29-06-2013, 12:07 PM | #121 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
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29-06-2013, 12:08 PM | #122 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
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29-06-2013, 12:08 PM | #123 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
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29-06-2013, 12:15 PM | #124 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
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29-06-2013, 12:16 PM | #125 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
बाएँ से दाएँ १. प्रभाव में आया हुआ (४) ३. समय की छूट (४) ६. किले की चार दीवारी (३) ७. समानार्थक (५) ८. प्रतिष्ठा (२) ९. साधु (२) १०. लीपना पोतना (३) १३. राजा (४) १५. दूल्हा (२) १७. मस्सा (२) १८. कुरूप एवं कुविचार वाली स्त्री (४) २०. जिससे मिलकर शब्द बनते हैं (३) २२. मीठा पेय (४) २३. तहत, के आधीन (५) 1 १ २
३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ ऊपर से नीचे- १. तेजस्वी (५) २. इंद्रिय सुख (३) ३. जूता सीने वाला (२) ४. प्रति (२) ५. गर्मी, सूर्य (३) ६. पुरातन (३) ८. धूप (३) ९. समझौता (२) ११. वर्षा ऋतु (३) १२. ऊँगली का एक भाग (२) १४. तिलक लगा कर उत्तराधिकारी निश्चित करना (५) १६. चोटी (३) १७. शिव (३) १९. नाई (३) २०. वर्तमान में, तत्काल बाद (२) २१. घायल (२ |
02-07-2013, 10:27 AM | #126 |
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अच्छे स्वास्थ्य का आधार अंकुरित आहार
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है। अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है अर्थात् यह मनुष्य को पुनर्युवा, सुन्दर स्वस्थ और रोगमुक्त बनाता है। यह महँगे फलों और सब्जियों की अपेक्षा सस्ता है, इसे बनाना खाना बनाने की तुलना में आसान है इसलिये यह कम समय में कम श्रम से तैयार हो जाता है। बीजों के अंकुरित होने के पश्चात् इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। खड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें उपस्थित अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है लेकिन अंकुरित होने पर लगभग दोगुना विटामिन सी इनसे पाया जा सकता है। अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी१, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी२ व नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती है। इसके अतिरिक्त 'केरोटीन' नामक पदार्थ की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है। अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अंकुरित करने की प्रक्रिया में अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है और वे बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं। अंकुरित करने के लिये चना, मूँग, गेंहू, मोठ, सोयाबीन, मूँगफली, मक्का, तिल, अल्फाल्फा, अन्न, दालें और बीजों आदि का प्रयोग होता है। अंकुरित भोजन को कच्चा, अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग करने से अधिक लाभ होता है। एक दलीय अंकुरित (गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर, किशमिश, मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा सकते हैं। द्विदलीय अंकुरित (चना, मूंग, मोठ, मटर, मूंगफली, सोयाबीन, आदि) के साथ टमाटर, गाजर, खीरा, ककड़ी, शिमला मिर्च, हरे पत्ते (पालक, पुदीना, धनिया, बथुआ, आदि) और सलाद, नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है। इसे कच्चा खाने बेहतर है क्यों कि पकाकर खाने से इसके पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुण में कमी आ जाती है। अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करना चाहिये। एक बार में दो या तीन प्रकार के दानों को आपस में मिला लेना अच्छा रहता है। यदि ये अंकुरित दाने कच्चे खाने में अच्छे नहीं लगते तो इन्हें हल्का सा पकाया भी जा सकता है। फिर इसमें कटे हुए प्याज, कटे छोटे टमाटर के टुकड़े, बारीक कटी हुई मिर्च, बारीक कटा हुई धनिया एकसाथ मिलाकर उसमें नींबू का रस मिलाकर खाने से अच्छा स्वाद मिलता है। अंकुरण की विधि -
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02-07-2013, 10:28 AM | #127 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
पता स्वास्थ्य का - पत्तागोभी
क्या आप जानते हैं?
