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Old 09-04-2014, 09:56 PM   #31
bindujain
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Default Re: लघुकथाएँ

तोड़ो नहीं, जोड़ो

अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था| वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था| इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था| मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था| लोग उससे बहुत डरते थे| उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे|

संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले| लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वे वहां से चले जाएं| अंगुलिमाल ऐसा डाकू है, जो किसी के भी आगे नहीं झुकता|

बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला| वे बेधड़क वन में घूमने लगे|

जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुंझलाकर बुद्ध के पास आया| वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया|

बुद्ध ने उससे कहा - "सुनो भाई, सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड़ लाओगे?"

अंगुलिमाल के लिए यह क्या मुश्किल था! वह दौड़कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया|

बुद्ध ने कहा - "अब एक काम और करो| जहां से इन पत्तों को तोड़कर लाए हो, वहीं इन्हें लगा आओ|"

अंगुलिमाल बोला - "यह कैसे हो सकता है?"

बुद्ध ने कहा - "भैया! जब तुम जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?"

इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और वह उस दिन से अपना धंधा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया|

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Old 10-05-2014, 07:46 AM   #32
bindujain
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Default Re: लघुकथाएँ

पैरों के निशान

जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है,” प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये , मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते है…. मैं वहाँ नहीं जाना चाहता …” और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है ।

भगवान् स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्ता समझाते हैं , बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान् के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है।

” ठीक है प्रभु, अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही , पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा। ” , बालक भगवान् से कहता है।

भगवान् : बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ?

बालक : आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे।

भगवान् : अवश्य, ऐसा ही होगा।

बालक : पर पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं , भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं ?

भगवान् : जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हे दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाइये देंगे , उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।

फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है।

जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान् से हुए वार्तालाप को भूल जाता है| पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है।

वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं| परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाइये दे रहे थे , यह देख वह बहुत दुखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नही निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी।

मरने के बाद वह भगवान् के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला , ” प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे , पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया ?”

भगवान् मुस्कुराये और बोले , ” पुत्र ! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हे अपनी गोद में उठा लिया , इसलिए उस समय तुम्हे सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे। “

दोस्तों, बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है , कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है , पर जब बाद में हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नहीं हुआ ,क्योंकि शायद यही वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करता है। अनजाने में हम सोचते हैं को वो हमारा साथ नहीं दे रहा पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होता है।


Prakash Dwivedi


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Old 10-05-2014, 08:05 AM   #33
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Default Re: लघुकथाएँ

तीसरी भूल, जब उस युवती ने कह दिया 'कपड़ों को क्यों देखते हो'
सुधांशु जी महाराज / अध्यात्मिक गुरु

मानव जीवन घटनाओं की एक अद्भुत घाटी है। जीवनयात्रा में अनेक घटनाएं घटती हैं, घटनाओं का प्रवाह इंसान को जगाने के लिए आता है, झकझोरने के लिए आता है। जीवन में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएं इतनी प्रेरणादायक होती हैं कि व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। संवेदनशील व्यक्ति बहुत बार स्वयं से ही लज्जित हो जाता है और अपने आप से लज्जित होना अच्छी बात होती है।
एक यहूदी फकीर हुसैन साहिब हुए हैं-उन्होंने कहा मैं अपनी जिन्दगी में तीन बार बड़ा शर्मिन्दा हुआ। वह कहते हैं मैंने एक बार एक व्यक्ति को देखा जो शराब पिए हुआ था, उसको कीचड़ में फिसलते हुए, गिरते हुए संभलने की कोशिश करते मैंने देखा, यह देखते ही मैंने उसे आवाज दी, सम्भल भाई! नशे में हो। अगर गिर जाओगे तो उठना मुश्किल हो जाएगा।

इतना सुनते ही वह शराबी व्यक्ति मेरी तरफ देखकर बोला, मैं तो नशे में पागल हूं, कीचड़ में गिर जाउंगा तो कपड़ों में लगा हुआ कीचड़ तो धोकर ठीक हो जाएगा, लेकिन तुम तो धर्मिक इंसान हो, ईश्वर के नेक बन्दे हो, तुम न गिर जाना, अगर तुम गिर गए तो तुम्हारा मन स्वच्छ होने वाला नहीं। क्योंकि मन पर लगा कीचड़ कभी साफ नहीं हो पाएगा। हुसैन साहिब कहते हैं कि उस समय मुझे बहुत शर्मिन्दगी हुई कि एक शराब के नशे में बेहोश आदमी जो कह गया, वह होश वाला भी नहीं कह सकता।

