15-11-2012, 05:20 PM | #1 |
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रामचर्चा :: प्रेमचंद
जन्म प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और सीता को सिंहासन पर बैठे देखा होगा और इनके सिंहासन के सामने कुछ फासले पर कागज और बांसों का बड़ा पुतला देखा होगा। इस पुतले के दस सिर और बीस हाथ देखे होंगे। वह रावण का पुतला है। हजारों बरस हुए, राजा रामचन्द्र ने लंका में जाकर रावण को मारा था। उसी कौमी फतह की यादगार में विजयदशमी का मेला होता है और हर साल रावण का पुतला जलाया जाता है। आज हम तुम्हें उन्हीं राजा रामचन्द्र की जिंदगी के दिलचस्प हालात सुनाते हैं। |
15-11-2012, 05:21 PM | #2 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
गंगा की उन सहायक नदियों में, जो उत्तर से आकर मिलती हैं, एक सरजू नदी भी है। इसी नदी पर अयोध्या का मशहूर कस्बा आबाद है। हिन्दू लोग आज भी वहां तीर्थ करने जाते हैं। आजकल तो अयोध्या एक छोटासा कस्बा है; मगर कई हजार साल हुए, वह हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा शहर था। वह सूर्यवंशी खानदान के नामीगिरामी राजाओं की राजधानी थी। हरिश्चन्द्र जैसे दानी, रघु जैसे ग़रीब परवर, भगीरथ जैसे वीर राजा इसी सूर्यवंश में हुए। राजा दशरथ, इसी परसिद्ध वंश के राजा थे। रामचन्द्र राजा दशरथ के बेटे थे।
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15-11-2012, 05:21 PM | #3 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
उस जमाने में अयोध्या नगरी विद्या और कला की केन्द्र थी। दूरदूर के व्यापारी रोजगार करने आते थे। और वहां की बनी हुई चीजें खरीदकर ले जाते थे। शहर में विशाल सड़कें थीं। सड़कों पर हमेशा छिड़काव होता था। दोनों ओर आलीशान महल खड़े थे। हर किस्म की सवारियां सड़कों पर दौड़ा करती थीं। अदालतें, मदरसे, औषधालय सब मौजूद थे। यहां तक कि नाटकघर भी बने हुए थे, जहां शहर के लोग तमाशा देखने जाते थे। इससे मालूम होता है कि पुराने जमाने में भी इस देश में नाटकों का रिवाज था। शहर के आसपास बड़ेबड़े बाग थे। इन बागों में किसी को फल तोड़ने की मुमानियत न थी। शहर की हिफाजत के लिए मजबूत चहारदीवारी बनी हुई थी। अंदर एक किला भी था। किले के चारों ओर गहरी खाई खोदी गयी थी, जिसमें हमेशा पानी लबालब भरा रहता था। किले के बुर्जों पर तोपें लगी रहती थीं। शिक्षा इतनी परचलित थी कि कोई जाहिल आदमी ूंढ़ने से भी न मिलता था। लोग बड़े अतिथि का सत्कार करने वाले, ईमानदार, शांतिपरेमी, विद्याभ्यासी, धर्म के पाबन्द और दिल के साफ थे। अदालतों में आजकल की तरह झूठे मुकदमे दायर नहीं किये जाते थे। हर घर में गायें पाली जाती थीं। घीदूध की इफरात थी। खेतों में अनाज इतना पैदा होता था कि कोई भूखा न रहने पाता था। किसान खुशहाल थे। उनसे लगान बहुत कम लिया जाता था। डाके और चोरी की वारदातें सुनाई भी न देती थीं। और ताऊन, हैजा वगैरा बीमारियों का नाम तक न था। वह सब राजा दशरथ की बरकत थी।
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15-11-2012, 05:21 PM | #4 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
