03-04-2015, 12:17 PM | #1 |
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महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
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03-04-2015, 12:18 PM | #2 |
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Re: महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
बोस इसी साड़ी ल्यादे दु:ख दूर उमर भर का हो
ना मोटा ना पतला लत्ता खद्दर सुथरी शान का हो ठापा और चतेरा छापा फैशन नए डिजान का हो साड़ी कै म्हां खिंचा होया नक्सा हिन्दुस्तान का हो रामचन्द्र और लक्ष्मण फोटू वीर हनुमान का हो चारों पल्यां ऊपर चित्र सावित्री सतवान का हो पीळा, हरा, सफेद रंग आजादी की दुकान का हो बीच महात्मा का फोटू पास धरा चरखा हो पीळा, हरा, सफेद तिरंगा चढ़रा खूब कमाल का हो साड़ी के म्हां कढ़ा कसीदा आज और काल का हो कांग्रेसी टोपी का फोटू बिल्कुल नई चाल का हो राधे और कृष्ण का फोटू ईश्वर दीन-दयाल का हो मौलाना, पटेल का फोटू माहे राजगोपाल का हो विजय लक्ष्मी देवी फोटू, पं. जवाहर लाल का हो जब साड़ी नै ओढूंगी स्वराज म्हारे घर का हो मथुरा बिन्द्रावन का फोटू अयोध्या और कांशी का हो चन्द्रमासा खिला हुआ चौदस पूर्णमासी का हो आगरे दिल्ली का फोटू माहे नक्सा झांसी का हो जलियांवाळा बाग का फोटू पापी डायर की बदमासी का हो हिलता दे दिखाई तख्ता भगत सिंह की फाँसी का हो इस साड़ी का ल्याणा देवर काम नहीं है हांसी का हो आजाद हिंद फौज का फोटू बोस उतरया सिंगापुर का हो जै तूं साड़ी ना लाया तै माणस ना कुछ काम का हो साड़ी कै मै लग्या हुआ खून मनुष जाम का हो लड़ती दिखै सेना नक्शा बर्मा और आसाम का हो जगह-जगह पै नाम लिखा सतगुरु मुन्शी राम का हो दयाचन्द का घर साड़ी मैं नक्शा माने गाम का हो छोटे-बड़े कवि सभी ताज मेरे सिर का हो
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03-04-2015, 12:19 PM | #3 |
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Re: महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
पाणी आली पाणी प्यादे, क्यूं अणबोल खड़ी होगी
के कूएं का नीर सपड़ग्या, ठाकै डोल खड़ी होगी नींबू और संतरे के मैं, गहरी छां जामण की परवा, पछवा, पवन चालरी, घटा ऊठरी सामण की तेरे बावन गज के दामण की, क्यूं मारकै झोल खड़ी होगी पंद्रा सोळा बीस बरस की, तेरी उमर हुई रंग छांटण की के ल्याई के ले ज्यागी, बाण छोड़दे नाटण की एक चीज दिल डाटण की, क्यूं लाकै मोल खड़ी होगी मीठी-मीठी बोलै प्यारी, कोए परदेशी मारया जा रूप गजब का लेरी बैरण, फोटू के मैं तारय़ा जा यो दिल तेरे पै बारया जा, क्यूं घूंघट खोल खड़ी होगी इतणा सोचै थी तै राणी, पाणी नै ना आणा था ठा कै दोघड़ चाल पड़ी, तनै पाणी जरुर पिलाणा था ‘दयाचंद’ का गाणा था, क्यूं डामांडोल खड़ी होगी
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03-04-2015, 12:19 PM | #4 |
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Re: महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
हाय-हाय रै जमींदारा, मेरा गात चीर दिया सारा ईख तेरे पात्तां नै
