16-10-2012, 09:04 PM | #21 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
सुश्रुत संहिता नपुंसकों के कुछ अन्य प्रकारों का वर्णन भी करती है, यहां मैं इनके उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं ! ये ज्यादातर अपने माता-पिता के दोषों का फल भुगतते हैं ! 1 . पिता के बहुत कम वीर्य से जो गर्भ ठहरता है, उससे पैदा होने वाला 'आसेक्य' नपुंसक होता है ! यह जब अन्य पुरुष का वीर्य पीए, तो ही उसके लिंग का उत्थान (कड़ापन आना) होता है ! इस श्रेणी के नपुंसक को मुखयोनि भी कहा गया है ! 2 . जो बालक दुर्गंधित योनि से पैदा हुआ है, उसे 'सौगंधिक' नपुंसक कहते हैं ! इसे लिंग अथवा योनि को सूंघने से ही सम्भोग करने की क्षमता मिल पाती है, वरना इसका लिंग मृतप्राय रहता है ! इसे नासायोनि भी कहा गया है ! 3. जो आदमी खुद का गुदा मैथुन कराए बिना सम्भोग के लिए तैयार नहीं हो पाए, उसे कुम्भिक और गुदयोनि कहा जाता है ! 4 . जो मनुष्य किसी अन्य का सम्भोग देख कर ही खुद भी सम्भोग को तैयार हो पाता है, उसे ईर्ष्यक और दृगयोनि कहा जाता है ! 5. यदि आदमी नीचे हो और स्त्री ऊपर से संभोगरत हो और ऎसी अवस्था में गर्भ ठहर जाए, तो पुत्र होने पर वह स्त्री की चेष्टाओं (हरकतों) वाला और पुत्री हो तो वह पुरुष की चेष्टाओं वाली होती है ! इन्हें नारीषन्ढ कहा जाता है ! इनमें से आसेक्य, सौगंधिक, कुम्भिक और ईर्ष्यक वीर्ययुक्त (वीर्य वाला) और षन्ढ वीर्यरहित (बिना वीर्य वाला) होता है ! इस प्रकार इन नपुंसकों में विरुद्ध चेष्टाओं से शुक्रवाही नसें फूल जाती हैं, जिससे इनकी उत्तेजना जाग्रत होती है ! कुछ आचार्य ध्वजभंग और क्षयज को असाध्य मानते हैं, कुछ वीर्यबाही नस के कटने और अंडकोष नहीं रहने की स्थिति को ही असाध्य मानते हैं !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
16-10-2012, 09:05 PM | #22 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
दूषित वीर्य के प्रकार और लक्षण
अनुचित खान-पान और अनियमित दिनचर्या की वज़ह से, अप्राकृतिक सम्भोग से, क्षमता से ज्यादा तेज़ दौड़ने से, चोट लगने के कारण तथा धातुओं की खराबी से वात, पित्त और कफ कुपित (उग्र) होकर अलग-अलग या मिलकर वीर्यवाहक नसों तक पहुंच कर वीर्य को दूषित कर देते हैं ! दूषित वीर्य के आठ प्रकार इस प्रकार हैं - झागदार, बहुत कम मात्रा में निकलना, शुष्क (सूखा हुआ सा), विवर्ण (रंगत में फर्क आना), दुर्गंधित (बदबूदार), पिच्छिल (जिसमें पूंछ अथवा तार जैसे बनते दिखाई दें), खून अथवा अन्य प्रकार का पदार्थ साथ आना तथा शुक्राणुओं की कमी ! वात दूषित - झागदार, सूखा हुआ, कठिनाई से निकलने वाला, लेसदार और बहुत कम मात्रा में निकलने वाला वीर्य वात से दूषित होता है और इससे गर्भ नहीं ठहरता ! पित्त दूषित - नीला, पीला, अधिक गर्म, बदबूदार, निकलते समय गुप्तांग में दर्द करने वाला वीर्य पित्त से दूषित होता है ! कफ दूषित - अत्यंत गाढा और थक्केदार वीर्य कफ से दूषित होता है ! इसमें कभी-कभी तेज़ गंध भी महसूस हो सकती है ! सफ़ेद, पतला, चिकना, मीठा और शहद की सी गंध वाला वीर्य शुद्ध होता है ! कुछ आचार्य तेल और शहद की तरह के वीर्य को ही शुद्ध मानते हैं !