पत्तागोभी भी कई प्रकार का होता है। सेवोए, बोक चोए औऱ नापा पत्तागोभी चीनी व्यंजन में काम आता है, इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की और ढीली बँधी होती हैं। सेलेरी पत्तागोभी भी बोक चोए प्रकार में शामिल होता है। हरा पत्तागोभी विशेष रूप से भारतीय भोजन में प्रयोग किया जाता है। एक लाल, जामुनी रंग का पत्तागोभी भी होता है जो सलाद आदि में काम आता है। ब्रोकोली, फूलगोभी और गाँठ गोभी, ये सभी पत्तागोभी के परिवार के ही सदस्य हैं। बंद गोभी या पत्तागोभी अनेक पौष्टिक खनिज लवण और विटामिन का स्रोत है। इसमें प्रोटीन, वसा, नमी, फाईबर तथा कर्बोहाइड्रेट भी अच्छी मात्रा में होता है। खनिज लवण तथा विटामिन की बात करें तो पत्तागोभी में कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन तथा विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें क्लोरीन तथा सल्फर भी पाया जाता है और अपेक्षाकृत आयोडीन का प्रतिशत भी अधिक होता है। सल्फर, क्लोरीन तथा आयोडीन साथ में मिल कर आँतों और आमाशय की म्यूकस परत को साफ करने में मदद करते हैं। इसके लिए कच्चै पत्तागोभी को नमक लगा कर खाना चाहिए। अपच या कब्ज की परेशानी में पत्तागोभी एक बेजोड़ इलाज की तरह काम करता है। अपने भोजन में सिर्फ कच्चे पत्तागोभी को बारीक काट लें और उस पर नमक, नींबू का रस और काली मिर्च लगा कर खाएँ। यह बिना किसी दुष्प्रभाव के आराम देगी। पत्तागोभी में अलसर से बचाव के गुण होते हैं। पत्तागोभी के १८०-३६० मिली रस को दिन में तीन बार लेने से पाचन तंत्र के ड्यूडेनम भाग में अल्सर की शिकायत दूर होती है। पत्तागोभी में विटामिन यू होता हैं जो कि अल्सर अवरोधक माना जाता है। यह विटामिन पकाने से नष्ट हो जाता है इसलिए बहुत सी तकलीफों में प्राकृतिक रूप में पत्तागोभी का सेवन ही लाभ पहुँचा सकता है। पत्तागोभी में टारट्रोनिक अम्ल होता है, जो शरीर में शर्करा और कार्बोहाइड्रेट को वसा में बदलने से रोकता है। इसमें विटामिन सी और विटामिन बी की मात्रा भी होती है। विटामिन सी मोटापे को कम करता है और विटामिन बी शरीर के चयअपचय दर को बढ़ाए रखता है। इसलिए वजन कम करना हो तो पत्तागोभी का सेवन अधिक करना चाहिए। अपने भोजन का एक भाग पत्तागोभी के नाम कर दिया जाए तो वजन कम करने में बड़ी ही सहायता रहेगी। १०० ग्राम पत्तागोभी में करीब २७ कैलोरी होती है। देखा जाए तो १०० ग्राम आटे की रोटी से २४० कैलोरी मिलती हैं। इसे खाने से पेट तो भरेगा ही और साथ में कैलोरी भी कम जाएगी। पत्तागोभी में कम कैलोरी के साथ बहुत अधिक जैविक गुण होते हैं। इसमें निहित विटामिन बी तंत्रिका तंत्र को आराम पहुँचाने में सहायक होता है। विटामिन ए और ई की उपस्थिति से त्वचा और आँखों से संबंधित तकलीफों में भी पत्तागोभी बहुत लाभ पहुँचाता है। छाले, घाव, फोड़े-फुंसी तथा चकत्तों जैसी परेशानियों में पत्तागोभी के पत्तों की पट्टी लगाने से बहुत आराम मिलता है। इस काम के लिए पत्तागोभी की बाहरी मोटी पत्तियाँ बेहतर रहती हैं। पूरी साबुत पत्तियों को ही पट्टी की तरह काम में लेना चाहिए। इसकी पट्टी बनाने के लिए पत्तियों को गरम पानी से बहुत अच्छी तरह धोकर तौलिये से अच्छी तरह सुखा कर बेलन से बेलते हुए नरम कर लेना चाहिए। इसकी मोटी, उभरी हुई नसों को निकाल कर बेलने से यह नरम हो जाएगा। फिर इसे गरम करके घाव पर समान रूप से लगाना चाहिए। इन पत्तियों को सूती कपड़े में या मुलायम ऊनी कपड़े में डाल कर काम में ले सकते हैं। इससे पूरे दिन भर के लिए या रात भर सिकाई कर सकते हैं। जले हुए पत्तागोभी की राख भी त्वचा की बहुत सी बीमारियों में आराम पहुँचाता है। पत्तागोभी में विभिन्न प्रकार के ऐसे तत्व होते हैं जो उम्र के साथ शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों से निजात दिला सकते हैं। बढ़ती उम्र की परेशानियाँ घटाने में बंदगोभी मदद कर सकती हैं। रक्त वाहिनी में जमाव को रोकने में, गाल ब्लैडर में पथरी की शिकायत में बंदगोभी में बंद विटामिन सी तथा विटामिन बी की जोड़ी बहुत सहायता कर सकती है। रक्त वाहिनियों को ताकत भी पहुँचाता है। इसके अनेक गुणों का शरीर पर