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Old 14-11-2012, 12:03 PM   #1
arvind
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Default सफलता की सीढ़ी।

इस सूत्र मे दिये गए आर्टिक्ल का लेखक मै नहीं हूँ। नेट पर, समाचार पत्रो इत्यादि मे इधर-उधर बिखरे पड़े लेखो का यह एक संकलन है, जिसे मैंने एक जगह इकट्ठा किया है, ताकि फोरम पर आने वाले लोग इसका फायदा उठा सके।
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Old 14-11-2012, 12:04 PM   #2
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

जीयें वर्तमान में, पर सोचें भविष्य के बारे में

बात उस समय की है, जब मैं दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था. मेरे अंकल वहीं सरकारी नौकरी में थे. एक दिन मैं अपने मित्रों के साथ उनके पास बैठा था. उन्होंने हम सभी साथियों से एक सवाल पूछा, ‘‘यदि एक बच्चे और एक बूढ़े की उंगलियों में एक ही तरह की आग से चटका लग जाये तो पहले कौन सामान्य होगा?’’ जवाब में हम सभी ने कहा, ‘‘बच्चा.’’

हालांकि इसका कारण हम नहीं बता सके. उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा, ‘‘बच्चा जल्दी ही पुरानी तकलीफ़ों को भूल कर जिंदगी में आगे बढ़ता है, सीखता है. लगातार नयी चीजें सीखने की आदत उसका विकास करती है, जबकि बूढ़ा हमेशा पुरानी बातों को पकड़ कर बैठता है.

हमारे अंदर ही बच्चा होता है और हमारे अंदर ही बूढ़ा भी होता है. यह हम पर है कि हम अपने अंदर किस प्रकार की सोच विकसित करते हैं. यदि कोई बीती बातों को बार-बार दोहराता है. अपनी उपलपब्धियों के सहारे जीता है तथा वर्तमान और भविष्य में अपने विकास की नहीं सोचता है, वह मानसिक रूप से बूढ़ा हो जाता है.

ऐसे लोगों से सफ़लता भी दूर होती जाती है.एक बड़ी कंपनी ने एक ऊंचे पद के लिए विज्ञापन निकाला. विज्ञापन में उन्होंने लिखा कि‘‘हमें तीस साल कार्यानुभव वाले युवा की जरूरत है.’’बात साफ़ थी कि उस तरह के अनुभववाले की उम्र 50 से कम नहीं हो सकती.

बहुत से बुजुर्ग लोगों ने अपना एनर्जी लेवल युवाओं की तरह बताते हुए आवेदन किया. शॉर्टलिस्ट करने के बाद उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. सेलेक्शन के बाद कंपनी की टीम से पूछा गया कि आपने इतनी अधिक ऊर्जा से भरे बुजुर्गों में से युवा किसे माना ? टीम ने कुछ इस तरह जवाब दिया, ‘‘जब भी किसी बुजुर्ग से अपने कार्य के अंदाज के बारे में पूछा जाता, तब वह अपना अनुभव बताते थे, उनमें से अधिकतर लोग 90 प्रतिशत से ज्यादा समय अपनी पिछली उपलबधियों के बारे में बता देते थे और बचे 10 प्रतिशत समय में अपनी कार्यशैली व प्लानिंग के बारे में बताते थे.

हमने उस बुजुर्ग को सबसे युवा माना, जिसने संक्षेप में पिछली बातें बतायी तथा ज्यादातर समय वर्तमान व्यापार की स्थिति व भविष्य की प्लानिंग के बारे में बताया.’’युवा वही होते हैं, जो ज्यादातर वर्तमान में जीते हैं और भविष्य के बारे में सोचते हैं.

एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप जब भी किसी से आगे की प्लानिंग के बारे में बताते हैं, तो वह खुद ही समझ लेता है कि आपने पहले क्या और कितना किया होगा. अगर आप अपनी उपलब्धियों के बखान में लग जायें और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा ही न करें, तो आपकी उपलब्धियां भी शक के घेरे में आ जायेंगी. च्वाइस आपकी है कि आप युवा रहना चाहते हैं या बुजुर्ग.

