27-10-2014, 12:39 AM | #1 |
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खयालों..... के..... समंदर
कभी ख़ुशी कभी ग़म देजाती ये खयालो की दुनिया कभी पुरानी यादों की बारात ले आती ये ख्यालों की दुनिया कभी आँखों में खुशियों के सपने भर जाती ये ख्यालों की दुनिया कभी खोकर अतीत के झरोखों में छलक जाती आँखे बह जाते आंसू कभी याद आती नन्ही सी प्यारी सी अपनी सी वो दुनिया कभी हम भटकते ख्यालों के बंजर जमीं पर ... कभी उड़ते पंख लगा के बनते गगन पर पंछी कभी तैर के जाते बहते ख्यालों के समन्दर खयालो में जब तुम एकबार आ जाते कभी तब हम खुद को ही भूल से जाते वो जीवन की सरिता जहाँ थी वो ममता थी खयालो की गरिमा खयालो की दुनिया जहा बस ही यूं जाये, जी जाएँ हम कभी हसे कभी रो ही पायें Last edited by soni pushpa; 27-10-2014 at 12:42 AM. |
27-10-2014, 10:29 AM | #2 | |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
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जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, इसे यूं खाक में न जाने दो। श्रम की कमान पर चलाओं साहस के तीन, बेध कर गगन तक जाने दो। ख्रड़े होकर इस वसुंधरा पर छू लो आसमान के चक्षुओं को। गम के ऍंधेरो से उबरकर प्राप्त कर लो कठिनतम्* लक्ष्य को॥
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27-10-2014, 10:50 AM | #3 |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
मॉं दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है। यह एक ऐसा कजर् है, जो मैं अदा कर ही नही सकता, मैं जब तक घर न लौटू मेरी मां सजदे में रहती है। ऐ अन्धेरे देख ले, तेरा मुंह काला हो गया, मां ने ऑंखे खोल दी, घर में उजाला हो गया। कंवर मॉं के आगे यू कभी खुलकर नहीं रोना जहॉं बुनियाद हो, इतनी नमी अच्दी नहीं होती।
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27-10-2014, 11:19 AM | #4 | |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
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27-10-2014, 11:43 AM | #5 |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
[QUOTE=rafik;535416]
बहुत बहुत धन्यवाद bhai मेरी हौसलाफजाही के लिए ... बहुत सुन्दर कविता है आपने जो लिखी ... माँ वो शब्द है जो हरेक इन्सान को अपनी और खींचता ही है .. सबके जीवन में माँ की महत्ता एक सी है फिर भले कोई माने या न माने पर माँ तो माँ है फिर चाहे वो किसी भी कौम से क्यूँ न हो किसी भी देश से क्यों न हो . ईश्वर का दूजा स्वरुप याने... ma Last edited by soni pushpa; 28-10-2014 at 01:53 PM. |
27-10-2014, 11:45 AM | #6 |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
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27-10-2014, 02:36 PM | #7 | |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
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खयालों के समंदर में तिलमिलाता ये दिल भावनाओं क समंदर में लड़खड़ाता ये दिल कभी डूबता कभी तैरता कभी गिरता कभी उड़ता कभी जिंदगी के छोर पर ठहर जाता ये दिल कभी डरता है ये दूरियों से और कभी नज़दीकियां हुई मुश्किल कभी घूमता आवरों कि तरह और कभी कोने में सिमट जाता ये दिल कभी हराता हर इक तर्क को महायोद्धा ये दिल और कभी उन्हीं तर्कों के चक्रव्यूह में फंस के हार जाता ये दिल कभी समझ लेता ये दुसरे के दिल कि कशिश और कभी अपने ही मन को ना खंगाल पाता ये दिल कभी आसमान से बड़ा तो कभी बारिश की बूँद से भी छोटा ये दिल अनोखा, अदभुत्त और विचित्र ये दिल!!!
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27-10-2014, 04:35 PM | #8 | |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
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बड़ी मोहक है दुनिया ये ख़यालों कल्पनाओं की. ख़ुशी की, नाखुशी की, वर्जनाओं, आस्थाओं की. सुखद यादों की बारातें हैं ममता की दुआएं भी, और कहीं आंसू समेटे झांकियां हैं यंत्रणाओं की.
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27-10-2014, 07:45 PM | #9 |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
[QUOTE=rajnish manga;535439]इस कविता में ख्यालों ही ख्यालों में आपने खट्टे-मीठे, कडवे-कसैले, हँसते और उदास क्षणों को शामिल कर लिया है. सच है इन्हीं विविधताओं से ही यह जीवन निर्मित होता है. बहुत सुंदर. चार पंक्तियाँ मेरी ओर से भी प्रस्तुत हैं:
बड़ी मोहक है दुनिया ये ख़यालों कल्पनाओं की. ख़ुशी की, नाखुशी की, वर्जनाओं, आस्थाओं की. सुखद यादों की बारातें हैं ममता की दुआएं भी, और कहीं आंसू समेटे झांकियां हैं यंत्रणाओं की. [बहुत सुन्दर .... और सही है आपकी लिखी चार लाइने, रजनीश जी जी हाँ जीवन इसी का नाम है और जब इन्सान खो जाता है कई बार इस ख्यालों के समंदर में तब लगता है वो अतीत के पलों को जी रहा है और ये अच्छा भी है क्यूंकि अतीत वापस नही मिल सकता किन्तु एइसा महसूस होता है मानो कुछ पल के लिए ही सही इन्सान जी उठता है ...... धन्यवाद रजनीश जी . |
04-11-2014, 12:00 AM | #10 |
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Re: खयालों..... के..... समंदर
bahut sundar kavita khayalo ke bare me bhai ... thanks
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