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Old 04-10-2014, 08:22 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?

शा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि सूत्र का शीर्षक पढ़ते ही फिल्म समीक्षक ही नहीं, इस क्षेत्र से जुड़े सभी व्यक्तियों की आँखें खुशी के कारण ट्यूबलाइट की तरह चमकने लगी होंगी और सभी अपने-अपने कान खड़े करके एक शक्तिशाली दूरबीन लेकर इस सूत्र का एक-एक अक्षर जोड़कर पढ़ने में तन्मयतापूर्वक व्यस्त हो गए होंगे और हिन्दुस्तानी अंग्रेजों की समझ की रेलगाड़ी अभी इस सूत्र के पहले शब्द ‘आशा’ पर ही अटक गई होगी और वे अभी यह समझने का भरसक प्रयत्न कर रहे होंगे कि यह शब्द ‘आशा’ है या ‘आरा’? चौंकिए मत. हिंदी की टाँग तोड़ने वाले महानुभावों की खोज की जाए तो दक्षिण भारत में इस क्षेत्र के महारथी एक से एक मिल जाएँगे जो ‘खाना’ को ‘रवाना’ पढ़ते हैं और ‘प्रतीक्षा’ को ‘प्रतिक्षा’ लिखते हैं. इसमें हास्यास्पद बात यह है कि ये सभी महारथी दक्षिण भारत के मान्यताप्राप्त ‘हिंदी-विशेषज्ञ’ हैं. शुक्र मनाइए कि मैं यहाँ पर किसी को हतोत्साहित या उनका निरादर नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि आजकल तो समाचार-पत्रों में पाठकों के लिए ‘सुन्दर-सुन्दर’ गालियाँ छापने का रिवाज़ चल गया है. हो सकता है कि कुछ पाठकों को इन गालियों को पढ़कर बुरा लगता हो और उनका मन करता हो कि ‘हे ईश्वर, क्या इस कलियुग में कोई ऐसा शिव अवतार नहीं जो समाचार-पत्र रूपी समुद्र का मंथन करके गालियों के विष को हमारे लिए पी सके?’ तो ऐसे पाठकों के लिए हम गर्व से प्रस्तुत करते हैं एक नया अवतार- ‘वाइनरावतार’. आज से छपी हुई सभी गालियों का विष ‘वाइनरावतार’ के लिए माना जाएगा, जिसका पान पाठकों के हित में स्वयं ‘वाइनरावतार’ करेंगे! ‘‘कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?’ का खूबसूरत लासा (birdlime) लगाकर पाठकों को एक बकवास सूत्र के जाल में उलझाने का क्या मतलब है?’-- कहकर मुँह बनाने वालों को मैं हिंदी की एक कहावत या लोकोक्ति (saying) याद दिलाना चाहता हूँ जिसमें कहा गया है कि ‘अन्त भला तो सब भला’. इसलिए कलेजे पर हाथ रखकर आगे पढ़िए. अन्त अच्छा, क्या बहुत अच्छा होगा! आपकी बुद्धि का कटोरा ज्ञान के जल से लबालब भर जायेगा और आप घर बैठे एक बहुत बड़े फिल्मी समीक्षक बन जाएँगे. आपके मुँह से हमारे लिए आशीर्वाद निकलेगा! चलिए, ध्यानपूर्वक ‘बैंग-बैंग’ फिल्म की समीक्षा पढ़िए, बाकी आप खुद सीख जाएँगे-
"सिद्धार्थ आनन्द के निर्देशन में बनी फिल्म ‘बैंग-बैंग’ का निर्माण किया है ‘लोमड़ी तारा स्टूडियोज़’ ने, जो ‘बीसवीं सदी की लोमड़ी’ और ‘तारा’ का एक संयुक्त उपक्रम (joint venture) है. संदर्भवश यहाँ पर यह बताते चलें कि ‘साउंड इफेक्ट’ और संवाद का कोई टुकड़ा हमारे कानों से ‘मिस’ न हो जाए, इस डर से हमने अपने कानों को तेल डालकर अच्छी तरह से भली-भाँति साफ़ कर लिया था. अतः आप भी अपने कानों को साफ़ करना न भूलियेगा, नहीं तो फिल्मी-समीक्षा गलत हो जाएगी. इसके अतिरिक्त आँख के डॉक्टर से अपने दोनों आँखों की जाँच करवाकर यह सुनिश्चित कर लिया गया था कि जो कुछ भी दिख रहा है वह सत्य है और सत्य के सिवा कुछ भी नहीं है! आप भी अपनी आँखों की जाँच भली-भाँति करवा लीजियेगा, नहीं तो फिल्मी-समीक्षा गलत हो जाएगी. दिमाग का प्रोसेसर ठण्डा रहे, इसलिए सिर की तराई करने के लिए सिर पर गीला तौलिया लपेट लिया गया था. आप भी गीला तौलिया सिर पर लपेट लीजियेगा, नहीं तो फिल्मी-समीक्षा गलत हो जाएगी. फिल्मी-समीक्षा लिखने के लिए इतनी