बात पते की
-युवा वही हैं, जो वर्तमान में जीते हैं और भविष्य के बारे में सोचते हैं.
-लगातार नयी चीजें सीखने की आदत विकसित करें.
-आप जब भी किसी से आगे की प्लानिंग के बारे में बात करते हैं, वह खुद समझ लेता है कि आपने पहले क्या और कितना किया होगा
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Old 14-11-2012, 12:08 PM   #3
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

समय का महत्व जानते हैं फ़िर भूल क्यों जाते हैं ?

समय का कितना महत्व है, यह सभी जानते हैं. खासतौर से इसलिए भी क्योंकि समय के महत्व के बारे में लोग बचपन से ही सुनते आये हैं. लोगों ने इसे सुनने की आदत बना ली है, लेकिन प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में ज्यादातर लोग इसे लागू नहीं कर पाते हैं. रजनीश में हर काम को टालने की आदत थी. मेज पर फ़ाइलों की लाइन लगी रहती और वे हर दिन यही सोचते कि थोड़ा ही तो काम है, कल कर लूंगा.

मैंने उनसे पूछा कि इस आदत से आपको परेशानी नहीं होती है क्या? उनका जवाब था, ‘‘नहीं, यदि काम एक-दो दिन टाल दिया जाये, तो क्या फ़र्क पड़ जायेगा. दुनिया कौन-सी इधर की उधर हो जायेगी. काम तो हो ही जाता है न.’’इसी आदत के कारण शुरू में उन्हें काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. बाद में उन्होंने अपनी आदत में सुधार किया. अपने पास एक डायरी रखने लगे. मुझसे मिले, तो मैंने पूछा कि यह डायरी कैसी है? उन्होंने बताया कि इसमें मैंने सारा काम समय के साथ नोट किया है. एक काम जब शुरू करता हूं, तो दूसरे काम की प्रेरणा मिलती रहती है.

इससे काम तय सीमा में पूरा हो जाता है.महान वैज्ञानिक फ्रेंकलिन की एक पुस्तक की दुकान थी. एक बार उनकी दुकान पर एक ग्राहक आया और एक किताब की ओर इशारा करते हुए काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा, ‘‘इस किताब का मूल्य क्या है?’’ उसने जवाब दिया, ‘‘दो डॉलर.’’ कुछ देर वह चुप रहा, फ़िर उसने पूछा, ‘‘इस दुकान के मालिक कहां हैं? मुङो उनसे बात करनी है.’’ काउंटर वाला व्यक्ति बोला, ‘‘अभी वो आधे घंटे बाद यहां आयेंगे. ग्राहक बोला, ‘‘ठीक है मैं आधे घंटे बाद ही आता हूं.’’ मालिक के आने के बाद फ़िर उसने पूछा, ‘‘इस किताब का मूल्य क्या है?’’ मालिक ने कहा, ‘‘सवा दो डॉलर.’’ ग्राहक ने कहा, ‘‘अभी तो आपका स्टाफ़ दो डॉलर बता रहा था और आप सवा दो डॉलर बता रहे हैं.’’ फ्रेंकलिन कुछ नहीं बोले और अपना काम करते रहे. थोड़ी देर सोचने-विचारने के बाद उस ग्राहक ने फ़िर पूछा, ‘‘अच्छा बताइए, मैं आपको इसका क्या उचित मूल्य दूं?’’फ्रेंकलिन ने इस बार कहा, ‘‘ढाई डॉलर.’’ इस बार ग्राहक सकते में आ गया और शिकायत के लहजे में तुनक कर कहा, ‘‘पर अभी-अभी तो आपने सवा दो डॉलर बताया था. क्या आपके यहां किसी चीज के दाम तय नहीं हैं. एक बार में एक ही ग्राहक को बार-बार बदल कर कीमत बता रहे हैं.’’ तब फ्रेंकलिन ने उसे शांतिपूर्वक समझाया, ‘‘देखो युवक शायद तुम्हें समय की कीमत का ज्ञान नहीं है. इतनी देर से तुम मेरा और मेरे स्टाफ़ का समय बर्बाद कर रहे हो. किताब लेनी होती, तो तुमने कब की ले ली होती. अब जो समय हमारा खराब किया है, उसका मूल्य भी तो इसमें शामिल है.’’ यह सुनते ही ग्राहक को समय का ज्ञान हुआ और वो मूल्य चुका कर किताब ले गया.

