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Old 06-06-2011, 03:08 PM   #1
arvind
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Default जीवन चलने का नाम।

दुनियाँ की सबसे डरावनी बीमारी का नाम है कैंसर है। कैंसर अगर गंभीर स्तर तक पहुंच गया है, तब तो लोग मान बैठते है की मौत बस चंद दिनो की बात है। पर, क्या किसी ने कैंसर पीड़ित व्यक्ति को आत्महत्या करते सुना है। उदाहरण खोजना मुश्किल होगा। वह सामने खड़े यमराज से आखिरी सांस तक लड़ता है। वहीं हम आसपास फूल-से किशोरों या स्वस्थ युवकों आत्महत्या करते पाते है। हाल में एक छात्र ने सुसाइडल नोट में लिखा - सौरी पापा, मैं आपके सपने को पूरा नहीं कर पाया। जिस छात्र ने अपने बारे में ऐसा मूल्यांकन किया, उसने खुद को पहचानने में भूल की। शायद उसे नहीं मालूम था कि जिस आदमी ने मानवता का नया इतिहास लिख दिया, वही आदमी आठवीं में इतिहास में बेहद कमजोर था। जी हां, हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी की। उन्हें इतिहास मे कम नंबर आते थे, पर वह अपने कर्मो से ऐतिहासिक बन गये।

पूर्व राष्ट्रपति डा० ए पी जे अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि आदमी को अपनी प्रतिभा की तुलना कभी अपने कॉलेज के रिपोर्ट कार्ड से नहीं करनी चाहिए। आत्महत्या कायरता है। काश, उस युवक ने लिखा होता, सौरी पापा, मेरे कम नंबर आये है, लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा। मैं अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल दुनियाँ को सुंदर बनाने मे करना चाहता हूं। अपना छोटा-सा ही सही, लेकिन योगदान देना चाहता हूं।
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Old 06-06-2011, 03:11 PM   #2
arvind
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन 12वी में दो बार फेल हुए। उनका वजीफा बंद हो गया। उन्हें क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी। इससे पहले उन्होने मैट्रिक की परीक्षा पहले दर्जे से पास की थी। जिस गवर्नमेंट कालेज में पढ़ते हुये वे दो बार फेल हुए, बाद मे उस कालेज का नाम बदल कर उनके नाम पर ही रखा गया। पटना सहित कई शहरों में उनके नाम पर शिक्षण संस्थान हैं। तब उनकी प्रतिभा को समझने वाले लोग देश में नहीं थे। उन्होने तब के बड़े गणितज्ञ जी० एच० हार्डी को अपना पेपर भेजा। इसमे 120 थ्योरम (प्रमेय) थे। उन्हें कैम्ब्रिज से बुलावा आया। फेलो ऑफ रॉयल सोसाइटी से सम्मानित किया गया। उनके सूत्र कई वैज्ञानिक खोजों में मददगार बने। अगर रामानुजम 12वीं में फेल होने पर निराश हो गये होते, तो कल्पना कीजिए, दुनियाँ को कितना बड़ा नुकसान होता। ठीक है, सभी रामानुजम नहीं हो सकते, पर यह भी अकाट्य सत्य है कि हर किसी कि अपनी विशिष्टता है। इस विशिष्टता का व्यक्तिगत व सामाजिक मूल्य भी है। इसे नष्ट नहीं, बल्कि पहचानने व मांजने कि जरूरत है। फ्रांस के इमाइल दुर्खीम आत्महत्या पर शोध करने वाले पहले आधुनिक समाज विज्ञानी है। 1897 में उनहोंने इसके तीन कारण बताये, जिनमें पहला है आत्मकेन्द्रित होना। व्यक्ति का समाज से कट जाना। जिंदगी को अकेलेपन मे धकेलने के बदले, आइए हम खुद को सतरंगी समाज का अंग बना दे।
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Old 06-06-2011, 03:13 PM   #3
arvind
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

पिछली सदी के दो बड़े नाम पूछे जायें, तो सहज ही महात्मा गांधी व आइंस्टीन के नाम आयेंगे। दोनों ही शुरुआती पढ़ाई में औसत थे। आइंस्टीन को तो मंदबुद्धि बालक माना जाता था। स्कूल शिक्षक ने यहां तक कह दिया था कि यह लड़का जिंदगी में कुछ नहीं कर पायेगा। बड़े होने पर वह पॉलिटैक्निक इंस्टीट्यूट की प्रवेश परीक्षा में भी फेल हो गये। हालांकि, उन्हें भौतिकी में अच्छे नंबर आये थे, पर अन्य विषयों में वह बेहद कमजोर साबित हुए। अगर वह निराश हो गये होते, तो क्या दुनियाँ आज यहां होती। उन्हें फादर ऑफ मॉडर्न फ़िज़िक्स कहा जाता है। जिंदगी के किसी मोड़ पर असफलता मिलते ही आत्मघाती कदम उठाने वाले युवा आइंस्टीन से सीख ले सकते हैं। युवाओ को सदी दिशा देने में अभिभावकों और शिक्षकों की भी अहम भूमिका हैं। हमारे यहां बुद्धिमता के बस दो पैमाने हैं - पहला मौखिक (वर्बल), जिसमें सूचनाओं का विश्लेषण करते हुए सवाल हल किये जाते हैं व दूसरा गणित या विज्ञान। देर से ही सही, अमेरिकी मनोविज्ञानी गार्डनर के विविध के सिद्धान्त को बिहार के स्कूलों में भी अपनाया जा रहा हैं। गार्डनर ने बताया कि बुद्धिमता आठ तरह कि होती हैं। इसीलिए गणित या अँग्रेजी में फेल हों या आईआईटी की प्रवेश परीक्षा मे असफलता मिले, तो हार न मानें। असफलता तो सफलता की सीढ़ी है। आइंस्टीन ने भी यही माना और अपने परिवार, पड़ोसी व गुरुजी को गलत साबित कर दिया। जो मानते हैं कि आप जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, उन्हे आप भी गलत साबित कर सकते है।
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Old 06-06-2011, 03:35 PM   #4
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