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16-10-2012, 09:06 PM | #23 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
वीर्य को शुद्ध करने के तरीके
(नोट - सूत्र में प्रस्तुत सभी जड़ी-बूटियां इन्हीं नामों से पंसारियों के पास उपलब्ध हैं, जिन पर मुझे संदेह था, वह मैं पूछ-ताछ कर शुद्ध कर चुका हूं ! फिर भी कोई कठिनाई हो तो आप मुझसे पूछ सकते हैं ! मैं एक बार फिर पूछ-ताछ कर वैकल्पिक नाम प्रस्तुत करने का वादा करता हूं ! हां, स्वेदन आदि विशेष क्रियाएं, घी को सिद्ध करना क्या होता है, यह कृपया मुझसे नहीं पूछें, यह एक रासायनिक क्रिया है, जिसे कोई वैद्य ही बता सकता है और मैं वैद्य नहीं हूं ! धन्यवाद !) चिकित्सा से पहले वायु से दूषित वीर्य वाले को स्नेह्पान और स्वेदन आदि कराना चाहिए ! पित्त दूषित वीर्य वाले को विरेचन कराना चाहिए और कफ दूषित वीर्य वाले को वमन (उल्टी) और विरेचन दोनों कराने चाहिए ! इससे औषधियां ज्यादा असर करती हैं ! मुर्दे जैसी बदबू वाले वीर्य को शुद्ध करने के लिए रोगी को धावे के फूल, दाड़िम और अर्जुन वृक्ष की छाल से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए ! थक्के अथवा गांठदार वीर्यवाले को कचूर अथवा पलाश की भस्म से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए ! लेसदार वीर्यवाले को फालसे और बट से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए ! जिसके वीर्य में विष्टा (शौच) जैसी दुर्गन्ध हो, उसे चित्रक, खस और हींग से सिद्ध किया हुआ घी पिलाना चाहिए ! क्षीण (कम शुक्राणु) वीर्य वाले को बाजीकरण औषधियों का सेवन कराना चाहिए !
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16-10-2012, 09:07 PM | #24 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
नपुंसकों की चिकित्सा
यह एक सामान्य नियम है कि नपुंसकता का जो कारण है, मनुष्य को उसके विपरीत आचरण करने के निर्देश दें यानी जिस कारण से रोग हुआ है, उसे त्याग देना चाहिए ! नुकसान की भरपाई के लिए वस्तिकर्म करें, दूध, घी, पुष्टिकारक पदार्थ और रसायन आदि का सेवन करें ! साथ ही, औषधि और काल (समय) को जानने वाला वैद्य देह-दोष और अग्नि का बलाबल (बीमारी की प्रबलता और रोगी की दवा को पचाने की क्षमता) देख कर नपुंसकता को नष्ट करने वाले उपाय करे !
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16-10-2012, 09:08 PM | #25 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
बाजीकरण पदार्थ
विचित्र भोजन, अनेक प्रकार के दूध, शर्बत, आसव आदि पीने के पदार्थ, सुनने में प्रिय वचन, देह को सुखकारक नरम वस्त्र, पूर्ण चन्द्र से शोभायमान रात, सर्वांग सुन्दर नवयौवना स्त्री, कर्णप्रिय और मन को हरने वाले गीत-संगीत, पान का बीड़ा, आकर्षक बाग़-बगीचे, मन की इच्छा को पूरे करने वाले कार्य - ये सभी काम (सेक्स) को बढ़ाने वाले पदार्थ अथवा कारण हैं !
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16-10-2012, 09:08 PM | #26 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
शतावरीघृतं
एक सेर गौघृत (गाय के दूध से निकला घी) लेकर उसमें दस सेर शतावर का रस और दस सेर गाय का दूध मिला कर पकाएं ! फिर दस तोला पीपल, दस तोला शहद, बीस तोला खांड मिलाकर गाढा होने तक पकाएं ! इस घी को रोज़ दो तोला खाकर दूध पीने से वीर्य बढ़ता है और मनुष्य पुष्ट और बलवान होता है !
