17-11-2010, 07:25 PM | #1 |
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"पुष्प की अभिलाषा"
"पुष्प की अभिलाषा"
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूथा जाऊँ चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इतराऊँ मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक
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