04-06-2013, 02:39 PM | #1 |
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भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
आपको यदि यह कहा जाये कि हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के आरंभिक दिनों में खड़ी बोली के महान रचनाकार भारतेंदु हरिश्चंद्र और छायावाद के प्रवर्तकों में से एक व खड़ी बोली के मूर्धन्य साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने ग़ज़ल के क्षेत्र में भी कुछ प्रयोग किये तो शायद आपको विशवास न आएगा. भारतेंदु जी ने कुल मिला कर लगभग तीस ग़ज़लों की रचना की. इसी प्रकार प्रसाद जी की कुछ ग़ज़ल रचनाएं प्राप्त होती हैं. इन दोनों साहित्यकारोंकी एक एक ग़ज़ल यहां दी जा रही है. सर्वप्रथम आपके सम्मुख जयशंकर प्रसाद जी की कलम से निकली एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुये बहुत आनंद की अनुभूति हो रही है जिसमें उन्होंने खड़ी बोली का बहुत निराला प्रयोग किया है. Last edited by rajnish manga; 04-06-2013 at 03:03 PM. |
04-06-2013, 02:40 PM | #2 |
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Re: भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
एक ग़ज़ल
(रचनाकार: जयशंकर प्रसाद) सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं i उन्हें अवकाश ही इतना कहां है मुझसे मिलने का किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं i जो ऊंचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे देखते हर दम प्रफुल्लित वृक्ष की यह भूमि कुसुमागार करते हैं i न इतना फूलिए तरुवर सुफल कोरी कली ले कर बिना मकरंद के मधुकर नहीं गुंजार करते हैं i ‘प्रसाद’ उसको न भूलो तुम तुम्हारा जो कि प्रेमी हो न सज्जन छोड़ते उसको जिसे स्वीकार करते हैं i Last edited by rajnish manga; 04-06-2013 at 11:40 PM. |
04-06-2013, 02:42 PM | #3 |
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Re: भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
एक ग़ज़ल
(रचनाकार: भारतेंदु हरिश्चंद्र ‘रसा’) जहाँ देखो वहां मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है उसी का सब है जलवा जो जहां में आशकारा है तेरा दम भरते हैं हिंदु अगर नाकूस बजता है तुझे ही शैख़ ने प्यारे अज़ां देकर पुकारा है जो बुत पत्थर है तो काबे में क्या जुज़ खाको पत्थर है बहुत भूला है वह इस फ़र्क में सर जिसने मारा है गुनह बख्शो रसाई दो ‘रसा’ को अपने क़दमों तक बुरा है या भला है जैसा है प्यारे तुम्हारा है ** भारतेंदु जी के कुछ अन्य शे’र न बोसा लेने देते हैं, न लगते हैं गले मेरे अभी कम-उम्र हैं, हर बात पर मुझसे झिझकते हैं i मर गये हम पर न आये तुम खबर को ऐ सनम हौसला सब दिल का दिल ही में मेरी जां रह गया i उठा दुई का जो पर्दा हमारी आँखों से तो काबे में भी रहा बस वही सनमबारी i ** |
04-06-2013, 04:31 PM | #4 |
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Re: भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
nice collection
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04-06-2013, 07:36 PM | #5 |
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Re: भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
अद्भुत सूत्र है, रजनीशजी। प्रसाद और भारतेंदु की ये दुर्लभ रचनाएं फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
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05-06-2013, 08:27 PM | #6 |
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Re: भारतेंदु और प्रसाद की ग़ज़लें
एक और विस्मृत सी सामग्री को पटल पर प्रदर्शित करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु ...
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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