My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 29-06-2013, 08:52 AM   #1
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Smile प्रेरक प्रसंग

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में एक प्राईमरी स्कूल था। कक्षा चल रही थी।
अध्यापक ने बच्चों से एक प्रश्न किया यदि तुम्हें रास्ते में एक हीरा मिल जाए
तो तुम उसका क्या करोगे?

मैं इसे बेच कर कार खरीदूंगा एक बालक ने कहा।
एक ने कहा, मैं उसे बेच कर धनवान बन जाउंगा।
किसी ने कहा कि वह उसे बेच विदेश यात्रा करेगा।
चौथे बालक का उत्तर था कि, मैं उस हीरे के मालिक का पता लगा कर लौटा दूंगा।
अध्यापक चकित थे, फिर उन्होंने कहा कि, मानो खूब पता लगाने पर भी उसका मालिक न मिला तो?
बालक बोला, तब मैं हीरे को बेचूंगा और इससे मिले पैसे को देश की सेवा में लगा दूंगा।
शिक्षक बालक का उत्तर सुन कर गद्गद् हो गये और बोले, शाबास तुम बडे होकर सचमुच देशभक्त बनोगे।
शिक्षक का कहा सत्य हुआ और वह बालक बडा होकर सचमुच देशभक्त बना,
उसका नाम था, गोपाल कृष्ण गोखले।

Last edited by abhisays; 29-06-2013 at 08:55 AM.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 08:57 AM   #2
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

अपना अपना स्वभाव
एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।
भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।
भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 08:58 AM   #3
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

अहंकार की गति
एक मूर्तिकार उच्चकोटि की ऐसी सजीव मूर्तियाँ बनाता था, जो सजीव लगती थीं। लेकिन उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था।
उसे जब लगा कि जल्दी ही उसक मृत्यु होने वाली है तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिये उसने एकदम अपने जैसी दस मूर्तियाँ उसने बना डालीं और योजनानुसार उन बनाई गईमूर्तियों के बीच मे वह स्वयं जाकर बैठ गया।
यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी ग्यारह आकृतियाँ देखकर स्तम्भित रह गए। इनमें से वास्तविक मनुष्य कौन है- नहीं पहचान पाए। वे सोचने लगे, अब क्या किया जाए। मूर्तिकार के प्राण अगर न ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिये मूर्तियाँ तोड़ें तो कला का अपमान होगा।
अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार की स्मृति आई। उसने चाल चलते हुए कहा- "काश इन मूर्तियों को बनाने वाला मिलता तो मैं से बताता कि मूर्तियाँ तो अति सुंदर बनाई हैं, लेकिन इनको बनाने में एक त्रुटि रह गई।"
यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा कि मेरी कला में कमी कैसे रह सकत है, फिर इस कार्य में तो मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। वह बोल उठा-
"कैसी त्रुटि?"
झट से यमदूत ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, बस यही त्रुटि कर गए तुम अपने अहंकार में। क्या जनते नहीं कि बेजान मूर्तियाँ बोला नहीं करतीं।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 08:58 AM   #4
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