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16-10-2012, 09:09 PM | #27 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
लघुबाजीसर्पि:
एक सेर उत्तम गौघृत, एक सेर असगंध का कल्क, बकरी का चार सेर दूध - इन सभी को मिला कर घी को सिद्ध कर लें और फिर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर रोज सेवन करें, तो बल और वीर्य की वृद्धि होती है !
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16-10-2012, 09:09 PM | #28 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
गोधूमादिघृतं
पांच सेर सफ़ेद गेहूं का सत्व बीस सेर पानी में पकाएं ! जब पांच सेर बाक़ी रह जाए, तो इसे छान लें ! अब सफ़ेद गेहूं, मुंजातक फल, उड़द, दाख, फालसे, काकोली, क्षीर काकोली, जीवंती, शतावरी, असगंध, छुहारे, मुलहठी, सौंठ, काली मिर्च, पीपल, मिश्री, कौंच के बीज - प्रत्येक को छै (6) मासे की मात्रा में कूट कर मिला लें ! गाय का एक सेर घी, चार सेर दूध इस में मिलाकर मंद आंच पर पकाएं ! अब दालचीनी, इलायची, पीपल, धनिया, भीमसेनी कपूर - इन सभी को 6 मासे की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और पकती हुई सामग्री में डाल दें ! सिद्ध होने पर छान लें और इसमें बत्तीस तोला शहद, बत्तीस तोला मिश्री मिला दें ! फिर इसको ईख (गन्ना) के डंडे से मथ कर दूध में मिला कर पीयें अथवा चावल के भात के साथ खाएं या मांस के रस (शोरबे) के साथ पीयें ! इसे अपने पाचन तथा बल के अनुसार दो तोला से आठ तुला तक लेना चाहिए ! यदि इसे अकेला लेना हो, तो मात्रा चार तोला ही रखें ! इसके सेवन से लिंग में शिथिलता नहीं होती, वीर्य कभी क्षीण नहीं होता, बल में वृद्धि होती है ! इसके साथ ही यह वात रोगों को भी शांत करता है ! बूढ़े पुरुषों के लिए यह परम उपयोगी है ! दस दिन तक इसका सेवन करने वाला एक साथ दस स्त्रियों से रमण के योग्य हो जाता है ! यह गौधूमादि रसायन अश्वनी कुमार का कहा हुआ उत्तम नुस्खा है !
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16-10-2012, 09:10 PM | #29 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
वानरी गुटिका
एक पाव कौंच के बीज लेकर एक सेर दूध में पकाएं ! जब दूध गाढा हो जाए, तब उतार कर बीज निकालें और उनका छिलका उतार कर पीस लें ! इस पीसे गए गाढे घोल से दो-दो तोला की टिकिया बना लें और इन्हें गोघृत में पका लें ! अब आधा सेर खांड की चाशनी बनाएं और उसे समस्त टिकियों के ऊपर बालूशाही की तरह चढ़ा लें ! फिर इन्हें शहद में डुबो कर रख लें और प्रतिदिन पंद्रह माशे खाकर ऊपर से गर्म दूध पिएं ! प्रतिदिन सुबह-शाम ऐसा करने से लिंग की सारी कमजोरी, वीर्य का जल्दी निकल जाने जैसे सारे विकार दूर हो जाते हैं और पुरुष घोड़े के सामान सम्भोग करने में सक्षम हो जाता है ! आचार्यों ने कहा है कि इससे ज्यादा प्रभावशाली कोई अन्य बाजीकरण नुस्खा नहीं है !
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16-10-2012, 09:10 PM | #30 |
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Re: नपुंसकामृतार्णव
बाजीकरण शष्कुली
काले तिल, असगंध, कौंच के बीज, बिदारीकंद, मुलहठी - इन सभी को समान मात्रा में लेकर कूट लें और कपड़छान करके बकरी के दूध में गूंथ कर पूरियां बना लें ! बकरी के दूध से बनाए गए घी में ये पूरियां तल लें ! इन्हें मिश्री मिले दूध के साथ खाने से शरीर बलवान और वीर्य पुष्ट तथा सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाता है !
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