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Old 12-01-2015, 03:51 PM   #31
DevRaj80
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Default Re: प्रेम ... समय

पहले प्रकार के प्रेम को सैक्स कहना चाहिए। दूसरे प्रेम को प्रेम कहना चाहिए, तीसरे प्रेम को प्रेमपूर्णता कहना चाहिए: एक गुणावत्ता, असंबोधित; न खुद अधिकार जताता है, न किसी को जताने देता है। यह प्रेमपूर्ण गुणवत्ता ऐसी मूलभूत क्रांति है कि उसकी कल्पना करना भी अति कठिन है।पत्रकार मुझसे पूछते रहते हैं, " यहां पर इतनी स्त्रियां क्यों हैं?" स्वभावत: प्रश्न संगत है, और जब मैं जवाब देता हूं तो उन्हें धक्का लगता है। उन्हें यह उत्तर अपेक्षित नहीं था। मैंने उनसे कहा, " मैं पुरुष हूं।" उन्होंने अविश्वसनीय रूप से मुझे देखा। मैंने कहा, " यह स्वाभाविक है कि स्त्रियां बहुत बड़ी संख्या में होंगी, क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में जो भी जाना है वह है या तो सैक्स या बहुत विरले क्षणों में प्रेम। लेकिन उन्हें कभी प्रेमपूर्णता का स्वाद नहीं मिला।" मैंने उन पत्रकारों से कहा, "तुम यहां पर जो पुरुष देखते हो उनमें भी बहुत से गुण विकसित हुए हैं जो बाहर के समाज में दबे रह गए होंगे।"
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .

तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...

तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..

एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,

बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..

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Old 12-01-2015, 03:51 PM   #32
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Default Re: प्रेम ... समय

बचपन से ही लड़के से कहा जाता है, " तुम लड़के हो, लड़की नहीं हो। एक लड़के की तरह बरताव करो। आंसू लड़कियों के लिए होते हैं, तुम्हारे लिए नहीं। मर्द बनो।" अत: हर लड़का उसके स्त्रैण गुणों को खारिज करता रहता है। और जो भी सुंदर है वह सब स्त्रैण है। तो अंतत: जो शेष रहता है वह सिर्फ एक बर्बर पशु। उसका पूरा काम ही है बच्चों को पैदा करना। लड़की के भीतर कोई पुरुष के गुण पालने की इजाजत नहीं होती। अगर वह पेड़ पर चढ़ना चाहे तो उसे फौरन रोक देंगे, "यह लड़कों के लिए है, लड़की के लिए नहीं।" कमाल है! यदि लड़की पेड़ पर चढ़ना चाहती है तो यह पर्याप्त प्रमाण है कि उसे चढ़ने देना चाहिए।"सभी पुराने समाजों ने स्त्री और पुरुष केलिए भिन्न-भिन्न कपड़े बनाए हैं। यह सही नहीं है, क्योंकि हर पुरुष एक स्त्री भी है। वह दो स्रोतों से आया है: उसके पिता और उसकी मां। दोनों ने उसके अंतस को बनने में योगदान दिया है। और हर स्त्री पुरुष भी होती है। हमने दोनों को नष्ट कर दिया। स्त्री ने समूचा साहस, हिम्मत, तर्क, युक्ति खो दी क्योंकि इन्हें पौरुष की गुणवत्ताएं माना जाता है। और पुरुष ने प्रसाद, संवेदनशीलता, करुणा, दयालुता खो दी। दोनों आधे हो गए। यह एक बड़ी समस्याओं में एक है जिसे हमें हल करना है, कम से कम हमारे लोगों के लिए।
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Old 12-01-2015, 03:52 PM   #33
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Default Re: प्रेम ... समय

मेरे संन्यासियों को दोनों होना है: आधा पुरुष, आधी स्त्री। यह उन्हें समृद्ध बनाएगा। उनके पास वे सभी गुण्वत्ताएं होंगी जो मनुष्य के लिए संभव हैं, केवल आधी ही नहीं।अंतरतम के बिंदु पर तुम्हारे भीतर सिर्फ प्रेमपूर्णता की एक सुवास होती है। तो डरो मत। तुम्हारा भय सही है, जिसे तुम प्रेम कहते हो वह विदा हो जाएगा लेकिन उसकी जगह जो आएगा वह अपरिसीम है, अनंत है । तुम बिना लगाव के प्रेम करने में सफल होओगे। तुम अनेक लोगों से प्रेम कर सकोगे क्योंकि एक व्यक्ति से प्रेम करना खुद को गरीब रखना है। वह एक व्यक्ति तुम्हें एक अनुभव दे सकता है लेकिन कई-कई लोगों से प्रेम करना …
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Old 12-01-2015, 03:52 PM   #34
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Default Re: प्रेम ... समय