बात पते की
-समय समाप्त हो जाने के बाद किसी चीज का कोई महत्व नहीं रह जाता.
-काम को टालें नहीं, सही समय पर उसे पूरा करने की कोशिश करें.
-समय के महत्व के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन जब फ़ॉलो करना होता है, तो टालने के रवैये से बाज नहीं आते.
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Old 15-11-2012, 03:53 PM   #4
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आदतें बदलना मुश्किल जरूर है, नामुमकिन नहीं

बदलाव एक सहज प्रक्रिया है. जो बदलता है, वो टिकता है. लेकिन जो नहीं बदलता, वो नहीं टिकता. चाहे वह समाज हो, देश हो या फ़िर व्यक्ति. बदलने के लिए जो नजरिया चाहिए, वो हमें कोई और नहीं दे सकता. अपनी आदतों को बदलने के पहले हमारा पहला सवाल यही होता है, कि क्यों बदलूं? ऐसा इसलिए क्योंकि बदलने से पहले अपने ईगो को मारना पड़ता है.

अपने अंतरमन में मौजूद झूठे स्वाभिमान को कुचल कर आगे बढ़ना पड़ता है.ऑफ़िस में काम करते वक्त व्यवहार, शैली और आदतों को लेकर लगातार बदलाव की प्रक्रिया चलती रहती है. इन सब चीजों में जरूरी यह है कि बदलाव बेहतरी के लिए हो. इस बदलाव से हमारा जीवन बेहतर बने. हम बदलाव से तभी तक डरते हैं, जब तक कदम नहीं बढ़ाते. जिस दिन बदलाव के लिए कदम बढ़ा देंगे, उसी दिन से हमारी कमजोरी हमारी असली ताकत बन जायेगी.

हम बेहतर हो जायेंगे. निश्चित रूप से आदत बदलना बहुत आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है. अगर हम अपनी खराब आदतों को नहीं बदलेंगे, तो न केवल हम अपना नुकसान करेंगे, बल्कि उनका भी नुकसान करेंगे, जो हम पर भरोसा करते हैं.बचपन में एक कहानी सुनी थी. भुवननगर में एक राजा राज करता था. उसके भवन के शयनकक्ष में एक जूं रहती थी. वह नियमित रूप से राजा का रक्तपान कर सुखपूर्वक जीवनयापन करती थी. एक दिन कहीं से एक खटमल राजा के शयनकक्ष में आ गया. जूं ने खटमल से कहा, ‘‘ मैं यहां बरसों से रह रही हूं. अत राजा के इस शयनकक्ष पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है. मैं तुम्हें यहां रहने की अनुमति नहीं दे सकती. तुम तुरंत चले जाओ.’’खटमल ने कहा, ‘‘आज तक मैंने किसी राजा के अच्छे रक्त का सेवन नहीं किया है. मेरी सालों से मनोकामना है कि मैं भी कभी इस अवसर का लाभ उठाऊं. मुझे सिर्फ़ दो-तीन दिन यहां अपने साथ रहने की अनुमति दे दो.’’ इस प्रकार खटमल ने जूं को विश्वास में ले लिया. जूं ने शर्त रखी कि उसे राजा के निद्रामग्न होने तक धैर्य धारण करना होगा.

खटमल सहमत हो गया.रात में राजा अपने शयनकक्ष में आकर लेटा, तो खटमल आदत से मजबूर अपनी जिह्वा पर काबू नहीं रख पाया. उसका धैर्य खत्म होता गया तथा राजा के जागते में ही वह उसका रक्त चूसने लगा. शरीर में खटमल की चुभन से बेचैन राजा चिल्ला कर उठ खड़ा हुआ. सेवक बिस्तर आदि की बारीकी से छानबीन करने लगे. खटमल को भागने का मौका मिल गया, लेकिन नौकरों की नजर छिप कर बैठी जूं पर पड़ गयी. उन्होंने जूं को मार डाला. कहानी बताती है कि कैसे अपनी आदत नहीं बदलनेवाले खटमल की वजह से जूं को जान गंवानी पड़ी.

