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Old 30-10-2014, 03:19 PM   #1
rafik
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Arrow विलुप्त होने की कगार पर कई जीव

माउण्टेन गोरिल्ला

अफ्रीका में पाया जाने वाला माउंटेन गोरिल्ला अपनी प्रजाति में सबसे ताकतवर और बड़ा जीव है, मगर वह बहुत शान्त भी है। उसकी छवि खूंखार और खतरनाक जानवर की बन गई है। इसका श्रेय किंग-कॉग और टारजन जैसी फिल्मों को जाता है, मगर इसका स्वभाव इससे बिल्कुल विपरीत है।
चिम्पांजी के बाद गोरिल्ला ही मनुष्य के सबसे करीबी रिश्तेदारों में माना जता है। इसका सबूत यह है कि इनका डीएनए 98 प्रतिशत मनुष्य के डीएनए से मिलता है। इनकी संख्या में इतनी गिरावट जंगलों की कटाई, सर्कस में इनके इस्तेमाल और इंसानी बीमारी मिजल्स की वजह से आई है।

जांइण्ट पाण्डा

चीन के घने जंगल में रहने वाले जांइण्ट पाण्डा भी विलुप्त होने की कगार पर खड़े हैं और इसकी एकमात्र वजह है-उनका प्रवास। यह दुनिया की एक ऐसी जगह है, जो किसी भी वाइल्ड कंजरवेशन प्रोजेक्ट चलाने के लिए बहुत ही कठिन है। वहां की जो भौगोलिक परिस्थितियां हैं, उसके चलते वाइल्ड कंजरवेशन प्रोजेक्ट चलाने में काफी परेशानियां आती हैं। इसी वजह से जइंण्ट पाण्डा का अस्तित्व भी खतरे में दिखाई पड़ रहा है।

ब्लू व्हेल

अंटार्कटिका की ब्लू व्हेल को विश्व का सबसे बड़ा प्राणी माना जाता है। कहा जाता है कि सबसे बड़ा जानवर अफ्रीकन हाथी भी उसकी जीभ पर खड़ा हो सकता है। अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर की परत में हुए छेद के कारण सूर्य से निकलती खतरनाक यूवी रेंज इन ब्लू व्हेल के खाने के स्रोतों को खत्म करती जा रही है। ब्लू व्हेल दुनिया की सबसे तेज बोलने वाला जीव भी है। यह फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल कर समुद्र के नीचे कई सौ मील तक अपने संदेश भेज सकती है। मगर पता नहीं आने वाली पीढ़ी इस अद्भुत प्राणी को देख पाएगी या नहीं।

द ब्लू पॉइजन डार्ट फ्रॉग

यह दुनिया के सबसे आकर्षक जानवरों में से एक है। इसकी त्वचा बेहतरीन रंगों से युक्त होती है, मगर इसकी खूबसूरती देख कर धोखा न खायें। इसकी त्वचा जानलेवा जहर से युक्त होती है और यह जानवरों को कुछ ही क्षणों में मौत के घाट उतार सकता है। इसकी त्वचा से निकलने वाले जहर को पेनकिलर्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में इन्हें मारा जाता है। यह साउथ अफ्रीका के वर्षा वाले वनों में पाये जाते हैं। लेकिन ये वन चार फुटबॉल ग्राउंड्स प्रति मिनट की दर से गायब हो रहे हैं।

बढ़ते प्रदूषण, कटते जंगल और दुनिया पर पड़ रहे बिगड़ते वातावरण का प्रभाव ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। मनुष्य को ही इन जानवरों को बचाने के लिए प्रयास करना पड़ेगा, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां इन जनवरों को केवल चित्रों में ही देख पाएंगी।

http://www.livehindustan.com/news/li...-50-78279.html
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जंगली भैंसा - एक लुप्त होता शानदार प्राणी

छत्तीसगढ़ के जंगलों से विलुप्त होती एक शानदार प्रजाति!

