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Old 18-01-2013, 05:49 PM   #21
jai_bhardwaj
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” मै बात बात में आत्महत्या करने धमकी देती हूँ…एक पत्नी की मृत्यु से वह बेहद डरे और घबराए हुए है…अगर दूसरी भी चल बसी तो क्या होगा…यही सोच सोच कर घबरा जाते है उन्हें पसीने छूट जाते है!…मैं उनके अंदर के इसी डर का फायदा उठा कर अपनी मन-मानी करती हूँ!…मैं उनसे नफरत जो करती हूँ!”…अब कौशल्या के चेहरे पर मुस्कुराहट थी!

“…ये ठीक नहीं है कौशल्या!..अपनी सास को भी तुमने नौकरानी बना कर रखा हुआ है..और नीरज से इतनी नफरत क्यों करती हो?”

“…मेरी अपनी कोख से पैदा हुए ,नकुल और तुषार तो है ही!…नीरज की मुझे जरुरत नहीं है! वह दीदी का बेटा है ..उसकी चिंता मैंने अपने माँ-बापू पर छोड़ दी है और उसे पंजाब भिजवा दिया है!..मेरी अपनी बेटी कोई नहीं है सो मैं सुरेखा को प्यार से पाले हुए हूँ!…बड़ी होने पर धूमधाम से शादी भी कर दूंगी!…अगर अपनी बेटी होती तो सुरेखा को भी माँ-बापू के पास पंजाब भिजवा दिया होता…”…अब कौशल्या बिलकुल सामान्य हो गई थी!

“…तो तुम्हारे साथ जो हुआ…उसका तुम समाज से बदला ले रही हो…अपने माता-पिता और पति से बदला ले रही हो…और चाहती हो कि मैं तुम्हारा समर्थन करू?…तुम जो कर रही हो इसे सही बताऊँ?..बेचारी बूढ़ी सास को भी तुमने अपने बदले की आग में झौंक दिया..क्या ठीक कर रही हो तुम कौशल्या?”….मैं भी अब तैश में आ गई!

“….मै अपने इरादे की पक्की हूँ…मेरे साथ मेरे माँ-बाप, पति, सास और समाज ने जो अन्याय किया है उसका मुंह तोड़ जवाब यही है!…अरुणा!..मैं सही रास्ते पर चल रही हूँ!” ..कौशल्या अपने आप सही बता रही थी!

…इस मै कोई जवाब नहीं दे पाई!

….यह सच्ची कहानी है…पात्रों के नाम बदले हुए है!…क्या आप समझतें है कि कौशल्या अपनी जगह सही है और सही व्यवहार अपने पति. सास, बच्चें और समाज के साथ कर रही है ??
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Old 18-01-2013, 08:51 PM   #22
dipu
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Old 24-01-2013, 07:54 PM   #23
jai_bhardwaj
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तुम कौन हो ?

तुम इलाहाबाद के पथ पर
पत्थर तोड़नेवाली बाला नहीं
जिसे निराला ने देखा था

तुम शरत के उपन्यासों की नायिका नहीं,
लारेंस,काफ्का, मंटो और राजकमल की लेखनी ने तुम्हें नहीं रचा,
भीष्म साहनी की बासंती
या आलोकधन्वा की भागी हुई लड़कियों में भी
तुम्हारी गिनती नहीं हो सकती
तुम्हें मैं नारी मुक्ति आंदोलन की नायिकाओं की श्रेणी में भी नहीं पाता
तुम्हें पेट भरने के लिए फलवाले किसी पेड़ की तलाश भी नहीं
लेकिन उड़ने की कद्र की है तुमने
श्रम मूल्य है तुम्हारा पसीना
पसन्द है तुम्हे
यही मुझे अच्छा लगता है सोनचिरैया,यही।
(वेद प्रकाश वाजपेयी की कविता "सोनचिरैया" का अंश)

....बोए जाते हैं बेटे
उग आती है बेटियां
एवरेस्ट की चोटी तक ठेले जाते हैं बेटे
चढ जाती है बेटियां....(कवि का नाम पता नहीं)

महिला सशक्तिकरण के लगभग 102 साल पूरे होने वाले हैं। 1910 में महिला दिवस की घोषणा के बाद सबसे पहले 19 मार्च 1911 को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्वीटजरलैंड में यह पर्व मनाया गया।
1975 में अंतराष्ट्रीय महिला वर्ष के दौरान यूएन ने 8 मार्च को महिला दिवस के रुप में मनाना शुरु किया।
इतना लंबा सफर तय करने के बाद भी हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है..मुक्ति स्वप्न नहीं है..यहां लोहिया का एक कथन सटीक बैठता है..वह कहते हैंकि पुरुष स्त्री को प्रतिभासंपन्न और बुद्दिमति भी बनाना चाहता है और उसे अपने कब्जे में भी रखना चाहता है, जो किसी कीमत पर नहीं हो सकता...जब तक यह गैरबराबरी खत्म नहीं होती....स्वप्न अधूरा, क्रांति अधूरी....