बात पते की
-जिस दिन से हम बदलाव के लिए कदम आगे बढ़ा देंगे, उसी दिन से हमारी कमजोरी हमारी ताकत बन जायेगी.
-अपनी गलत आदतों के कारण न केवल हम अपना नुकसान करते हैं बल्कि उनका भी नुकसान करते हैं, जो हम पर भरोसा करते हैं.
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Old 15-11-2012, 03:57 PM   #5
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कमियों का रोना न रोयें हर कोई है खुद में खास

अपने जीवन में हम सभी आगे बढ़ना चाहते हैं. इसके लिए अक्सर खुद की किसी दूसरे से तुलना भी करते रहते हैं. आगे बढ़ने के क्रम में यह पहलू अच्छा है. लेकिन एक आम इंसानी स्वभाव यह भी है कि हम कभी-कभी खुद को दूसरे से इस कदर श्रेष्ठ समझने लगते हैं कि सामनेवाले की अनदेखी कर बैठते हैं.

यही नहीं, व्यक्तिगत या व्यावसायिक जीवन में किसी दूसरे की मीन-मेख निकालने का एक भी मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहते. ठीक उसी तरह, जैसे कोई सास अपनी बहू की कमियों को उजागर कर एक अलग-सा आत्मसुख का बोध करती है. लेकिन इस तरह न केवल हम दूसरे की राह में रोड़े अटकाने का काम करते हैं, बल्कि अपना व्यक्तित्व, छवि भी खराब करते हैं. फ़िल्म ‘तारे जमीन पर’ में आमिर खान ने भी यही संदेश देने की कोशिश की है कि हर कोई अपने आप में खास होता है. इसलिए दूसरे की कद्र करना सीखें. मेरे एक मित्र द्वारा इमेल की गयी एक छोटी-सी कहानी से शायद आप इस बात को समझ सकेंगे.

एक किसान के पास दो बाल्टियां थीं, जिन्हें वह एक डंडे के दोनों सिरों पर बांध कर उनमें तालाब से पानी भर कर लाता था. उन दोनों बाल्टियों में से एक के तले में एक छोटा-सा छेद था, जबकि दूसरी बाल्टी अच्छी हालत में थी. तालाब से घर तक के रास्ते में छेदवाली बाल्टी से पानी रिसता रहता और घर पहुंचते-पहुंचते उसमें आधा पानी ही बचता था. अच्छी बाल्टी को रोज-रोज यह देख कर खुद पर घमंड हो गया. वह छेदवाली बाल्टी से कहती कि वह आदर्श बाल्टी है और उसमें से जरा-सा भी पानी नहीं रिसता.

छेदवाली बाल्टी को यह सुन कर बहत दुख होता था. छेदवाली बाल्टी जीवन से निराश हो चुकी थी. एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा, मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूं. मेरे तले में छोटे से छेद के कारण पानी रिसता रहता है और तुम्हारे घर तक पहुंचते-पहुंचते मैं आधी खाली हो जाती हं.

किसान ने छेदवाली बाल्टी से कहा, क्या तुम देखती हो कि पगडंडी के जिस ओर तुम चलती हो उस पर हरियाली है और फ़ूल खिलते हैं, लेकिन दूसरी ओर नहीं. ऐसा इसलिए कि मुझे हमेशा से ही इसका पता था और मैं तुम्हारे तरफ़ की पगडंडी में फ़ूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था, जिन्हें तुमसे रिसने वाले पानी से सिंचाई लायक नमी मिल जाती थी. दो सालों से मैं इसी वजह से अपने देवता को फ़ूल चढ़ा पा रहा हं. यदि तुममें वह बात नहीं होती, जिसे तुम अपना दोष समझती हो, तो हमारे आसपास इतनी सुंदरता भी नहीं होती.

मुझमें और आपमें भी कई दोष हो सकते हैं. दोषों से भला कौन अछूता रह पाया है. कभी-कभी ऐसे दोषों और कमियों से भी हमारे जीवन को सुंदरता और पारितोषिक देनेवाले अवसर मिलते हैं, इसीलिए दूसरों में दोष ढूंढ़ने के बजाय उनमें अच्छाई की तलाश करें. सुलझे लोग तमाम कमियों के बीच से भी सफ़लता का रास्ता ढूंढ़ ही लेते हैं.

