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Old 18-01-2011, 11:07 AM   #11
arvind
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arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
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Originally Posted by kumar anil View Post
आपके विचारोँ से अक्षरशः सहमत हूँ । आतंकवादियोँ को किसी भी तरह का प्रश्रय नहीँ मिलना चाहिये । इनके लिये तो आदिमयुगीन कानून का निर्माण हो और कठोर कार्यवाही कर उनके निर्ममतापूर्वक दमन से अन्य के लिये एक संदेश प्रसारित होना चाहिये ताकि ऐसी मिसाल से , गतिविधियाँ करने से पूर्व उन्हेँ सौ बार सोचना पड़े ।
करना तो दूर कल्पना मात्र से ही उनकी रुह फना हो जाये ।
अरविन्द जी सूत्र का विषय स्पष्ट नहीँ हो पा रहा है ।
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
मेरे विचार से तो यह इस 'वकील व्यवस्था' की नपुंसकता भी लगती है कि जिस व्यक्ति को पूरी दुनिया ने बन्दूक लिए गोली चलाते खुद देखा उसे भी दोषी सिद्ध करने की आवश्यकता लगी | काश इन अंग्रेजों ने एक भी चीज सही सलामत इजाद की होती |

खैर इसे जो भी सज़ा मिले वो कम है किन्तु लाल रंग की लाइनों पर मेरी आपत्ति है | मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |
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Originally Posted by ndhebar View Post
बहुत खूबसूरत बात कह डाली भाई
आखिर कुछ तो अंतर होना चाहिए इंसान और शैतान में
अमित जी और निशांत जी,

आपकी भावनाये बहुत ही संस्कारपूर्ण है, मै इसकी इज्ज़त करता हूँ, पर अब बहुत हो चुका निर्दोष लोगो का खून-खराबा, अब फिर कही इस तरह के नापाक कुकर्म देखता या सुनता हूँ तो आत्मा धिक्कारती है मुझे, पर अफसोस, एक कमजोर आदमी की तरह कुछ ना करके यहा मन की भड़ास निकाल लेता हूँ।

मै अनिल भाई के विचारो का पूर्णत समर्थन करता हूँ।
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Old 19-01-2011, 08:42 AM   #12
Kumar Anil
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शरीफ , शिक्षित और सज्जन के भीतर कायरता वास करती है क्योँकि हमे भले बुरे और नैतिक अनैतिक , विधिक अविधिक का ज्ञान भली भाँति बाँट दिया जाता है । आतंकवाद को उग्रवाद और अतिवाद की संज्ञा से विभूषित करने के लिये हम मानवाधिकारी मुखौटे लगा कर कहीँ न कहीँ मानवता के इन दरिन्दोँ की हिमायत कर उनकी नर्सरी को या यूँ कहेँ अब उनके विशाल दरख्तोँ को भयावह जंगल मेँ तब्दील कर रहे हैँ । पंजाब को राजनैतिक चश्मे की वजह से आतंकवाद का शिकार बनना पड़ा था । तथाकथित मानवाधिकारी दुकान चलाने वाले , बैठकोँ मेँ चाय की चुस्कियाँ ले रहे प्रबुद्धजन , पीत पत्रकारिता करने वाले पत्रकार , देश सेवा का खोमचा लगाये राजनीतिक दलोँ ने माहौल को अभूतपूर्व बनाते हुये नये शब्द नयी परिभाषायेँ भले ही गढ़ डाली लेकिन समस्या के छोटे छोटे भुनगोँ को आतंकवादी बनाने मेँ भी परोक्षतः कोई कसर नहीँ छोड़ी । नतीजा इसके पोषक की निर्मम हत्या और देश के प्रगतिचक्र की गतिहीनता के रूप मेँ सामने आया । आखिर इसके पीछे हमारे प्रशासकोँ की कमजोर इच्छाशक्ति और प्रबुद्धजन का बौद्धिक दिवालियापन नहीँ है ? जब हमारा शीर्ष निकम्मेपन से बाज नहीँ आयेगा तब कुढ़ते हुये जनसामान्य के भीतर प्रतिशोध की , प्रतिकार की भावनायेँ बलवती होकर क्या अरविन्द और अनिल के रूप मेँ सामने नहीँ आयेँगी । इनकी परिवर्तित मानसिकता के पीछे तन्त्र की नपुँसकता ही है शायद । नपुँसक किसी को जन्म तो नहीँ दे सकता । हाँ , केवल और केवल समस्या को पैदा कर सकता है और पुरुषार्थ दशा और दिशा को जन्म देकर समस्याओँ को मौत के मुँह मेँ सुलाता है । ऐसा ही हुआ था जब इच्छाशक्ति ने अँगड़ाई ली थी पुरुषार्थ जागा था और जे एफ रिबेरो के रूप मेँ आतंकवाद कुचला गया था । क्या गेँहू क्या घुन सब को पीस दिया था । आखिर घुन को भी तो साथ रहने की सजा मिलनी ही चाहिये ।
__________________
दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 19-01-2011, 05:14 PM   #13
Kumar Anil
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
मेरे विचार से तो यह इस 'वकील व्यवस्था' की नपुंसकता भी लगती है कि जिस व्यक्ति को पूरी दुनिया ने बन्दूक लिए गोली चलाते खुद देखा उसे भी दोषी सिद्ध करने की आवश्यकता लगी | काश इन अंग्रेजों ने एक भी चीज सही सलामत इजाद की होती |