एशियाई जंगली भैसा (Bubalis bubalis arnee or Bubalus arnee) की संख्या आज 4000 से भी कम रह गई है । एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया मे बड़ी तादाद मे पाये जाने वाला जंगली भैसा आज केवल भारत नेपाल बर्मा और थाइलैंड मे ही पाया जाता है । भारत मे काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान मे ये पाया जाता है । मध्य भारत मे यह छ्त्तीसगढ़ मे रायपुर संभाग और बस्तर मे पाया जाता है ।
छ्त्तीसगढ़ मे इनकी दर्ज संख्या आठ है । जिन्हे अब सुरक्षित घेरे में रख कर उनका प्रजनन कार्यक्रम चलाया जा रहा है । लेकिन उसमें भी समस्या यह है कि मादा केवल एक है, और उस मादा पर भी एक ग्रामीण का दावा है, कि वह उसकी पालतू भैंस है । खैर ग्रामीण को तो मुआवजा दे दिया गया पर समस्या फ़िर भी बनी हुई है, यदि मादा केवल नर शावकों को ही जन्म दे रही है, अब तक उसने दो नर बछ्ड़ों को जन्म दिया है । पहले नर शावक के जन्म के बाद ही वन अधिकारिय़ों ने मादा शावक के जन्म के लिये पूजा पाठ और मन्नतों तक का सहारा लिया और तो और शासन ने तो एक कदम आगे जाकर उद्यान मे महिला संचालिका की नियुक्ति भी कर दी, ताकि मादा भैस को कुछ इशारा तो मिले, पर नतीजा फ़िर वही हुआ मादा ने फ़िर नर शावक को ही जन्म दिया।
शायद पालतू भैसो पर लागू होने वाली कहावत कि "भैस के आगे बीन बजाये भैस खड़ी पगुरावै" जंगली भैसों पर भी लागू होती है।



मादा अपने जीवन काल मे 5 शावकों को जन्म देती है, इनकी जीवन अवधि ९ वर्ष की होती है । नर शावक दो वर्ष की उम्र मे झुंड छोड़ देते है । शावकों का जन्म अक्सर बारिश के मौसम के अंत में होता है । आम तौर पर मादा जंगली भैसें और शावक झुंड बना कर रहती है और नर झुंड से अलग रहते हैं पर यदि झुंड की कोइ मादा गर्भ धारण के लिये तैयार होती है तो सबसे ताकतवर नर उसके पास किसी और नर को नही आने देता । यह नर आम तौर पर झुंड के आसपास ही बना रहता है । यदि किसी शावक की मां मर जाये तो दूसरी मादायें उसे अपना लेती हैं । इनका स्वभाविक शत्रु बाघ है, पर यदि जंगली भैसा कमजोर बूढ़ा या बीमार हो तो जंगली कुत्तों और तेदुये को भी इनका शिकार करते देखा गया है । वैसे इनको सबसे बड़ा खतरा पालतू मवेशियो से संक्रमित बीमारिया ही है, इनमे प्रमुख बीमारी फ़ुट एंड माउथ है । रिडंर्पेस्ट नाम की बिमारी ने एक समय इनकी संख्या मे बहुत कमी लाई थी ।
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जंगली भैंसा - एक लुप्त होता शानदार प्राणी

छत्तीसगढ़ के जंगलों से विलुप्त होती एक शानदार प्रजाति!

जब धोखा खागये कथित एक्स्पर्ट:
इन पर दूसरा बड़ा खतरा जेनेटिक प्रदूषण है, जंगली भैसा पालतू भैंसो से संपर्क स्थापित कर लेता है । हालांकि फ़्लैमैंड और टुलॊच जैसे शोधकर्ताओ का मानना है कि आम तौर पर जंगली नर भैसा पालतू नर भैसे को मादा के पास नही आने देता पर स्वयं पालतू मादा भैसे से संपर्क कर लेता है पर इस विषय पर अभी गहराई से शोध किया जाना बाकी है । मध्य भारत के जिन इलाकों में यह पाया जाता है, वहां की पालतू भैसें भी इनसे मिलती जुलती नजर आती है । इस बात को एक मजेदार घटना से समझा जा सकता है । कुछ वर्षो पहले बीजापुर के वन-मंडलाधिकारी श्री रमन पंड्या के साथ बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी की एक टीम जंगली भैसो का अध्ययन करने और चित्र लेने के लिये इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान पहुंची, उन्हे जंगली भैसो का एक बड़ा झुंड नजर आया और उनके सैकड़ो चित्र लिये गये और एक श्रीमान जो उस समय देश में जंगली भैसो के बड़े जानकार माने जाते थे, बाकी लोगो को जंगली भैसो और पालतू भैसो के बीच अंतर समझाने में व्यस्त हो गये तभी अचानक एक चरवाहा आया और सारी भैसों को हांक कर ले गया ।

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जंगली भैंसा - एक लुप्त होता शानदार प्राणी

छत्तीसगढ़ के जंगलों से विलुप्त होती एक शानदार प्रजाति!