- बात पते की
* जीवन में आगे बढ़ना है तो कभी भी अपनी श्रेष्ठता का घमंड न पालें.
* हमेशा दूसरों की कमियों को उजागर करने की बजाय उस ऊर्जा का इस्तेमाल खुद को आगे ले जाने में करें.
* तमाम कमियों के बीच से भी सफ़लता का रास्ता निकल सकता है.
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Old 16-11-2012, 12:05 PM   #6
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एकदम से किसी पर यकीन न करने में ही भलाई है

मूलत: हम इतने सीधे होते हैं कि भावनाओं में बह कर तुरंत किसी पर विश्वास कर लेते हैं, फ़िर जब दिमाग लगाना शुरू करते हैं, तो उस विश्वास में कई तरह के लोभ, पेच और षडयंत्र नजर आने लगते हैं और तब हम संभल जाते हैं. लेकिन ऐसा कम ही लोगों के साथ होता है कि वे संभल पाते हैं.

हममें से ज्यादातर लोग तुरंत ही किसी पर विश्वास कर लेते हैं और यह मान बैठते हैं कि अमुक व्यक्ति अगर ऐसे बोल रहा है, तो वह धोखा नहीं दे सकता. ऐसा नहीं है कि किसी पर विश्वास ही न किया जाये, लेकिन किसी पर विश्वास करने से पहले खुद को समय दें. सोचें, समझें, विशलेषण करें और तब एक फ़िर सोचें कि क्यों सामनेवाले पर विश्वास किया जाये? अगर जवाब मिल जाता है, तो जरूर विश्वास करें.

लेकिन ध्यान रहे, आंखें खोल कर विश्वास करें, आंखें मूंद कर नहीं. आंखें मूंद कर विश्वास करेंगे, तो धोखा मिलेगा ही. किसी पर विश्वास करना आपकी सबसे बड़ी ताकत भी बन सकती है और यही विश्वास आपकी कमजोरी भी बन सकती है. यह विश्वास आपकी ताकत बनेगा या आपकी कमजोरी, यह इस पर निर्भर है कि आप किस पर और कितना विश्वास कर रहे हैं.

एक वन था. उसमें एक बलशाली हाथी रहता था. वैसे तो ना वह किसी को परेशान करता था, ना किसी के काम में दखल देता था, फ़िर भी कुछ जानवर उससे जलते थे. एक चतुर भेड़िया हाथी के पास गया और कहा-‘‘प्रणाम! आपकी कृपा हम पर सदा बनाये रखिये महाराज! मैं एक भेड़िया हूं. मुझे जंगल के सारे प्राणियों ने आपके पास भेजा है. हम आपको जंगल का राजा बनाना चाहते हैं.’’ हाथी खुश हो गया.

भेड़िया कहने लगा, ‘‘मुहूर्त का समय नजदीक आ रहा है, जरा जल्दी चलना होगा हमें.’’ भेड़िया जोर-जोर से भागने लगा और उसके पीछे हाथी भी जैसे बन पड़ा, भागने की कोशिश में लगा रहा. बीच में एक तालाब आया. उस तालाब में ऊपर-ऊपर तो पानी दिखता था, लेकिन नीचे काफ़ी दलदल था. भेड़िया छोटा होने के कारण आसानी से कूद कर तालाब को पार कर गया. हाथी अपना भारी शरीर लेकर जैसे ही तालाब में जाने लगा, तो दलदल में फ़ंसता ही चला गया.

निकल न पाने के कारण से वह भेड़िए को आवाज लगा रहा था- ‘‘अरे दोस्त, मेरी जरा मदद करोगे? मैं इस दलदल से निकल नहीं पा रहा हूं.’’ हाथी की आवाज सुन कर भेड़िये का जवाब अलग ही आया- ‘‘अरे मूर्ख हाथी, मुझ जैसे भेड़िये पर तुमने यकीन तो किया, लेकिन अब भुगतो और अपनी मौत की घड़ियां गिनते रहो, मैं तो चला.’’ यह कह कर भेड़िया खुशी से अपने साथियों को यह खुशखबरी देने के लिए दौड़ पड़ा. बेचारा हाथी. इसीलिए कहा गया है कि एकदम से किसी पर यकीन ना करने में ही भलाई होती है.