खैर इसे जो भी सज़ा मिले वो कम है किन्तु लाल रंग की लाइनों पर मेरी आपत्ति है | मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |
कमजोर इच्छाशक्ति , दुर्बल और मूक प्रशासन की विकलांगता एवं लचर , लटकाऊ कानूनोँ मेँ घिरे 26 /11 के ह्रदयविदारक झंझावात मेँ यदि मैँने अपना अजीज खोया होता तो क्या मैँ प्रतिकार की भावना मेँ न जल रहा होता या फिर आजतक न्याय न मिल पाने की स्थिति मेँ मेरी मनोदशा क्या होती ? जब न्याय से भरोसा उठता है या न्याय मेँ विलम्ब होता है तभी व्यवस्था के प्रति उपजे प्रतीकात्मक विद्रोह के फलस्वरूप स्वयं को शोषित और सर्वहारा मानकर व्यक्ति अपना कानून बनाकर न्याय करने के लिये विवश होता है ।
__________________
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Old 19-01-2011, 09:26 PM   #14
YUVRAJ
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हम किसी को बुरा समझे इससे पहले हमें सजग होना होगा ..... आज जो भी स्थिती है उसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं ...चन्द लोगों के लिए हमनें अपने ही घर में विभीसण पैदा किये ...क्या आपने कभी सोचा कि एक राष्ट्रीय धरोहर {bm या rm कहो} को हमनें नेस्ताबून्द क्यूँ किया !!! दोस्तों प्यार से कोई भी जंग जीती जा सकती है ...नफरत के लिए एक पल का हजारावां हिस्सा ही काफी है ...अभी भी वक्त है समाज को वर्गीकृत न करें और हर कौम को बराबर का सम्मान दें ...ताकी हम वापस से गंगा-जमुना संस्कृती को नयी जान दे सकें ...
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Old 19-01-2011, 10:35 PM   #15
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यह हमारी व्यक्तिगत राय है समाज के लिये... अतः आग्रह है कि फोरम परिवार इसे व्यक्तिगत न समझे ...
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Old 20-01-2011, 06:01 AM   #16
Kumar Anil
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युवी भाई ,
आपके विचार नेक हैँ और आज के दौर मेँ यदि सबके विचार ऐसे ही हो जायेँ तो जन्नत यहीँ बन जाये । मैँ आपके जज्बे को सलाम करता हूँ ।
लेकिन
सूत्र का जो विषय है उस सन्दर्भ मेँ आपकी प्रतिक्रिया अवशेष है , प्रतीक्षित है । मैँ आपकी सुसंगत सारगर्भित टिप्पणी का इन्तजार कर रहा हूँ
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Old 20-01-2011, 10:28 AM   #17
harigupta
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harigupta is on a distinguished road
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Originally Posted by YUVRAJ View Post
यह हमारी व्यक्तिगत राय है समाज के लिये... अतः आग्रह है कि फोरम परिवार इसे व्यक्तिगत न समझे ...
ye kya hai dosto ? agar vyaktigat hai to vyaktigat kyon naa samjhein kuch samajh nahi aaya ? kripya spasht kar dein.

