03-01-2013, 02:55 PM | #1 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
मॉरीशस को लघु भारत कहा जाता है, इसलिए कि यहां जनसंख्या का एक बड़ा भाग भारतीयों का है। इन प्रवासियों का हिन्दी साहित्य में अत्यंत श्रेष्ठ योगदान है। मैं इस सूत्र में इस लघु भारत का हिन्दी काव्य प्रस्तुत करूंगा, लेकिन आइए पहले जानते हैं इस देश के बारे में। |
03-01-2013, 02:56 PM | #2 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
जनसंख्या : लगभग 13 लाख (2011 की जनगणना)
राजधानी : पोर्ट लुइस भाषाएं : अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, क्रिओल, हिन्दी । इसके अलावा पूर्वजों की भाषाएं जैसे कि भोजपुरी, मराठी, उर्दू, तमिल, तेलुगु और चीनी भी पढ़ाई और बोली जाती हैं। संस्कृत और अरबी का शिक्षण भी होता है। हिन्दी शिक्षण व प्रचार प्रसार संबंधी महत्वपूर्ण संस्थान : विश्व हिन्दी सचिवालय, महात्मा गांधी संस्थान, हिंदी प्रचारिणी सभा, हिंदी संगठन (हिंदी स्पीकिंग यूनियन), हिन्दी लेखक संघ, आर्यसभा मॉरीशस, आर्य रविवेद प्रचारिणी सभा, रामायण केन्द्र आदि। वर्तमान हिंदी प्रकाशन : विश्व हिंदी पत्रिका तथा विश्व हिंदी समाचार (विश्व हिंदी सचिवालय), वसंत तथा रिमझिम (महात्मा गांधी संस्थान), आक्रोश (सरकारी हिंदी अध्यापक संघ), पंकज (हिंदी प्रचरिणी सभा), सुमन (हिंदी संगठन), आर्योदय (आर्य सभा मॉरीशस), दर्पन (सनातन धर्म टेंपल्स फेडेरेशन) आदि। |
03-01-2013, 03:02 PM | #3 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
दुर्भाग्य
-अजय मंगरा हाय ! कैसी दुर्दशा तेरी हे मेमने ! प्यास से बिलखता हुआ, ठंड से तड़पता हुआ कम्पित कदमों पर, लड़खड़ाता हुआ जब अपनी माँ की ओर तु बढ़ा तो मिली तुझे, टांगो की मार, दाँतों की खरोंच, नथने से धक्के, घृणा तिरस्कार। बिजली का दिल दहक गया बादल के आँसू बह गये। लेकिन, तेरी मर्मस्पर्शी चीख से, निष्ठुर माँ का हृदय न पसीजा। दुर्भाग्य तेरा। |
03-01-2013, 03:04 PM | #4 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
मायूसी
-गाजिल मंगलू खुद भी लाल कफन ओढ़े हुए वह देखो सूरज डूब रहा है घंटों पहले अरमानों का दिया जलाने आया था खून में उन अरमानों को लुढ़काते हुए अब डूब रहा है। कल यह सूरज फिर निकलेगा कल भी उन अरमानों का नाहक खून दोबारा होगा खुद भी लाल कफन ओढ़े हुए वह देखो सूरज डूब रहा है |
03-01-2013, 03:07 PM | #5 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
प्रश्न आदमी से ही
-अनीता ओजायब प्रकृति के चमकते सितारो से अम्बर के नीचे पड़े वृक्षो से नदियो की कलकलाहट से सागर की तूफानी लहरों से हमने एक सवाल पूछा सितारे हम पर हँसने लगे पत्ते हिलने, गिरने लगे चट्टानो से आवाज आई संसार की खुशियाँ कहने लगी सवाल मत करो। सवाल मत करो सृष्टि के इतिहास को मत कुरेदो जिंदगी की मंजिलों पर खड़े अश्को को टपकने न दो सवाल को सवाल रहने दो। सवाल कैसा था जिसके जवाब में भी प्रश्न था जानने की यह इच्छा थी कि मनुष्य के हमलों को