अनुचित वृक्षारोपण:
मध्य भारत मे जंगली भैसो के विलुप्तता की कगार पर पहुंचने का एक प्रमुख कारण उसका व्यहवार है, जहां एक ओर गौर बारिश मे उंचे स्थानॊ पर चले जाते हैं, वही जंगली भैसे मैदानों में खेतों के आस पास ही रहते हैं और खेतो को बहुत नुकसान पहुचाते हैं । इस कारण गांव वाले उसका शिकार कर देते हैं । एक कारण यह भी है कि प्राकृतिक जंगलों का विनाश कर दिया गया है, और उनके स्थान पर शहरी जरूरतों को पूरा करने वाले सागौन साल नीलगिरी जैसे पेड़ो का रोपण कर दिया है। इनमें से कुछ के पत्ते अखाद्य है, इनके नीचे वह घास नही उग पाती जिनको ये खाते है, वैसे भी जंगली भैसे बहुत चुनिंदा भोजन करती है । इस कारण भी इनका गांव वालों से टकराव बहुत बढ़ गया है।


बेरवा पद्धति और जंगल में सन्तुलन
टकराव बढ़ने का एक कारण यह भी है, कि पहले आदिवासी बेरवा पद्धति से खेती करते थे । इसमे उनको ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ती थी । जंगल के टुकड़े जला कर उनमे बिना हल चलाये बीज छिड़क दिये जाते थे । राख एक बेहद उत्तम उर्वरक का काम करती थी। पैदावार भी बहुत अच्छी मिल जाती थी । इसके अलावा जंगलो में कंदमूल और फ़ल भी प्रचुरता से मिल जाते थे। यदा कदा किये जाने वाले शिकार से भी उन्हे भोजन की कमी नही होती थी। वे खेती पर पूर्ण रूप से निर्भर नही थे । इसलिये वन्य प्राणियों द्वारा फ़सल में से कुछ हिस्सा खा लिये जाने पर इनमे बैर भाव नही आता था । और हर दो या तीन साल मे जगह बदल लिये जाने के कारण पिछ्ली जगह घास के मैदान बन जाते थे। वन्य प्राणियों को चारे की कोई कमी नही होती थी। अतः यदा कदा किये जाने वाले शिकार से उनकी संख्या मे कोइ कमी नही आती थी ।



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जंगली भैंसा - एक लुप्त होता शानदार प्राणी

छत्तीसगढ़ के जंगलों से विलुप्त होती एक शानदार प्रजाति!

आदिवासियों के अधिकारों का हनन वन्य जीवों के लिए बना संकट
अब चूंकि आदिवासियों के पास स्थाई खेत हैं, जिनकी उर्वरता उत्तरोत्तर कम होती जाती है। और इनमे हल चलाना खरपतवार निकालना और उर्वरक डालने जैसे काम करने पड़ते है, जिनमे काफ़ी श्रम और पैसा लगता है । इसके अलावा खेतों की घेराबंदी के लिये बास बल्ली और अन्य वन उत्पाद लेने की इजाजत भी नही है, अतः अब आदिवासी अपनी फ़सलों के नुकसान पर वन्य प्राणियो के जानी दुश्मन हो जाते हैं । इन्ही सब कारणो से जंगली भैसे आज दुर्लभतम प्राणियों के श्रेणी मे आ गये हैं ।

