31-12-2017, 11:15 AM | #1 |
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ईश्वर के ठेकेदार
यही तो हैं धरती के भार यही तो हैं धरती के भार ★★★ ईश्वर की ये खोल दुकाने बनते सबके भाग्य विधाता करते धर्म-कर्म की बातें बन जाते हैं देखो दाता सुंदर रूप बना कर बैठे दिखते जैसे बाबा पक्के घात लगाए बैठे हैं ये सच मानों तो चोर-उचक्के तुमको रोटी के हैं लाले, इनकी देखो कार- यही तो हैं धरती के भार यही तो... ★★★ बिना काम के कैसे इनकी भर जाती रोज तिजोरी है नौकर-चाकर कोठी गाड़ी इनके तो मन में चोरी है राम न अल्ला मन में इनके बस धन की माया जारी है ये धवल दूध से दिखते हैं पर पक्के मिथ्याचारी हैं ईश्वर के ये ले लेते हैं अक्सर ही अवतार- यही तो हैं धरती के भार यही तो... ★★★ नारी को कहते हैं देवी बेटी या फिर कहते माता अपनी नज़रों से तुम देखो कितना पाक हुआ यह नाता लेकिन कितनी है बेशर्मी कितने पाप उड़ेल रहें हैं जनता के उपदेशक देखो माँ बहनों से खेल रहे हैं इनको आज चढ़ा दो शूली या मारो तलवार- यही तो हैं धरती के भार यही तो... गीत- आकाश महेशपुरी Last edited by आकाश महेशपुरी; 31-12-2017 at 11:47 AM. |
02-01-2018, 09:49 AM | #2 |
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Re: ईश्वर के ये बने हुए हैं जो भी ठेकेदार
सामाजिक एवम् राजनैतिक क्षेत्रों में व्याप्त पाखंड और झूठ का पर्दाफाश करती है यह कविता. और मुखरता से चोट भी करती है. देर सवेर बदलाव अवश्य आएगा, यही आशा है. धन्यवाद, आकाश जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
10-04-2018, 08:09 PM | #3 |
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Re: ईश्वर के ये बने हुए हैं जो भी ठेकेदार
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