नहीं होते। आपका रोना भी बनावटी होता है। ऊपर-ऊपर रो लेते हैं।

आँख से आँसू बह जाते हैं
, हृदय से नहीं आते। लेकिन चीत्कार ऐसी चाहिए, जो आपकी नाभि से उठे और आपका पूरा शरीर उसमें समाविष्ट हो जाए। आप भूल ही जाएँ कि आप चीत्कार से अलग हैं; आप एक चीत्कार ही हो जाएँ। तो कोई तीन महीने लगते हैं मनोवैज्ञानिकों को आपको रुलाना सिखाने के लिए। तीन महीने निरंतर प्रयोग करके आपको गहरा किया जाता है।

करते क्या हैं इस थैरेपी वाले लोग
? आपको छाती के बल लेटा देते हैं जमीन पर। आपसे कहते हैं कि जमीन पर लेटे रहें और जो भी दु:ख मन में आता हो, उसे रोकें मत, उसे निकालें। रोने का मन हो रोएँ; चिल्लाने का मन हो चिल्लाएँ।

तीन महीने तक ऐसा बच्चे की भाँति आदमी लेटा रहता है जमीन पर रोज घंटे
, दो घंटे। एक दिन, किसी दिन वह घड़ी आ जाती है कि उसके हाथ-पैर कँपने लगते हैं विद्युत के प्रवाह से। वह आदमी आँख बंद कर लेता है, वह आदमी जैसे होश में नहीं रह जाता, और एक भयंकर चीत्कार उठनी शुरू होती है। कभी-कभी घंटों चीत्कार चलती है। आदमी बिलकुल पागल मालूम पड़ता है, लेकिन उस चीत्कार के बाद उसकी जो-जो मानसिक तकलीफें थीं, वे सब तिरोहित हो जाती हैं।

यह जो ध्यान का प्रयोग मैं आपको कहा हूँ
, ये आपके जब तक मनावेग-रोने के, हँसने के, नाचने के, चिल्लाने के, चीखने के, पागल होने के- इनका निरसन नहो जाए, तब तक आप ध्यान में जा नहीं सकते। यही तो बाधाएँ हैं।

आप शांत होने की कोशिश कर रहे हैं और आपके भीतर वेग भरे हुए हैं
, जो बाहर निकलना चाहते हैं। आपकी हालत ऐसी है, जैसे केतली चढ़ी है चाय की। ढक्कन बंद है। ढक्कन पर पत्थर रखे हैं। केतली का मुँह भी बंद किया हुआ है और नीचे से आग भी जल रही है। वह जो भाप इकट्ठी हो रही है, वह फोड़ देगी केतली को। विस्फोट होगा। दस-पाँच लोगों की हत्या भी हो सकती है। इस भाप को निकल जाने दें। इस भाप के निकलते ही आप नए हो जाएँगे और तब ध्यान की तरफ प्रयोग शुरू हो सकता है।
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Old 15-02-2014, 04:18 PM   #3
Dr.Shree Vijay
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी


सुंदर जानकारी.............
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.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


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Old 15-02-2014, 06:43 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी

Quote:
Originally Posted by dr.shree vijay View Post

सुंदर जानकारी.............


सूत्र पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद.



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Old 15-02-2014, 06:57 PM   #5
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी

उदास रहने से उम्र घटती है

बढ़ती महंगाई, बेकारी एवं बेरोजगारी ने आज के वातावरण को उदास बना दिया है। आज देश के लगभग 70 प्रतिशत व्यक्ति उदासी की व्याधि से ग्रसित है।गुमसुम बैठे रहने से व्यक्ति की मनोदशा शनैः शनैः विकृत रूप धारण करती जाती है और वह अपराधी की ओर प्रवृत्त होता जाता है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण से भी यह साबित हो चुका है कि उदास रहने से उम्र घटती है। आज के कलुषित वातावरण से उन्मुक्त हंसी गुम होती जा रही है।

ऐसे बहुत मिलेंगे जो उदासी को ओढ़े होंगे। अनेक लोग इस बात को समझ नहीं पाते कि उन्हें अंदर से क्या हो रहा है? बस वे अपने आप को गुमसुम व अकेला महसूस करते हैं। मानव आज बेहद व्यस्त है और ऐसे में वह अपने सामाजिक दायित्वों को निर्वाह कर पाने में भी अक्षम साबित हो रहा है। अपने विचारों के अदान-प्रदान की स्थिति को सदैव अनुकूल बनाये रखने से आप अपनी उदासी को हमेशा के लिए भगा सकते हैं।

निराश एवं उदासी व्यक्ति में मानसिक अशक्तता उत्पन्न कर देती है। युवाओं एवं बुजुर्गों में उदासी अधिक मात्रा में पाई जाती है। युवाओं को रोजगार की चिन्ता, परीक्षा में असफलता एवं प्रेम में असफलता बुरी तरह निराशा कर देते हैं जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य गिरता जाता है तथा वे बुरे कामों एवं व्यसनों में लग जाते हैं।

इसी प्रकार वृध्दों में भी उदासी की भावना अधिक होती है। अधिकांश बुजुर्ग व्यक्ति एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं। अकेलेरहने से व्यक्ति स्वस्थ चिंतन नहीं कर पाता था तथा उसे मानसिक अवसाद आ घेरते हैं। हाल ही में किए गए वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि उदासी, निराशा, एवं हताशा से व्यक्ति की उम्र घटती हैं।
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Old 15-02-2014, 07:01 PM   #6
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी

उदास रहने से व्यक्ति का किसी भी कार्य करने में मन नहीं लगता। वह स्वयं को एकाकी महसूस करता है। हर क्षेत्र में उसे नीरसता प्रतीत होती हैं। उसका संबंध खुशी एवं प्रसन्नता से बिल्कुल टूट जाता है। जीना तक बेमानी लगता है। ऐसे में वह क्षणिक उत्तेजना अथवा आवेग के वशीभूत हो या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता हैं। अथवा स्वस्थ चिंतन के अभाव में वह दर्ुव्यसनों को अपनाकर बुरे कर्मों में लग जाता है।

यदि आपका दिल किसी भी काम मेंनहीं लगता, यदि आपके कुछ भी अच्छा नहीं लगता, यदि आपको भविष्य की आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती है तो निश्चित ही आपको उदासी ने घेर रखा है। यदि आपकी हंसी गुम हो चुकी है, हंसते, खेलते चेहरे भी अच्छे न लगें, प्यारे व प्रिय व्यक्ति से भी मिलने की इच्छा न हो तो आपको बेहद खतरनाक निराशा, हताशा एवं उदासीनता रूपी मानसिक व्याधियों ने घेर लिया है। यदि आप स्वयं में ये लक्षण पाते हैं तो सावधान हो जायें। आप निम्नलिखित उपायों को अपना कर अपने जीवन को पुनः सरल एवं खुशहाल बना सकते हैं।

नियमित व्यायाम करने से व्यक्ति अपने आपको तरोताजा एवं स्वस्थ महसूस करता है। नियमित व्यायाम तमाम व्याधियों का सरलतम उपचार हैं। डा. राबर्ट एस. ब्राउन के अनुसार व्यायाम से आदमी ऐसे रसायनिक एवं मानसिक परिवर्तन महसूस करता है जिससे वह उत्तरोत्तर मानसिक स्वास्थ्य को प्राप्त करता हैंव्यायाम से रक्त में हार्मोन्स का स्तर बदल जाता है। मनोदशा को प्रभावित करने वाले मस्तिष्क के रसायनिक पदार्थ बीटा एंडर्फिन की मात्रा भी व्यायाम से बढ़ती है।

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Last edited by rajnish manga; 15-02-2014 at 08:01 PM.
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Default Re: आँसुओं में बह जाती है उदासी

उदासीनता की मनोदशा में व्यक्ति स्वयं को असहाय, निर्बल एवं हीन भावना से ग्रस्त पाता है लेकिन व्यायाम व्यक्ति में एक विश्वास जगाता है कि वह असहाय नहीं है। व्यक्ति स्वयं को प्रत्येक कार्य के लिए सक्षम एवं चुस्त महसूस करता है। साधारण व्यायाम जैसे दौड़ना, रस्सी कूदना अथवा योगासन करने से आपके शरीर को अधिक से अधिक मात्रा में आक्सीजन मिलती है जो मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। नियमित व्यायाम करने से थोड़े दिन बाद ही आप स्वयं को मानसिक रूप में स्वस्थ महसूस करेंगे।

समस्याओं को सुलझाएं- कुछ लोग उदासी को दूर करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते हैं लेकिन इससे उदासी हमेशा के लिए दूर नहीं चली जाती। उदासी को दूर करने के लिए आपको सतर्कता, समस्या का समाधान एवं सचेष्ट रहने की आवश्यकता होती है। स्वयं को सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत करें। जैसे कि यदि आपके किसी मित्र ने आपको यह कह दिया कि आप फलां कार्य नहीं कर सकते तो स्वयं की मनोदशा को उस कार्य को करने के अनुकूल बनाएं। फिर आप देखेंगे कि दुनिया की कोई ताकत आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने पर आपको उदास नहीं बना सकती।

पौष्टिक भोजन कीजिएः- कहा जाता रहा है कि जैसा खाएं अन्न, वैसा रहे मन।चिकित्सकों की आम राय है कि हम जैसा भोजन करते हैं, तदनुरूप ही उसका असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। विटामिन बीएवं अमीनों अम्ल का मानसिक स्वास्थ्य पर विशिष्ट प्रभाव होता है। आमतौर पर देखा जाता है कि संवेदनशील लोगों के भोजन में किसी एक पोषक तत्व की कमी भी दुशिंचताओं से घेर लेती है। वस्तुतः पौष्टिक आहार हमारी मनः स्थिति को उदासी से मुक्त रखता है।

दवाओं का सेवन सावधानी से कीजिएः- कभी-कभी कुछ दवाइयों के नियमित सेवन के पश्चात उनकी प्रतिक्रिया भी उदासी को जन्म देती है। गर्भ निरोध के लिए खाई जाने वाली दवाएं, दर्दनाशक दवाएं, एंटीबायोटिक दवाएं हाईब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने वाली दवाओं आदि के प्रतिक्रिया स्वरूप भी उदासी का प्रभाव बढ़ सकता है।

मानसिक अवसाद बढ़ने से आप में उदासी की भावना घर कर सकती है। इस कारण आपको निराशा, हताशा चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, किसी काम में दिल न लगना, एकाग्रता का भंग हो जाता है, आत्महत्या जैसे हीन विचारों का अनुभव हो सकता है।

यदि ये लक्षण आपको स्वयं में नजर आएं तो आप उपर्युक्त बातों पर विशेष ध्यान दें तथा शीघ्र ही अपने चिकित्सक से परामर्श लें। यकीनन इससे आपकी उदासी दूर हो जाएगी और आप स्वयं को स्वस्थ महसूस करेंगे। फिर आपको सब कुछ सामान्य एवं अच्छा लगने लगेगा।
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