प्रकृति कैसे सहन करती है। मनुष्य जाति सिर्फ हमला नहीं करती प्रकृति का नाश तो करती है पर ईश्वर का नाम भी लेती है परमेश्वर को भागीदार बनाती है अपने साथ भगवान को भी गिराती है। पत्तों की खड़खड़ाहट में हम तक सन्देश पहुँचे कि मनुष्य से लड़े कैसे वृक्ष कभी किसी को रोके कैसे अपने फूलों, अपने पत्तों को बचाये कैसे ? नदियाँ रोती हुई कहे क्या उन पर तो जैसे ब्रज टूटा उसके पल्लव में तो गन्दगी है पड़ी जल की धारा जो सभी के पाप धोती उसी में है आज कचरा पड़ा और वास्तविकता यह कि प्रकृति का क्या दोष है ? नहीं, प्रकृति का तो कोई दोष नहीं ? क्योंकि वह आदमी है जो प्रकृति को गन्दलाता है अतः प्रश्न आदमी से ही पूछना होगा। |
03-01-2013, 03:17 PM | #6 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
ताज़ा खबर
-अभिमन्यु अनत सुनो ! गगनचुम्बी इमारतोंवाले झोंपड़ियोंवाले गली-कुच्चोंवाले बेघरवाले सुनो ! आज ऊपर से खबर आयी है मुसाफिर मज़दूर मालिक सुनो सभे आज सुबह भूल से भगवान ने सूरज के स्वीच को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया है नाविको सुनो वैज्ञानिको सुनो वेश्याओ सुनो पुजारियो सुनो सूरज आज धधकेगा ज्वालाएँ प्रचण्ड होंगी उस ताप से सभी कुछ पिघलकर रहेगा सुनो ! फ्रीज बर्फ के साथ बह जायेगा और उसके साथ सुविधाएँ । आदमी पिघ;अ जायेगा असुविधाएँ भी बह जायेंगी । गलियों के गरीब, धनी कार, बेकार सभी तरल हो जायेंगे नदियाँ बहेंगी लोहे की, चाँदी की, सोने की सुनो! भगवान स्तब्ध है न खुश है न उदास है । यह ताज़ा खबर है । |
03-01-2013, 03:20 PM | #7 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
माँ
-अरविंद सिंह नेकित सिंह माँ मैं नास्तिक तो नहीं फ़िर भी आज बाध्य हूँ तुझसे तुझ पर प्रश्न चिह्न लगाने को । तुझे देख उठती नहीं भक्ति क्योंकि तू बन गई है धन-वैभव समृद्धता को दिखावे का साधन मस्तिष्क में कहीं गढ़ी है अब भी वह चित्र तेरा जब न थी चकाचौंध या सजावटें एक नारियल, एक चन्दन, दो बूँद पानी, दो बूँद चाँक, दो बूँद दूध, चार जनों में आप का गुणगान और रोंगतों का उठना पर अब जाने क्यों... तिलमिलाती बल्बों और लाउडस्पीकरों के गूँज में भी तू नहीं दिखती क्या तू भी... |
03-01-2013, 03:23 PM | #8 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
वसुन्धरा
-इन्द्रदेव भोला इन्द्रनाथ प्रकृति देवी जिसकी पावन गोद में पलती झरने झरने, धाराएं, तरंगें उछलतीं होते हैं जहां कुसुमित कुसुम, मुकुलित कमियां मंडराते हैं षट्पद रंग बिरंगी तितलियां । तमचुर के बांकते प्रातःकालीन छटाएं, निखर आतीं, महक उठतीं चारों दिशाएं सन सन कर बहने लगता सुनासित पवन जाग उठता धरा का अलसाई कण कण । शाम होती न्यारी,बिखरी रहती किरण-लाली रात होती सुहानी, छिटकती ज्योत्स्ना निराली प्रकृति की शोभा में लग जाते चार चांद विंमडित होती धरा पहन स्वर्णिम परिधान । यह है वही दिग-दिगन्त विस्तीर्ण वसुन्धरा युग युग से ज्यों का त्यों खड़ी वसुन्धरा सच्ची जननी है, जड़-चेतन का सहारा जिसके