16-07-2013, 10:22 AM | #1 |
Diligent Member
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अपने ही खातिर करेँ मदिरा से परहेज
. . . . . . . अपने ही खातिर करेँ, मदिरा से परहेज। यह सबको पागल बना, करती दुख को तेज। करती दुख को तेज, खेत घर सब बिक जाते। जो पीते हर शाम, कहाँ वे हैँ बच पाते। जल्दी आती मौत, जल्द ही टूटेँ सपनेँ। जल्दी होते दूर करीबी सारे अपने।। कुण्डलिया - आकाश महेशपुरी . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश Last edited by आकाश महेशपुरी; 16-07-2013 at 10:34 AM. |
16-07-2013, 10:27 AM | #2 | |
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Re: अपने ही खातिर करेँ मदिरा से परहेज
Quote:
बहुत सुन्दर विचार तथा वैसी ही प्रभावशाली काव्यात्मक अभिव्यक्ति है, मित्र. |
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18-07-2013, 08:04 PM | #3 |
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Re: अपने ही खातिर करेँ मदिरा से परहेज
यथार्थ को चरितार्थ करती हुयी समसामयिक रचना के लिए आभार बन्धु
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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