खैर यह सब हो चुका है और इस नुकसान की भरपाई करना हमारे बस में नही है । लेकिन एक जगह ऐसी है जो आज तक विकास के विनाश से अछूती है। वह जगह आज भी ठीक वैसी है जैसा प्रकृति ने उसे करोड़ो सालों के विकास क्रम से बनाया है, जहां आज भी बेरवा पद्धति से खेती होती है, और जहां आज भी वनभैसा बड़े झुंडो में शान से विचरता देखा जा सकता है, जहां बड़ी संख्या में बाघ भालू ढोल पहाड़ी मैना और अनेक अन्य जानवर शांति से अपना अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जहां प्रकृति प्रदत्त हजारों किस्म की वनस्पतियां पेड़ पौधे जिनमे से अनेक आज शेष भारत से विलुप्त हो चुके है, फ़ल फ़ूल रहे हैं।



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]जंगली भैंसा - एक लुप्त होता शानदार प्राणी

छत्तीसगढ़ के जंगलों से विलुप्त होती एक शानदार प्रजाति!


एक प्राकृतिक स्वर्ग को नष्ट करने की साजिश:
करीब 5000 वर्ग किलोमीटर के इस स्वर्ग का नाम है अबूझमाड़ । ना यहां धुंआ उड़ाते कारखाने है ना धूल उड़ाती खदाने । और ना ही वे सड़के हैं जिनसे होकर विनाश यहां तक पहुंच सके । पर यह सब कुछ बदलने वाला है और कुछ तो बदल भी चुका है । यहां पर रहने वाले आदिवासिय़ॊं को तथाकथित कामरेड बंदूके थमा रहे है । हजारो सालो तक स्वर्ग रही इस धरती पर इन स्वयंभू कामरेडो ने बारूदो के ढेर लगा दिये है । इस सुरम्य धरती पर इन लोगो ने ऐसी बारूदी सुरंगे बिछा दी है, जो सुरक्षा बलों आदिवासियों और वन्य प्राणियों में फ़र्क नही कर सकती । और सबसे बड़े खेद की बात तो यह है, कि जिन योजनाओ का डर दिखा कर इन्होने आदिवासियो को भड़्काया था, हमारी सरकार आज उन्ही को लागू करने जा रही है । अबूझमाड़ में बिना पहुंचे और कोई अध्ययन कराये यहां खदानो का आबंटन किया जा रहा है । और हमारे वंशजों की इस धरोहर को इसलिये नही बरबाद किया जायेगा, कि देश मे लौह अयस्क की कोई कमी है, बल्कि इस अयस्क को निर्यात करके पहले ही धन कुबेर बन चुके खदानपतियो का लालच अब सारी सीमाए तोड़ चुका है, और वे इतने ताकतवर हो चुके है, कि अब वे नेताओ के नही बल्की नेता उनके इशारो पर नाचते है। उनकी नजरो में वन्यप्राणी और आदिवासियों की कोई कीमत नही । प्राकृतिक असंतुलन ग्लोबल वार्मिंग नदियों का पानी विहीन होना और अकाल जैसे शब्दों का इनसे कोई वास्ता नही । जब तक दुनिया में एक भी जगह रहने लायक रहेगी तब तक इनके पास मजे से जीने का पैसा तो भरपूर होगा ही । इन्ही करतूतों से हमारे इन जंगलों में बची हुई जंगली भैंसों की आबादी भी नष्ट हो जायेगी!



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अफ्रीका में पाया जाने वाला माउंटेन गोरिल्ला
(लुप्त होती जा रही प्रजाति)



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Endangered Species

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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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अफ्रीका में पाया जाने वाला माउंटेन गोरिल्ला
(लुप्त होती जा रही प्रजाति)





