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22-02-2011, 02:05 PM | #1 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
एक से बढकर एक कहानिया कुछ ना कुछ सीख देने वाली हे !
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22-02-2011, 02:34 PM | #2 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
शहर मे कुछ लोग अपने-अपने धर्म को लेकर आपस मे झगड रहे थे वे एक दूसरे के धर्म पर तरह-तरह के आरोप मढ रहे थे उस झगडे मे सबसे खास बात यह थी कि वहां सभी धर्म के अलग-अलग व्यकित मौजूद थे और हर व्यकित अपने धर्म को श्रेष्ठ बतला रहे थे.
एक महात्मा जब उधर से गुजर रहे थे तो उन्होने वो नज़ारा देखा और उस भीड के ओर बढे और लोगो को बढी मुशिकल से शांत किया उन्होने उस भीड मे सभी धर्मो के लोग थे और हर कोई अपने ही धर्म को श्रेष्ठ बता रहे थे जैसे वो कोई धर्म न हो कोई वस्तु हो गई महात्मा ने कहा- तुम लोग एक दूसरे के धर्म पर आरोप लगा रहे हो बल्कि मेरी नज़र से तुम लोग किसी भी धर्म के लायक नही हो क्योकि जो अपने धर्म की श्रेष्ठ के लिये दूसरे धर्म पे आरोप लगाये उसका स्वयं का कोई धर्म नही क्योकि कोई भी धर्म ये नही कहता कि उस ऐसा रुप दो, उसे विवाद का विषय बनाओ फ़िर वो धर्म कहा रहा वो मूलस्वरुप से हट गया तुम लोग धर्म के मूल अर्थ को नही जानते तुम्हे धर्म के नाम पर लडना आता है जब अच्छा रुप अपने धर्म को नही दे सकते तो ये बुरा रुप भी तुम्हे देने का कोई हक नही है,अपने धर्म की श्रेष्ठता की पहचान क्या कोई ऐसे देता है हर धर्म अपने आप मे स्वतंत्र है जब तक वो अपनी गरिमा मे है अर्थात हिसात्मक रुप न लिये हो क्योकि धर्म कभी विवादी नही होता धर्म की मूल भावना है शांन्ति पूजा एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से समझ रखना अर्थात अन्य धर्मो को भी सम्मानित नज़र से देखना सम्मानित नज़र से अभिप्राय यह है कि हत धर्म को उतना ही महत्व देना जितना की हम अपने धर्म को देते है और उसे मानवता के धर्म का रुप देना क्योकि सबसे बडा अगर कोई धर्म है तो मानवता का धर्म, धर्म का अर्थ ही होता है धारण करना समस्त सभ्यता और संस्क्रति के साथ, आप लोगो का ये करना तो दूर रहा आपने उसे दूसरा ही रुप दे दिया ये कोई रास्ता है धर्म को साबित करने का, महात्मा जी के इतना कहते ही सभी लोगो के सर शर्म से झुक गये चूंकि उस भीड मे हर धर्म के लोग होने के कारण महात्मा जी ने सभी को उनकी धर्म की भाषा मे ही समझाया सभी को मूल भाषा मे समझाने के बाद महात्मा जी ने पूछा - अब बतलाओ मै किस धर्म का हूं बताइये मै किस धर्म का हूं सभी के सर शर्म से झुक गये। महात्मा ने अन्त मे कहा- सिर मत झुकाओ, थोडा सा अपनी समझ और सोचने के ढंग के प्रति अपने आप को उस ओर जाग्रत करो तभी तुम अपने धर्म के प्रति उपलब्ध हो पाओगे क्योकि सबसे बडा धर्म इन्सानियत का धर्म जो कि आदमी को आदमी से जोडता है जब आदमी , आदमी से जुडेगा तो देश जुडेगा वो हमारे धर्म की असल पहचान होगी इतना कहकर महात्मा दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान कर गये. आज हमारी देश की एकता पर कई अपने और बेगानो की नज़र है जो नही चाहते की भारत एक जुट हो इस लिये सावधान रहियेगा
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03-04-2011, 02:51 PM | #3 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
