23-02-2016, 10:29 AM | #1 |
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गीतिका- ये स्वप्न...
मापनी- 221 2121 1221 212 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ये स्वप्न मेरे' स्वप्न हैं' फलते कभी नहीं। बंजर में' जैसै' फूल निकलते कभी नहीं।। उपदेश दे रहे हैं' हमें रोज क्या कहें, सच्चाइयों की' राह जो' चलते कभी नहीं। माना यहाँ है' रात कहीं धूप है मगर, ये टिमटिमा रहे हैं' जो' ढलते कभी नहीं कितनी बड़ी है' भूल जरा आप सोचिये चीनी का' उनको' रोग टहलते कभी नहीं जो पाव लड़खड़ाए' तो' गिरना है' सोच लो ऊँचाइयों की' ओर फिसलते कभी नहीं 'आकाश' हौसलों की' भले बात लाख हो पर वक्त के मा'रे तो' सं'भलते कभी नहीं गीतिका- आकाश महेशपुरी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 |
23-02-2016, 01:18 PM | #2 |
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Re: गीतिका- ये स्वप्न...
[quote=आकाश महेशपुरी;557505]
ये स्वप्न मेरे' स्वप्न हैं' फलते कभी नहीं। बंजर में' जैसै' फूल निकलते कभी नहीं।। उपदेश दे रहे हैं' हमें रोज क्या कहें, सच्चाइयों की' राह जो' चलते कभी नहीं। .... गीतिका- आकाश महेशपुरी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ उक्त ग़ज़लनुमां गीतिका पढ़ कर आनंद मिला. इसके हर शे'र में आपने ज़िंदगी का फ़लसफ़ा भर दिया है जैसे. धन्यवाद, आकाश जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
23-02-2016, 05:11 PM | #3 | |
Diligent Member
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Re: गीतिका- ये स्वप्न...
[QUOTE=rajnish manga;557507]
Quote:
महोदय, हिन्दी ग़ज़ल ही गीतिका है। कई विद्वानों द्वारा हिन्दी ग़ज़ल को गीतिका नाम से लिखा जा रहा है| सादर!🙏 |
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23-02-2016, 08:31 PM | #4 |
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Re: गीतिका- ये स्वप्न...
[QUOTE=आकाश महेशपुरी;557505]
माना यहाँ है' रात कहीं धूप है मगर, ये टिमटिमा रहे हैं' जो' ढलते कभी नहीं --- जो पाव लड़खड़ाए' तो' गिरना है' सोच लो ऊँचाइयों की' ओर फिसलते कभी नहीं --- 'आकाश' हौसलों की' भले बात लाख हो पर वक्त के मा'रे तो' सं'भलते कभी नहीं
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