फकीर आगे कहते हैं कि दूसरी बार मैं एक बच्चे को देखकर लज्जित हुआ। वह बच्चा हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर आ रहा था, मैंने उससे पूछा कि इस दीये में प्रकाश कहां से आया है? मेरे इतना कहते ही एक हवा का तेज झोंका आया और दीपक बुझ गया। बच्चे ने उत्तर दिया कि यह बाद में पूछना कि प्रकाश कहां से आया, पहले आप यह बताओ कि प्रकाश गया कहां? तो फिर मैं आपको बताऊं कि प्रकाश आया कहां से था। बच्चे का उत्तर सुनकर हुसैन साहिब लज्जित होकर सोचेन लगे कि कहां से आता है प्रकाश और कहां समाहित हो जाता है?

हुसैन कहते हैं कि जीवन में मुझे तीसरी बार शर्मिन्दगी उस समय हुई जब एक युवति ने मेरे पास आकर कहा कि मेरा पति निर्मोही है, घर-गृहस्थी पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता। मैंने उस महिला को डांटते हुए कहा, पहले अपना आंचल तो ठीक कर, बाद में पति के लिए शिकायत करना। यह सुनकर वह महिला बोली, मैं तो अपने पति के लिए पागल हूं, मुझे तो अपना होश नहीं, लेकिन तू तो अपने मालिक के प्यार में पागल है, तब भी तुझे दूसरों के कपड़ों का ही ध्यान आता है।

अगर तू सच में मालिक का प्यारा है तो देख सारी दुनिया में सर्वत्र तुझे प्यार करने वाला तेरा परमात्मा तेरे सामने है, तू उसका ध्यान कर। हुसैन साहिब कहते हैं कि मैं उसकी इस बात से बहुत शर्मिन्दा हुआ
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Last edited by bindujain; 13-05-2014 at 10:16 AM.
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Old 14-05-2014, 01:58 PM   #34
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Default Re: लघुकथाएँ

अमीर कौन?

महिला पिकनिक के दौरान 3 स्टार होटल में ठहरी थी. उसके साथ उसका एक छोटा सा बच्चा था. बच्चा भूख से रोये जा रहा था.
सर एक कप दूध मिलेगा क्या...?
8 माह के बच्चे की माँ ने 3 स्टार होटल मैनेजर से पूछा...
मैनेजर "हाँ, 100 रू. में मिलेगा"...
महिला ने कहा - "ठीक है दे दो"
वह सुबह जब गाड़ी में जा रहे थे ...
बच्चे को फिर भूख लगी...., बच्चा रोए जा रहा था ..
गाडी को टूटी झोपड़ी वाली पुरानी सी चाय की दुकान पर रोका…
बच्चे को दूध पिला कर शांत किया...
दूध के पैसे पूछने पर बूढा दुकान मालिक बोला...
"बेटी! मैं इस बच्चे के दूध के पैसे नहीं ले सकता " यदि रास्ते के लिए चाहिए तो लेती जाओ...
"अब बच्चे की माँ के दिमाग मे एक सवाल बार बार घूम रहा था कि अमीर कौन 3 स्टार होटल वाला या टूटी झोपड़ी वाला...?

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Old 14-05-2014, 02:00 PM   #35
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Default Re: लघुकथाएँ