क्या गाँव, क्या शहर, होंडा का नाम सबने सुना हैं, पर यह बहुत कम लोगों नें सुना होगा कि कम्पनी के संस्थापक सोइचिरो होंडा ने जब टोयोटा कम्पनी में नौकरी के लिये इंटरव्यू दिया, तो इसमें वे फेल हो गये। उनका जीवन संघर्ष आज के युवाओं के लिए प्रेरक हैं। वे बहुत ही गरीब परिवार से थे। उनके पिता लोहार थे। साइकिल रिपेयर करने की दुकान थी। खुद होंडा को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली। वे 16 वर्ष की उम्र में टोक्यो पहुंचे। एक कम्पनी में अप्रेंटिशशिप के लिए आवेदन दिया। उनकी उम्र एक वर्ष कम थी, इसीलिए एक वर्ष तक मालिक के घर में काम करना पड़ा। अप्रेंटिशशिप के बाद नौकरी नहीं मिलने पर उन्हें अपने गाँव वापस लौटना पड़ा। वहाँ उन्होने स्कूटर रिपेयरिंग का कम शुरू किया। फिर धीरे-धीरे अपना पार्ट्स बनाया व बाद में पूरी मोटरसाइकल बना दी। आज उनकी कम्पनी दुनियाँ की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। 32 देशो में 109 उत्पादन केंद्र हैं। तीन डिपार्टमेंट हैं - टू व्हीलर, फॉर व्हीलर व पावर प्रॉडक्ट का। अब आज के युवा कल्पना करें कि नौकरी न मिलने पर उन्होने आत्मघाती कदम उठाया होता, को क्या आज अच्छी टेक्नालजी के लिए दुनियाँ में पहचान बनाने वाली होंडा मोटरसाइकिले चला पाते। होंडा ने कम्पनी का दर्शन भी शानदार तय किया। कम्पनी की तीन खुशियाँ हैं - उच्च क्वालिटी के उत्पादन की खुशी, उच्च क्वालिटी के प्रॉडक्ट की बिक्री की खुशी व खरीदने की खुशी। कॉलेज में फेल होना, जिन्दगी में फेल होना नहीं है। जिन्दगी आकाश जैसी है, जहां एक रास्ता बंद होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। हजारो दूसरे रास्ते हैं, जहां आप भी अपनी छाप छोड़ सकते है।
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Old 06-06-2011, 04:28 PM   #5
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है अरविन्द भाई
जिंदगी है तभी तो सब कुछ है अन्यथा कुछ भी नहीं
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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Old 06-06-2011, 04:40 PM   #6
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

बहुत अच्छे अरविन्द भाई आप के सुत्र को पढने वाले को एक नई प्रेणा मिले ऐसा उम्मीद करते हैँ
__________________
दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 06-06-2011, 05:01 PM   #7
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

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Originally Posted by ndhebar View Post
बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है अरविन्द भाई
जिंदगी है तभी तो सब कुछ है अन्यथा कुछ भी नहीं
जीवन ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य तोहफा है - इसे हर दिन जी भर के जिये।
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Originally Posted by khalid1741 View Post
बहुत अच्छे अरविन्द भाई आप के सुत्र को पढने वाले को एक नई प्रेणा मिले ऐसा उम्मीद करते हैँ
इस सूत्र का मकसद भी यही है।
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Old 06-06-2011, 05:36 PM   #8
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

