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Old 11-03-2013, 08:35 PM   #1
jai_bhardwaj
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अंतरजाल से प्राप्त कुछ अतीन्द्रिय कथाएं ........
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
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Old 11-03-2013, 08:36 PM   #2
jai_bhardwaj
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(1)

मैंने सुना तो था कि अगर रात के समय किसी सुनसान रास्ते पर आपको कोई आवाज सुनाई दे तो पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिए. लेकिन जैसे आप इस बात पर विश्वास नहीं करते वैसे ही मुझे भी यह सब दकियानूसी लगता था. लेकिन शायद इन सब बातों पर विश्वास ना करना ही मेरे लिए एक बुरा सपना साबित हुआ. बस फर्क इतना है कि बुरे सपने नींद टूटने के बाद गायब हो जाते हैं लेकिन यह बुरा सपना तो अब तक मेरे साथ ही चल रहा है.


मेरी बेस्ट फ्रेंड की शादी थी और हम सभी दोस्त उसकी शादी में जाने के लिए तैयार थे. नीतू और मेरी पहचान कॉलेज के समय हुई थी. वह उत्तरांचल के एक छोटे से गांव से संबंध रखती थी और पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली आई थी. नीतू का परिवार उत्तरांचल ही रहता था इसीलिए शादी तो वहीं होनी थी.

खैर जॉब में व्यस्त होने के चलते हम में से कोई भी नीतू की शादी के लिए जल्दी नहीं जा पाया. शादी के दो दिन पहले ही हम सभी कॉलेज के दोस्तों ने एक मिनी बस की और शाम के समय ही निकल पड़े उत्तरांचल की तरफ. रात के करीब 10 बजे होंगे कि सभी को जोरों की भूख लगने लगी. रास्ते में कोई अच्छी जगह ना मिल पाने के कारण हमने थोड़ा और दूर जाकर खाने की सोची. 12 बजे के आसपास हमें एक जगह दिखाई दी जहां हम सभी खाने के लिए बैठ गए.

खाना खाकर कुछ दूर चले ही थे कि हमारी बस खराब हो गई और वो भी ऐसी जगह पर जहां आसपास सिवाय अंधेरे के और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. मैं और मेरी एक दोस्त फोटोग्राफ्स खिंचवाने के लिए चल दिए. रात का समय था बाहर का ठंडा मौसम बहुत अच्छा था तो हमने सोचा एक जगह खड़े होने से बेहतर है आगे चला जाए, गाड़ी तो ठीक होने में समय लगेगा.

मेरी दोस्त और मैं कुछ दूर ही चले थे लेकिन वहां इतना घना अंधेरा था कि हमें और पीछे का कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मुझे आवाज दे रहा है. पहले तो मुझे लगा मुझे गलतफहमी हुई है और हम दोनों फिर से फोटोग्राफ्स खिंचवाने में व्यस्त हो गए.

लेकिन कुछ ही देर बाद मुझे ऐसा लगा कि फिर किसी ने मुझे मेरे कान में मेरा नाम पुकारा है. मैं पहले तो डरी लेकिन अपनी दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं बताया.


लेकिन जैसे ही मैं आगे बढ़ी किसी ने बहुत तेज मेरा नाम पुकारा लेकिन जब मैंने अपनी दोस्त से पूछा कि उसने मेरा नाम सुना तो उसने मना कर दिया और यह भी कहा कि अगर तुझे सुनाई दे भी रहा है तो भी तुझे पीछे नहीं मुड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुष्ट आत्माएं पीछे पड़ जाती हैं.


मैंने उसकी बात को मजाक में टाल दिया और यह कहते हुए नकार दिया कि हो सकता है किसी को हमारी मदद की जरूरत हो !! मेरी दोस्त ने कहा कि “अच्छा, लेकिन जिसे मदद चाहिए उसे तेरा नाम कैसे पता? पता भी है तो मुझे क्यों नहीं आ रही उसकी आवाज?”


मैंने फिर भी उसकी बात नहीं सुनी. जैसे ही मेरे कानों ने दोबारा मेरा नाम गूंजता हुआ सुना मैंने पलटकर देख लिया कि आखिर कौन मुझे पुकार रहा है.


गलती कर दी मैंने, उस दिन के बाद तो जैसे मेरा जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया. आज भी बिना वजह कभी मेरे कपड़े अलमारी के बाहर गिरे होते हैं तो कभी मेरा कमरा इस तरह बिखरा होता है जैसे किसी ने मेरे कमरे के सामानों पर ही अपना क्रोध उतारा है. दिन को जब भी मैं सो कर उठती हूं तो मेरे चेहरे पर लकीरों के निशान पड़े होते हैं तो कभी रात के समय ऐसा लगता है जैसे कोई रो रहा है मेरे पास बैठकर.
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Old 11-03-2013, 08:38 PM   #3
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(2)

सपनों की नगरी मुंबई के बारे में तो हम सभी जानते हैं. लेकिन शायद किसी को भी यह नहीं पता कि छोटे शहरों के लोगों के बड़े-बड़े सपनों को पूरा करने वाले इस शहर से एक ऐसी भयानक दास्तां जुड़ी हुई है जो किसी की भी रूह को हिला कर रख देगी.

माना जाता है जिस तरह इस संसार में सच के साथ झूठ और अच्छाई के साथ बुराई का भी वास है उसी प्रकार अगर हम ईश्वरीय ताकतों पर भरोसा करते हैं तो हमें शैतानों पर भी विश्वास करना ही पड़ेगा.

इस लेख में हम आपको माहिम (मुंबई) की एक ऐसी चॉल के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कई लोगों ने ऐसी ही बुरी ताकतों का अनुभव किया है. यहां रहने वाली अदृश्य ताकतों के घेरे में कई लोग आ चुके हैं.