बोल बोल कि लब आजाद हैं तेरे....

(अंतरजाल के सौजन्य से)
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Old 24-01-2013, 08:34 PM   #24
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Default Re: जीवन ज्योति

आपने आज इस सूत्र में प्रविष्ठि करके अति उत्तम कार्य किया, जय भाई। वरना यह हतभाग्य पता नहीं, न जाने कब तक इस अनुपम ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने से वंचित रहता। इस शानदार सूत्र के लिए आपको बधाई देना भी मैं अपर्याप्त मानता हूं, तथापि आभार।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 25-01-2013, 06:30 PM   #25
jai_bhardwaj
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उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सरधना क्षेत्र के गांव ईकड़ी ने एक नया इतिहास रच दिया है। इक्कीसवीं सदी में जिस देश

के बहुत सारे गांव अभी भी विद्युतीकरण से वंचित हों, वहां ईकड़ी ऐसा गांव है जहां रात में बिजली जाने पर भी अब

मुख्य मार्गों पर अंधेरा नहीं रहता है। रात में रोशन रहने के मायने में यह गांव देश के लिए मिसाल बनकर उभर रहा

है। यूं तो मेरठ जिला कई चीजों केलिए मशहूर रहा है, कभी नौचंदी मेले के लिए, कभी कैंची तो कभी खेल के सामान

केलिए। लेकिन पिछले कुछ समय से यह जिला अपराधों केलिए भी जाना जा रहा है। अपराधियों केलिए रात का अंधेरा

वारदातों को अंजाम देने केलिए सबसे मुफीद समय होता है। गांवों में रात में बिजली न होने केकारण अपराधियों

केहौसले बुलंद रहते हैं। वारदात के बाद अंधेरे का फायदा उठाकर अपराधी बेखौफ फरार हो जाते हैं। लेकिन ईकड़ी गांव में

हुआ प्रयोग कामयाब रहा तो बदमाशों केलिए अब रात में वहां भागना मुश्किल होगा। इसकी वजह यह है कि गांव की

स्ट्रीट लाइट बिजली गुल होने के बाद भी इन्वर्टर और बैटरी से जगमग रहेंगी। ईकड़ी शायद हिंदुस्तान का अकेला पहला

ऐसा गांव है जहां स्ट्रीट लाइट केलिए इन्वर्टर और बैटरी का इंतजाम किया गया है। ग्राम प्रधान अंजना त्यागी ने

फिलहाल मुख्य मार्गों पर तीन-तीन इमरजेंसी स्ट्रीट लाइटों के पांच सैट गांव में लगवाए हैं। अगर यह प्रयोग कामयाब

रहा तो इनकी संख्या बढ़ा दी जाएगी। इससे गांव को एक फायदा यह भी होगा कि रात में ग्रामीणों को आवागमन में

कोई परेशानी नहीं होगी। गांव के बाशिंदों में जहां सुरक्षा की भावना बढ़ेगी, वहीं उनकी जिंदगी की रफ्तार रात में भी

सुस्त नहीं होगी। रोजमर्रा के कामकाज निपटाने में भी सहूलियत होगी। रात में पूरे गांव का हमेशा रोशन रहना और

एक शानदार मिसाल बनकर उभरना दूसरे गांवों के लिए प्रेरणा का माध्यम बन सकता है।
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Old 25-01-2013, 06:32 PM   #26
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Default Re: जीवन ज्योति

अन्ना ने जब त्यागा अन्न,
पूरा देश रह गया सन्न ।

जनता ने जो दिया समर्थन,
भ्रष्टाचारी करें कीर्तन।

सत्ता हिल गई, नेता हिल गए,
राजनीति के अभिनेता हिल गए।

जनमानस में भर गया जोश,
देशद्रोहियों के उड़ गए होश।

जागृति की अलख जगा दी
गांधीजी की याद दिला दी।

चलती रहें जो ऐसी तदबीर,
देश की फिर बदले तकदीर।

(साभार : अंतरजाल )
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Old 26-01-2013, 04:38 PM   #27
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ये बुद्ध की धरती, युद्ध न चाहे- चाहे अमन परस्ती |

ये बुद्ध की धरती, युद्ध न चाहे- चाहे अमन परस्ती |
ये बुद्ध की धरती- बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि |

ये बुद्ध का भारत, प्रबुद्ध भारत, पूर्ण समर्थक शांति का,
पूर्ण समर्थक शांति का –
सम्मान बड़ा अहिंसा का यहाँ, मुंह काला निर्थक क्रांति का,
मुंह काला निर्थक क्रांति का –
जग वालो अमन का व्रत लेकर- जग वालो अमन का व्रत लेकर
संसार संवारो भ्रान्ति का –
है हिंसक नीती युद्ध की नीती धरो अहिंसक नीती ||
ये बुद्ध की धरती—
ये बुद्ध की धरती, युद्ध न चाहे- चाहे अमन परस्ती |
ये बुद्ध की धरती- बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि |

संसार को अपना घर समझो, गौतम ने अमर सन्देश दिया |
गौतम ने अमर सन्देश दिया –
जियो स्वयं और जीने दो, औरों को यही उपदेश दिया |
औरों को यही उपदेश दिया –
मानव को जहां मानवता दी, मानव को जहां मानवता दी
जीवन को वही उपदेश दिया |
है पतन की अर्थी और वह कुर्ती, आदर्शों की वुरती ||
ये बुद्ध की धरती –
ये बुद्ध की धरती, युद्ध न चाहे- चाहे अमन परस्ती |
ये बुद्ध की धरती- बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि |

जो बुद्ध ने मानव हित में किया, उस कार्य का उत्तम क्या कहना |
उस कार्य का उत्तम क्या कहना –
जनहित ही उनका था जीना, जनहित ही उनका था मरना |
जनहित ही उनका था मरना –
फिर सत्य अहिंसा शांति में - फिर सत्य अहिंसा शांति में,
क्या रिक्र हमारा हो गहना |
यह ज्ञान की ज्योति अखंड जलती, दमके सारी जगती ||
ये बुद्ध की धरती—
ये बुद्ध की धरती, युद्ध न चाहे- चाहे अमन परस्ती |
ये बुद्ध की धरती- बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि |
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Old 05-02-2013, 12:54 PM   #28
jai_bhardwaj
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प्यार का पोलिथिन

‘भारतीय रिजर्व बैंक’ का जारी किया हुआ सब नोट पर लिखा रहता है कि “मैं धारक को .....रुपये अदा करने का वचन देता हूँ. दस्तखत – गवर्नर – भारतीय रिजर्व बैंक.” जब छोटा थे तो सोचते थे कि यह लिखने का क्या जरूरत है? और यह बात सोचकर हंसी भी आता था कि दस रुपया के नोट के बदले में दस रुपया देने का वचन क्यों दे रहे हैं. यह तो जानते हैं कि दस रुपया के बदले में दस रुपया मिलेगा और सौ रुपया के बदले में सौ रुपया, इसमें वचन देने वाली कौन सी बात हो गयी !

जब बड़ा हुए, तब जाकर समझ में आया कि इसके पीछे क्या कारण है. असल में एक रुपया भारत सरकार का करेंसी होता है और उसके ऊपर का सब नोट, भारत सरकार के गारण्टी पर रिजर्व बैंक जारी करता है. इसीलिये रिजर्व बैंक के गवर्नर को वचन देने का जरूरत पड़ता है कि वह दस रूपये के बदले में भारत सरकार का एक रुपया वाला दस नोट अदा करेंगे. यह जानने के बाद कठिन से कठिन सवाल भी बहुते आसान लगने लगता है. बहुत-बहुत साल पहिले ‘हिन्दुस्तान टाइम्स” का एक साप्ताहिक टैबलॉयड आता था “मॉर्निंग ईको.” आठ-दस पन्ना का पत्रिका जैसा अखबार. उसमें एक कॉलम था “Something you never wanted to know, but were always asked” माने ऐसी बात जिसको जानना आपके लिये जरूरी नहीं, मगर जानने में नुकसान भी नहीं. कहने का मतलब कि हम जो ज्ञान ऊपर बाँच रहे थे, उसको इग्नोर भी कर सकते हैं आप लोग.

हाँ तो हम कह रहे थे कि जब गवर्नर का दस्तखत किया हुआ नोट हाथ में हो (जाली नोट को छोड़कर) तो उसको स्वीकार करने में त कोइ आपत्ति नहीं होना चाहिये किसी को. नेपाल में जब राजशाही था, तब नोट चाहे कितना भी गन्दा हो मगर उसको लौटा देना, चाहे लेने से मना कर देना, राजा का अपमान समझा जाता था. दुबई में भी हमने देखा है कि नोट चाहे कितना भी पुराना हो, चाहे कटा-फटा हो, लेने से कोई दुकानदार, बैंक, चाहे आदमी मना नहीं करता था.

