14-09-2015, 11:23 AM | #1 |
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हम आज में क्यों नहीं जीते?
(माँ अमृतानंदमयी का प्रवचन) हममें से अधिकतर लोग क्या भूत के विलाप और भविष्य की चिन्ता में ही जीवन नहीं बिता देते? लगभग सभी वर्तमान क्षण के सुख से वंचित रह जाते हैं। हम जीवन के सौन्दर्य व आनन्द को भूल जाते हैं। यह सब हमारी मनःस्थिति के कारण होता है। हमें एक दरजी जैसा होना चाहिए। यहाँ अम्मा का अभिप्राय यह नहीं कि हमें आजीविका के लिए कपड़े सीना शुरू कर देना चाहिए। हम जितनी बार दरजी के पास जाते हैं, वह हर बार कपड़ों की सिलाई से पहले हमारा नया नाप लेता है। चाहे उसकी डायरी में पिछले महीने ही नाप लिखा गया हो, फिर भी वह दोबारा नाप लेता है ताकि जांच ले कि हमारी बाँहें छोटी-बड़ी तो नहीं हुईं अथवा हमारी लम्बाई आदि बढ़ तो नहीं गई। वह हमारे पुराने नाप पर भरोसा नहीं करता, अपितु वर्तमान नाप के अनुसार ही कपड़े सीता है। बच्चो, तुम्हारा भी दृष्टिकोण ऐसा ही होना चाहिए। हमारे पास केवल यही क्षण है। इसमें अपने पूर्वनिर्धारित मतों के साथ प्रवेश न करो। जब हम भूतकाल पर विलाप करते हुए अथवा भविष्य की चिंता में जीते हैं तो वर्तमान क्षण के सौन्दर्य की अनुभूति से चूक जाते हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
14-09-2015, 11:25 AM | #2 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
तुमने उन दो अजनबियों की कहानी तो सुनी होगी जिनकी भेंट रेलगाड़ी में होती है। एक यात्री ने पास बैठे व्यक्ति से समय पूछा। उसे समय बताने की बजाय, इस व्यक्ति ने उसे कोसना और गालियाँ देना शुरू कर दिया। उस व्यक्ति को बार-बार गालियाँ खाते हुए देख कर, आख़िरकार डिब्बे में सवार एक अन्य व्यक्ति से रहा न गया और वह बोला, “ऐ! तुम क्यों उस बेचारे पर इस तरह बरस रहे हो? उसने तुमसे समय ही तो पूछा है।” उस व्यक्ति ने अपने गाली-गलौज को तनिक विराम देते हुए कहा, “हाँ, अभी तो इन्होंने समय ही पूछा है। मान लो मैं समय बता देता हूँ, उसके बाद ये मुझसे मौसम पर चर्चा करने लगेंगे। फिर वर्तमान घटनाओं पर चर्चा होगी, फिर मेरे पसन्द/नापसंद के बारे में। फिर ये मुझे अपनी काम-काजी संभावनाओं से अवगत करायेंगे। और फिर मैं इन्हें पसन्द करने लगूंगा, अपने घर आमन्त्रित करूंगा। मेरी एक बहुत सुन्दर बेटी है जो मेरी सारी संपत्ति की मालिक है। इनकी मीठी, लच्छेदार बातों में आ कर वो आकर्षित हो जाएगी। तब ये मुझसे उसका हाथ मांगेंगे। फिर मैं अपनी बेटी की शादी इस आदमी से करने के लिए बाध्य हो जाऊँगा जिसके पास एक घड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं!” एक सांस में वो यह सब कह गया!
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14-09-2015, 11:26 AM | #3 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
देखो, उसका मन कहाँ-कहाँ गया! अपने सह-यात्री को ले कर उसने क्या-क्या सोच डाला! उसने खिड़की से बाहर, गुज़रते हुए सुन्दर दृश्य को नहीं देखा, यात्रा की सुन्दरता के आनन्द से चूक गया। मेरे बच्चों के मन ऐसे नहीं होने चाहियें। विश्व भर में हमारा मन सबसे बड़ा यात्री है। मन को संयमित करने के लिए कुछ प्रयत्न आवश्यक है। मन की शांति भंग करने वाली वस्तुओं से स्वयं को हटाने के लिए कुछ प्रयत्न तो करना ही होगा। हमने लोगों को कहते हुए सुना ही होगा, “मेरा बेटा बहुत मेधावी है; लेकिन उसका पढने को मन ही नहीं करता।” मेधावी होने से क्या लाभ यदि हम उस बुद्धि का उपयोग ही न करें तो? केवल बुद्धिमान होना पर्याप्त नहीं; सीखने की इच्छा भी तो होनी चाहिए। प्रयत्न तो वांछित है और यह इच्छा अपने भीतर उपजनी चाहिए। कुछ लोग आ कर मुझसे कहते हैं कि, “अम्मा, हम प्रार्थना करते हैं, नियमित रूप से मंदिरों में जाते हैं फिर भी कितने दुखों, निराशाओं को झेलते हैं। और हमारा पड़ोसी, जो सदा भगवान् की हंसी उड़ाता है, बड़ा समृद्ध और भाग्यवान है। हमारा तो भगवान् से विश्वास उठने लगा है।”
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14-09-2015, 11:28 AM | #4 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
बच्चो, ऐसा नहीं बोलना चाहिए। ऐसी विषमताओं को देख कर हमें न तो हवा में उड़ना चाहिए और न ही कागज़ की किश्तियों जैसे डूब जाना चाहिए। लिखते समय, हमएक वाक्य के बाद विराम-चिन्ह क्यों लगाते हैं? ताकि नया वाक्य शुरू करसकें। हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए। पीड़ा के समय भगवान् को कस कर पकड़े रहें। और इससे भी बढ़ कर, जीवन का अन्त करने का प्रयास तो कभी नहीं करना चाहिए। भटकता मन हमें बहुत कुछ कहेगा। पर कठिन समय के चलते हमारा मन टूट कर बिखर न जाए। मन को सम्भालो। काल का पहिया घूमता रहता है। प्रारब्ध कितने ही रूपों में हमारे सामने आता है। परिवर्तन कभी शीघ्र आता है तो कभी देरी से। इसलिए कठिनाइयों के कारण जीवन का अन्त करने का विकल्प कभी अपने मन में न लायें। कठिन समय को प्रार्थना बदल सकती है। प्रार्थना के माध्यम को पकड़े रखो। हर समस्या का समाधान होता है। कुछ रोगों का इलाज दवा से होता है, कुछ को ओपरेशन की ज़रूरत होती है। ऐसा ही कठिनाईयों को ले कर भी होता है। अतः परमात्मा को कस कर पकड़े रखो। इसके लिए, प्रयत्न करना होगा। कुछ अच्छा पाने के लिए, प्रयत्न की सदैव आवश्यकता होती है, जबकि चिंता या निराशा में डूबने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता।