कर्म के आगे खुद भगवान भी झुके एक बार की बात है, भगवान और देवराज इंद्र में इस बात पर बहस छिड़ गई कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन हैं? उनका विवाद बढ़ गया तब इंद्र ने यह सोचकर वर्षा करनी बंद कर दी कि यदि वे बारह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं करेंगे तो भगवान पृथ्वीवासियों को कैसे जीवित रख पाएंगे। इंद्र की आज्ञा से मेघों ने जल बरसाना बंद कर दिया। किंतु किसानों ने सोचा कि यदि यह लड़ाई बारह वर्षों तक चलती रही तो वे अपना कर्म ही भूल बैठेंगे। उनके पुत्र भी सब कुछ भूल जाएंगे। अतः उन्हें अपना कर्म करते रहना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने कृषि कार्य शुरू कर दिया। वे अपने-अपने खेत जोतने लगे। तभी मिट्टी के नीचे छिपा कर मेढ़क बाहर आया और किसानों को खेती करते देख आश्चर्यचकित होकर बोला- “इंद्र देव और भगवान में श्रेष्ठता की लड़ाई छिड़ी हुई है। इसी कारण इंद्र देव ने बारह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निश्चय किया है। फिर भी आप लोग खेत जोत रहे हैं! यदि वर्षा ही न हुई तो खेत जोतने का क्या लाभ?” किसान बोले-“मेढ़क भाई! यदि उनकी लड़ाई वर्षों तक चलती रही तो हम अपनी कर्म ही भूल जाएंगे। इसलिए हमें अपना कर्म तो करते ही रहना चाहिए।” मेढ़क ने सोचा- ‘तो मैं भी टर्राता हूं, नहीं तो मैं भी टर्राना भूल जाऊंगा। तब वह भी टर्राने लगा।’ उसने टर्राना शुरू किया तो मोर ने भी इंद्र एवं भगवान के मध्य लड़ाई की बात कही। मेढ़क बोला-“मोर भाई! हमें तो अपना कर्म करते ही रहना चाहिए, चाहे दूसरे अपने कार्य भूल जाएं। क्योंकि यदि हम अपने कर्म भूल जाएंगे तो आने वाली पीढ़ी को कैसे मालूम होगा कि उन्हें क्या कर्म करने हैं। अतः सबको अपना कर्म करने चाहिएं। फल क्या और कब मिलता है, यह ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।” मेढ़क की बात सुनकर मोर भी पिहू-पिहू बोलने लगा। देवराज इंद्र ने जब देखा कि सभी प्राणी अपने-अपने कार्य में लगे हैं तो उन्होंने सोचा कि ‘शायद इन्हें ज्ञात नहीं है कि मैं बारह वर्षों तक नहीं बरसूंगा। इसलिए ये अपने कर्म कर रहे हैं। मुझे जाकर इन्हें सत्य बताना चाहिए।’ यह सोचकर वे पृथ्वी पर आए और किसानों से बोले-“ये क्या कर रहे हो?” किसान बोले- “भगवन! हमारा कर्म ही ईश्वर है। आप अपना कार्य करें अथवा न करें, हमें तो अपना कर्म करते ही रहना है।” किसानों की बात सुन देवराज इंद्र ने अपनी जिस छोड़ते हुए बादलों को आदेश दिया कि वे पृथ्वी पर घनघोर वरसे। |
12-08-2011, 09:34 AM | #4 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
किसी गांव में मित्रशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था। रास्ता लंबा और सुनसान था। आगे जाने पर रास्ते में उसे तीन ठग मिले। ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बनाई।
एक ने ब्राह्मण को रोककर कहा, “पंडित जी यह आप अपने कंधे पर क्या उठा कर ले जा रहे हैं। यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधों पर बैठा कर ले जा रहे हैं।”ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अंधा हो गया है क्या? दिखाई नहीं देता यह बकरा है।” पहले ठग ने फिर कहा, “खैर मेरा काम आपको बताना था। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर ले जाना है तो मुझे क्या? आप जानें और आपका काम।” थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण को रोका और कहा, “पंडित जी क्या आपको पता नहीं कि उच्चकुल के लोगों को अपने कंधों पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए।” पंडित उसे भी झिड़क कर आगे बढ़ गया। आगे जाने पर उसे तीसरा ठग मिला। उसने भी ब्राह्मण से उसके कंधे पर कुत्ता ले जाने का कारण पूछा। इस बार ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि उसने बकरा नहीं बल्कि कुत्ते को अपने कंधे पर बैठा रखा है। थोड़ी दूर जाकर, उसने बकरे को कंधे से उतार दिया और आगे बढ़ गया। इधर तीनों ठग ने उस बकरे को मार कर खूब दावत उड़ाई। इसीलिए कहते हैं कि किसी झूठ को बार-बार बोलने से वह सच की तरह लगने लगता है। ये कहानी काफ़ी सही है ! यह हमे सीख देती है की हमे किसी भी अनजान की बातों पर जल्दी यक़ीन नही करना चाहिए.
