15-08-2013, 12:12 PM | #1 |
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गाँधी तेरे देश मेँ...
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . गाँधी तेरे देश मेँ बहुत जुल्म हो रहा शैतान हँस रहे हैँ इंसान रो रहा सिपाही ताव खा रहे नेता भाव खा रहे मुखिया लोग बैठे-बैठे गाँव खा रहे अधिकारी फर्ज भूलकर छाँव खा रहे लालच है जाग रही कर्तव्य सो रहा शैतान हँस रहे हैँ इंसान रो रहा कानून का मजाक खूब चल रहा न्याय चाहने वाला हाथ मल रहा शरीफ जेल मेँ हरीफ रेल मेँ और इस खेल मेँ ग़रीब जल रहा लाचारोँ की चीत्कार से चैन खो रहा शैतान हँस रहे हैँ इंसान रो रहा दर्द है घुटन है फरेब और नफ़रत हर तरफ आजकल है फैली हुई दहशत देखो जिस ओर बस कालिमा नज़र आये चारोँ ओर अंधेरा है आदमी किधर जाये आँखोँ से निकला खून चेहरे को धो रहा शैतान हँस रहे हैँ इंसान रो रहा रचना - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश |
15-08-2013, 03:24 PM | #2 |
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Re: गाँधी तेरे देश मेँ...
सुन्दर .......................
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