तुमसे ज्यादा हम चिरगे, गोरी देख म्हारे हाथां नै कदे धूप कदे छां आज्या, हाय जान मरण के म्हां आज्या कदे झाड़ा मैं पां आज्या, दे फोड़ कती लातां नै जूड़ा हलाकै जहरी छिड़गे, मुंह पै कई तत्तैये लड़गे बीर मर्द भीतर नै बड़गे, बचा-बचा गातां नै किस्मत आळा हरफ दीखग्या, खतरा चारों तरफ दीखग्या एक लटकता का सर्प दीखग्या, बचा लिया दाता नै सुर गैल सरस्वती वर दे सै, अकल तै मेहनत कर दे सै ‘दयाचंद’ छंद धर दे सै, चौपड़-चौपड़ बातां नै
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03-04-2015, 12:20 PM | #5 |
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Re: महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
बादळ ऊठ्या हे री सखी, प्यारे सासरे की ओढ़ पाणी बरसैगा सिर तोड़... बादल
जिसनै दुनियां कह कत्ल की, पहली-पहली रात थी ऊंचे से चौबारे पै हुई, साजन तै मुलाकात थी इंद्र नै भी चाह बरसण का, धरती नै भी चाहत थी योए था महिना सखी, उस दिन भी बरसात थी इसा पुळ टूट्या री सखी, बहगे नदी-नाळे जोहड़ मोटी-मोटी बूंद भटाभट, फूटण लागे ओळे से पानी के बहा के आगै, बहगे नाके डोले से जंगळां के कवाड़ खुलै-मूंदै, ओळे सोळे से पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण हवा के झकोळे से इसा रंग लूटा री सखी, दो दिल कट्ठे थे एक ठोड़ वो दिन भी तै वोए था जो आज तलक भी याद सै जोड़े बिना जीव का जीणा, जिंदगी बरबाद सै याद-याद मैं जी ल्यूंगी, इस दुख की के म्याद सै बदलग्या जमाना ईब तै, दुनिया ही आजाद सै अमृत घूंट्या री सखी, होग्या बातां का निचोड़ ‘दयाचंद’ दे ताने बात नै, माप टेक कै, फीत्या जा सै मरती बरियां देख आदमी, दोनूं हाथां रीत्या जा सै एक दिन सबनै मरणा होगा, काळ तै के जीत्या जा सै कल करणा सो आज करले, पल-पल मौका बीत्या जा सै झगड़ा झूठा री सखी, एक दिन खोई जागी खोड़
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03-04-2015, 12:21 PM | #6 |
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Re: महाशय दयाचंद मायना जी की रचनाएँ
धुर तै धोखा करते आए, आज के नई रीत हो सै
गरज-गरज के प्यारे बहना, लोग किसके मीत हो सै द्रोपदी जुए के मैं हारी, युधिष्ठिर पासे डारै था हे शादी करके पार्वती ने भोळा भी दुदकारै था हे सत की सीता घर तै ताह दी रामचंद्र हद तारै था हे हरिश्चंद्र भी डाण बता के मदनावत ने मारै था हे ब्याही का भी तरस करै ना इनकै के प्रीत हो सै अंगूठी देकै शकुंतला ने दुष्यंत बख्त पै नाट गया हे पवन कुमार भी अंजना गैल्या के करणी कर घाट गया हे नळ राजा भी दमयंती की बण मैं साड़ी काट गया हे ईसी-ईसी बातां नैं सुणके मेरा मन मरदां तै पाट गया हे ये वक्त पड़े पै आंख बदलज्या इनकी खोटी नीत हो सै रूपाणी भी जोधानाथ नै बण के बीच खंदाई थी हे बण मैं धक्के खा कै मरगी मुड़कै घर ना आई थी हे चाप सिंह ने सोमवती पतिव्रता जार बताई थी हे मदन सेन नै भी सूती दई काट नागदे बाई थी हे बीर बिचारी कुछ ना बोलै कोए पीटले भीत हो सै कद लग खोट गिणुं मरदां का बीर बिचारी साफ सै हे बीर भतेरी दयावान नर करते डोलें पाप सै हे चोरी, ठगी, बेईमानी की मरदां कै छाप सै हे बीर मर्द के झगड़े ऊपर गुरु मुंशी की छाप सै हे ये ऊपरा तळी के भजन और गाणे, ‘दयाचंद’ के गीत हो सै
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