24-12-2012, 10:45 PM | #1 |
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ऐ बादे सबा
जानता हूँ खूब ठहरना तेरी फितरत में नहीं चाहता हूँ फिर भी बाँध लूं तुझको लेकिन इतनी खुदगर्ज़ी तो हरगिज़ मेरी चाहत में नहीं. तू जुदा होके चली जायेगी जिन राहों पर उनपे बिछा आया हूँ मैं अपनी दुआओं के फूल ऐसे कह रही हो रेशमी शबनम किसी नवेली सुबह को खुश-आमदीद जैसे. तू जहाँ भी रहे उगते रहें खुशबू के समंदर और लहराती रहें झीलें दोस्ती की वहाँ. तू जहाँ जहाँ से भी गुज़रे ज़र्रा ज़र्रा वहाँ का रोशन हो, तेरी आमद हो जब भी गुलशन में चूम चूम के जाये बहार तेरे कदम. दर्द के मारे भी झूम कर देखें कौन महफ़िल में आ कर मुस्कराहट कर गया तकसीम. अलविदा – अलविदा – अलविदा ऐ बादे सबा. **** बादे सबा = सुबह की हवा फितरत = स्वभाव खुश आमदीद = स्वागत तकसीम = बाँटना
Last edited by rajnish manga; 26-12-2012 at 03:56 PM. |
24-12-2012, 10:49 PM | #2 |
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Re: ऐ बादे सबा
तू जुदा होके चली जायेगी
जिन राहों पर उनपे बिछा आया हूँ मैं अपनी दुआओं के फूल ऐसे कह रही हो रेशमी शबनम किसी नवेली सुबह को खुश-आमदीद जैसे. vaah rajnish ji kya khoob likha खुश-आमदीद खुश-आमदीद खुश-आमदीद |
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