- बात पते की
* ज्यादातर लोग तुरंत ही किसी पर विश्वास कर लेते हैं.
* विश्वास करें, लेकिन उसे बनने के लिए समय दें.
* आपका विश्वास आपकी ताकत बनेगा या आपकी कमजोरी, यह इस पर निर्भर है कि आप किस पर और कितना भरोसा कर रहे हैं.
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Old 03-12-2012, 02:53 PM   #7
rajnish manga
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

अरविन्द जी, आपने इस सूत्र के माध्यम से जीवन में आगे बढ़ाने के लिये और अपनी कमियों पर विजय प्राप्त करने के लिये जितने प्रेक्टिकल टिप्स दिए हैं, वे सभी अपनाए जाने पर संबल बनने की सामर्थ्य रखते हैं. इन सूत्रों की यत्र तत्र खोज करने में तथा उनको समझाने के लिये रोचक प्रकरणों को ढूँढने में आपने जो परिश्रम किया है उसके लिये आपको बधाई और धन्यवाद. आगामी प्रसंगों की प्रतीक्षा रहेगी.
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Old 04-12-2012, 02:40 PM   #8
arvind
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दुनिया में हर नयी चीज दो बार बनती है

सपने दो तरह के होते हैं. एक सपना जो हमें बंद आंखो में दिखाई देता है और दूसरा जो हम खुली आंखों से देखते हैं. जो सपने हकीकत में या कहें खुली आंखों में बसाये जाते हैं, उनको पूरा कर पाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना बहुत जरूरी है.

कई बार बच्चों से पूछा जाता है कि उनका सपना क्या है, तो वह कुछ भी बोल देते हैं और उनको उसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. उनके सपने और उनकी रुचियों में भी पर्याप्त अंतर होता है, जबकि हकीकत यही है कि वही सपने पूरे होते हैं, जिस सपने में रुचियां भी शामिल हों. सपने कहने भर से पूरे नहीं होते. उसे पूरा करने के लिए हमें कई स्तरों पर योजना बनानी पड़ती है और उसे पूरा करने के लिए जुनून के साथ लगना पड़ता है. यदि आपके पास अपने सपनों पर रंग भरने के लिए समुचित जानकारी है और उस सपने को पूरा करने का जुनून है, तो आपको सपनों को साकार होने से कोई नहीं रोक सकता.

याद रखें सफ़ल होने के लिए सफ़लता का जुनून और प्रतिबद्धता दोनों बहुत जरूरी है. आपने ध्यान दिया होगा कि ज्यादातर लोग कुछ नया करने से घबराते हैं. उन्हें लगता है कि जब सब कुछ ठीक चल रहा है, तो क्यों नया प्रयोग करना. हालांकि कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो हमेशा नयी चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, कल्पनाएं करते हैं, सपने देखते हैं और फ़िर उसे पूरा करने की योजना बनाते हैं. जिंदगी में ऐसे ही लोग सफ़ल होते हैं. इसलिए सपने जरूर देखें.

तारीख 6 मई, 1954. स्थान : इफ्ले रोड ट्रैक, ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड.एक 25 साल का मेडिकल स्टूडेंट लगभग 3000 दर्शकों के बीच कुछ ऐसा करने जा रहा था, जो मानव इतिहास में इससे पहले कभी हुआ ही नहीं था. उसने एक सपना देखा था, उस सपने को पूरा करने की योजना बनायी थी और आज उसे अपने सपने को साकार होते देखना था. मनुष्य के लिए चार मिनट से भी कम समय में एक मील की दूरी तय कर पाना एक असंभव काम था, पर रोजर बैनिस्टर के लिए नहीं, जिसे एक जूनून था इस बाधा को पार करने का.

दौड़ शुरू हुई और लगभग 45 धावकों को रोजर ने पीछे छोड़ते हुए मात्र 3 मिनट 59.4 सेकेंड में उस बाधा को पार कर मानव जाति के मिथ्या भ्रम को तोड़ डाला. कमाल की बात यह कि ठीक उसके 6 हफ्तों बाद ही जॉल लैंडी ने इस रिकॉर्ड को तोड़ डाला. इसके बाद एक साल के अंतराल में ही इस रिकॉर्ड को दर्जनों लोगों ने तोड़ा. आज के दौर में चार मिनट में एक मील तय करना हर धावक एक आदर्श के रूप में स्वीकार करता है. इस दुनिया में हर नयी चीज और नयी रिकॉर्ड दो बार बनती है. पहला आपके दिमाग में और दूसरी बार वास्तविकता में. कल्पना को हकीकत में बदलने के पीछे लगने वाली असली ताकत आपका जुनून है.

