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27-01-2013, 03:04 PM | #1 | |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
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महंगाई और भृष्टाचार की दुधारी तलवार से हलाल होते हुए लहू-लुहान एक सीधे सच्चे नागरिक की आर्त पुकार और जुगुप्सा ही आपकी कविता में गुंजायमान हो रही है. हम जानते हैं कि सियासी लीडरान कटु भाषा समझते हैं और उसी में समझाने योग्य हैं, किन्तु क्या ऐसा करने से हम अपने हेतु में सफल हो पायेंगे? मेरा अपना विचार है कि परिवर्तन के लिए सही मंच पर आवाज़ उठाना जरूरी है और राजनैतिक आकाओं का नया चैप्टर भी राजनैतिक चौसर पर सही पांसे फेंक कर ही लिखा जा सकता है. एक अति सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद. Last edited by Dark Saint Alaick; 01-02-2013 at 10:34 PM. |
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27-01-2013, 10:04 PM | #2 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
महंगाई और भृष्टाचार की दुधारी तलवार से हलाल होते हुए लहू-लुहान एक सीधे सच्चे नागरिक की आर्त पुकार और जुगुप्सा ही आपकी कविता में गुंजायमान हो रही है. हम जानते हैं कि सियासी लीडरान कटु भाषा समझते हैं और उसी में समझाने योग्य हैं, किन्तु क्या ऐसा करने से हम अपने हेतु में सफल हो पायेंगे? मेरा अपना विचार है कि परिवर्तन के लिए सही मंच पर आवाज़ उठाना जरूरी है और राजनैतिक आकाओं का नया चैप्टर भी राजनैतिक चौसर पर सही पांसे फेंक कर ही लिखा जा सकता है. एक अति सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद.
राजेश माँगा जी एक बार फिर से धन्यावाद देता हूँ आपको लेकिन किन्तु क्या ऐसा करने से हम अपने हेतु में सफल हो पायेंगे? यहाँ पर दिए ? मार्क मतलब नही समझा पाया थोडा विस्तार से बताएँगे तो आपकी अति कृपा होगी |
27-01-2013, 10:05 PM | #3 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
इस कांग्रेस नै बारह साल में रेल मंत्रालया थ्यागा
भाड़े बधान का सुनहरी मोका हाथ लाग्या महंगाई की मारी जनता पहले ऐ घनी कूके थी फेर भी या जालिम सरकार मौका क्याने चुके थी तेल में पांच रपिये बढ़ा के दो कम कर दिए जनता पै तरस खान के सो सो स्यान धर दिए घोटाले बाज मंत्री तो घने घने पाल लिए इमानदार के सर के ऊपर लाखों इलज़ाम धर दिए नामदेव कद तक बचेगा इस महंगाई की मार तै जद कोई ना लड़ सक्या इस इटली आली माई की सरकार तै सोमबीर नामदेव थ्याग्या = मिल गया कूके थी =रो रही थी कयाने = क्यों स्यान = अहसान करना जद = जब |
01-02-2013, 10:27 PM | #4 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
बहुत बढ़िया सोमवीरजी। जारी रखिए, किन्तु जल्दी-जल्दी। आजकल आप ईद का चांद हो रहे हैं।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
06-02-2013, 09:58 PM | #5 | |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
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काम की वजह से फॉर्म को समय नही दे पा रहा हु वरना ऐसी कोई बात नही हमारी इच्छा तो छोटा से सितारा बन ने की हम कोई चाँद नही है सर |
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10-02-2013, 09:05 AM | #6 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
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10-02-2013, 09:09 AM | #7 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