व्यापक तैयारी करने के बाद हम धैर्य के साथ सिनेमा-हाल में पीछे नहीं, सबसे आगे वाली सीट पर बैठ गए जिससे हीरोइन के आने पर जो भी ‘बड़ा-बड़ा’ हो वह और भी ‘बड़ा-बड़ा’ दिखे. पीछे वाली सीट से तो ‘बड़ा-बड़ा’ भी ‘छोटा-छोटा’ दिखेगा और ‘बड़ा-बड़ा’ ‘छोटा-छोटा’ दिखने पर फिल्मी-समीक्षा गलत हो सकती है! कैट के आते ही हमारा मुँह बन गया. जब ‘बड़ा-बड़ा’ होगा तभी तो ‘बड़ा-बड़ा’ दिखेगा. फिल्मी-समीक्षा गलत न हो जाए, इसलिए हमने आगे वाली सीट पर बैठने का पूरा फायदा उठाया और पर्दे के पास जाकर ‘बड़ा-बड़ा’ देखने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम होकर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए. कई बार लंगोट में दिखाई देने के बावजूद भी एक ओर जहाँ पर कैट ने लड़कों को निराश किया वहीँ पर दूसरी ओर हृतिक रोशन ने अपनी शर्त उतारकर अर्नोल्ड की तरह अपनी बॉडी का व्यापक प्रदर्शन करके लड़कियों को ठण्डी-ठण्डी साँस भरने और हाय-हाय करने का पूरा मौका दिया. फिल्म देखते समय हमें ऐसा लगा जैसे हम हिंदी में कोई अंग्रेज़ी फिल्म देख रहे हों. शाहरुख खान की फिल्म ‘रा-वन’ देखते समय हमें कई बार ‘टर्मिनेटर’ की याद आई थी और हम ‘टर्मिनेटर-सिरीज़’ की याद में फूट-फूटकर रोने लगे थे. ‘बैंग-बैंग’ देखते समय हमें ‘सीन कॉनेरी एज़ जेम्स बोंड 007 की फ़िल्में ‘थंडरबाल’, ‘डायमंड्स आर फॉरएवर’ और ‘नेवर से नेवर अगेन’ इत्यादि याद आने लगीं और हम फूट-फूटकर रोने लगे. कैट के आने पर जब हाल में गर्मी बढ़ी तो हमारा रोना-धोना कुछ कम हुआ. हम समझे कि कैट के आने से ‘गर्मी’ का असर हुआ है, किन्तु बाद में पता चला कि सिनेमा-हाल वालों ने ए.सी. बन्द कर दी थी जिसके कारण हमें गर्मी लगने लगी थी. ‘किस की व्यापक परिभाषा’ और ‘रोचक संवाद के मध्य दोनों होठों को बारी-बारी से किस करने का जीवन्त प्रदर्शन’ के साथ हृतिक रोशन और कैटरीना कैफ के किस करने का दृश्य बड़ा ही ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद रहा. यदि आप अपने बच्चों को ‘किस क्या है?’ ‘किस कैसे दिया और लिया जाता है?’ सिखाना चाहते हैं तो यह फिल्म ज़रूर दिखाएँ. बच्चे अवश्य लाभान्वित होंगे. हिंदी में एक अंग्रेज़ी फिल्म देखने के मजे को किरकिरा किया है बीच-बीच में आने वाले फिल्म के गीतों ने. एक अंग्रेज़ी फिल्म में गीत का क्या काम? हमें यह सोचकर बड़ी शर्म आई. पर्दे पर फिल्म की टाइटल ‘बैंग-बैंग’ लिखकर आने के वक्त पार्श्व-संगीतकार सलीम सुलैमान ने हमें बहुत निराश किया, क्योंकि वे उतनी तेज़ी से अपनी ढोलक और मजीरा पीटकर हमारा दिल नहीं दहला सके जितना कि अंग्रेज़ी फिल्म के संगीतकार दहलाते हैं! रही बात कहानी की तो यह लंदन में कोहिनूर हीरे के चोरी होने की कहानी है. जेम्स बांड 007 की स्टाइल में दिख रहे हृतिक रोशन के साथ सनी लियोन की जोड़ी ज़्यादा जमती. असली अंग्रेज़ी फिल्म देखने का मज़ा आ जाता. अब रह जाती है बात एक दिन के कलेक्शन की, तो क्या आप इन्कम टैक्स ऑफिसर हैं जो दूसरों की कमाई पूछ रहे हैं? क्या आप कभी किसी दूकानदार से ‘एक दिन की कमाई क्या हुई’ पूछते हैं? नहीं न? इस बारे में एक पुरानी कहावत भी है- ‘रूखा सूखा खाय के ठंडा पानी पीव, देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव.’ संक्षेप में, बैंग-बैंग हिंदी में जेम्स बांड की अंग्रेज़ी फिल्म देखने का मज़ा देती है."
देखा आपने? फिल्म-समीक्षा लिखना कितना आसान काम है! अरे, यह क्या? आप तो हमें आशीर्वाद देने की जगह बुरी-बुरी गालियाँ देने लगे! भय की कोई बात नहीं- गालियों का विष पीने वाले ‘वाइनरावतार’ की जय हो!