एक रोज राजा दशरथ शिकार खेलने गये और घोड़ा दौड़ाते हुए एक नदी के किनारे जा पहुंचे। नदी दरख्तों की आड़ में थी। वहीं जंगल में अन्धक मुनि नामक एक अन्धा रहता था। उसकी स्त्री भी अंधी थी। उस वक्त उनका नौजवान बेटा श्रवण नदी में पानी भरने गया हुआ था। उसके कलशे के पानी में डूबने की आवाज सुनकर राजा ने समझा कि कोई जंगली हाथी नहा रहा है। तुरत शब्दवेधी बाण चला दिया। तीर नौजवान के सीने में लगा। तीर का लगना था कि वह जोर से चिल्लाकर गिर पड़ा। राजा घबराकर वहां गये तो देखा कि एक नौजवान पड़ा तड़प रहा है। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। बेहद अफसोस हुआ। नौजवान ने उनको लज्जित और दुःखित देखकर समझाया—अब रंज करने से क्या फायदा! मेरी मौत शायद इसी तरह लिखी थी। मेरे मांबाप दोनों अंधे हैं। उनकी कुटी वह सामने नजर आ रही है। मेरी लाश उनके पास पहुंचा देना। यह कहकर वह मर गया।
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15-11-2012, 05:22 PM | #5 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
राजा ने नौजवान की लाश को कन्धे पर रखा और अंधे के पास जाकर यह दुःखद समाचार सुनाया। बेचारे दोनों बुड्ढे, तिस पर दोनों आंखों के अंधे, और यही इकलौता बेटा उनकी जिंदगी का सहारा था—इसके मरने का समाचार सुनकर फूटकर रोने लगे। जब आंसू जरा थमे तो उन्हें राजा पर गुस्सा आया। उनको खूब जी भरकर कोसा और यह शाप देकर कि जिस तरह बेटे के शोक में हमारी जान निकल रही है उसी तरह तुम भी बेटे ही के शोक में मरोगे, दोनों मर गये। राजा दशरथ भी रोधोकर यहां से विदा हुए।
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15-11-2012, 05:22 PM | #6 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
राजा दशरथ के अब तक कोई संतान न थी। संतान ही के लिए उन्होंने तीन शादियां की थीं। बड़ी रानी का नाम कौशल्या था, मंझली रानी का सुमित्रा और छोटी रानी का कैकेयी। तीनों रानियां भी संतान के लिए तरसती रहती थीं। अंधे का शाप राजा के लिये वरदान हो गया। चाहे बेटे के शोक में मरना ही पड़े, बेटे का मुंह तो देखेंगे। ताज और तख्त का वारिस तो पैदा होगा। इस ख्याल से राजा को बड़ी तसकीन हुई। इसके कुछ ही दिन बाद अपने गुरु वशिष्ठ के मशविरे से राजा ने एक यज्ञ किया। इसमें बहुत से ऋषिमुनि जमा हुए और सबने राजा को आशीवार्द दिया। यज्ञ के पूरे होते ही तीनों ही रानियां गर्भवती हुईं और नियत समय के बाद तीनों रानियों के चार राजकुमार पैदा हुए। कौशल्या से रामचन्द्र हुए, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेयी से भरत। सारे राज में मंगलगीत गाये जाने लगे। परजा ने खूब उत्सव मनाया। राजा ने इतना सोनाचांदी दान किया कि राज में कोई निर्धन न रह गया। उनकी दिली कामना पूर्ण हुई। कहां एक बेटे का मुंह देखने को तरसते थे, कहां चारचार बेटे हो गये। घर गुलजार हो गया। ज्योतिहीन आंखें रोशन हो गयीं।
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15-11-2012, 05:22 PM | #7 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
चारों लड़कों का लालनपालन होने लगा। जब वह जरा सयाने हुए तो गुरु वशिष्ठ ने उन्हें शिक्षा देना शुरू किया। चारों लड़के बहुत ही जहीन थे, थोड़े ही दिनों में वेदशास्त्र सब खत्म कर लिये और रणविद्या में भी खूब होशियार हो गये। धनुविद्या में, भाला चलाने में, कुश्ती में, किसी फन में इनका समान न था। मगर उनमें घमण्ड नाम को भी न था। चारों बुजुर्गों का अदब करते थे। छोटों को भी वह सख्तसुस्त न कहते। उनमें आपस में बड़ी गहरी मुहब्बत थी। एक दूसरे के लिए जान देते थे। चारों ही सुन्दर, स्वस्थ और सुशील थे। उन्हें देखकर सबके मुंह से आशीवार्द निकलता था। सब कहते थे, यह लड़के खानदान का नाम रोशन करेंगे। यों तो चारों में एकसी मुहब्बत थी, मगर लक्ष्मण को रामचन्द्र से, शत्रुघ्न को भरत से खास परेम था। राजा दशरथ मारे खुशी के फूले न समाते थे।