तुम चकित होओगे कि हर व्यक्ति तुम्हें एक नया अहसास, नया गीत, नई मस्ती देता है। इसीलिए मैं विवाह के खिलाफ हूं। कम्यून में विवाह खारिज कर देने चाहिए। लोग चाहें तो तह-ए-जिंदगी एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं लेकिन यह एक कानूनी आवश्यकता नहीं होगी। लोगों को कई संबंध बनाने चाहिए, प्रेम के जितने अनुभव संभव हैं उतने लेने चाहिए। उन्हें मालकियत नहीं जमाना चाहिए। और किसी को अपने ऊपर मालकियत नहीं करने देना चाहिए क्योंकि वह भी प्रेम को नष्ट करता है।
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Old 12-01-2015, 03:52 PM   #35
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Default Re: प्रेम ... समय

सभी मनुष्य प्रेम करने के पात्र हैं। एक ही व्यक्ति के साथ आजीवन बंधकर रहने की जरूरत नहीं है। यह एक कारण है कि दुनिया में लोग इतने ऊबे हुए क्यों लगते हैं। वे तुम जैसे हंस क्यों नहीं सकते? वे तुम्हारी तरह नाच क्यों नहीं सकते? वे अदृश्य जंजीरों से बंधे हैं: विवाह, परिवार, पति, पत्नी, बच्चे। वे हर तरह के कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और त्याग के बोझ तले दबे हैं, और तुम चाहते हो कि वे हंसें, मुस्कुराएं, और आनंद मनाएं? तुम असंभव की मांग कर रहे हो। लोगों के प्रेम को स्वतंत्र करो, लोगों को मालकियत से मुक्त करो। लेकिन यह तभी होता है जब तुम ध्यान में अपने अंतरतम को खोजते हो। इस प्रेम का अभ्यास नहीं किया जा सकता।
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Default Re: प्रेम ... समय

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आज रात किसी अलग स्त्री के पास जाओ अभ्यास की खातिर। तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा और तुम अपनी पत्नी को भी खो दोगे। और सुबह तुम बेवकूफ दिखाई दोगे। यह अभ्यास का सवाल नहीं है, यह तुम्हारे अंतरतम को खोजने का सवाल है। अंतरतम की खोज के साथ अवैयक्तिक प्रेमपूर्णता, इम्पर्सनल लविंगनैस पैदा होती है। फिर तुम सिर्फ प्रेम होते हो। और वह फैलता जाता है। पहले मनुष्यों पर, फिर जल्दी ही पशु, पक्षी, पेड़ पर्वत, तारे…। वह दिन भी आता है जब यह पूरा अस्तित्व तुम्हारी महबूबा बनता है। और जो इसको उपलब्ध नहीं होता वह मात्र जीवन व्यर्थ गंवा रहा है।
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Default Re: प्रेम ... समय

हां, तुम्हें कुछ चीजें खोनी होंगी, लेकिन वे निरर्थक हैं। तुम्हें इतना कुछ मिलेगा कि तुम्हें दोबारा याद भी न आएगी कि तुमने क्या खोया है। एक विशुद्ध अवैयक्तिक प्रेमपूर्णता रहेगी जो किसी के भी अंतरतम में प्रविष्ट हो सकती है। यह निष्पत्ति है ध्यानपूर्ण स्थिति की, मौन की, अपने अंतस में गहरे डूबने की। मैं केवल तुम्हें राजी करने की कोशिश कर रहा हूं। जो है उसे खोने से डरो मत।
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Old 12-01-2015, 03:54 PM   #38
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Default Re: प्रेम ... समय

कल जब
निरंतर कोशिशों के बाद,
नहीं कर सकी
मैं तुम्हें प्यार,
तब
गुलमोहर की सिंदूरी छाँव तले
गहराती
श्यामल साँझ के
पन्नों पर
लिखी मैंने
प्रेम-कविता,
शब्दों की नाजुक कलियाँ समेट
सजाया उसे
आसमान में उड़ते
हंसों की
श्वेत-पंक्तियों के परों पर,
चाँद ने तिकोनी हँसी से
देर तक निहारा मेरे इस पागलपन को,
नन्हे सितारों ने
अपनी दूधिया रोशनी में
खूब नहलाया मेरी प्रेम कविता को,
कभी-कभी लगता है कितने अभागे हो तुम
जो ना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।
फिर लगता है कितने भाग्यशाली हो तुम
कि मेरे साथ तुम्हें समूची साँवल*ी कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत प्रेम कविता जन्म लेती है
सिर्फ तुम्हारे कारण।
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Old 12-01-2015, 04:06 PM   #39
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Default Re: प्रेम ... समय

कामवासना ओर प्रेम— ओशो सत्संग से ...

प्रेम का एक रूप
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Old 12-01-2015, 04:11 PM   #40
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Default Re: प्रेम ... समय

प्रिय मित्रो क्या सत्संग के इस हिस्से को मैं यहाँ पोस्ट कर सकता हूँ !!!

कम से कम दस मित्रो की सहमती के बाद ही मैं इसे पोस्ट करूंगा ..
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Last edited by DevRaj80; 12-01-2015 at 04:16 PM.
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