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25-09-2011, 01:48 AM | #5 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
शत्रुओं के परस्पर विवाद से लाभ
किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था। ब्राह्मण की दीनता को देखकर किसी यजमान ने उसको दो बछड़े दे दिए। किसी प्रकार मांग-मांगकर उसने जन बछड़ों को पाला-पोसा और इस प्रकार वे जल्दी ही बड़े और हृष्ट-पुष्ट हो गए। ब्राह्मण उनको बेचने की सोच रहा था तभी उन दोनों बछड़ों को देखकर एक दिन किसी चोर ने सोचा कि आज उसको उन बछड़ों को चुरा लेना चाहिए नहीं तो ये ब्राह्मण उनको बेच देगा। अतः उनको बांधकर लाने के लिए रस्सी आदि लेकर वह रात्रि में घर से निकल पड़ा। इस प्रकार सोचकर वह चोरी करने जा रहा था कि आधे मार्ग में उसको एक भयंकर व्यक्ति दिखाई दिया। उस व्यक्ति के प्रत्येक अंग से भयंकरता का आभास हो रहा था. उसे देखकर चोर घबराकर एक बार तो वापस जाना का विचार कर बैठा, किन्तु फिर भी उसने साहस करके उससे पूछ ही लिया, “आप कौन हैं?” “मैं तो सत्यवचन नामक ब्रह्मराक्षस हूं, किन्तु तुम कौन हो?” “मैं क्रूरकर्मा नामक चोर हूं। मैं उस दरिद्र ब्राह्मण के दोनों बछड़ों को चुराने के उद्देश्य से घर से चला हूं।” राक्षस बोला-“मित्र! मैं छः दिनों से भूखा हूं। इसलिए चलो आज उसी ब्राह्मण को खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा। अच्छा ही हुआ कि हम दोनों के कार्य एक-से ही हैं, दोनों को जाना भी एक ही स्थान पर हैं।” इस प्रकार वे दोनों ही उस ब्राह्मण के घर जाकर एकान्त स्थान पर छिप गए। और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। जब ब्राह्मण सो गया तो उसको खाने के लिए उतावले राक्षस से चोर ने कहा, “आपका यह उतावलापन अच्छा नहीं है। मैं जब बछड़ों को चुराकर यहां से चला जाऊँ तब आप उस ब्राह्मण को खा लेना।” राक्षस बोला, “बछड़ों के रम्भाने से यदि ब्राह्मण की नींद खुल गई तो मेरा यहां आना ही व्यर्थ हो जाएगा।” “और ब्राह्मण को खाते समय कोई विघ्न पड़ गया तो मैं बछड़ों को फिर किस प्रकार चुरा पाऊंगा। इसलिए पहले मेरा काम होना दीजिए।” इस प्रकार उन दोनों का विवाद बढ़ता ही गया था। कुछ समय बाद दोनों जोर-जोर से चिल्लाने लगे तो उससे ब्राह्मण की नींद खुल गई। उसे जगा हुआ देखकर चोर उसके पास गया और उसने कहा, “ब्राह्मण! यह राक्षस तुम्हें खाना चाहता है।” यह सुनकर राक्षस उसके पास जाकर कहने लगा, “ब्राह्मण! यह चोर तुम्हारे बछड़ों को चुराकर ले जाना चाहता है।” एक क्षण तक तो ब्राह्मण विचार करता रहा, फिर उठा और चारपाई से उतरकर उसने इष्ट देवता का स्मरण किया। उसने मंत्र-जप किया और उसके प्रभाव से उसने राक्षस को निष्क्रिय कर दिया। फिर उसने लाठी उठाई और उससे चोर को मारने के लिए दौड़ा तो वह भाग गया। इस प्रकार उसने अपने बछड़े भी बचा लिए।
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25-09-2011, 07:40 AM | #6 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
अच्छी कहानिया हे
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25-09-2011, 08:14 AM | #7 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
बहुत ही ज्ञान्पर्धक कहानी है.
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19-02-2012, 06:59 AM | #8 |
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Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)
बहुत ही सीख देने वाली कहानियां हैं जारी रखे हजूर
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