आत्मविश्वास है विजय
घटना है वर्ष १९६० की। स्थान था यूरोप का भव्य ऐतिहासिक नगर तथा इटली की राजधानी रोम। सारे विश्व की निगाहें २५ अगस्त से ११ सितंबर तक होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हुई थीं। इन्हीं ओलंपिक खेलों में एक बीस वर्षीय अश्वेत बालिका भी भाग ले रही थी। वह इतनी तेज़ दौड़ी, इतनी तेज़ दौड़ी कि १९६० के ओलंपिक मुक़ाबलों में तीन स्वर्ण पदक जीत कर दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई।
रोम ओलंपिक में लोग ८३ देशों के ५३४६ खिलाड़ियों में इस बीस वर्षीय बालिका का असाधारण पराक्रम देखने के लिए इसलिए उत्सुक नहीं थे कि विल्मा रुडोल्फ नामक यह बालिका अश्वेत थी अपितु यह वह बालिका थी जिसे चार वर्ष की आयु में डबल निमोनिया और काला बुखार होने से पोलियो हो गया और फलस्वरूप उसे पैरों में ब्रेस पहननी पड़ी। विल्मा रुडोल्फ़ ग्यारह वर्ष की उम्र तक चल-फिर भी नहीं सकती थी लेकिन उसने एक सपना पाल रखा था कि उसे दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनना है। उस सपने को यथार्थ में परिवर्तित होता देखने वे लिए ही इतने उत्सुक थे पूरी दुनिया वे लोग और खेल-प्रेमी।
डॉक्टर के मना करने के बावजूद विल्मा रुडोल्फ़ ने अपने पैरों की ब्रेस उतार फेंकी और स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर अभ्यास में जुट गई। अपने सपने को मन में प्रगाढ़ किए हुए वह निरंतर अभ्यास करती रही। उसने अपने आत्मविश्वास को इतना ऊँचा कर लिया कि असंभव-सी बात पूरी कर दिखलाई। एक साथ तीन स्वर्ण पदक हासिल कर दिखाए। सच यदि व्यक्ति में पूर्ण आत्मविश्वास है तो शारीरिक विकलांगता भी उसकी राह में बाधा नहीं बन सकती।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 08:59 AM   #5
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

उपयोगिता
एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।
इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।
शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"
गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती। इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 09:00 AM   #6
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

ऊँचमूच खाटली
दादी की कहानियों के राजकुमार की तरह एक दिन 'ऊँचमूच खाटली' ले के पड़ी थी, महादुखी। बापूजी ने देखा। मेरा मक़सद भी शायद वही था कि बापूजी देखें और जानें कि मैं कितनी दुखी हूँ। उन्हें मेरे दुख की गंभीरता का अनुमान हो गया था।
'क्या बात है बेटे, आज ऐसे क्यों लेटी हो?'
'कुछ नहीं!'
'कुछ तो है। मुझे नहीं बताओगी?'

बताने की बेताबी के कारण ही तो 'ऊँचमूच खाटली' लेकर पड़ी थी। लेकिन बिना अभिनय के बता देती तो मेरी तकलीफ़ के बड़ेपन का अनुमान कैसे होता!
'कुछ नहीं बस यों ही।'
'यों ही तो तुम कभी ऐसे लेटती नहीं हो। बताओ बेटे, हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।'
'. . .'
'क्या बात है, बोलो, घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।'
'बात तो कोई ऐसी नहीं है।'
'फिर भी।'
'हमारे स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहा है, मेरी सारी दोस्त भाग ले रहीं है। कोई नृत्य करेगी, कोई गाएँगी, कोई नाटक में भाग लेंगी। कितने लोग उन्हें देखेंगे। मुझे तो नाच, गाना, अभिनय कुछ भी नहीं आता।'
'तो क्या हुआ। बस इतनी-सी बात है। नाच, गाना, नाटक तो लोग देखते हैं, और थोड़े दिन में भूल जाते हैं। तुम तो कविता लिखती हो, कहानी लिखती हो, और यही अधिक बड़ी चीज़ है। ये चीज़ें सदियों तक पढ़ी जाएँगी, हमारे बाद भी पढ़ी जाएँगी। तुम्हारे स्कूल में कितने लड़के-लड़कियाँ कविता-कहानी लिखते हैं, बताओ?'

बापूजी की बात के ख़त्म होने तक तो भीतर की फिजाँ बदल गई थी। स्टेज-ग्रंथी उस दिन खुली तो फिर कभी पनपने नहीं पाई।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 09:00 AM   #7
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

कानून का पालन
नागपुर की घटना है। कृष्ण माधव घटाटे गुरु जी मा. स. गोलवरकर को कार में कहीं ले जा रहे थे। कार पटवर्धन मैदान के निकट चौराहे के पास पहुँची। यह चौराहा काफ़ी छोटा है।
उस समय चौराहे पर यातायात पुलिस नहीं थी। इसलिए कृष्ण माधव घटाटे ने चौराहे का चक्कर न लगाते हुए कार को दायीं ओर मोड़ना चाहा। इस पर गुरु जी एकदम नाराज़ हो उठे ओर कृष्ण माधव घटाटे को पुन: चौराहे का चक्कर लगा कर ही कार दायीं ओर घुमाने को विवश किया।