माहिम की इस चॉल के बीचोबीच एक कुंआ है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि आज से 25 साल पहले जब चॉल में ही रहने वाली एक 50 वर्षीय महिला सुलोचना इस कुएं से पानी भर रही थी तभी अचानक उसका पैर फिसल गया और वह कुएं में जा गिरी. कुएं में गिरने के बाद वह मदद के लिए काफी चीखी-चिल्लाई लेकिन इससे पहले की कोई उसकी मदद के लिए आता पानी के अंदर दम घुट जाने के कारण उसकी मौत हो गई.

इस चॉल में रहने वाले लोगों का कहना है कि अगर कभी रात के समय वह उस कुएं के पास से गुजरते हैं तो उन्हें वहां एक औरत नजर आती है. वह औरत किसी को कुछ नहीं कहती लेकिन गुमसुम सी वहीं आसपास घूमती रहती है.


मुंबई के माहिल इलाके में पैराडाइज सिनेमा के ठीक पीछे एक इमारत है. इस इमारत को राम साकेत बिल्डिंग कहा जाता है और इसी बिल्डिंग के कंपाउंड में है वो कुआं जिसे अब सील कर दिया गया है. क्योंकि लोगों का मानना था कि अगर इस कुएं को खुला रखा गया तो स्थानीय लोगों के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है. वैसे तो इस कुएं के आसपास जिस आत्मा को भटकते हुए देखा गया है वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती.


इस चॉल में रहने वाले एक वृद्ध व्यक्ति का कहना है कि जिस महिला का पांव फिसलने की वजह से वह कुएं में जा गिरी थी, वह महिला उनकी परिचित थी और जिस महिला की आत्मा कुएं के पास विचरण करती है वह उसी की है.


हैरानी की बात तो यह है कि उस वृद्ध व्यक्ति का कहना है कि वह आत्मा हर अमावस्या की रात को यहां जरूर आती है और सुबह होते ही गायब हो जाती है. इतना ही नहीं इस चॉल के मालिक रिचर्ड हर रोज आकर कुएं के पास फूल चढ़ाकर जाते हैं ताकि वह आत्मा शांत रहे.
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Old 11-03-2013, 08:40 PM   #4
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(3)

पढ़ने वाले इस कहानी को भी मनगढ़ंत मानकर नजरअंदाज कर देंगे लेकिन किसी के मानने या ना मानने से सच तो नहीं बदल सकता और सच यही है कि उस रात एक छोटी सी शर्त लगाकर शायद मैंने अपने जीवन के सबसे भयानक और खौफनाक पल को आमंत्रित किया था.


बात आज से 5 साल पहले की है. मैंने अपनी जॉब चेंज की और जिस कंपनी को जॉइन किया उसका हेड क्वार्टर बंगलुरू में था. एक सेमिनार के लिए मुझे अपने ऑफिस की तरफ से बंगलुरू जाना पड़ा जहां अन्य शहरों में स्थित ब्रांचों से भी लोग आए थे. उन्हीं सब लोगों में से तीन अजय, नवीन और अमित से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई.



हम चारो कंपनी के गेस्ट हाउस में रुके हुए थे. 2 दिन तक चलने वाले इस सेमिनार का टाइम सुबह 9 से 5:30 तक का था इसीलिए हम तीनों के पास काफी समय बच जाता था. अजय, नवीन और अमित के स्वभाव एक-दूसरे से पूरी तरह अलग थे. अजय बहुत बातूनी और मजाकिया था वहीं नवीन बहुत कम बोलता था. नवीन की ही तरह अमित भी थोड़ा रिजर्व था लेकिन उसका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत मजेदार था. एक बार हम सभी साथ बैठे हुए थे तभी अजय ने कहा मैंने देखा है होटल के पीछे एक कब्रिस्तान है, अगर टाइम मिला तो वहां जरूर जाएंगे.


अगले दिन तड़के सुबह हमें अपने-अपने शहरों के लिए निकलना था इसीलिए रात के समय हम सभी ने सोचा क्यों ना एक साथ कुछ अच्छा समय बिताया जाए.

सभी लोग मेरे कमरे में एकत्रित हुए और वहीं खाना-पीना मंगवा लिया. ड्रिंक तो हम सभी ने की लेकिन अजय को कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. अजय ने फिर से वहीं कब्रिस्तान का जिक्र छेड़ दिया. नवीन जो ऐसी जगह जाना या बात करना बिल्कुल पसंद नहीं करता था उसने अजय को चुप हो जाने के लिए कहा लेकिन अजय कहां किसी की सुनने वाला था. अजय चुप नहीं हुआ और गुस्से में आकर नवीन ने उसे कब्रिस्तान में एक घंटे बिताकर आने जैसे शर्त लगा दी. नशे में धुत्त अजय जाने लगा तो मैं भी उसके साथ ही चला गया.


कब्रिस्तान के बाहर पहुंचे ही थे कि एक बेहद वृद्ध से दिखने वाले व्यक्ति, अबू चाचा ने हमें रोक दिया. उसने कहा इतनी रात को अंदर जाना खतरनाक है. वैसे भी यह जगह मृत लोगों का घर है. इस समय उन्हें परेशान करना तुम्हें महंगा पड़ सकता है. ना अजय और ना ही मैं ऐसी बातों पर विश्वास करते थे इसीलिए मैंने उन्हें बोला मेरे बहुत करीबी रिश्तेदार की कब्र यहां है, मैं कल वापस लंदन जा रहा हूं इसीलिए एक बार यहां आना चाहता था.