-बात पते की-
*हर नयी चीज दो बार बनती है. पहले, आपके दिमाग में और दूसरी बार वास्तविकता में.
*कल्पना को हकीकत में बदलने के पीछे लगनेवाली असली ताकत आपका जुनून है.
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Old 04-12-2012, 02:43 PM   #9
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समस्या का हल ढूंढ़ें हथियार न डालें

जिंदगी में कई बार ऐसा महसूस होता है कि सारे रास्ते बंद हो गये हैं. लोग खुद को हालात के भरोसे छोड़ देते हैं. तनाव का बोझ प्रयास करने से रोकता है, नतीजा चीजें जो हमारे पक्ष में आ सकती थीं, वह और भी खराब हो जाती हैं.

ध्यान रखें कि लगातार विचार करनेवालों के लिए रास्ता हमेशा खुला रहता है, विकल्प हमेशा उनके सामने रहता है. कोई समस्या इनसान से बड़ा नही होता, बशर्ते की हम उसके आगे हथियार न डालें.

एक गरीब किसान था. उसने साहूकार से कर्ज लिया हुआ था. किसान की फ़सल खराब हो गयी. वायदे के अनुसार साहूकार का उधार चुकाने का समय हो गया था. किसान असमंजस में था की क्या किया जाये.

उसकी एक बेटी थी. वह काफ़ी समझदार थी. उसकी समझदारी से पूरा गांव प्रभावित था. साहूकार ने किसान के सामने शर्त रखी कि या तो वह सारा उधार चुका दे या फ़िर अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दे. लोगों ने इसे अन्यायपूर्ण शर्त बताया. यह देख कर साहूकार ने एक नये तरीके से अपनी बात किसान के सामने रखी. इसके अनुसार वह एक थैले में दो पत्थर रखेगा - एक काला और दूसरा सफ़ेद. अगर काला पत्थर निकला तो साहूकार की शादी लड़की के साथ करानी होगी और किसान का उधार भी माफ़ हो जायेगा. सफ़ेद पत्थर निकला तो लड़की को साहूकार से शादी नहीं करनी होगी और न ही उसके पिता को उधार चुकाना होगा. यदि लड़की ने शर्त मानने से मना किया तो किसान को उधार चुकाना होगा और जेल भी जाना होगा.

किसान और उसकी लड़की ने शर्त मान ली. सब लोग जमा हुए. साहूकार ने थैले में पत्थर डालते वक्त चालाकी दिखायी और दोनों थैले में काले रंग के पत्थर डाल दिये. लड़की ने साहूकार को यह करते हुए देख लिया. अब उसके सामने तीन रास्ते थे. पहला, वह चुपचाप पत्थर निकाल कर उससे विवाह कर ले और अपनी जिंदगी अपने पिता के लिये बलिदान कर दे.

दूसरा, वह पत्थर निकालने से मना कर दे और उसके पिता उधार चुकाए और जेल भी जाये. तीसरा, वह लोगों को बता दे कि साहूकार बेईमानी कर रहा है. ऐसे में भी उधार तो चुकाना ही पड़ेगा.

लड़की ने थोड़ी देर सोचा और पत्थर निकालने का फ़ैसला किया. उसने थैले में हाथ डाल कर पत्थर निकाला और अपनी मुट्ठी में बंद उस पत्थर को उछाल दिया. पत्थर दूर कहीं जाकर दूसरे पत्थरों में मिल गया. लोगों ने पत्थर पहचानने को कहा, तो उसने पत्थर पहचानपाने में असमर्थता जताने के बाद माफ़ी मांगते हुए कहा कि दूसरे थैले के अंदर बचे पत्थर को देख कर अभी भी फ़ैसला लिया जा सकता है. थैले के काले पत्थर को देख कर फ़ैसला किसान और लड़की के हक में सुनाया गया. किसान उस संकट से उबर गया.

- बात पते की
* कभी भी यह न सोचें कि सारे रास्ते बंद हो गये हैं.
* लगातार विचार करनेवालों के लिए रास्ता हमेशा खुला रहता है.
* कोई समस्या इंसान से बड़ा नहीं होता, बशर्ते कि उसके आगे हम हथियार न डालें.
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Old 08-12-2012, 03:38 PM   #10
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

नये के फ़ेर में पुराने को उपेक्षित न करें

बात चाहे नये नियुक्त होनेवाले मैनपावर की हो या फ़िर नये सॉफ्टवेयर या सिस्टम की. अक्सर लोग नये के आने के बाद पुराने को उपेक्षित करना शुरू कर देते हैं. ऐसा करना सही नहीं है. सभी की अपनी उपयोगिता है.

