05-04-2011, 07:31 PM | #11 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
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05-04-2011, 07:32 PM | #12 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
भगवन ने उल्टा सवाल दाग दिया, अच्छा ये बताओ कि एक शहर में कुल मिलाकर कितने मंदिर मस्जिद होंगे? मैंने जवाब दिया सारे धार्मिक स्थल मिला कम से कम 30-40 तो होंगे ज्यादा भी हो सकते हैं। ये सुन भगवन मुस्कराने लगे, मैंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला, “अब मैं तुम्हारे 33 करोड़ भगवानों का गणित समझ गया इसलिये”। बात काट हमने कहा फिर काहे मंदिर के अंदर की मूर्त को इतना सजा के क्यों रखा जाता है जब आप वहाँ नहीं रहते। तुम खुद सोचो कोई किसी पत्थर के अंदर कैसे रह सकता है, भगवन ने पलट वार किया। हर इंसान के अंदर मेरा भी एक अंश रहता है लेकिन उसे कोई नहीं ढूंढता, तुमने जो राम कृष्ण गिनाये थे वो क्या पत्थर से निकले थे।
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05-04-2011, 07:33 PM | #13 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
ने कहा नहीं, बात में वजन था, सोचने लगा बात तो सही है वो भी हमारी ही तरह इंसान थे और अंत में इंसानों की तरह मृत्यु को प्राप्त हुए अब भला भगवान कैसे मर सकते हैं। कैसे भला एक बहलिया एक तीर से भगवान को मार सकता है, भगवान की संतान भी भगवान होनी चाहिये फिर लव-कुश को काहे लोग नहीं पूजते। भगवान के माँ-बाप भी भगवान होने चाहिये फिर दशरथ सिर्फ एक राजा बनके क्यों रह गये इतिहास के पन्नों पर। मैं खुद ही अपने सवालों में उलझने लगा था।
सामने रोड दिखायी देने लगी थी यानि कि मैं फिर सही रास्ते पर आने वाला था। रोड पर पहुँच मैं किसी गाड़ी का इंतजार करने लगा। दूर से एक गाड़ी आ रही थी, सोचा जब तक गाड़ी पास आती है क्यों ना एक सवाल और दाग दिया जाय। अच्छा प्रभु ये बताईये कि यहाँ इंसान एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो रहे हैं, आतंकवाद, धार्मिक उन्माद, भूकंप, बाढ़, प्राकृतिक आपदायें ये सब क्यों? सुख और खुशी के साथ सब मिलकर क्यों नहीं रहते ? भगवन बोले, “बेवकूफ अगर ये सब ठीक कर दिया तो धरती स्वर्ग ना हो जायेगी, जब कोई दुख ही नहीं रहेगा तो फिर मुझे कौन पूछेगा“।
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05-04-2011, 07:33 PM | #14 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
मुझे अपने को बेवकूफ कहे जाने पर बड़ा गुस्सा आया, जंगल निकल चुका था अब इतना डर भी नहीं था इसलिये नाराजगी दिखाने के लिये पीछे मुड़ा तो देखा वहाँ कोई नहीं । जो इतनी देर से अपने को भगवान बता रहा था उसका दूर-दूर तक कोई पता नहीं । सिर्फ जंगल दिखायी दे रहा था, अपनी तो खोपड़ी ही घूम गई तभी बस वाले ने जोर से होर्न बजाया, मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। घड़ी का अलार्म बज रहा था, 7 बज गये थे यानि कि काम पर जाने का वक्त हो गया था । मैं आँखें मलता बाथरूम की ओर चल दिया। पड़ोस से कहीं गाने की आवाज आ रही थी
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान। मांगों का सिंदूर ना छूटे, माँ बहनों की आस ना टूटे, देह बिना भटके ना प्राण, सबको सन्मति दे भगवान। ओ सारे जग के रखवाले, निर्बल को बल देने वाले, बलवानों को दे दे ज्ञान, सबको सन्मति दे भगवान।। मैं तैयार हो आफिस को चल दिया, रास्ते में हर आदमी को गौर से देखता जा रहा था सोच रहा था आज से सबके साथ प्यार से पेश आना है, सबको इज्जत देनी है क्योंकि किसे क्या पता ना जाने किस भेष में नारायण मिल जाय।
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05-04-2011, 07:36 PM | #15 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
बहुत बढिया फेज भाई जारी रखो ..
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05-04-2011, 08:38 PM | #16 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
बहुत ही बढिया प्रस्तुति फ़ेज भाई । भगवान और आपकी भेट की दास्ता तो हमे मालूम चल गयी । बहुत अच्छा अनुभव रहा आपका ।
क्या आपको कभी इंसान भी मिला क्या । मै तो ढुढ रहा हूं इस दुनिया में कही मुझे इंसान ही नही मिला अगर आपको मिला हो तो उसकी भी दास्तान हमे सुनाये ।
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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05-04-2011, 09:16 PM | #17 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
अब तो ख़तम हो गया सागर भाई
@ फैज भाई मजा आ गया, भाई किस्मत वाले हो जो इतनी आसानी से भगवान् मिल गए
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-04-2011, 09:21 PM | #18 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
मैं समझ गया जनाब अप ही का तो अनुसरण कर रहा हूँ शायद कोई मिल जाए
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05-04-2011, 09:22 PM | #19 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
आमीन ................
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09-11-2012, 10:18 PM | #20 |
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
साजिद भाई, भगवान से आपकी मुलाक़ात और उनसे सवाल-जवाब चलते रहे चलते रहे. यात्रा कब अपनी मंजिल पर पहुँच गयी ज्ञात ही न हुआ. कृपया खोजबीन जारी रखें और विवरण देते रहें. हमें प्रतीखा रहेगी.
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