अबू चाचा भावुक हो गए और हमें अंदर जाने दिया. अंदर जाते ही मुझे और अजय को ऐसा लगा कि कोई हमारा गला दबा रहा है. हमें सांस आनी बंद होने लगी. जहां तक मेरी नजरें जा रही थीं सिर्फ और सिर्फ अंधेरा था कि अचानक मुझे एक परछाई अपने आसपास घूमती दिखाई देने लगी. यूं तो कब्रिस्तान में प्रवेश करने से ही मुझे अजीब सा महसूस होने लग गया था लेकिन सांस ना आना और सांस लेने पर अजीब सी बदबू का अहसास होना बेहद भयावह हो गया था. अचानक किसी ने मेरे और अजय के पैरों को पकड़ लिया. लेकिन किसने यह हमें समझ नहीं आ रहा था. हम ना तो सांस ले पा रहे थे और ना ही आगे बढ़ पा रहे थे. अचानक एक व्यक्ति दूर से भाग-भाग चिल्लाता आया. वह हमारे पास दौड़कर आया और जमीन पर अपनी लाठी से वार करने लगा. वह किसे मार रहा था हमें नहीं पता लेकिन उसके ऐसा करने से हमारे पैरों की जकड़न जरूर खत्म हुई.


अचानक वह हम पर बरस पड़ा कि इतनी रात गए हम यहां क्या कर रहे हैं. उसने बताया यहां कई दुष्ट आत्माएं रहती हैं जो रात के समय सक्रिय हो जाती हैं. उसका रोज उन आत्माओं से सामना होता था इसीलिए अब उन्हें भगाना उसकी आदत बन गया था.

हमने उसे बोला कि हम अबू चाचा से पूछकर ही अंदर आए हैं और उन्होंने तो कुछ ऐसा नहीं बताया. उसने कहा कौन अबू चाचा, यहां का गार्ड मैं हूं. उसने बोला आपसे पहले भी बहुत से लोगों ने एक वृद्ध को कब्रिस्तान के आसपास देखने की बात कही है लेकिन मुझे कभी वह नजर नहीं आया. गार्ड के मुंह से यह सब सुनकर हम और ज्यादा देर तक नहीं रुक पाए और सुबह के लगभग 3:30 बजे होटल पहुंचकर हमने चैन की सांस ली.
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(4)

आज मैं आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताना चाहता हूं जिसने मुझे और मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया. मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि क्या उस रात मैंने जो देखा था वो सच था या सिर्फ मेरा वहम…

सुनने या पढ़ने वाले भले ही इसे एक मनगढ़ंत कहानी मान लें लेकिन वो कहते हैं ना जिस पर बीतती है वही उस दर्द को समझ सकता है. ऐसा ही कुछ मुझ पर भी बीता जिसे मैं आप सभी को सुनाना चाहता हूं. बात आज से लगभग 3 साल पहले की है जब मैं अपने करीबी दोस्त की शादी में शामिल होने उसके गांव गया था. हम दोनों दिल्ली की एक कंपनी में साथ काम करते थे लेकिन उसका परिवार राजस्थान के एक छोटे से गांव से संबंध रखता था. उसके विवाह से जुड़े सभी आयोजन वहीं गांव में ही होने थे इसीलिए उसकी शादी से तीन दिन पहले ही मैं वहां जाने के लिए निकल पड़ा.

जयपुर एयरपोर्ट पर उतरने के बाद मैंने उसके गांव पहुंचने के लिए एक टैक्सी की. मेरे दोस्त साहिल का गांव जयपुर से काफी दूर था. ड्राइवर ने पहले ही कहा था कि पूरे 24 घंटे में ही हम उस गांव में पहुंच पाएंगे. सफर लंबा था इसीलिए टैक्सी ड्राइवर से बातें भी शुरू हो गईं. बातें करते-करते उसने गांव-देहातों में फैले भूत-प्रेतों के किस्सों का जिक्र छेड़ दिया. ड्राइवर का कहना था कि जिस गांव में मैं जा रहा हूं वहां तो डायनों का आना बहुत आम है. उसने मुझे एक नहीं ना जाने कितने ही किस्से सुना दिए उस गांव और डायन से जुड़े हुए.

अब आप तो जानते ही हैं कि दिल्ली जैसे महानगर में रहने वाले युवा कहां इन आत्माओं और डायनों की बात पर यकीन करते हैं. मेरे जैसे अधिकांश लोगों के लिए यह सब मनोरंजन का एक जरिया हो सकता है इससे ज्यादा कुछ नहीं लेकिन शायद वह आखिरी बार था जब मैंने इन सब काली शक्तियों को बस एक मजाक के रूप में लिया था क्योंकि उसके बाद तो जैसे मैं इन पर ना सिर्फ विश्वास करने लगा बल्कि हर समय इनकी उपस्थिति का अहसास भी करने लगा.

ड्राइवर का कहना था कि सुबह आठ बजे तक हम अपनी मंजिल पर पहुंच जाएंगे. रात 10 बजे के आसपास हमने एक ढाबे पर खाना खाया और फिर सफर की थकान की वजह से आंख लग गई. अचानक हमारी गाड़ी खराब हो गई और वो भी ऐसी जगह जहां से कुछ भी मदद मिलना लगभग नामुमकिन था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. सुबह होने का इंतजार भी नहीं कर सकते थे और आसपास कोई ठीक जगह भी नहीं थी. ड्राइवर का कहना था कि 2-3 किलोमीटर पर एक ढाबा है आप वहां पहुंच जाओ मैं गाड़ी ठीक करवाकर आ जाऊंगा. मैंने उसकी बात मान ली और पैदल चलने लगा. बहुत चलना था इसीलिए कानों में इयरफोन लगा लिया और सोचा टाइम पास हो जाएगा.

कुछ दूर चलते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे साथ कोई चल रहा है. बड़ी तेज महक सी आई और बहुत देर तक अपने साथ किसी और के होने का अहसास हुआ. पहले लगा कि जैसे यह मेरा वहम है लेकिन धीरे-धीरे वो वहम हकीकत या यूं कहें भयानक हकीकत की शक्ल लेने लगा. पहले मुझे केवल अहसास हो रहा था कि कोई मेरे साथ-साथ चल रहा है लेकिन धीरे-धीरे किसी की शारीरिक आकृति मुझसे कुछ कदम दूरी पर दिखाई देने लगी.