रजनीश जी कृपया विस्तार से बताये ,हम इसकी जानकारी के इच्छुक है !
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बाघ
जंगल के शक्तिशाली जानवरों में से एक बाघ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हमारे देश भारत का यह राष्ट्रीय पशु है, लेकिन आज यह संकट में है। हालांकि इसके संरक्षण के लिए भारत के अलावा अन्य देशों की सरकारें भी प्रयासरत हैं, लेकिन पूरे विश्व में इसकी संख्या मात्र 3 से 4 हजार ही बची है। बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन तो विलुप्त हो चुकी हैं। बाकी को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत के अलावा बाघ पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान आदि में भी पाया जाता है। इसमें सुनने, देखने और सूंघने की गजब की क्षमता होती है। अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से यह शिकार करता है। जंगल में अकेले रहना इसे काफी पसंद है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और अवैध शिकार की वजह से बाघों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटी। भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर शुरू करके बाघों को संरक्षण देना शुरू किया है।
पोलर बीयर
पोलर बीयर ज्यादातर आर्कटिक सागर के आस-पास पाया जाता है। यह दिखने में काफी खूबसूरत होता है और इसे बर्फीले इलाकों में ही रहना पसंद है। पर आज पोलर बीयर काफी संकट में हैं। पूरे विश्व में कुछ हजार पोलर बीयर ही बचे हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है, जिससे इनके रहने की जगह में कमी आ रही है और दिन-प्रतिदिन इनकी संख्या घटती जा रही है।
गैंडा
भारी-भरकम जीव गैंडा को दरियाइ घोड़ा भी कहा जाता है। यह दुनिया के विशालतम जीवों में से एक है। इसका वजन चार सौ से छह सौ किलोग्राम तक होता है। लेकिन हम इंसानों द्वारा अवैध शिकार की वजह से इनका जीवन खतरे में है। सामान्यतया गैंडा अफ्रीका और साउथ एशिया में पाया जाता है। अपने देश भारत में पाया जाने वाला गैंडा एक सींग वाला होता है, जबकि अफ्रीका में दो सींग वाला गैंडा पाया जाता है। गैंडा की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले सींग ही इसकी मृत्यु का कारण बनते हैं। दरअसल इसके सींग ब्लैक मार्केट में काफी महंगे मिलते हैं। यह सोने से भी महंगे होते हैं। इसके अलावा इनके सींगों का इस्तेमाल पारंपरिक दवाओं के निर्माण में भी किया जाता है। वियतनाम में सबसे ज्यादा इसके सींगों की अवैध खरीद-बिक्री होती है। गैंडों की प्रजाति में से एक जवन राइनो की संख्या मात्र 50 से 60 बची है।
पेंग्विन
धरती के खूबसूरत प्राणियों में से एक पेंग्विन काफी तेजी से खत्म हो रहे हैं। इन्हें पानी और बर्फीले इलाके में रहना काफी पसंद है। इनकी खासियत है कि ये जमीन और समुद्र दोनों जगहों पर रह सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बर्फ के पिघलने और मछलियों की लगातार कमी से पेंग्विन के रहने और खाने का संकट हो रहा है, जिससे इनकी संख्या घटती जा रही है।
कछुआ
कछुआ पृथ्वी पर सबसे ज्यादा जीने वाली प्रजातियों में से एक है। यह कई सौ साल तक जीवित रह सकता है। यह जमीन पर भी चलता है और पानी के अन्दर भी। लेकिन आज इसकी सख्या में काफी कमी आ गई है। दिन-प्रतिदिन इसकी संख्या घटती ही जा रही है। कछुआ की कई प्रमुख प्रजातियां धरती से विलुप्त हो गई हैं और इन दिनों लेदरबैक टर्टल और जियोमेट्रिक टॉरटॉयज नामक प्रजाति पर खतरे के बादल सबसे अधिक मंडरा रहे हैं। साउथ अफ्रीका में पाए जाने वाले जियोमेट्रिक टॉरटॉयज की संख्या मात्र दो से तीन हजार ही बची है।
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इन पक्षियों पर भी मंडरा रहा खतरा...
गिद्ध

कुछ साल पहले तक काफी संख्या में गिद्ध (ईगल) देखे जाते थे, लेकिन आज ये तुम्हारे आसपास कम ही दिखते होंगे। यही हाल पूरी धरती का है। पिछले कुछेक दशक में गिद्धों की संख्या में बहुत तेजी से कमी आई है और आज यह संकटग्रस्त पक्षियों के वर्ग में सबसे ऊपरी पायदान पर पहुंच चुका है। अपने बड़े आकार और शवों व मांस को खाने के लिए मशहूर यह पक्षी झुंड में रहना पसंद करता है। इसकी चोंच काफी मजबूत होती है। पशुओं में दर्द निवारक दवा खाने के बाद होने वाली मौत और उनके शवों को खाने की वजह से गिद्धों की संख्या में काफी कमी आ गई है।
एराराइप मैनकीन
ब्राजील में पाई जाने वाली एराराइप मैनकीन धरती से विलुप्त होने वाले पक्षियों के वर्ग में है। पृथ्वी पर अब इसकी संख्या 50 से भी कम बची है। यह छोटी सी चिडिया दिखने में बेहद प्यारी और खूबसूरत होती है। नर चिडिया के सिर पर लाल रंग होता है, पेट सफेद और पंख काले रंग के होते हैं। इसकी आंखें भी लाल रंग की होती हैं, जबकि मादा चिडिया ऑलिव ग्रीन रंग की होती है। अपने खूबसूरत रंगों की वजह से ही यह काफी आकर्षक दिखती है और इसी वजह से इसका अत्यधिक शिकार हुआ।