अपना अपना स्थान

एक राजा था. वह दिन- रात यही देखता रहता कि कौन वस्तु उपयोगी है और कौन अनुपयोगी. एक बार उसने यह फरमान दिया कि पता करो कौन -कौन से प्राणी, वनस्पति, जीव -जंतु उपयोगी हैं और कौन अनुपयोगी. राजा के मंत्रियों -दरवारियों ने इसके लिए समिति बनाई जिसे एक महीने बाद अपनी रिपोर्ट देनी थी. एक महीने बाद समिति के प्रतिनिधि राजा से मिलने आये. उन्होंने राजा को बताया कि दो कीड़े- मकड़ी और मक्खी बेकार हैं. ये किसी भी तरह से उपयोगी नहीं हैं. राजा ने सोचा- क्यों न हम इन दोनों कीड़ों को बिलकुल नष्ट करवा दें. तभी एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला - महाराज! हमारे ऊपर पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया है. दोनों में युद्ध हुआ और राजा हार गया और जंगल की और जान बचाने के लिए भागा. राजा थक गया था इसलिए एक पेड़ के नीचे सो गया.
तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मार दिया जिससे राजा की नींद खुल गई. राजा ने सोचा इस तरह खुले में सोना सुरक्षित नहीं और एक गुफा में छिप गया. उस गुफा में बहुत मकड़ी रहती थी. मकड़ियों ने गुफा के द्वार पर जाल बन दिया. जब राजा को खोजते हुए सैनिक आये और उस गुफा की तरफ़ा देखा तो बोले - इसमें नहीं गया होगा. अगर गया होता तो मकड़ी का जाला नष्ट हो गया होता. गुफा में छिपा राजा यह सब सुन रहा था. सैनिक चले गए. राजा ने सोचा- प्रकृति में सभी जीव -जंतुओं का अपना अपना स्थान होता है. सबकी अपनी उपयोगिता होती है. अब राजा की आँखें खुल चुकी थी.

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Old 14-05-2014, 02:02 PM   #36
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Default Re: लघुकथाएँ

बंधन

कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद 50 ऊटों का काफिला लिए
मरुभूमि में बढ़ता चला जा रहा था. सूर्य देव को अस्ताचल में छिपता देख सेठ ने कमरुद्दीन को आवाज लगाई - देख सामने सराय है आज यहीं रुक जाते हैं. कमरुद्दीन ने उनचास ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर रस्सियों से बांध दिया. एक ऊंट के लिए रस्सी थी ही नहीं, न ही खूंटा था. काफी खोजा लेकिन इंतजाम न हो सका. उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने एक सलाह दी - सुनो तुम ऐसा करो जिससे लगे कि तुम खूंटी गाड़ रहे हो और ऊंट को रस्सी से बांध रहे हो. इसका अहसास ऊंट को करवाओ.
यह सुनकर कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई उपाय था, इसलिए कमरुद्दीन ने वैसा ही किया.
झूठीमुठी खूंटी गाड़ी गई, ताकि उसकी आवाज ऊंट सुन सके. झूठ मुठ की रस्सी बांधी गयी ताकि ऊंट को लगे कि उसे बांधा जा चुका है. ऊंट ने आवाज सुनीं और समझ लिया कि वह बंध चुका है. वह भी अन्य ऊँटों कि तरह बैठ गया और जुगाली करने लगा.
सुबह उनचास ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं गयी और रस्सियां खोलीं गयी. सारे ऊंट उठ गए और चलने लगे. लेकिन एक ऊंट बैठा ही रहा. कमरुद्दीन को आश्चर्य हुआ - अरे, इसे तो बाँधा भी नहीं है, फिर भी यह उठ क्यों नहीं रहा है?
फिर उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने समझाया - तुम यह देख रहे हो कि ऊंट बंधा नहीं है लेकिन ऊंट स्वयं को बंधन में महसूस कर रहा है. जैसे रात को तुमने झूठ मुठ का खूंटी गाड़ने और बाँधने का एहसास कराया वैसे ही अभी उसे उखाड़ने और रस्सी खोलने का एहसास कराओ तभी यह ऊंट उठेगा.
कमरुद्दीन ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने का नाटक किया और ऊंट उठकर चल पड़ा.

यही हम सबके साथ भी होता है हम भी ऐसी ही काल्पनिक खूंटियों और रस्सियों के बंधन में जकड़े होते हैं. और वह है हमारा नजरिया या गलत दृष्टिकोण, गलत सोच, नकारत्मक विचार. किसी भी काम के प्रति जैसा हमारा दृष्टिकोण होगा, हमारी सफलता भी उसी पर निर्भर करेगी. इसलिए हम चिंतन करें और अपने विचार या दृष्टिकोण पर अवश्य विचार करें.