mere vichar se kaanoon ke andar bhi pecheedgi bhi isliye hee hain ki ham log kisi bhi baat par ek mat nahi ho paate hain.

dhyan rakhein ki kaanoon ko sabka dhyan rakhna padtaa hai, isliye kaanoon se pecheedgi ko samapt karna mushkil hee nahin naamumkin hai.

thanks.
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Old 21-01-2011, 09:47 AM   #18
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आप इसे सिर्फ खुद के लिये न समझें ...
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Originally Posted by harigupta View Post
ye kya hai dosto ? Agar vyaktigat hai to vyaktigat kyon naa samjhein kuch samajh nahi aaya ? Kripya spasht kar dein.

.................................................. .
.......................
Thanks.
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Old 21-01-2011, 10:33 AM   #19
amit_tiwari
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amit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to behold
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Originally Posted by arvind View Post
अमित जी और निशांत जी,

आपकी भावनाये बहुत ही संस्कारपूर्ण है, मै इसकी इज्ज़त करता हूँ, पर अब बहुत हो चुका निर्दोष लोगो का खून-खराबा, अब फिर कही इस तरह के नापाक कुकर्म देखता या सुनता हूँ तो आत्मा धिक्कारती है मुझे, पर अफसोस, एक कमजोर आदमी की तरह कुछ ना करके यहा मन की भड़ास निकाल लेता हूँ।

मै अनिल भाई के विचारो का पूर्णत समर्थन करता हूँ।
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Originally Posted by kumar anil View Post
शरीफ , शिक्षित और सज्जन के भीतर कायरता वास करती है क्योँकि हमे भले बुरे और नैतिक अनैतिक , विधिक अविधिक का ज्ञान भली भाँति बाँट दिया जाता है । आतंकवाद को उग्रवाद और अतिवाद की संज्ञा से विभूषित करने के लिये हम मानवाधिकारी मुखौटे लगा कर कहीँ न कहीँ मानवता के इन दरिन्दोँ की हिमायत कर उनकी नर्सरी को या यूँ कहेँ अब उनके विशाल दरख्तोँ को भयावह जंगल मेँ तब्दील कर रहे हैँ । पंजाब को राजनैतिक चश्मे की वजह से आतंकवाद का शिकार बनना पड़ा था ।


जब हमारा शीर्ष निकम्मेपन से बाज नहीँ आयेगा तब कुढ़ते हुये जनसामान्य के भीतर प्रतिशोध की , प्रतिकार की भावनायेँ बलवती होकर क्या अरविन्द और अनिल के रूप मेँ सामने नहीँ आयेँगी । इनकी परिवर्तित मानसिकता के पीछे तन्त्र की नपुँसकता ही है शायद । नपुँसक किसी को जन्म तो नहीँ दे सकता । हाँ , केवल और केवल समस्या को पैदा कर सकता है और पुरुषार्थ दशा और दिशा को जन्म देकर समस्याओँ को मौत के मुँह मेँ सुलाता है । ऐसा ही हुआ था जब इच्छाशक्ति ने अँगड़ाई ली थी पुरुषार्थ जागा था और जे एफ रिबेरो के रूप मेँ आतंकवाद कुचला गया था । क्या गेँहू क्या घुन सब को पीस दिया था । आखिर घुन को भी तो साथ रहने की सजा मिलनी ही चाहिये ।
कदाचित मैं स्वयं को स्पष्ट नहीं कर पाया |
मैंने दोषी को कठोर दंड दिए जाने का विरोध नहीं किया, मेरा विरोध मात्र जन सामान्य को हत्यारा बनाने पर है |
मेरे विचार से ज्यादा उचित है की हम कितनी जल्दी निर्णय लेते हैं, ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता | डेढ़ साल तक बिरयानी खिलाके, उसे उर्दू का ट्रांसलेटर दिला के ऐसे भी तथाकथित नेतृत्व ने पिलपिले होने का प्रमाण दे ही दिया है |

