20-07-2013, 07:39 PM | #1 |
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कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी
. . . . . . . . . ऐसा युग है आ गया, दिखे नहीँ मुस्कान। सब चिन्ता से ग्रस्त हैँ, रोना है आसान। रोना है आसान, और जीना है मुश्किल। रहता है बेचैन, हमेशा बेचारा दिल। है सबकी यह चाह, मिले पैसा ही पैसा। पैसा छीने चैन, वक्त आया है ऐसा।।1।। किस्मत हमेँ किसान की, लगती मिट्टी धूल। पर इसके उपकार को, कहीँ न जाना भूल। कहीँ न जाना भूल, देश बढ़ता है आगे। सोना भी दे छोड़, कृषक जब जी भर जागे। खा के इसका अन्न, कभी इस पर हँसना मत। यही देश के प्राण, मगर ऐसी क्योँ किस्मत।।2।। कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश |
20-07-2013, 08:48 PM | #2 |
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Re: कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी
very nice
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20-07-2013, 10:47 PM | #3 |
Diligent Member
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Re: कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी
well done sir keep it up
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21-07-2013, 01:45 PM | #4 |
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Re: कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी
––––•(-•g00d very g00d•-)•––––
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21-07-2013, 06:14 PM | #5 | |
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Re: कुण्डलियाँ - आकाश महेशपुरी
Quote:
किन्तु बात किसान की, पीड़ा देती घोर. साधू सा जीवन लिये, करे रात दिनकाम. इस पर भी खाली रहे, उसका सदा शिकाम. (शिकाम = पेट) जादू उसका देख कर, नमन करे नर-नार. खेतों में सोना उगे, तिस पर भी लाचार. काश्तकार यदि सोच ले, ‘लेता हूँ आराम’. हाहाकार गर न मचे, बदलें मेरा नाम. |
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