गौरैया
घर-आंगन हर जगह फुदकने वाली प्यारी सी चिडिया गौरैया तेजी से दुर्लभ होती जा रही है। तुममें से अधिकांश बच्चों ने इसे अपने घर-आंगन में जरूर देखा होगा, क्योंकि यह प्यारी सी छोटी सी चिडिया घर-आंगन में रहना सबसे ज्यादा पसंद करती है। कुछ समय पहले तक यह विश्व में सबसे अधिक संख्या में पाई जाती थी, लेकिन आज इस पर भी विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। भारत के अलावा यह ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे कई देशों में पाई जाती है।

साइबेरियन क्रेन
सारस वर्ग की एक प्रमुख प्रजाति साइबेरियन क्रेन की संख्या काफी कम बची है। दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब और झील के पास ही इनका ठिकाना होता है, इसी वजह से ठंड के मौसम में ये दूर-देश से उड़कर आकर भारत में नदी और पानी वाले इलाके में रहने के लिए आते है और जब यहां पानी कम होने लगता है और गर्मी बढ़ने लगती है, तब वापस अपने देश को लौट जाते हैं। अवैध शिकार के कारण इनकी संख्या में भी कमी आ रही है।

शहरों से भागते पक्षी...
पहले जिधर देखो, रंग-बिरंगे, छोटे-बड़े चहचहाते पक्षी नजर आते थे, लेकिन अब हमारा आंगन, हमारी छतें ऐसे पक्षियों से सूने नजर आते हैं, क्योंकि अब इनमें से कई पक्षी लुप्त हो चुके हैं तो कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। वायु प्रदूषण के कारण हवा में विभिन्न प्रकार की जानलेवा गैसें मिल चुकी हैं, जिससे आसमान में जैविक संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका है। इसके दुष्परिणाम हमारे रंग-बिरंगे व कोमल, हमारे परिवेश के सुंदर-सुंदर पक्षी गौरैया, कौए, सोनचिरैया, कठफोड़वा और गिद्ध भुगत रहे हैं। इन पक्षियों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है।

ऐसा माना जा रहा है कि पिछले 500 वर्षों में पक्षियों की 154 प्रजातियों का सफाया हुआ है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या व रहने के लिए अतिक्रमण जैसे हालात ने पक्षियों के रहने की जगहों को तहस-नहस कर दिया है। इस सदी के अंत तक करीब 1,250 प्रजातियों के लुप्त होने की संभावना है। कुल 176 ऐसी पक्षी प्रजातियां हैं, जो दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलतीं। इनकी ऐसी अवस्था के लिए मानवीय क्रियाकलापों को जिम्मेदार माना जा रहा है। विलुप्तता की कगार पर पहुंची पक्षियों की प्रजातियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण पेड़ों की अवैध और अंधाधुंध कटाई है। पक्षियों का लगातार शिकार, उनका अवैध व्यापार व ग्लोबल वार्मिंग, ये सभी कारक उन्हें हमारी दुनिया से दूर कर रहे हैं। एक अध्ययन में ये खुलासा हुआ है कि शहरों की सड़कों व फ्लैटों के किनारे लगे पेड़-पौधों पर घोंसला बनाने वाले ये जीव गाडिम्यों के धुएं व शोर-शराबे के कारण अशांत रहते हैं और इसीलिए अब वहां से पलायन करने लगे हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 ऐसी पक्षी प्रजातियां हैं, जो विलुप्तता की कगार पर हैं।
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