11-08-2013, 07:18 PM | #1 |
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~*~*क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले*~*~
गुज़र रहा है वक़्त गुज़र रही है ज़िन्दगी
क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले पिघल रहे है लम्हात बदल रहे है हालत क्यूँ न इस ज़माने को बदल दे एक ऐसी खबर छोड़ चले कोई शक्स कंही रुका सा कोई शक्स कंही थमा सा क्यूँ न एन बेजान बुतों में एक पैकर छोड़ चले हर तरफ अँधेरा , ख़ामोशी , तन्हाई , बेरुखी , रुसवाई क्यूँ न नूरे मुजस्सिम का एक सितायिश्गर छोड़ चले इन बेईज्ज़त बे परवाह ताजरी-तोश ज़माने में क्यूँ न कह दे रेत से ये अन्ल्बहर छोड़ चले हर तरफ धोखा, झूट, फरेब, नाइंसाफी , बेमानी क्यूँ न बुझती अतिशे-सचाई पर एक शरर छोड़ चले कैसे लाये वोह अबरू हया दिलके-हर दोशे में क्यूँ न हर किसी की मोजे शरोदगी पर एक नज़र छोड़ चले मची है नोच खसोट एक होड़ हर तरफ पाने की क्यूँ न पाकर अपनी मंजिल को यह लम्बा सफ़र छोड़ चले करके अपने ख्वाबों को पूरा क्यूँ न अपनी ताबीर को मु'यासर' छोड़ चले
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12-08-2013, 06:54 PM | #2 |
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Re: ~*~*क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले*~*~
बेहतरीन...................................... ....
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16-08-2013, 07:44 AM | #3 |
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Re: ~*~*क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले*~*~
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16-08-2013, 06:25 PM | #4 |
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Re: ~*~*क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले*~*~
अच्छी प्रस्तुति है बन्धु। आभार।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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