मगर अपने देश में तो अजब हाल है. तनिक सा पुराना नोट, कोना से कटा हुआ नोट, बीच से मुड़कर जरा सा फटा हुआ नोट, कोई रिक्शा वाला, टैक्सीवाला, तरकारी वाला देखते ही तुरंत मना कर देगा लेने से. बोलेगा – दूसरा नोट दीजिए, ये नहीं चलेगा. अगर आपकी बात सुनकर और बिका हुआ माल वापस हो जाने का डर से वह मान भी गया, तो आपको ऐसी हिकारत भरी नजर से देखेगा कि आपको अपने ऊपर ग्लानि होने लगेगी . वैसे भी भी सारा दुनिया का चलन है कि नया नोट हाथ में आते ही दबाकर रख दिया जाता है और जिनते भी पुराने नोट हो, उन्हें ही पहले चलाने का कोशिश की जाती है. अब तो देश में आदमी के साथ भी यही होने लगा है. सज्जन आदमी दबा दिया जाता है और चोर सब खुल्ले घूमता रहता है.

ये मामला में गुजरात का अपना अलग ही रंग है. यहाँ के लोग पासे को हैं और गवर्नर का दस्तखत भी. बाकी नोट तो नोट ही होता है. अब बताइये भला कि सोना का कंगन अगर नाली में गिरा हुआ हो तो क्या उसका मोल कम होता है? नहीं न, तब भला गन्दा होने से रिजर्व बैंक के नोट वैल्यू कैसे कम हो सकती है ?


भावनगर में तो पाँच के नोट का अपना अलग ही पहचान है. गला हुआ नोट दो तह में मोडकर एक छोटे से पॉलीथीन में बंद कर दिया जाता है और वही नोट बाजार में चलता है. न लेने से कोई मना करता है, न देने में किसी आदमी को खराब लगता है. बहुत से देशों में चलता है प्लास्टिक का नोट, मगर यहाँ पर नोट को दुर्दशा से बचाने के लिए उसको प्लास्टिक में बंद करके रखा जाता है.

भावनगर में जब हम पहुँचे तो लोगों ने हमको मजाक में बताया कि इसको वरिष्ठ नागरिकों का शहर कहते हैं. जल्द ही यह हमें समझ में आ गया. सचमुच होटल (रेस्त्राँ) में देखिये तो पूरा परिवार अपने बुजुर्ग के साथ खाना खाता दिखाई देता है, पार्क में भी सब साथ साथ होते हैं. ऑफिस में भी आने वाला दस में से आठ आदमी सत्तर साल या उससे अधिक उमर का होता है. कमाल यह है कि जिसको आप मुस्कुराकर प्रणाम कर दिए वह आपके माथे पर हाथ रखकर आशीर्वाद देता हुआ जाता है.

बुजुर्गों का हमरे ऊपर हाथ होना तो अनमोल बात है, लेकिन भावनगर में उनका कीमत पाँच रुपया से अधिक नहीं हैं. चौंकिये मत, पाँच का नोट जैसा ही अपने बुजुर्ग को भी लोग हिफाजत से प्यार के पॉलीथीन में लपेट कर रखते हैं, उनकी झुर्रियों को समेटकर. ये लोग चाहे कितना भी पुराने क्यों न हो जाएँ, इनका चलन कभी नहीं रुकता है. यही लोग तो हमारा कल हैं, क्यों कि हमारा आज हमको इन्ही लोगों से ही तो मिला है।
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Old 05-02-2013, 02:13 PM   #29
bindujain
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ज्योति कलश छलके \- ४
हुए गुलाबी, लाल सुनहरे
रंग दल बादल के
ज्योति कलश छलके

घर आंगन वन उपवन उपवन
करती ज्योति अमृत के सींचन
मंगल घट ढल के \- २
ज्योति कलश छलके

पात पात बिरवा हरियाला
धरती का मुख हुआ उजाला
सच सपने कल के \- २
ज्योति कलश छलके

ऊषा ने आँचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आँचल के \- २
ज्योति कलश छलके

ज्योति यशोदा धरती मैय्या
नील गगन गोपाल कन्हैय्या
श्यामल छवि झलके \- २
ज्योति कलश छलके

अम्बर कुमकुम कण बरसाये
फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये
बिन्दु तुहिन जल के \- २
ज्योति कलश छलके
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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Old 09-02-2013, 05:21 PM   #30
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ईमानदारी भले ही बेस्ट पालिसी नहीं रह गई हो......लेकिन आपकी ईमानदारी एक ब्रांड तो है ही...अब बलबीर भाटिया को ही देख लीजिए...ऑटो चलाते है, लेकिन अपनी ब्रांडिंग करना नहीं भूलते। ईमानदारी को ही अपना यूएसपी बना लिया....टाटा और रिलायंस का अंतर समझते हैं। ख़ैर तस्वीर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ली गई है। दस लाख रूपए कम नहीं होते लेकिन ईमानदारी की भी भला कोई क़ीमत लगा पाया है।


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