वह एक सुंदर लड़की थी, उसने मुझसे पूछा इतनी रात को अकेले मैं कहा जा रहा हूं तो मैंने उसे अपनी कहानी बता दी कि कैसे गाड़ी खराब हुई और मैं पैदल चलने के लिए मजबूर हुआ.

मैंने भी उससे यही सवाल किया कि वह इतनी रात को यहां क्या कर रही है. उसने मुझे बोला कि वह अकसर इस रास्ते पर आती-जाती है. इससे पहले मैं उससे कुछ और पूछता उसने मुझे बोला कि आपके दोस्त की शादी तो कल है ना आप कैसे पहुंच पाओगे?

उसका यह सवाल सुनकर मैं हैरान रह गया कि उसे कैसे पता!! मैंने पूछा आपको मेरे दोस्त की शादी के बारे में कैसे पता तो उसने मुझे बताया कि ऐसे ही. मैं चुप हो गया. उसने अपना नाम कविता बताया था. फिर वह कोई अजीब सा गाना गुनगुनाने लगी और मैं चुपचाप उसके साथ चलता रहा. आगे बढ़ा तो सामने एक बड़ा और घना पेड़ दिखाई दिया. मैं उसकी तस्वीर उतारने लगा तो उस लड़की ने मुझे ऐसा ना करने को बोला. मैंने पूछा क्यों? तो उसने बोला रात के समय तस्वीर नहीं उतारते. मैंने अपना कैमरा अंदर रख लिया. मेरी नजर अचानक मेरी नजर पेड़ से थोड़ी दूर पर खड़ी तीन औरतों पर गई. तीनों औरतें धीरे-धीरे मेरे पास आने लगी. जैसे-जैसे वो पास आती गईं उनका चेहरा नजर आने लगा जो बहुत डरावना था. वह मुझे अपने पास बुलाने लगीं लेकिन कविता ने उनका इशारा देख लिया और मुझे तेज-तेज चलने के लिए बोला. मैं चलने क्या भागने लगा. थोड़ी दूर आते ही वह औरतें गायब हो गईं और मैंने कविता ने पूछा कि वो कौन थीं? उसने बताया कि वह इस गांव में पिछले कई सौ सालों से घूम रही हैं गांव के लोग उन्हें बुरी आत्माएं कहते हैं. आपको उनसे बचाने के लिए ही मैं आपके साथ-साथ आई हूं. मैंने पूछा तुम कैसे बचा सकती हो? उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया.


हम बहुत दूर निकल आए थे, कविता ने कहा कि ढाबा आने वाला है और रास्ता भी सुरक्षित है, अब मुझे चलना चाहिए. मैंने कहा तुम आगे तक नहीं जाओगी. उसने कहा मेरी मंजिल तो यही है. जाते-जाते उसने मुझे बस एक बात बोली कि हर आत्मा बुरी नहीं होती साहब !!

उसकी बात का मतलब समझते मुझे बिलकुल देर नहीं लगी और मैं समझ गया कि वह एक भली आत्मा थी जो मुझे बुरी शक्तियों से बचाने के लिए मेरे साथ-साथ आई थी…. !!!
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(5)

एक सच्ची घटना जिसे पढ़कर आपके भी होश उड़ जाएंगे

काली शक्तियों से सामना या प्रेतों का घर पर कब्जा यह सब किसी फिल्म की स्टोरी जैसी लगती है. सुनने में जितनी मजेदार लगती है असल में उतनी ही…..अगर आप आत्माओं के होने और उनका इंसानी दुनिया में दखल देने जैसी बातों को मात्र मनोरंजन का ही एक जरिया मानते हैं तो आपको एक बार फिर से सोचने की जरूरत है. कहीं आपका उन्हें अनदेखा करना उन्हें आपके और नजदीक ना ले आए.

आज हम आपको ऐसी एक घटना से रूबरू करवा रहे हैं जिसे पढ़ने के बाद शायद अगली बार आप रात के अंधेरे में घर से बाहर निकलने से पहले कई बार सोचेंगे. इतना ही नहीं अगर कोई आपको अपने ऊपर बीती इन काली शक्तियों के बारे में बताएगा तो आप हंसकर उसका मजाक नहीं उड़ाएंगे.


नए घर में शिफ्ट होते ही मैं और मेरा परिवार कुछ अजीबोगरीब घटनाओं को महसूस करने लगा. किराए का मकान था इसीलिए आस पड़ोस वालों से ज्यादा मेलजोल भी नहीं हो पाया था. कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन दिन बीतने के साथ ही वहां कुछ ऐसी घटनाएं होने लगीं जिसे समझ पाना बहुत मुश्किल था.

रात के समय वहां कुछ चलती फिरती परछाइयां तो नजर आती ही थीं साथ ही ऐसा भी महसूस होता था जैसे कुछ है जो हमें दिखाई नहीं दे रहा. घर का किराया कम था और जगह भी ठीक थी इसीलिए मेरे परिवार ने इन सब चीजों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया.


लेकिन एक दिन ऐसा हुआ जिसकी कल्पना मैंने या मेरे परिवार ने कभी सपने में भी नहीं की थी. ऐसा कुछ जिसे चाह कर भी अनदेखा नहीं किया जा सकता था.

पिताजी को किसी काम से घर से बाहर जाना पड़ा और रात को वह घर वापस नहीं लौट पाए. परिणामस्वरूप मुझे और मां को अकेले ही घर में रात गुजारनी पड़ी. रात को अचानक बगल वाले कमरे से कुछ अजीब अजीब सी आवाजें आने लगीं.


वह कमरा हमारा नहीं था, मकान मालिक के ही कब्जे में था. हमारे मकान मालिक ने उस कमरे में प्रवेश ना करने की चेतावनी भी दी थी इसीलिए कभी उस ओर जाने की सोची भी नहीं. लेकिन अब जब हमें उस कमरे में से किसी के चीखने और फिर अचानक रोने जैसी आवाजें आने लगी तो इन आवाजों से हमारी नींद टूट गई और हम डर के मारे सहम गए.