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15-11-2012, 05:22 PM | #8 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
ताड़का और मारीच का वध एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के पद पर पहुंच गये थे। सभी ऋषि उनके सामने आदर से सिर झुकाते थे। मगर ज्ञानी होने पर भी वह किसी हद तक क्रोधी थे। किसी ने उनकी मजीर के खिलाफ काम किया और उन्होंने शाप दिया। इससे सभी राजेमहाराजे उनसे डरते थे; क्योंकि उनके शाप को कोई रद्द न कर सकता था। लड़ाई की विद्या में भी वह अद्वितीय थे। राजा दशरथ ने सिंहासन से उतर कर उनका स्वागत किया और उन्हें अपने सिंहासन पर बिठाकर बोले—आज इस गरीब के घर को अपने चरणों से पवित्र करके आपने मुझ पर बड़ा एहसान किया। मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताइये; वह सर आंखों पर बजा लाऊं। |
15-11-2012, 05:23 PM | #9 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
विश्वामित्र ने आशीवार्द देकर कहा—महाराज! हम तपस्वियों को राजदरबार की याद उसी समय आती है, जब हमें कोई तकलीफ होती है, या जब हमारे ऊपर कोई अत्याचार करता है। मैं आजकल एक यज्ञ कर रहा हूं; किन्तु राक्षस लोग उसे अपवित्र करने की कोशिश करते हैं। वह यज्ञ की वेदी पर रक्त और हिड्डयां फेंकते हैं। मारीच और सुबाहु दो बड़े ही विद्रोही राक्षस हैं। यह सारा फिसाद उन्हीं लोगों का है। मुझमें अपनी तपस्या का इतना बल है कि चाहूं तो एक शाप देकर उनकी सारी सेना को जलाकर राख कर दूं; पर यज्ञ करते समय क्रोध को रोकना पड़ता है। इसलिए मैं आपके पास फरियाद लेकर आया हूं। आप राजकुमार रामचन्द्र और लक्ष्मण को मेरे साथ भेज दीजिये, जिससे वह मेरे यज्ञ की रक्षा करें और उन राक्षसों को शिथिल कर दें। दस दिन में हमारा यज्ञ पूरा हो जायगा। राम के सिवा और किसी से यह काम न होगा।
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15-11-2012, 05:23 PM | #10 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
राजा दशरथ बड़ी मुश्किल में पड़ गये। राम का वियोग उन्हें एक क्षण के लिये सह्य न था। यह भय भी हुआ कि लड़के अभी अनुभवी नहीं हैं, डरावने राक्षसों से भला क्या मुकाबला कर सकेंगे। डरते हुए बोले—हे पवित्र ऋषि! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है; किन्तु इन अल्पवयस्क लड़कों को राक्षसों के मुकाबले में भेजते मुझे भय होता है। उन्हें अभी तक युद्धक्षेत्र का अनुभव नहीं है। मैं स्वयं अपनी सारी सेना लेकर आपके यज्ञ की रक्षा करने चलूंगा। लड़कों को साथ भेजने के लिए मुझे विवश न कीजिये।
विश्वामित्र हंसकर बोले—महाराज! आप इन लड़कों को अभी नहीं जानते। इनमें शेरों कीसी हिम्मत और ताकत है। मुझे पूरा विश्वास है कि ये राक्षसों को मार डालेंगे। इनकी तरफ से आप निडर रहिये। इनका बाल भी बांका न होगा। |
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