एक बेहतर प्रबंधक वही है, जो पुराने सिस्टम या मैनपावर की अच्छी चीजों के साथ नये के आइडियाज या फ़ीचर को मैच कराये और कार्यस्थल पर संतुलन बना कर चले. किसी भी व्यक्ति या आइडिया या सिस्टम को निरस्त करना दुनिया का सबसे आसान काम है, लेकिन एक अच्छे प्रबंधक को तब तक किसी भी व्यक्ति या सिस्टम को निरस्त करने का नैतिक हक नहीं है, जब तक कि वाकई वह बेहतर सिस्टम या व्यक्ति का उदाहरण न पेश कर सके.एक राजा को नये-नये वाद्य संगीत सुनने का शौक था.

राजा ने संगीतज्ञों के लिए एक प्रतियोगिता की घोषणा करते हुए कहा, कि जिस संगीतज्ञ का वाद्य नवीन प्रकार का होगा और संगीत भी सर्वश्रेष्ठ होगा, उसे भारी राशि देकर पुरस्कृत किया जायेगा, अन्यथा वह कलाकार दंड का भागी होगा. एक से बढ़ कर एक बहुत से कलाकार अपना-अपना वाद्य लेकर राजदरबार में भाग्य आजमाने आये. सभी संगीतज्ञों ने अपने-अपने वाद्य से संगीत सुनाया. राजा को इन सब के संगीत में कुछ भी नया नहीं लगा. उसने सभी कलाकारों को दंड स्वरूप कारागार में डाल दिया.एक बुद्धिमान व्यक्ति को कलाकारों का यह अपमान बहुत बुरा लगा. उसने सभी कलाकारों को न्याय दिलाने की योजना बनायी.

एक दिन वह व्यक्ति लकड़ी का एक लट्ठा लेकर राजसभा में पहुंचा और राजा के समक्ष अपना वाद्य बजाने की आज्ञा मांगी. राजा ने कहा,‘‘यह तो साधारण-सा लकड़ी का लट्ठा है, कोई वाद्य नहीं.’’ व्यक्ति ने कहा, ‘‘महाराज, यह एक नये प्रकार का अद्भुत वाद्य है. यह अकेला नहीं बजाया जा सकता, लेकिन यह सभी वाद्यों के साथ शामिल होकर बहुत मधुर धुनें देता है.’’ राजा ने नये वाद्य सुनने के शौक के कारण सभी कलाकारों को जेल से रिहा कर राज दरबार में आने के आदेश दिये.संगीत की महफ़िल सजी. वह व्यक्ति भी लकड़ी का लट्ठा लेकर सबके बीच में बैठ गया. जब सब कलाकार अपना वाद्य बजा रहे थे, तब वह भी एक छड़ी से लट्ठे पर ठक-ठक कर तान देने लगा.

राजा को संगीत अच्छा लगा. राजा ने उस व्यक्ति से कहा, ‘‘तुम इस पुरस्कार के सच्चे पात्र हो.’’ व्यक्ति ने कहा, ‘‘महाराज, क्षमा करें. न मैं संगीतज्ञ हूं और न यह लट्ठा कोई वाद्य. आपके पुरस्कार पर मेरा नहीं, इन सभी कलाकारों का अघिकार है. इन सभी ने अपने वाद्य बहुत कुशलता से बजाये. मैं आपको केवल यह बताना चाहता था कि नये के फ़ेर में पुराने को उपेक्षित न करें. ये सभी कलाकार अपनी कला में पारंगत हैं और पुरस्कार के सच्चे अधिकारी हैं.’’ राजा ने अपनी भूल सुधारते हुए कलाकारों को पुरस्कृत किया.

बात पते की
किसी भी नये व्यक्ति के आने पर पुराने को उपेक्षित न करें.
कार्यस्थल पर हर स्तर पर संतुलन और सामंजस्य बेहद जरूरी है.
किसी भी व्यक्ति या सिस्टम को रिजेक्ट करना सबसे आसान काम है, लेकिन ऐसा तभी करें, जब आपके पास इससे बेहतर विकल्प मौजूद हो.
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