सकारात्मक असर लाने के लिए इसका सही प्रकार से सेवन करना बहुत ज़रूरी है। इसे सलाद की तरह कच्चा खाया जा सकता है या फिर हल्का सा उबाल कर। चाहें तो इसे पका सकते हैं। पर बेहतर असर पाना चाहते हों तो पत्तागोभी को इसके प्राकृतिक रूप में ही खाएँ, क्योंकि इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते हैं जो कि पकाने के बाद नष्ट हो जाते हैं। कच्चा खाने से यह जल्दी हजम भी होती है। पत्तागोभी का रस पेट में गैस कर सकता है जिसके कारण बदहजमी हो सकती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि पत्तागोभी के रस में थोड़ी सी गाजर का रस मिला कर पीना चाहिए। इससे पेट में गैस या अन्य समस्याएँ नहीं होंगी। पका हुआ पत्तागोभी या पत्तागोभी की सब्जी खाने से भी यदि तकलीफ हो तो इसमे थोड़ी हींग मिला कर पकाएँ। बारिश के समय पत्तागोभी पर कीड़े भी हो सकते हैं इसलिए पत्तागोभी को अच्छी प्रकार से धोकर, साफ करके ही काम में लें। सूप, सब्जी, सलाद या पास्ता, पुलाव, बर्गर, नूडल किसी भी खाने में इसे डालें। इसकी परतों को खोलते जाएँ, इसके गुणों को परखते जाएँ और सेहत के लिए बेहतर पत्तागोभी को अपनाएँ। |
02-07-2013, 10:30 AM | #128 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
सेहत का नगीना पुदीना
क्या आप जानते हैं?
उत्पत्ति गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है। पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं। रासायनिक संघटन जापानी मिन्ट, मैन्थोल का प्राथमिक स्रोत है। ताजी पत्ती में ०.४-०.६% तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल (६५-७५%), मेन्थोन (७-१०%) तथा मेन्थाइल एसीटेट (१२-१५%) तथा टरपीन (पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन) है। तेल का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है। पुदीने में विटामिन एबीसीडी और ई के अतिरिक्त लोहा, फास्फोरस और कैल्शियम भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। उपयोग मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उड़नशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की गोलियों, इनहेलरों, तथा मुखशोधकों में काम आता है। यूकेलिप्टस के तेल के साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है, अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम, टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता है, चाट के जलजीरे का प्रमुख तत्त्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों (एअर फ्रेशनर) में भी इसका प्रयोग किया जाता है। औषधीय गुण स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पुदीने के ढेरों गुणों का बखान किया गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति हिकमत में पुदीने का विशिष्ट प्रयोग अर्क पुदीना काफ़ी लोकप्रिय है। हकीमों का मानना है कि पुदीना सूचन को नष्ट करता है तथा आमाशय को शक्ति देता है। यह पसीना लाता है तथा हिचकी को बंद करता है। जलोदर व पीलिया में भी इसका प्रयोग लाभदायक होता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीने की पत्तियाँ कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती है व ठंडक मिलती है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकघर्म की शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है। यह भूख खोलने का काम करता है। पुदीने की चाय या पुदीने का अर्क यकृत के लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी है। मेंथॉल ऑइल पुदीने का ही अर्क है और दांतो से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। जहरीले जंतुओं के काटने पर देश के स्थान पर पुदीने का रस लगा देने से विष का शमन होता है तथा पुदीने की सुगंध से बेहोशी दूर हो जाती है। अंजीर के साथ पुदीना खाने से फेफड़ों में जमा बलगम निकल जाता है। कुछ घरेलू नुस्खे-
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02-07-2013, 10:30 AM | #129 |
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सुगंधित पत्तियों का संसार क्या आप जानते हैं?