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Old 14-05-2014, 05:13 PM   #37
Dr.Shree Vijay
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Old 15-05-2014, 11:13 AM   #38
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एक आदमी जंगल से गुजर रहा था

एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे
चार स्त्रियां मिली ।
उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा -: "बुद्धि "!
तुम कहां रहती हो?
... उसने कहा-: मनुष्य के दिमाग में।
दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" लज्जा "।
तुम कहां रहती हो ?
उसने कहा-: आंख में ।
तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ?
"हिम्मत"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: दिल में ।
चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
"तंदुरूस्ती"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: पेट में।
वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।
उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" क्रोध "
कहां रहतें हो ?
दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं,
तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।
दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं?
उसने कहां -" लोभ"।
कहां रहते हो?
आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो।
उसने कहा-: मेरे रहते लज्जा का कोई ठिकाना नहीं है
मै कुछ भी करवा सकता हूँ ..चोरी ,डकैती, हत्या आदि
तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
जबाब मिला "भय"।
कहां रहते हो?
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं आता हूं तो हिम्मत भाग जाती है ..!!
चौथे से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा - "रोग"।
कहां रहतें हो?
पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं,
उसने कहा-: तुम जैसे सहनशील व्यक्ति जब अपना संतुलन खो देते हो
तब मैं आता हूँ और तन्दरुस्ती को भगा कर तुम्हारे शरीर में राज
करता हूँ ...!!

NAND KISHOR GUPTA
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Old 20-05-2014, 11:15 AM   #39
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Old 20-05-2014, 12:42 PM   #40
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बंधन

कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद 50 ऊटों का काफिला लिए
मरुभूमि में बढ़ता चला जा रहा था. सूर्य देव को अस्ताचल में छिपता देख सेठ ने कमरुद्दीन को आवाज लगाई - देख सामने सराय है आज यहीं रुक जाते हैं. कमरुद्दीन ने उनचास ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर रस्सियों से बांध दिया. एक ऊंट के लिए रस्सी थी ही नहीं, न ही खूंटा था. काफी खोजा लेकिन इंतजाम न हो सका. उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने एक सलाह दी - सुनो तुम ऐसा करो जिससे लगे कि तुम खूंटी गाड़ रहे हो और ऊंट को रस्सी से बांध रहे हो. इसका अहसास ऊंट को करवाओ.
यह सुनकर कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई उपाय था, इसलिए कमरुद्दीन ने वैसा ही किया.
झूठीमुठी खूंटी गाड़ी गई, ताकि उसकी आवाज ऊंट सुन सके. झूठ मुठ की रस्सी बांधी गयी ताकि ऊंट को लगे कि उसे बांधा जा चुका है. ऊंट ने आवाज सुनीं और समझ लिया कि वह बंध चुका है. वह भी अन्य ऊँटों कि तरह बैठ गया और जुगाली करने लगा.
सुबह उनचास ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं गयी और रस्सियां खोलीं गयी. सारे ऊंट उठ गए और चलने लगे. लेकिन एक ऊंट बैठा ही रहा. कमरुद्दीन को आश्चर्य हुआ - अरे, इसे तो बाँधा भी नहीं है, फिर भी यह उठ क्यों नहीं रहा है?
फिर उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने समझाया - तुम यह देख रहे हो कि ऊंट बंधा नहीं है लेकिन ऊंट स्वयं को बंधन में महसूस कर रहा है. जैसे रात को तुमने झूठ मुठ का खूंटी गाड़ने और बाँधने का एहसास कराया वैसे ही अभी उसे उखाड़ने और रस्सी खोलने का एहसास कराओ तभी यह ऊंट उठेगा.
कमरुद्दीन ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने का नाटक किया और ऊंट उठकर चल पड़ा.

यही हम सबके साथ भी होता है हम भी ऐसी ही काल्पनिक खूंटियों और रस्सियों के बंधन में जकड़े होते हैं. और वह है हमारा नजरिया या गलत दृष्टिकोण, गलत सोच, नकारत्मक विचार. किसी भी काम के प्रति जैसा हमारा दृष्टिकोण होगा, हमारी सफलता भी उसी पर निर्भर करेगी. इसलिए हम चिंतन करें और अपने विचार या दृष्टिकोण पर अवश्य विचार करें.

बिल्कुल सही कहा मित्र !
...और कहा भी है—
1. जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।
2. सावन के अन्धे को हरा ही हरा नजर आता है ।
3. या दृषि भावना भवती ता दृषि कार्याणां सिद्धयती ।
4. मन के हारे हार है मन के जिते जित ।
5. कौन कहता है कि आंसमा में सुराख नहीं हो सकता ? तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारों !

ये और इसी तरह के वक्तव्य हमारे दृष्टिकोण से फलित होने वाले कार्यो को दर्शाते है
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