Last edited by Rajat Vynar; 04-10-2014 at 08:26 PM.
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Old 05-10-2014, 08:24 AM   #2
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Default Re: कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?

रजत जी आपने फिल्म बेंग-बेंग की ही बेंग-बेंग कर दी! हिन्दी फिल्मो का एक फेमस डाईलोग है "यह तो अभी ट्रेलर है!" मतलब की फिल्म तो ओर भी अच्छी होगी। लेकिन अब के दशक में सिर्फ ट्रेलर ही अच्छे बनाए जा रहे है। बेंग-बेंग और कीक, यह दोनो फिल्मो के ट्रेलर बहुत अपीलींग थे। आप का क्या कहेना है? अच्छे ट्रेलर बनाते बनाते कभी ग़लती से ही सही, कोई अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी?

आपकी अगली समीक्षा का ईंतजार रहेगा!
(मेरी लंगड़ी तो नही लेकिन मोच वाली हिन्दी के लिए क्षमाप्रार्थी हुं!)
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Old 05-10-2014, 04:25 PM   #3
Rajat Vynar
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Talking Re: कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?

माफ कीजिये, दीप जी.. अब आप अगली समीक्षा का इन्तेज़ार मत कीजियेगा क्योंकि मैं कोई फ़िल्मी-समीक्षक नहीं हूँ. वैसे मैं यहाँ पर यह बता दूँ कि बैंग-बैंग वर्ष २०१० में लोकार्पित अंग्रेज़ी फ़िल्म नाइट एंड डे (Knight and Day) की कहानी से प्रभावित है, जबकि इस बात का खंडन किया जा रहा है. खंडन के पीछे का कारण यह है कि कहानी में काफी फेरबदल किया गया है. जैसे- अंग्रेज़ी फ़िल्म में नायिका की बहन है, हिंदी में बहन की जगह दादी है. वैसे हिंदी फ़िल्म के कई दृश्य अंग्रेज़ी फ़िल्म से मिलते हैं. नीचे देखिए-




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Old 05-10-2014, 04:43 PM   #4
Rajat Vynar
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Talking Re: कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?



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Old 06-10-2014, 10:15 PM   #5
rajnish manga
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Default Re: कैसे लिखें फिल्मी समीक्षा?

फिल्म 'बैंग बैंग' की अच्छी बखिया उधेड़ी गयी है.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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