अनिल भाई आपकी नेतृत्व की निकम्मेपन वाली बात से सहमत होना लाजिमी है | श्रीमती इंदिरा गाँधी और बेअंत सिंह की हत्या के बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति राजनीतिक पटल से गायब हो चुकी है | अब राजनीति एक कैरियर है जिसे नेता और जनता दोनों ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं |
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके | शायद इसीलिए ये टुच्चे अनपढ़ नेता बने बैठे हैं | अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? कोई एक कारण? कारण है कि उन्होंने नाला खुदवाने, हैंडपंप लगवाने और जाती बिरादरी की बातें नहीं की |

यदि मैं विषय से दूर जा रहा हूँ तो क्षमा चाहूँगा किन्तु आगे की पंक्तियाँ समस्या के दुसरे पहलु को उजागर करती हुई हैं |
हम अपनी औपनिवेशिक सोच से आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हैं | कोई स्वीकारे या ना स्वीकारे किन्तु आज भी आरक्षण का वादा करने वाला संसद विधायक चुनाव जीत जाता है और कोई माई का लाल प्रधानमंत्री आरक्षण हटाने का बूता नहीं रख पाया | कारण सीधा है कि लोग समझते हैं आरक्षण से बड़ा भला होने जा रहा है, क्या सच में ? जरा सोचिये अभी भी भारत में असंगठित क्षेत्र से ८० प्रतिशत रोजगार आता है और असंगठित क्षेत्र में सरकारी आरक्षण लागू हो नहीं सकती, बचे बीस प्रतिशत में भी सरकारी हिस्सा ४०% का ही है मतलब ९२% रोजगार के अवसरों में सरकारी आरक्षण का कोई दखल ही नहीं है, अब खुद सोचिये कि मात्र ८% के रोजगार में आधे का लालच दिखा कर यदि कोई दल, व्यक्ति सत्ता पर कब्ज़ा करता है तो वो धूर्त है या उस पर विश्वास करने वाला मतदाता | क्यों सरकारी नौकरी का इतना क्रेज़ है ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि बस एक बार जैसे तैसे करके घुस गए फिर तो जिंदगी भर खाते रहना है |
जब तक सुरक्षात्मक होना हमारे dna में है तब तक लूटने वाले लुटते रहेंगे, मारने वाले मारते रहेंगे |

दीर्घकालिक उपाय लोगों को लोगो को कुछ करने के लिए सिखाना नहीं उन्हें शिक्षित करना होगा कि उन्हें कैसे सही निर्णय लेना है | और वास्तविकता यह है कि अब वैश्विक चुनौती इतनी कठिन और दुरूह है कि जल्दी सीखते नहीं तो पिछड़ते ही चले जायेंगे |
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Old 21-01-2011, 10:45 AM   #20
amit_tiwari
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इस विषय के सामानांतर मैं दूसरा टोपिक उठाना चाहूँगा कि
अब आउटसोर्सिंग के बाद क्या? क्या समय अब आउटसोर्सिंग से आगे सोचने का नहीं है ? और क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बस किसी विकसित देश का सस्ता श्रम करने वाला बनाना चाहते हैं या काम देने वाला !!!
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