09-12-2014, 06:11 PM | #1 |
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हार की जीत (पं. सुदर्शन)
हार की जीत
कथाकार: पं. सुदर्शन माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पणहो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ काघोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कह कर पुकारते, अपनेहाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे।उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक किउन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर मेंरहते और भगवान का भजन करते थे। “मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, “ऐसेचलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।” जब तक संध्या समय सुलतान परचढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 09-12-2014 at 07:41 PM. |
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