चोरी जारी और जुआ घर का सत्यानाश करै पिया ,
जिन्दगी रुलज्या गाल्याँ के मां घर का सत्यानाश करै पिया ! इस जुए मैं नल नै अपना सब कुछ हार दिया था . इस जुए नै पांडवाँ की इज्ज़त नै तार दिया था .. होती आयी हार आखिर मैं क्यूँ जीत की आस करै पिया ! करके चोरी मेरे पिया ना सुखी कोए ना रह पाया . काम तै आखिर वोए आना जो अपने हाथ कमाया .. चोरी का धन जा चाल्या मोरी मै बिलकुल पास ना रहै पिया ! पर तिरया ना होती अपनी चाहे कितने लाड लड़ा ले . जब तक माल मिलै खान नै चाहे जितनी बार बुलाले .. अपनी ही तेरे आवे काम आखिर नै. तु क्यूँ ना विश्वाश करै पिया ! ''' नामदेव '''तन्नै कह रह्या सै या तज दिए आज बुराई नै . नेक जगहाँ पै लानी चाहिए अपनी नेक कमाई नै .. साची बात बता रह्या सै यो ना कती बकवास करै पिया ! sombirnaamdev@gmail .com लेखक :- सोमबीर सिंह सरोया मोब नो. 93210883377 |
22-02-2013, 07:43 PM | #8 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
जै कोए अपना साथ छोड़ दे तै के ज्यादा गैल करया जा सै ,
दिल अपने तै दे के तसल्ली फेर कालजे हाथ धरया जा सै !! जाण आले ना रुक्या करते चाहे लाखों बार मना ले ना कोय होता यार किसे का चाहे कितना भी अपनाले धर के हाथ कालजे पे फेर दिल का घाव् भरया जा सै ! अपन्ना जो हो न सक्या उसकी याद मैं जिन्दगी ना कट्या करे सुख मैं सरे सांझी हो पर ना कोए गम मैं गैल मरया करे चल्या गया उसने के रोना आनं आले की आश पै जी धरया जा सै ! एक तो जीना दु भर सै दुनिया उपर तै तेरा गम भी तो भारी सै तेरी यादां आली दीमक भी तै भितरले नै नोच नोच के नै खारी सै '''डायेआला नामदेव ''' जीने की खातिर यादां नै भी तार धरया जा सै ! '''''सोमबीर नामदेव ''' डाये आला |
01-03-2013, 10:57 PM | #9 |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
जै आशिक के हाथ लिखनी अपनी तकदीर होंदी
ना राँझा कदे पागल होंदा ना कदे बेवफा हीर होंदी ! जै लेखां तै आशिक लड़ सकदे उस खुद आली खुदाई मैं बड़ सकदे अपने हाथ तकदीर अपनी घड सकदे ना लैला तरसती मजनू नै ना मजनू की माडी तकदीर होंदी जै प्रेमी लड़ सकदे दुनिया आलेयाँ तै जै लैला लड़ सकदी घर आलेयाँ तै हर आशिक टकरा जाता जुदा करण आलेयाँ तै ना किसे साहिबा नै फेर किसे मिरजे के तोड़ना तीर होंदी ! जै होंदा इनके हाथ मैं तो ना प्रेमी दूर कदे होंदा जिस श्याम नै तरसी राधा ना वो श्याम दूर कदे होंदा इस प्रेम की मारी मीरा नै ना पीना जहर कदे होंदा प्रेम धुन में बावरी राधा बैठी कदे उस जमना जी के तीर होंदी कितने आशिक दुनिया नै जुदा कर दिए कितने महबूब इसक मैं माशूक नै खुदा कर दिए कित्नेयाँ नै प्रेम के कर्जे देकर जान अदा कर दिए ना दर दर खाक छानता ''''डायेआला ''' तू भी ना फ़क़ीर होंदी लेखक-; सोमबीर ''''नामदेव ''''डायेआला 9321083377 9321283377 |
09-03-2013, 05:47 PM | #10 | |
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Re: सोमबीर नामदेव की हरियाणवी रचनाएँ
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सोमबीर जी, आपके हरियाणवी काव्य क्षेत्र में देर से विज़िट करने के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ. आपकी इस रचना में सच्चे प्रेम की राह में हर युग के समाज द्वारा फैलाए गए षड्यंत्रों का बड़ा मार्मिक चित्रण किया गया है. रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई. Last edited by rajnish manga; 09-03-2013 at 05:54 PM. |
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