तेजपात : तेजपात गरम मसाले का प्रमुख अंग है। इसे सुखा कर प्रयोग में लाया जाता है। छौंक के समय खड़े गरम मसाले की तरह जीरे और बड़ी इलायची के साथ इसको तेल या घी में डालना चाहिए। हर तरह के शोरबेदार शाकाहारी या मांसाहारी व्यंजन में, प्याज़ अदरख लहसुन के मसाले वाली करी में और सूप व दाल के छौंक में तेजपात का स्वाद करारा अहसास देता है। पुलाव के छौंक में भी इसका प्रयोग भोजन में सुगंध व स्वाद बढ़ाता है। मेथी : मेथी की सुगंध और स्वाद भारतीय भोजन का विशेष अंग है। इन पत्तों को कच्चा खाने की परंपरा नहीं है। आलू के साथ महीन महीन काट कर सूखी सब्ज़ी या मेथी के पराठे आम तौर पर हर घर में खाए जाते हैं। लेकिन गाढ़े सागों के मिश्रण में इसका प्रयोग लाजवाब सुगंध देता है, उदाहरण के लिए सरसों के साग, मक्का मलाई या पालक पनीर के पालक में। गुजराती थेपलों में मेथी के निराले स्वाद से सब परिचित हैं और मठरियों में मेथी का मज़ा भी अनजाना नहीं। मेथी के पत्तों को सुखा कर भी प्रयोग में लाया जा सकता है। मसाले के शोरबे में एक चुटकी सूखी पत्तियों का चूरा स्वाद का कमाल दिखाता है। सूखी सब्ज़ियों में यह चूरा गरम मसाले के साथ मिला कर बाद में डालना चाहिए। थाइम : ऑलिव, लहसुन, प्याज और टमाटर के साथ मटन में इसका प्रयोग स्वाद और सुगंध के लिए किया जाता है। इसे सूप में भी मिलाया जा सकता है। मटन के कीमे में बरीक कटी हरी मिर्च और नींबू के छिलके के साथ इसकी पत्तियाँ मिला कर कबाब बनाए जा सकते हैं। गोभी और मिश्रित सब्ज़ियों के पकौड़ों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। तुलसी की पत्तियों की तरह इसकी चाय सर्दी से बचाव करती है। पार्सले : मेथी की तरह पार्सले का प्रयोग आलू के साथ सब्ज़ी बनाने में किया जा सकता है। महीन काट कर हर तरह के सलाद में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, सूखी सब्ज़ियों में मिलाया जा सकता है और सूप में भी डाला जा सकता है। भोजन की सजावट में धनिये की तरह इसका इस्तेमाल होता है। उबले हुए आलू में ऑलिव आयल, चीज़ या मेयोनीज़ के साथ इसकी पत्तियों की महीन कतरन बढ़िया सलाद बना सकती है। लहसुन के साथ भी इसकी सुगंध मनभावन लगती है। धनिया : हरी सुगंधित पत्तियों की बात हो तो धनिये का नंबर सबसे पहले आता है। हर तरह की सूखी और रसेदार सब्ज़ी में परोसते समय मिलाने और सजावट करने में धनिये की पत्तियों का इस्तेमाल होता है। धनिये की चटनी हर भारतीय भोजन का मुख्य अंग है। आलू की चाट और दूसरी चटपटी चीज़ों में इसको टमाटर या नीबू के