उन्होंने कहा, "कानून का पालन न करना भीरुता है।" पुलिस की अनुपस्थिति में कानून तोड़ना कोई साहस की बात नहीं है। हमें कोई देख रहा है अथवा नहीं इसकी चिंता न करते हुए, हमें व्यक्तिगत अथवा सामाजिक क़ानूनों का पालन करना ही चाहिए, फिर इसमें हमें कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 09:00 AM   #8
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, काँच की बरनी और दो कप चाय हमें याद आती है। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बड़ी बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई? हाँ... आवाज आई...फिर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फिर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फिर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फिर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?
हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा.. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोड़ी सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगड़े है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फेंक, मेडिकल चेक-अप करवाओ.. टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है.. छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं? प्रोफ़ेसर मुसकुराए, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 09:01 AM   #9
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

कुशल कलाकार
फ़िल्म जगत के जाने-माने कलाकार बलराज साहनी अपनी विख्यात फ़िल्म "दो बीघा ज़मीन" तैयार कर रहे थे। उसमें उनकी भूमिका एक रिक्शा चालक की थी।
वह ठहरे पढ़े-लिखे शहरी, रिक्शा-चालक होता है, बेपढ़ा देहाती। वह सोचने लगे कि उनकी भूमिका कहीं दर्शकों को बनावटी न लगे। अत: उन्होंने उसकी परीक्षा करने का एक अनोखा ढंग निकाला।

उन्होंने रिक्शा-चालक के कपड़े पहने और इधर-उधर घूमते हुए एक पान वाले की दुकान पर पहुँचे। थोड़ी देर तक एक ओर को चुपचाप खड़े रहने के बाद उन्होंने पनवाड़ी से देहाती भाव-भंगिमा में कहा, "भैया, सिगरेट का एक पैकेट देना।"
पनवाड़ी ने निगाह उठाकर देखा, सामने एक आदमी खड़ा है, जिसके सिर पर एक अंगोछा लिपटा है और बदन पर देहाती आदमी के कपड़े। उसने उसे दुतकारते हुए कहा, "जा-जा, बड़ा आया है सिगरेट लेने वाला!"

बलराज साहनी को उसके व्यवहार से बड़ी खुशी हुई और उन्हें भरोसा हो गया कि वह बड़ी खूबी से रिक्शा-चालक की भूमिका अदा कर सकेंगे।
कहने की आवश्यकता नहीं कि वह फ़िल्म बड़ी सफल हुई और उसका श्रेय मिला रिक्शा-चालक की भूमिका निभाने के लिए बलराज साहनी को।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 29-06-2013, 09:01 AM   #10
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 16
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: प्रेरक प्रसंग

कोई अन्याय नहीं किया
भिक्षा ले कर लौटते हुए एक शिक्षार्थी ने मार्ग में मुर्गे और कबूतर की बातचीत सुनी। कबूतर मुर्गे से बोला- “मेरा भी क्या भाग्य है? भोजन न मिले, तो मैं कंकर खा कर भी पेट भर लेता हूँ। कहीं भी सींक, घास आदि से घोंसला बना कर रह लेता हूँ। माया मोह भी नहीं, बच्चे बड़े होते ही उड़ जाते हैं। पता नहीं ईश्वर ने क्यों हमें इतना कमजोर बनाया है? जिसे देखो वह हमारा शिकार करने पर तुला रहता है। पकड़ कर पिंजरे में कैद कर लेता है। आकाश में रहने को जगह होती तो मैं कभी पृथ्वी पर कभी नहीं आता।"

मुर्गे ने भी जवाब दिया-“ मेरा भी यही दुर्भाग्य है। गंदगी में से भी दाने चुन चुन कर खा लेता हूँ। लोगों को जगाने के लिए रोज सवेरे सवेरे बेनागा बाँग देता हूँ। पता नहीं ईश्वर ने हमें भी क्यों इतना कमजोर बनाया है? जिसे देखो वह हमें, हमारे भाइयों से ही लड़ाता है। कैद कर लेता है। हलाल तक कर देता है। पंख दिये हैं, पर इतनी शक्ति दी होती कि आकाश में उड़ पाता तो मैं भी कभी भी पृथ्वी पर नहीं आता।“

शिष्य ने सोचा कि अवश्य ही ईश्वर ने इनके साथ अन्याय किया है। आश्रम में आकर उसने यह घटना अपने गुरु को बताई और पूछा-“ गुरुवर, क्या ईश्वर ने इनके साथ अन्याय नहीं किया है?