पहले तो लगा जैसे बाहर किसी का झगड़ा हो रहा है लेकिन घड़ी में जब समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. मां और मुझे समझने में देर नहीं लगी कि यह आवाजें उसी कमरे में से आ रही हैं जहां हमारे जाने की मनाही थी. मकान मालिक का कहना था कि उस कमरे में उनका पुराना सामान पड़ा है इसीलिए हम भी वहां जाने में दिलचस्पी नहीं रखते थे.


परंतु अब जब वह कमरा हमारे लिए एक पहेली बन गया तो उसे खोलना हमारे लिए जरूरी सा हो गया था. पहले तो सोचा कि सुबह उसे खोलेंगे लेकिन फिर उन आवाजों ने हमें एक रात भी ना रुकने दिया और हम उसे खोलने के लिए तैयार हो गए.

डर तो लग रहा था लेकिन यह भी पता था कि अगर अभी ना खोला गया तो इस कमरे की सच्चाई कभी बाहर नहीं आएगी. इसीलिए मैं और मां डरते-डरते उस कमरे की ओर बढ़ने लगे. हमें लगा था कि कमरा खोलने के लिए हमें मशक्कत करनी पड़ेगी लेकिन जैसे ही कमरे के दरवाजे पर हाथ लगाया वह आसानी से खुल गया.

उस कमरे के अंदर का माहौल देखकर मैं और मां दोनों डर से कांपने लगे. इतना ही नहीं हम एक-दूसरे से कुछ कह भी नहीं पा रहे थे.

कमरा पूरी तरह से लाल रोशनी से घिरा हुआ था और अंदर अजीब सी गंध आ रही थी. हम अंदर की ओर बढ़ने लगे तो वहां पुरानी और टूटी-फूटी पेंटिंग्स पड़ी थीं. जो थीं तो किसी व्यक्ति की लेकिन किसकी यह हमें समझ नहीं आया.


कमरे के अंदर हमें एक औरत बैठी दिखाई दी जो हमारे मकान मालिक की बहन थी. एक कोने में बैठकर वो ना जाने किससे बात कर रही थी. हमें उसके आसपास तो क्या पूरे कमरे में उसके अलावा कोई और नहीं दिखाई दिया. जैसे ही हम उसकी ओर बढ़े वह और तेज तेज रोने लगी. वह रोती तो अचानक से कोई उसे जोर से चुप करवाने के लिए डांटने लगता. कौन डांटता कहां से आती आवाजें हमें कुछ नहीं पता चला. बस ऐसा लगा कि कोई जोर का धक्का मारकर बाहर की ओर भागा है.


वह कौन था और मकान मालिक की बहन वहां कैसे आई और क्यों आई यह सब सवाल आज भी एक सवाल ही है. मैं और मां दोनों ने उसी समय अपने रिश्तेदार को कॉल किया और वहां से चले जाने का निर्णय किया. अगले दिन पिता जी के घर पहुंचते ही हमने उन्हें सब कुछ बताया और कभी दोबारा वहां ना जाने का निर्णय किया.

पर एक सवाल आज भी हमें परेशान करता है कि आखिर वह सच था या सिर्फ हमारा भ्रम. अगर सच था तो क्या आज भी वो वहीं…….
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(6)

कहते हैं वो इमारत जो वर्षों तक सुनसान रहती है वहां भूत-प्रेत अपना कब्जा जमा लेते हैं. बहुत से लोगों को यह मात्र एक अफवाह और डरावनी कहानी लगे लेकिन जो लोग इन बातों पर विश्वास करते हैं उनके लिए यह सच एक ऐसी वास्तविकता है जो किसी के भी चेहरे का रंग उड़ा सकती है.

मुगल-ए-आजम और महल जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जादू बिखेरेने वाली अभिनेत्री मधुबाला का घर अब एक भूतहा खंडहर में तब्दील हो गया है. आसपड़ोस के लोगों की मानें तो इस घर में से अजीब-अजीब सी आवाजें आती हैं और रात के समय किसी के रोने जैसा आभास होता है. भले ही यह बात आप सभी को अफवाह प्रतीत हो लेकिन इससे इंकार किया जाना भी संभव नहीं है.

आज से लगभग 42 वर्ष पहले मधुबाला का देहांत हो गया था. यही वजह है कि आज इस घर को खरीदने वाला कोई नहीं है और यह इमारत अभी भी वीरान पड़ी है.

मधुबाला का देहावसान आज से लगभग बयालीस वर्ष पहले हुआ था. गायक और अभिनेता रहे किशोर कुमार से विवाह करने के बाद भी मधुबाला बांद्रा उपनगर स्थित पाली हिल के अरेबियन विला नामक अपने घर पर ही रहा करती थीं और दिल में छेद होने की वजह से मधुबाला का निधन हुआ था.

उल्लेखनीय है कि मृत्यु से कुछ समय पहले ही मधुबाला ने यह दिया था कि वह दोबारा इस दुनिया में आना चाहती हैं और पुन: अभिनेत्री ही बनना चाहती हैं. उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि वह भारत में ही जन्म लें.

अपनी घातक बीमारी के कारण वह अभिनय नहीं कर पाईं और अभिनय के सपने देखकर ही अपना समय व्यतीत करती रहीं. फिल्मी दुनिया से दूरी बनाकर रह पाना उनके लिए बहुत कठिन था इसीलिए लोगों का मानना है कि मरने के बाद भी उनकी आत्मा उसी घर में भटक कर रह गई है.


अरेबियन विला के पड़ोस में रहने वाले लोगों का कहना है कि जब मधुबाला उस घर में रहती थीं तब रोज रात को वहां से रोने, गाने और चिल्लाने की आवाजें आती थीं और इन आवाज़ों में मुख्य स्वर स्वयं मधुबाला का रहता था. कुछ लोगों ने मधुबाला की उस आवाज को रिकॉर्ड किया और अब उस जगह से जो आवाजें आती हैं उसे मधुबाला की उन आवाजों के साथ मिलाकर देखा गया तो सभी यह सोचकर हैरान रह गए कि दोनों ही आवाजें समान हैं.

