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17-11-2010, 11:28 AM | #1 |
Senior Member
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
न जाने क्यूँ गले से लिपट कर रोने लगा, जब हम बरसों बाद मिले, जाते हुए जिसने ने कहा था .... की "तुम जैसे लाखों मिलेंगे"…!!!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
17-11-2010, 08:29 PM | #2 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
भूत भाई बहुत कम ही फोरम पे आ रहे हो. क्या समय की कोई पाबन्दी है या कुछ और बात !
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हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
17-11-2010, 09:39 PM | #3 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
Quote:
सोचा है जब भी मैंने, कि धनवान तू बने / शक दोस्त को खोने का मुझे, बारहा हुआ // मिलते हैं आज हाथ 'जय', सटते हैं जिस्म भी / लेकिन दिलों के बीच, बहुत फासला हुआ //
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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16-01-2013, 01:01 PM | #4 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
Quote:
one of the best shayari...I have ever read... one from my side... Wo roye to bahut par muh mod ke roye bade majboor honge jo dil tod ke roye mere samne karke meri tasveer ke tukde pata laga bad me tukde jod jod ke roye.. |
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