31-08-2013, 01:57 PM | #1 |
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ऐसी ही इक रात आती
काश अपनी भी ऐसी ही इक रात आती, मै देखता आसमां और बरसात आती । ढूंढ़ता फिरता चाँद महबूबा को अपनी चांदनी मुझसे मिलने मेरे पास आती । रात भर उसके पहलू में जागता मै रहता और वो मेरी नींदों में हर-बार आती । उसके ओठों पर बस मेरा नाम रहता मेरी बातों में उसकी ही हर बात आती । टूटे पत्तो की तरह जमीं को छूते हुए |
09-09-2013, 12:52 AM | #2 |
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Re: ऐसी ही इक रात आती
क्या कहने जनाब बहुत खूब.
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