साथ मिलाया जा सकता है। सूप और दाल में बहुत महीन काट कर मिलाने पर रंगत और स्वाद की ताज़गी़ अनुभव की जा सकती है। हर तरह के कोफ्ते और कवाब में भी यह खूब जमता है। इसकी पत्तियों को पका कर या सुखा कर नहीं खाया जाता क्यों कि ऐसा करने पर वे अपना स्वाद और सुगंध खो देती हैं। मीठी नीम : मीठी नीम की हरी पत्तियाँ हर दक्षिण भारतीय भोजन की जान हैं। आमतौर पर इनको छौंक के समय साबुत प्रयोग में लाया जाता है। पोहे, उपमा, सांभर या मांसाहारी शोरबे में इनका प्रयोग काफी लोकप्रिय है। इन्हें पीस कर दही के साथ मिला कर स्वादिष्ट छाछ भी बनाया जाता है। नारियल के दूध का शोरबा बनाते समय इन्हें पीस कर मिलाया जा सकता है। फ्रिज में पोलीथीन के बैग में इन्हें लंबे समय तक रखा जा सकता है। इन्हें सुखा कर बोतल में बंद कर के भी रखा जा सकता है। बाद में साबुत या चूरे के रूप में इनका प्रयोग किया जा सकता है। सेज : मांसाहारी भोजन में सेज की सुगंध स्वाद को भी बढ़ा देती है। व्यंजन पूरा पक जाने के बाद इसको महीन महीन काट कर मिलाना चाहिए। टमाटर के साथ सलाद में और चीज़ के साथ इसका स्वाद निराला होता है। इसलिए भारतीय भोजन में पनीर के भरवा टमाटरों में सेज की सुगंध बड़ी अच्छी लगती है। इसको सलाद में महीन काट कर मिलाया जा सकता है और पराठों में भी इसका प्रयोग हो सकता है। उबले हुए आलू के भुर्ते में ढेर से सेज की महीन कतरी हुई पत्तियाँ भी स्वादिष्ट लगती हैं और कद्दू की सूखी या रसेदार सब्ज़ी के साथ भी इसकी जोड़ी जमती है। बासिल : अपनी सुगंध और कोमलता के कारण सलाद में इसका काफी प्रयोग होता है। हर तरह के पास्ता और सलाद में इनका प्रयोग प्रमुखता से होता है। सफ़ेद रंग के हर्बल सॉस में चीज़ के साथ इसका प्रयोग होता है। मशरूम, टमाटर और अंडे के व्यंजनों में भी इसकी सुगंध अच्छी लगती है। भारतीय भोजन में मक्के के दानों की सब्ज़ी, उबले हुए आलू के भुर्ते और मिश्रित सागों में इसका प्रयोग अच्छा लगता है। ओरेगॅनो : तेज़ और कड़क स्वाद वाला यह पत्ता ताज़ा या सूखा, दोनों तरह का बराबरी से उपयोग में लाया जाता है। पिज़ा और गार्लिक ब्रेड में इसका स्वाद सारी दुनिया में पहचाना जाता है। पास्ता के हर प्रकार के सॉस और सूखी सब्ज़ियों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। पराठों और पूरियों में भी ऑरगेनो की सुगंध अच्छी लगती है। |
02-07-2013, 10:30 AM | #130 |
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Re: घर का वैध:घरेलू चिकत्सा
सलाद में छुपा स्वास्थ्य क्या आप जानते हैं?
