23-05-2011, 10:13 PM | #31 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
23-05-2011, 10:22 PM | #32 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
दोस्तों आपके सामने राजस्थान के इतिहास से जुडी कुछ फोटो
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज Last edited by The ROYAL "JAAT''; 24-05-2011 at 11:45 AM. |
23-05-2011, 10:23 PM | #33 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
23-05-2011, 10:24 PM | #34 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:52 AM | #35 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिहं ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। मुगल काल में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, और राजस्थान के अन्य राजाओं ने मुगलों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुगल साम्राज्यों के विस्तार और रक्षा में महत्वपूर्ण भाग अदा किया। साम्राज्य की उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरुप उन्होंने मुगल दरबार में बड़े-बड़े औहदें, जागीरें और सम्मान प्राप्त किये।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:53 AM | #36 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
राजस्थानी मंदिर वास्तु शिल्प
राजस्थान का वास्तुशिल्प की श्रीवृद्धि में उल्लेखनीय योगदान रहा है। मन्दिर वास्तु शिल्प के उद्भव का स्रोत वे छोटे-छोटे मन्दिर रहे हैं जिन्हें प्रारम्भ में लोगों की धार्मिक अनुभूतियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनवाया गया था। प्रारम्भ में बने मन्दिरों में केवल एक कक्ष होता था जिसके साथ दालान जुड़ा रहता था, चौथी और पांचवी सदियां स्थापत्य शिल्प के इतिहास में स्वर्ण युग की अगुआ रही है जब रुप सज्जा और धार्मिक निष्ठा संयोग ने भक्तों पर प्रभाव डाला।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:55 AM | #37 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
राजस्थान केवल अपनी कीर्ति कथाओं या त्याग और बलिदानों के कारण ही यशस्वी नहीं है अपितु अपने असंख्य समृद्धिशाली मन्दिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। स्थापत्य शिल्प के क्षेत्र में राजस्थान ने स्वयं अपनी एक अत्युत्तम शैली को जन्म दिया जो ओसिया, किराडु, हर्ष, अजमेर, आबू, चन्द्रावती, बाडौली, गंगोधरा, मेनाल, चित्तौड़, जालौर और बागेंहरा के रमणीक मन्दिरों में दृष्टव्य है। चौहानों, परमारों और कुछ अन्य राजपूत वंशों के महान निर्माताओं की संज्ञा दी जानी चाहिए और पृथ्वीराज विजय उनकी उपलब्धियों में मात्र जीते हुए युद्धों का ही नहीं वरन् उनके द्वारा निर्मित महान और श्रेष्ठ मन्दिरों के निर्माण की भी महान कहानी है।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:56 AM | #38 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
साथ-साथ बने हिन्दू और जैन मन्दिरों के निर्माण में स्थापत्य के सिद्धान्त एक-दूसरे के अत्यन्त अनुरुप थे। मुख्य संस्थापक मंदिरों की रुपरेखा और योजना बनाने के लिए उत्तरदायी होता ता। इनका निष्पादन शिल्पी, स्थापक, सूत्र ग्राहिणी, तक्षक और विरधाकिन आदि कारीगर करते थे। यद्यपि इन संरचनाओं में एकरुपता दृष्टिगोचर होती है तथापि इन पर क्षेत्रीय प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सका जो मंदिरों, गर्भग्रहों, शिखरों और छतों के अलंकरणों में दृष्टव्य है।
राजस्थान को स्थापत्य शिल्प का उत्तराधिकारी सीधा गुहा काल से प्राप्त हुआ जो कला के नये कीर्तिमानों की प्रचुरता के कारण स्वर्ण युग माना जाता है। ओसिया के मन्दिर स्थापत्य कला के केत्र में अत्यधिक पूर्णता प्राप्त स्मारक हैं।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:57 AM | #39 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
चित्तौड़ग के समीप नागरी में प्राप्त ४८१ ई. के एक शिलालेख से राजस्थान में प्रारम्भिक वैष्णव मन्दिरों का प्रभाव ज्ञात होता है#ै। जहां तक राजस्थान का सम्बन्ध है, पहली से सातवीं सदी तक मेवाड़ की भूमि वैष्णवों का मुक्य गढ़ रहा था जहां के भक्तों की कृष्ण और बलराम पर अनन्य श्रृद्धा थी। सातवीं सदी के पश्चात् निर्मित मन्दिरों पर तांत्रिक प्रभाव पड़े बिना न रह सका जो वैष्णव मन्दिरों की सज्जा में स्पष्टत: परिलक्षित होने लगा था।
अलवर के तसाई शिलालेख के अनुसार बलराम के साथ-साथ वारुणी की भी पूजा होती थी। दसवीं ग्याहरवीं सदी के जगत और रामगढ़ के मन्दिरों अन्य उदाहरण हैं जिनमें तांत्रिक अभ्यास का ज्ञान होता था। राजस्थान में प्रतिहारों का युग उन मन्दिरों के निर्माण के लिए उल्लेखनीय है जिनमें सूर्य और शिव की मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई हैं। भीनमाल, ओसिया, मण्डोर और हर्षनाथ के मन्दिर जिनमें भगवान् सूर्य प्रतिष्ठित हैं, राजस्थानी स्थापत्य शिल्प की मनोहारी कृतियां हैं।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
24-05-2011, 11:58 AM | #40 |
Senior Member
Join Date: May 2011
Posts: 584
Rep Power: 21 |
Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
प्रतिहार में कोई निश्चित देवी-देवता नहीं था। कुछ लोग वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे तो कुछ शैव सम्प्रदाय को मानने वाले थे। उदाहरण के लिए रामभद्र सूर्य का अनन्य भक्त था लेकिन माथनदेव शिवपूजा का समर्थक था। मेवाड़ में शिव मन्दिर की भरमार थी जिन में सर्वाधिक प्रसिद्ध है एकलिंग जी का मंदिर जिसे परम्परानुसार सर्वप्रथम महारावल द्वारा निर्मित बताया जाता है।
शिव, विष्णु और सूर्य निर्मित देवताओं के अतिरिक्त राजस्थान के मन्दिरों में शक्ति के साथ-साथ भगवती, दुर्गा की प्रतिष्ठा की गयी थी। इनमें जगत, मण्डोर, जयपुर और पुष्कर का ब्रह्मा मन्दिर उल्लेखनीय है। आबानेरी और मण्डोर में नृत्य करते हुए गणेश की मूर्तियां भी पाई जाती हैं।
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो ' आपका दोस्त पंकज |
Bookmarks |
|
|