कई बार इस घर को बेचने की कोशिश की गई, इसमें रंग-रोगन करवाया गया लेकिन फिर भी कोई भी ग्राहक इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. लोगों का यह विश्वास है कि हो ना हो इस घर में मधुबाला की आत्मा का वास है जो इस दुनिया को छोड़कर जाने की इच्छुक नहीं है. हालांकि बहुत कम लोग हैं जिनका सामना मधुबाला की आत्मा से हुआ है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी को उनकी आत्मा के वहां होने जैसा महसूस नहीं हुआ.

अगर आपके आसपड़ोस में भी कोई ना कोई घर ऐसा है, जो एक लंबे समय से खाली और वीरान पड़ा है, तो अगली बार उसके पास जाने से पहले कई बार सोचिए.
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पिछले बीस वर्ष से इस दिल्ली में दुनी चंद जी हमारे पडोसी थे। उनकी पत्नी शांता मुझसे उम्र में बडी थीं और मैं उन्हें शांता बहन कह कर बुलाती थी। उनके बच्चे टिंकू, बबलू और मधु मेरी बेटी मनीषा के साथ खेलते थे।
हम पति-पत्नी काम पर जाते तो पडोसियों का बडा सहारा था। दोनों परिवार एक-दूसरे के दुख-सुख में साथ देने वाले थे। हमारे घर की एक चाबी उनके पास ही रहती थी।

मनीषा और मधु में अकसर झगडा होता लेकिन जल्दी ही मेल भी हो जाता। बच्चों की खातिर कभी परिवारों में मनमुटाव की नौबत नहीं आई। यदि मुझे उनकी कोई बात असंगत लगती तो मैं दिल से नहीं लगाती। मनीषा स्कूल से जल्दी आती तो शांता बहन उसे अपने पास बिठा लेतीं। दुनी चंद जी का चांदनी चौक में कपडे का कारोबार था। टिंकू और बबलू बडे होकर कॉलेज की पढाई पूरी करके पिता के कारोबार में लग गए थे। इतने बडे होने पर भी वे हमारे लिए टिंकू और बबलू ही रहे।

मधु ने बीए पास ही किया था कि उसके विवाह की तैयारियां शुरू हो गई। उसकी शादी हुई तो दोनों भाइयों के लिए कन्याएं देखी जाने लगीं। देखते ही देखते शांता बहन जी दो बहुएं घर ले आई। मनीषा विवाह के लिए हां ही नहीं कर रही थी। वह एम.बी.ए. कर रही थी।

शांता बहन को दोनों बहुएं प्यारी थीं। पढी-लिखी, सुघड-सयानी और मिलनसार। बडी का नाम नीरू, छोटी का सोनिया। मनीषा की सोनिया से दोस्ती हो गई थी। नीरू का बेटा बिट्टू मनीषा को छोटी बुआ कहता। वह भी उससे खूब लाड लडाती।

समय आने पर सोनिया ने एक बच्ची को जन्म दिया। घर में उतनी ही खुशी मनाई गई, जितनी बिट्टू के पैदा होने पर।

दोनों बहुओं ने घर संभाल लिया था। शांता बहन सुबह मंदिर जातीं और दोपहर को टी.वी. पर सास-बहू वाले सीरियल देखतीं। मुझे उनके घर का सुखद माहौल देख कर बडी खुशी होती। एक दिन सोनिया हमारे घर आई तो उसका चेहरा कुम्हलाया था। सदैव प्रसन्न दिखने वाली लडकी के चेहरे को परेशान सा देख मैं कुछ बेचैन हो गई। लेकिन मैंने अपनी उत्सुकता को छिपा लिया। सोनिया को बैठने के लिए कहा तो उसने अचानक पूछा, आंटी, क्या आप जादू-टोने, भ्रम-वहम में यकीन रखती हैं?

पास ही बैठी मनीषा बोल पडी, सोनिया भाभी, मेरी मम्मी तो किसी भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करतीं।
कमरे का माहौल सोनिया के चेहरे जैसा ही उदास था, बिजली काफी देर से गायब थी।

आंटी, आपसे एक बात करना चाहती हूं, सिसकती हुई सोनिया बोली, आंटी, आजकल हमारे घर में एक औरत आती है। वह नीरू भाभी के मायके के पास ही कहीं रहती है। जब से वह हमारे घर आने-जाने लगी है, घर का माहौल बिगड गया है।

मैं नीरू भाभी को बडी बहन मानती हूं। आंटी, आप तो जानती ही हैं कि नीरू भाभी को पिछले दो महीने से हलका बुखार रहता है। कई टेस्ट हुए, लेकिन दवाओं का असर नहीं हुआ। एक दिन नीरू भाभी की मम्मी उस औरत को लेकर हमारे पास आई। कहने लगीं, यह बडी पहुंची हुई भक्तिन है। माता जी और नीरू भाभी ने उनके आगे माथा टेका। उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाया और बादाम डाल कर दूध पिलाया। जब वह जाने लगी तो माता जी ने उसके हाथ पर कुछ रुपये भी रख दिए..।

सोनिया बात करते-करते एकाएक चुप हो गई। फिर क्या हुआ? मनीषा ने उत्सुक होकर पूछा। आंटी, उस औरत की सूरत और हाव-भाव मुझे अच्छे नहीं लगे और मैंने उसे प्रणाम नहीं किया। उस स्त्री ने मुझे तिरछी निगाहों से देखा। जाते हुए वह सबके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देने लगी। मैं दूर खडी सब देखती रही..।
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फिर? अब मैं अपनी उत्सुकता छिपा नहीं पा रही थी।

मेरे पति, बबलू जी का तो कहना है कि उनको ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं होता है। लेकिन आंटी हमारे घर में तो उस औरत के कारण बहुत खलबली मच गई है..। सोनिया का गला भर आया था।
क्या मतलब?