ॠषि बोले- “ईश्वर ने पृ*थ्वी पर मनुष्य को सबसे बुद्धिमान प्राणी बनाया है। उसे गर्व न हो जाये, इसलिये शेष प्राणियों में गुणावगुण दे कर, मनुष्य को उनसे, कुछ न कुछ सीखने का स्वभाव दिया है। वह प्रकृति और प्राणियों में संतुलन रखते हुए, सृष्टि के सौंदर्य को बढ़ाए और प्राणियों का कल्याण करे।

मुर्गे और कबूतर में जो विलक्षणता ईश्वषर ने दी है, वह किसी प्राणी में नहीं दी है। मुर्गे जैसे छोटे प्राणी के सिर पर ईश्वर ने जन्मजात राजमुकुट की भाँति कलगी दी है। इसीलिए उसे ताम्रचूड़ कहते हैं। अपना संसार बनाने के लिए, उसे पंख दिये हैं किन्तु उसने पृथ्वी पर ही रहना पसंद किया। वह आलसी हो गया। इसलिए लम्बी उड़ान भूल गया। वह भी ठीक है, पर भोजन के लिए पूरी पृथ्वी पर उसने गंदगी ही चुनी। गंदगी में व्याप्त जीवाणुओं से वह इतना प्रदूषित हो जाता है कि उसका शीघ्र पतन ही सृष्टि के लिए श्रेयस्क*र है। बुराई में से भी अच्छाई को ग्रहण करने की सीख, मनुष्य को मुर्गे से ही मिली है। इसलिए ईश्वर ने उसके साथ कोई अन्याय नहीं किया है।“

”किन्तु ॠषिवर, कबूतर तो बहुत ही निरीह प्राणी है। क्या उसके साथ अन्याय हुआ है?” शिष्य ने पूछा।

शिष्य, की शंका का समाधान करते हुए ॠषि बोले-“पक्षियों के लिए ईश्वर ने ऊँचा स्थान खुला आकाश दिया है, फि*र भी जो पक्षी पृथ्वी के आकर्षण से बँधा, पृथ्वी पर विचरण पसंद करता है, तो उस पर हर समय खतरा तो मँडरायेगा ही। प्रकृति ने भोजन के लिए अन्न बनाया है, फि*र कबूतर को कंकर खाने की कहाँ आवश्योकता है। कबूतर ही है, जिसे आकाश में बहुत ऊँचा व दूर तक उड़ने की सामर्थ्य है। इसीलिये उसे “कपोत” कहा जाता है। वह परिश्रम करे, उड़े, दूर तक जाये और भोजन ढूँढे । “भूख में पत्थर भी अच्छे लगते हैं” कहावत, मनुष्य ने कबूतर से ही सीखी है, किन्तु अकर्मण्य नहीं बने। कंकर खाने की प्रवृत्ति से उसकी बुद्धि कुंद हो जाने से कबूतर डरपोक और अकर्मण्य बन गया। यह सत्य है कि पक्षियों में सबसे सीधा पक्षी कबूतर ही है, किन्तु इतना भी सीधा नहीं होना चाहिए कि अपनी रक्षा के लिए उड़ भी नहीं सके। बिल्ली का सर्वप्रिय भोजन चूहे और कबूतर हैं। चूहा फि*र भी अपने प्राण बचाने के लिए पूरी शक्ति से भागने का प्रयास करता है, किंतु कबूतर तो बिल्ली या खतरा देख कर आँख बंद कर लेता है और काल का ग्रास बन जाता है। जो प्राणी अपनी रक्षा स्वयं न कर सके, उसका कोई रक्षक नहीं। कबूतर के पास पंख हैं, फि*र भी वह उड़ कर अपनी रक्षा नहीं कर सके, तो यह उसका दोष। ईश्वर ने उसके साथ भी कोई अन्याय नहीं किया है।
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:54 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.