वात्सल्य, उदारता का मिला न किनारा । पहाड़ों को धारण कर झंझावतों का सहनकर दुख-सितम सहकर, कांटों का भी मुकुट पहनकर करती वह सबसे शुचि प्यार , सब का उपकार बनती सब को, बसाती सब को बांटकर दुलार । खिदते, बिंधते लोग सदा उसका हृत सहती वह सब कुछ पर होती न कभी कुपित सदैव शान्त, सदैव कोमल उसकी रीत देकर उमदा फसलें बढ़ाती सबसे प्रीत । जो दे सब कुछ और ले कुछ भी नहीं क्या है कोई और ऐसी देवी कहीं ? क्यों न पूजें हम इस देवी को जो अन्न देती, धन देती और देती मधुरिम जीवन । |
03-01-2013, 03:25 PM | #9 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
होलिका पूजन
-कल्पना लालजी कहा गया मुझसे होली के अवसर पर हास्य कवि सम्मलेन में कुछ सुनाना है मैंने सोचा यह क्या मुसीबत है कहा होता लोगों को रुलाना है वो आसान होता –वो आसान होता क्योंकि लोगों को रुलाना बहुत आसान है रुलाना जितना आसान है हँसाना उतना ही मुश्किल सोचती हूँ मंहगाई से बुझे इन चेहरों पर हंसी कहाँ से लाओ क्या करूँ मैं कैसे इन्हें खिलखिलाकर हँसाओ फिर भी कोशिश की खिलखिलाहट न सही एक मुस्कान ही ले आऊ परन्तु यहाँ भी असफलता ने ही कदम चूमे झूठी आशाओं के सहारे शब्द व्यर्थ ही घूमे यहाँ बैठे लोगों के चहरों पर हंसी कहाँ है उखडती इन सांसों में वो पहली सी खुशी कहाँ है साफ़ दिखता है दिखावा है झूठी मुस्कान का लेबल है जैसे बासी पकवान टेबल पे सजा रखा हो तब भी मन न माना शब्दों का चयन करने लगी शांत भाव से एक मन हो विषय चुनने लगी पर ज्योंही होली के लाल रंग पर दृष्टी पड़ी सर्वत्र हो रहे हत्याकांड पर दृष्टि गड़ी मन में सोचा मानवता ने तो बड़ी प्रगति कर ली वसुधैव कुटम्बकम ने जातिवाद की दीवार ही गिरा दी होली का त्यौहार अब केवल हिंदू ही नहीं मना रहे क्योंकि आज सर्वत्र विश्व में इसी त्यौहार का बोलबाला है हर चेहरा इसी लाल रंग में रंग डाला है हम कितने पीछे रह गए हैं वो कितने आगे बढ़ गए हैं हम आज भी बनावटी लाल रंगों से होली खेलते हैं परन्तु मानवता के ये पुजारी मानव के लहू से ही होली पूजते है |
03-01-2013, 03:27 PM | #10 |
Member
Join Date: Nov 2011
Location: Banglore/Moscow
Posts: 118
Rep Power: 16 |
Re: मॉरीशस से हिन्दी कविताएं
पूर्वजों को प्रणाम
-जनार्दन कालीचरण मेरे देश की बंजर धरती को मधुवन-सा उपवन बनाने वाले उन शर्त-बन्द पूर्वजों को मेरा सौ बार प्रणाम ।। पीठ पर कोड़ों की मार सह-सह कर रक्त से अपने इस मिट्टी को सींच कर पत्थर से निर्दय गोरों की जेबें भरकर जिन पूर्वजों ने हमें दिया है सम्मान उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।। थे वे दुख के पर्वत वहन करने वाले खून के घूंट चुप पी जाने वाले हर प्रलोभन को ठोकर मार कर जिन पूर्वजों को स्वधर्म का था अभिमान उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।। जब शायद भाग्य न था साथ उनके तप्त आंसू की धार पी-पी कर रामायण की तलवार हाथ लिये जिन पूर्वजों ने छेड़ा था स्वतंत्रता का संग्राम उनको मेरा सौ बार प्रणाम ।। |
Bookmarks |
|
|