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14-09-2015, 11:29 AM | #5 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
हमें चाहिए – समय, प्रयत्न तथा परमात्मा की कृपा। यदि हम गुलाब के पौधे लगायें तो हमें इसे पानी और खाद से सींचना चाहिए। सही समय पर लगने पर भी फलने-फूलने के लिए इसे कुछ समय चाहिए। तब तक, भारी बारिश भी इसके लिए जानलेवा हो सकती है। अतः प्रयत्न के साथ-साथ परमात्मा की कृपा भी आवश्यक है। और फिर, हमारे पुरुषार्थ का फ़ल भी तत्काल तो नहीं प्राप्त होता, समय से ही होता है। किन्तु अम्मा अपने बच्चों को एक बात कहेगी – परमात्मा की कृपा हो तो मेरे बच्चों के प्रयासों से वांछित परिणाम निश्चित ही प्राप्त होंगे।
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12-10-2015, 10:29 PM | #6 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
बहुत ही सरल और सटीक उदाहरण का उदाहरण!
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14-10-2015, 01:04 AM | #7 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
माँ जी ने बात तो सही बताई पर हकिकत जीना बहुत ही मुश्कील या लगभग असम्भव सा है !!
भुतकाल से हमेशा शिक्षा लेनी चाहीये । इसको माँ जी के अनुसार चाहे तो सेटल कर सकते है । ...और हम आज में भी आसानी से जी सकते है !!! ...पर भविष्य के बारे में माँ जी वाली बात सम्भव नहीं है !! दूनिया की गति ही रूक जायेगी !! भविष्य की कपोल कल्पित कल्पनाओं में जीने वाले की हालत तो —सोम शरमा पितु कल्पना विलास: जेसी हो जायेगी !! इसलिए ये नादानी है अस्तु नहीं करनी चाहीये !! पर भविष्य की चिन्ता का क्या करें ??? भविष्य की चिन्ता तो वर्तमान की कोख से ही जनम लेती है !! क्यों की वर्तमान सत्य होता है , आईना होता है । आदमी को गणित दिख जाती है और स्वाभाविक रूप से जो चिज पैदा होती है वो है भविष्य की चिन्ता !!! इससे कोई कैसे बच सकता है ??? ...और भविष्य का दूसरा नाम लक्ष्य है और लक्ष्य के बारे में ना सोचे तो दूनिया की गति ही रूक जायेंगी !! |
15-10-2015, 12:37 AM | #8 |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
आपके सारपूर्ण विचारों के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ. अरविंद जी. परन्तु मैं यहाँ यह जोड़ना चाहता हूँ कि बहुत से लोग जो बीत गया है, उस पर, और जो अभी नहीं आया है, उस पर, जरुरत से अधिक सोच कर ध्यान, श्रम व शक्ति का अपव्यय करते हैं. अपने जीवन काल के इन खंडों को उतनी ही प्राथमिकता में रखें जितने के वे हकदार हैं. दूसरी ओर, क्योंकि जैसा आपने कहा कि भविष्य वर्तमान के गर्भ से ही उपजता है, अतः वर्तमान पर हमें अपना चिंतन, संसाधन, परिश्रम, आयोजना एवम् क्रियान्वयन केंद्रित करना अपेक्षित है, ताकि हमें भविष्य में वांछित परिणाम प्राप्त हो सकें.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 15-10-2015 at 05:18 PM. |
15-10-2015, 11:41 PM | #9 | |
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
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23-10-2015, 11:42 PM | #10 |
Diligent Member
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Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
[QUOTE=rajnish manga;554707]हम आज में क्यों नहीं जीते?
[size=3]हमें चाहिए – समय, प्रयत्न तथा परमात्मा की कृपा। यदि हम गुलाब के पौधे लगायें तो हमें इसे पानी और खाद से सींचना चाहिए। सही समय पर लगने पर भी फलने-फूलने के लिए इसे कुछ समय चाहिए। तब तक, भारी बारिश भी इसके लिए [font="]जानलेवा हो सकती है। बहुत सार्थक लेख भाई , आजकल मानसिक बिमारियों की यही वजह हो गई है की लोग भविष्य के लिए बेहद चिंतित है और भूतकाल को मन से नहीं निकाल पाने की वजह से सदा के दुखी बने फिरते हैं, वो आज में नहीं जीते पर एइसे लोग ये भूल जाते हैं की किसी को नहीं पता होता की एकपल बाद क्या होगा किसी को कुछ नहीं पता समय एक पल में इंसान की दुनिया बदल देता है . धन्यवाद भाई माताजी की बातें हम सबके साथ शेयर करने के लिए |
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