उस औरत ने भाभी से कहा है कि उसका बुखार ठीक न होने का एक कारण यह है कि किसी ने उस पर जादू-टोना कर रखा है और टोना करने वाली स्त्री इसी घर में रहती है।
सोनिया के आंसू बहने लगे थे।

मनीषा उसके लिए एक गिलास पानी ले आई। वह कुछ संभली, फिर बोली, आंटी, वह कहती है कि टोना करने वाली का नाम स अक्षर से शुरू होता है। स अक्षर से तो मेरा नाम शुरू होता है।

कितनी बेतुकी बात है। यह सब अज्ञान का अंधेरा है, मनीषा बडे भावपूर्ण ढंग से अपना ज्ञान बघारती हुई बोली।
मनीषा यह अंधेरा खतरनाक है। यह सारे परिवार को तोड रहा है। इस अंधविश्वास ने हमारे घर के माहौल में जहर घोल दिया है। सब मुझे संदेह से देखते हैं.., सोनिया की आंखें भर आई थीं। नीरू और उसके पति पढे-लिखे हैं। तुम्हारे ससुर

साहब भी पढे-लिखे और सुलझे हुए इंसान हैं। मैंने कहा।

आंटी, उस औरत ने तो सबकी आंखों पर भ्रम और अविश्वास की पट्टी बांध दी है। मेरे पति को छोड कर सभी नीरू भाभी के पक्ष में हैं। भाभी ने तो मुझसे बात करना ही बंद कर दिया है, उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे थे।
सोनिया की बातें सुन कर मेरा खून खौलने लगा। एक बाहरी स्त्री के जाल में फंस कर घर-परिवार बंट रहा है। शांता बहन जी को मैं पिछले बीस वर्षो से जानती हूं। वह तो मुझे वहमी स्त्री नहीं लगीं। ज्ारूर यह काम उस बाहरी स्त्री का ही होगा, जो हंसता-खेलता परिवार बिखरने लगा है।

दो ही दिन बाद पता चला कि सोनिया अपने पति व बच्चों के साथ घर छोड कर चली गई है। एक दिन अचानक पता चला कि वे घर बेच कर जा रहे हैं। मुझे झटका सा लगा और मनीषा भी परेशान हो गई। वह तो हर समय बबलू-टिंकू से लडती रहती थी, हर साल उन्हें राखी भी बांधती थी। जब मुझसे न रहा गया तो मैं शांता से मिलने चली गई। मुझे देख कर नीरू दूसरे कमरे में चली गई। उसने मुझे अनदेखा कर दिया। किसी ने ठीक ही कहा है कि नफरत का अंधेरा नम्रता और प्रेम को अपने पास नहीं फटकने देता। पहले तो नीरू प्यार से मिलती थी। पांव छूती थी और सबका आशीर्वाद लेती थी। वह मुझसे क्यों नाराज थी, यह मेरी समझ में नहीं आया।

शांता बहन के चेहरे की रौनक भी न जाने कहां लुप्त हो गई थी।

शांता बहन, सुना है कि आप घर बेच कर जा रही हो? मैंने परेशान हो कर पूछा।

उन्होंने हां में सिर हिलाया और रोने लगीं। मैं पास बैठ गई। उनके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए और उन्हें शांत करने की कोशिश करने लगी। उनके आंसू थमे तो बोलीं, सोनिया कितनी भोली दिखती थी। लेकिन चुपके-चुपके वह हम सबकी जिंदगी में जहर घोलती रही। उसने नीरू पर न जाने क्या टोना किया है कि उसका बुखार ही नहीं उतर रहा था।

मैं उनके मुंह से ऐसी बातें सुन कर सुन्न हो गई। शांता बहन के सोचने का ढंग पूरी तरह बदल चुका था। मैंने कहीं पढा था कि भ्रम सच्चाई की ओर जाने से रोक देता है।

मैंने सोनिया के पक्ष में कुछ कहना चाहा परंतु वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थीं।

माफ करना शांता बहन, आपका नाम भी श अक्षर से शुरू होता है। स व श तो एक ही श्रेणी में आते हैं..।

तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? तुम सोनिया का पक्ष लेकर मुझसे बहस करने आई हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने की? वह गुस्से से तमतमा गई। मैं वहां से चली आई, उन्हें समझाने का फायदा नहीं था।

..एक दिन घर के सामने एक ट्रक खडा देखा तो पता चला कि घर बिक गया है। जाते समय भी वे लोग हमसे मिल कर नहीं गए। पिछले बीस सालों का साथ रेत की तरह हाथ से फिसल गया। दुखी होने के सिवा हम कुछ नहीं कर सकते थे। सोनिया का भी पता-ठिकाना नहीं था कि उससे संपर्क करते।

दो वर्ष बीत गए। धीरे-धीरे उस परिवार की यादें और बातें हमारे बीच कम होने लगीं। फिर एक दिन अचानक सोनिया अपने पति बबलू और बच्चों के साथ हमारे घर आई। उन्हें देख कर हमारी प्रसन्नता का अंत नहीं था। सोनिया भी चहक रही थी। उसके चेहरे पर पहले जैसी ही सदाबहार मुस्कान थी।

कहने लगी, आंटी अब सब ठीक हो गया है। हम घर से निकल गए, फिर मकान-दुकान सब बिक गया। तीन हिस्से किए गए। सबने नए सिरे से काम शुरू किया, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली। धीरे-धीरे उस स्त्री का जादू भी नीरू भाभी के बुखार की तरह सबके सिर से उतरने लगा..। अंधविश्वास का अंधेरा छंटा तो सबने मुझसे माफी मांगी और साथ रहने को कहा। अब हम फिर से साथ रहने लगे हैं। माता जी और नीरू भाभी आपसे भी माफी मांगना चाहती हैं। बहुत शर्मिदा हैं वे लोग..।

सोनिया की बात पूरी होती, इससे पहले ही मनीषा ने चहकते हुए कहा, सोनिया भाभी, यह माफी-वाफी का चक्कर छोडो। मैं तो आंटी के हाथ की कढी, पूरी-आलू खाने के लिए न जाने कबसे बेताब हूं। बस अभी चलने को तैयार हूं। बबलू और टिंकू भैया से भी तो दो साल की राखी का हिसाब लेना है। चलो मम्मी चलें..। हम सब खिल-खिलाकर हंस दिए।
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दोस्ती का रिश्ता बहुत मजबूत होता है लेकिन जब दोस्तों में ही प्यार हो जाए और जिसकी वजह से एक दोस्त खुद को अकेला महसूस करने लगे तो सोचिए कि परिणाम क्या हो सकते हैं?

ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली की पायल के साथ. कॉलेज में पढ़ने वाली पायल की शोभित और महक के साथ गहरी दोस्ती थी. पायल को शायद पता ही नहीं था कि उसका दोस्त शोभित उसे प्यार करने लगा है. लेकिन जब एक दिन शोभित ने पायल के प्रति अपने प्यार का इजहार किया तब महक यह बात बिल्कुल सहन नहीं कर पाई क्योंकि महक भी शोभित को प्रपोज करने वाली थी.

जब से शोभित और पायल एक कपल के तौर पर साथ रहने लगे तभी से महक उनकी जिन्दगी से दूर जाती रही लेकिन शोभित के प्रति उसका प्यार कभी कम नहीं हुआ. कॉलेज समाप्त होने के कुछ वर्षों बाद पायल और शोभित ने विवाह कर लिया लेकिन तब तक महक उनकी जिन्दगी से दूर जा चुकी थी. बहुत खोजने पर भी उसकी कोई खबर किसी को नहीं मिली.

5 साल बाद अचानक महक का सामना अपने पुराने दोस्तों शोभित और पायल से हुआ जो उस समय हैप्पी मैरेड कपल के तौर पर खुशी से जीवन जी रहे थे.


शोभित एक मल्टिनेशनल कंपनी में बतौर मैनेजर काम कर रहा था और पायल अपना बुटीक चलाती थी. महक ने शादी नहीं की थी क्योंकि वह अभी भी शोभित से प्यार करती थी.

महक ने पुरानी दोस्ती का वास्ता दे पायल और शोभित को अपने घर बुलाया. दोनों दोस्त उसके घर डिनर पर आए इस उम्मीद से कि शायद अब सब कुछ ठीक हो गया होगा.

लेकिन जो हम सोचते हैं हर बार वही हो ऐसा जरूरी तो नहीं. महक के घर खाना खाकर जब पायल अपने घर पहुंची तो उसके साथ अजीब-अजीब घटनाएं होने लगीं. कभी उसे अपने आसपास मरे हुए लोग नजर आते तो कभी उसे लगता कि कोई खौफनाक चेहरा उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा है. महक चीखती-चिल्लाती लेकिन शोभित को कुछ भी गलत नहीं नजर आता.

पायल का बुटीक भी बंद होने की कगार पर आ पहुंचा क्योंकि वह अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी. शोभित को लगने लगा था कि पायल अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है इसीलिए उसे कई मनोवैज्ञानिकों को भी दिखाया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.


पायल की नौकरानी गांव से थी, उसे शक हुआ कि हो ना हो किसी ने उसकी मालकिन पर काला जादू किया है, जिसकी वजह से उसके साथ यह सब हो रहा है.

उसने पायल को अपने गांव के एक माने हुए पीर के बारे में बताया जो काले जादू के तोड़ के लिए जाना जाता है. पायल ने जब यह बात अपने पति शोभित को बताई तो उसने साफ मना कर दिया वहां जाने से.

इसके बाद पायल के साथ अजीब अजीब वाकये होने लगे. कभी कोई उसकी बाजू को पकड़कर उसे जोर से खींचने लगता तो कभी कोई अनजानी शक्ति उसे अपना ही खून करने के लिए मजबूर करती. वह बहुत कष्ट में थी और शोभित उससे बहुत प्यार करता था. शोभित उसे बेमन से उस पीर के पास ले गया.

वहां का माहौल बहुत खौफनाक था लेकिन दोनों हिम्मत कर आगे बढ़ते रहे. जैसे ही उस पवित्र स्थान पर पायल ने पैर रखने की कोशिश की उसे एक झटका लगा और वह पीछे जा गिरी.


उस बाबा को यह समझ आ गया कि पायल पर किसी काली शक्ति का साया है और वह उसे इस स्थान तक पहुंचने नहीं देना चाहती. बाबा ने पायल पर झाड़ फूंक कर उसे कुछ समय के लिए उस शक्ति से मुक्त करवाया लेकिन स्थायी निवारण नहीं ढूंढ़ पाए. वह यह भांप गए थे कि इस कदर प्रताड़ित सिर्फ कोई अपना ही कर सकता है. उन्होंने पायल और शोभित को बताया कि अगर इस शैतानी ताकत को पायल के शरीर से दूर नहीं किया गया तो वह उसकी रूह को भी अपने साथ ले जाएगी.

वह दोनों डर गए, बाबा ने जब अपनी तंत्र विद्या से उन्हें जब उस व्यक्ति का चेहरा दिखाया जिसने पायल के ऊपर यह टोना किया था तो वह दोनों अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाए कि उनकी दोस्त महक इस हद तक गिर सकती है.


सप्ताह भर चली तंत्र साधना के बाद पायल को उस रूह से मुक्ति दिलवाई गई लेकिन जैसे ही वह शैतानी शक्ति पायल के शरीर से आजाद हुई उसने महक को ही अपना निशाना बना लिया क्योंकि टोना करवाने वाले को भी कुछ ना कुछ कीमत तो चुकानी पड़ती है. एक सप्ताह के भीतर ही यह खबर आई कि पायल ने अपने घर की बॉलकनी से नीचे छलांग लगा दी जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हो गई.
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