सलाद के पत्ते पाचन में सहायक होते हैं तथा यकृत ( लिवर) के लिये भी लाफदायक होते है। इसके सेवन से हृदय की बीमारियाँ तथा आघात की संभावना कम हो जाती है। कुछ शोधों में यह भी पता चला है कि यह कैंसर में भी फायदा करता है। सलाद के पत्तों में कैल्सियम, फोस्फोरस, आयरन, केरोटीन, थियामीन, राईबोफ्लेविन, नियासीन तथा विटामिन सी जैसे कई विटामिन तथा मिनरल काफी अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा प्रोटीन, वसा, फाईबर, कार्बोहाइड्रेट भी मौजूद होता है। कैलोरी की दृष्टि से यदि देखा जाए तो लगभग १०० ग्राम सलाद के पत्तों में २१ कैलोरी होती हैं। सलाद के पत्ते खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि पत्ते ताज़ा, हरे रंगवाले तथा थोड़ा जानदार हों यानी नर्म और मुरझाए हुए न हों। गुच्छे की पत्तियाँ थोड़ी खुली या ढीली हों क्योंकि बंद पत्ते वाले सलाद के गुच्छे में सूरज की किरणें अंदर तक नहीं पहुँच पाती जिससे उसमें विटामिन की मात्रा कम रहती है। सलाद के पत्ते जितने अधिक हरे होंगे उसमें विटामिन की मात्रा उतनी ही ज्यादा होगी। सलाद के पत्ते में रोगनाशक क्षमता होती है। दिमाग़, तंत्रिका तंत्र या नर्वस सिस्टम तथा फेफड़ों (लंग्स) के लिए सलाद के पत्ते बहुत अच्छे होते हैं। सलाद के पत्ते का रस ठंडा तथा ताज़गी भरा होता है। हरी पत्तियों वाले सलाद के पत्ते के रस में मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा होने के कारण यह मांसपेशियों तथा दिमाग़ के लिये फायदेमंद माना जाता है। सलाद के पत्ते के रस को गुलाब के तेल के साथ मिला कर माथे पर मालिश करने से बेहतर नींद आती है तथा सिर दर्द में भी आराम मिलता है। इसमें सेल्यूलोज भी होता है जिससे यह पाचन को ठीक करता है तथा कब्ज की शिकायत को भी दूर कर सकता है। इसका एक बहुत उम्दा गुण यह है इसमें लेक्टुकेरियम मौजूद होता है जो दिमाग़ को ताज़गी देने के साथ साथ नींद को बढ़ाता है। इससे उन लोगों को बहुत आराम मिलता है जिन्हें इन्सोम्निया या नींद न आने की बीमारी है। इसके बीज के रस को पीने से तनाव दूर होता है तथा बेहतर नींद आती है। शरीर में लोहे की कमी को पूरा करने के लिये यह बहुत अच्छा पोषक है और ऐसा माना जाता है कि इसमें मौजूद आयरन या लौहतत्व, किसी अन्य अकार्बनिक लोहे की बजाय, शरीर में बहुत आसानी से ग्रहण हो जाता है। स्नायुतंत्र की कई बीमारियों में सलाद के पत्ते का रस एक चम्मच गूसबेरी रस के साथ यदि हर रोज़ पिया जाए तो बहुत फायदा करता है। गर्भावस्था के दौरान भी सलाद के पत्ते खाना बहुत लाभदायक होता है। कम कैलोरी में इससे ज़्यादा ख़ुराक मिल जाती है। विशेष रूप से इसमें मौजूद फोलिक एसिड, जिसकी गर्भावस्था के समय तथा बाद में भी शरीर को आवश्यकता रहती है, अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड मेगालोब्लास्टिक एनिमिया को रोकता है। तथा जिनमें बार बार गर्भपात की संभावना रहती है उन्हें भी कच्चे सलाद के पत्ते खाने की सलाह दी जाती है। कच्चे सलाद के पत्ते खाने से महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्टेरोन होरमोन के स्राव पर भी प्रभाव पड़ता है। भोजन के तुरंत बाद सलाद के पत्ते चबाने से दाँतों की बहुत सी बीमारियों जैसे गिंगिविटिस, पायरिया, हेलीटोसिस, स्टोमेटिटिस आदि से निजात मिल सकती है। जिह्वा पर उपस्थित स्वादग्राही तंतुओं तथा इनेमल के क्षय में भी रूकावट पड़ती है। प्रतिदिन आधा लीटर सलाद के पत्ते तथा पालक के रस को पीने से बालों का झड़ना भी कम होता है। सलाद के पत्ते को उपयोग में लेने से पहले हमेशा हर पत्ती को अच्छे तरह धोकर व पोंछकर काम में लेना चाहिए जिससे उसके ऊपर लगा पानी पूरी तरह निकल जाए। सलाद के पत्ते को काटने की बजाए हाथ से ही तोड़ कर काम में लेना चाहिए जिससे उसके किनारे भूरे होने से बच जाते हैं। |
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