अगर आशा के अनुरूप रिज़ल्ट आया तो ठीक है। लेकिन ग्रेडिंग आशानुरूप न आये, तो भी चिंता न करें। तनाव में न आये। ऐसा नहीं हैं कि कुछ कम अंक आने से आपका भविष्य चौपट हो जाएगा। ध्यान रखे कि अगर एक रास्ते अगर बंद होते हैं, तो हजार खुलते भी हैं। जीवन में अनेक अवसर आयेंगे। अगर ग्रेडिंग खराब हो तो बाद में कारणों पर विचार करें। अपने मित्र के रिज़ल्ट को देख कर तुलना कर तनावग्रस्त न हों।
  • पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी और ज्यादा है।
  • वो बच्चो का मनोबल बढ़ाते रहें।
  • बच्चो पर अनावश्यक दबाव ना डालें।
  • रिज़ल्ट खराब होने पर डांटे नहीं, क्योंकि वो खुद तनाव में रहतें है।
  • ऐसा कुछ नहीं करें जिससे बच्चे डिप्रेशन में चले जायें या कोई गलत कदम उठा लें।
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Old 06-06-2011, 05:37 PM   #9
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

एक बार परीक्षा में फेल होने पर निराश हो कर नशा करने या आत्महत्या की बात दिमाग में लानेवाले किशोर व युवा किंग रोबर्ट ब्रूस को याद करें। किंग ब्रूस व मकड़ी की कहानी दुनियाँ भर के बच्चे जानते हैं, जिसमें राजा छह बात लड़ाई हार कर भूखा और परेशान झोंपड़ी में बैठा हैं। सातवी बार हमला करने की प्रेरणा उसे मकड़ी से मिलती हैं। वह विजयी होता हैं। एडीशन को आप क्या कहेंगे, वे तो हजार बार फेल हो चुके थे। बिजली बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीशन को भी सभी जानते हैं, पर इस बात को सब नहीं जानते कि वे बल्ब बनाने में एक हजार बार फेल हो चुके थे। वे कहते थे, मैं फेल नहीं हुआ, बल्कि दुनियाँ का पहला आदमी हूँ, जो यह जानता है कि किन एक हजार तरीको से बल्ब नहीं बनाये जा सकते। इस बात को और भी कम लोग जानते हैं कि अमेरिका के आधुनिक और शक्तिशाली बनाने में एडीशन के आविष्कारों का कितना बड़ा योगदान हैं। वे न होते, तो 20वीं सदी शायद अमेरिका कि सदी नहीं बन पति। आखिर उन्होने 1093 आविष्कार किए। पटना में एक बच्चे ने नए कपड़े नहीं मिलने पर आत्महत्या कर ली, पर एडीशन को 12 वर्ष कि उम्र में अखबार बेचने का काम करना पड़ा। पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाने के कारण उन्हें तीन स्कूल से निकाल दिया था। एक शिक्षक ने उनकी मां से कहा, आपके बच्चे को दुनियाँ का कोई शिक्षक नहीं पढ़ा सकता । वे अटेंशन डेफ़िसिट डिसऑर्डर (add) के शिकार थे। ध्यान केन्द्रित करनेवाले खुद को असफल कदापि न मानें। अपनी प्रतिभा को पहचानें। आप भी जरूर सफल होंगे।

Last edited by arvind; 06-06-2011 at 05:39 PM.
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Old 06-06-2011, 05:41 PM   #10
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

आजकल टेंशन ज्यादा है। और-तो-और अब आठ साल का बच्चा भी कहता हैं की वह बहुत टेंशन में हैं। उधर, मम्मी-पापा भी टेंशन में हैं। बच्चो को डांट कर वो अपना टेंशन दूर करते हैं, पर बच्चे अपना टेंशन कैसे दूर करें। संयुक्त परिवार में एक ने डांटा, तो दो पुचकारने वाले थे। अब उसे समझनेवाला कोई नहीं हैं। इस भावनात्मक सपोर्ट के अभाव में न जाने कितने किशोरों को आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर किया। दुनियाँ के सर्वाधिक धनवान लोगों में एक बिल गेट्स का भी मन पढ़ाई में नहीं लगता था। वे हार्वर्ड में थे, पर पढ़ने के बजाय दिन भर कम्प्युटर पर टिप-टिप करते थे। उन्होने हार्वर्ड की पढ़ाई छोड़ दी। वे कम्प्युटर को इतना आसान बनाना चाहते थे की आम आदमी लाभ पा सके। इसके लिए उन्होने माइक्रोसॉफ़्ट कम्पनी बनायी, पर वे पहले प्रयास में सफल नहीं हुए। जल्द ही उन्हें सफलता मिली। उनके बनाए प्रोग्राम ने तहलका मचा दिया। 1987 में वे दुनियाँ के सबसे कम उम्र के अरबपति बन गये। कहानी यही खत्म नहीं होती। गेट्स ने टेक्नालजी का इस्तेमाल दुनियाँ की सबसे विकराल समस्या को दूर करने में लगाया। गरीबी, अशिक्षा व कुपोषण को खत्म करने का संकल्प लिया। गरीब मुल्कों में काम करना शुरू किया। गेट्स कहते है - टेक्नालजी मानवीय विकास के लिए होनी चाहिए। वे इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं। आपका भी मन अगर कोर्स की किताबों में नहीं लगता, तो कुंठा में जीने व आत्मघाती कदम उठाने के बजाय अपनी रुचि को पहचानिए, उसे सामाजिक उद्देश्य से जोड़िए। जल्द ही आपके सामने नयी दुनियाँ होगी।
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