22-11-2010, 09:02 AM | #1 |
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विज्ञान विश्व
आशीषजी का संदेश भी मै यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा.... यह चिठ्ठा विज्ञान की नयी पुरानी जानकारी इंद्रजाल पर उपलब्ध कराने का एक प्रयास है। विज्ञान से जुडे हर विषय पर मैं लिखने का प्रयास करुंगा लेकिन मेरे पसंदीदा विषय जैसे ब्रह्माण्ड और उसकी उत्पत्ती , भौतिकी से जुडे लेख ज्यादा होने की संभावना है। इस चिठ्ठे मे मैं मौलिकता का दावा नही करता हूं, अधिकतर सामग्री इंद्रजाल पर उपलब्ध जानकारी या मेरे द्वारा पढ़ी गयी पुस्तकों, लेखो से ली गयी होगी। मेरा योगदान उन्हे अनुवाद और संपादन कर प्रकाशन करना मात्र होगा। (आशीष श्रीवास्तव) धन्यवाद. |
22-11-2010, 09:08 AM | #2 |
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Re: विज्ञान विश्व
निहारिका मे सितारों का जन्म
ब्रम्हाण्डीय नर्सरी जहाँ तारों का जन्म होता है एक धूल और गैसों का बादल होता है जिसे हम निहारीका (Nebula) कहते है। सभी तारों का जन्म निहारिका से होता है सिर्फ कुछ दुर्लभ अवसरो को छोड़कर जिसमे दो न्यूट्रॉन तारे एक श्याम विवर बनाते है। वैसे भी न्यूट्रॉन तारे और श्याम विवर को मृत तारे माना जाता है। निहारिका दो अलग अलग कारणों से बनती है। एक तो ब्रह्माण्ड की उतपत्ती से ही है। ब्रह्माण्ड के जन्म के बाद ब्रह्माण्ड मे परमाणुओं का निर्माण हुआ और इन परमाणुओं से धूल और गैस के बादलों का निर्माण हुआ। इसका मतलब यह है कि गैस और धूल जो इस तरह से बनी है उसका निर्माण तारे से नही हुआ है बल्कि यह ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ निर्मित मूल पदार्थ है। निहारिका के निर्माण का दूसरा तरीका किसी विस्फोटीत तारे से बने सुपरनोवा से है। इस दौरान सुपरनोवा से जो पदार्थ उत्सर्जित होता है उससे भी निहारिका बनती है। इस दूसरे तरीके से बनी निहारिका का उदाहरण वेल(Veil) और कर्क (Crab) निहारिकाये है। ध्यान रखे कि निहारिकाओ का निर्माण इन दोनो तरीकों के मिश्रण से भी हो सकता है। निहारिकाओ के प्रकार उत्सर्जन निहारिका (Emission): इस तरह की निहारिकाये सबसे सुंदर और रंग बिरंगी होती है। ये नये बन रहे तारों से प्रकाशित होती है। विभिन्न तरह के रंग भिन्न तरह की गैसों और धूल की संरचना के कारण पैदा होते है। सामान्यतः एक बड़ी दूरबीन (8+ इंच) से उत्सर्जन निहारीका के लगभग सभी रंग देखे जा सकते है। तस्वीर मे सभी रंगो को देखने के लिये लम्बे-एक्स्पोजर से तस्वीर लेनी पढ़ती है। चील निहारिका(M16) और झील निहारिका (Lagoon या M8) इस तरह की निहारिका के उदाहरण है। M16 मे तीन अलग अलग गैसों के स्तंभ देखे जा सकते है। यह तस्वीर हब्बल से ली गयी है और इसे साधारण दूरबीन से इतना स्पष्ट नही देखा जा सकता। इस स्तंभो के अंदर नये बने तारे है, जिनसे बहने वाली सौर वायु आसपास की गैस और धूल को दूर बहा रही है। इसमे सबसे बड़ा स्तंभ १० प्रकाश वर्ष उंचा और १ प्रकाश वर्ष चौड़ा है। इसकी खोज १७६४ मे हुयी थी और यह हमसे ७००० प्रकाश वर्ष दूर है। |
22-11-2010, 09:11 AM | #3 |
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Re: विज्ञान विश्व
हा सैम जी आप लिखे और आपसे एक अनुरोध भी है क्या इस प्रस्तुती को हम अपने ब्लॉग में दाल सकते है
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22-11-2010, 09:19 AM | #4 |
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Re: विज्ञान विश्व
चील निहारिका निचे दी गयी M 8 की तस्वीर भी हब्बल दूरबीन से ली गयी है। यह ५२०० प्रकाश वर्ष दूर है। इसकी खोज १७४७ मे हुयी थी। इसका आकार १४०X६० प्रकाश वर्ष है। M8 निहारिका NGC 1333 – परावर्तन निहारीका श्याम निहारिका (Dark): ऐसे तो सभी निहारिकाये श्याम होती है क्योंकि ये प्रकाश उत्पन्न नही करती है। लेकिन विज्ञानी उन निहारिकाओ को श्याम कहते है जो अपने पीछे से आने वाले प्रकाश को एक दीवार की तरह रोक देती है। यही एक कारण है कि हम अपनी आकाशगंगा से बहुत दूर तक नही देख सकते है। आकाशगंगा मे बहुत सारी श्याम निहारीकाये है, इसलिये विज्ञानियों को प्रकाश के अन्य माध्यमों का(x किरण, CMB) सहारा लेना होता है। निचले चित्र मे प्रसिद्ध घोड़े के सर के जैसी निहारिका दिखायी दे रही है। यह निहारिका एक अन्य उत्सर्जन निहारिका IC434 के सामने स्थित है। घोडे के सर जैसी निहारिका |
22-11-2010, 09:28 AM | #5 |
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Re: विज्ञान विश्व
ग्रहीय निहारिका (Planetary): इन निहारिकाओ का निर्माण उस वक्त होता है जब एक सामान्य तारा एक लाल दानव (red gaint)तारे मे बदल कर अपने बाहरी तहों को उत्सर्जित कर देता है। इस वजह से इनका आकार गोल होता है। चित्र मे बिल्ली की आंखो जैसी निहारिका(Cat’s Eye NGC 6543) दिखायी दे रही है। इस तस्वीर मे तारे के बचे हुये अवशेष भी दिखायी दे रहे है। बिल्ली की आंखो वाली निहारिका दूसरी तस्वीर नयनपटल निहारिका(Retina IC 4406) मे वृताकार चक्र उसके बाजु मे दिखायी दे रहा है। तारे का घूर्णन और चुम्बकिय क्षेत्र इसे वृताकार बना रहा है ना कि एक गोलाकार। ग्रहीय यह शब्द निहारिकाओ के लिये सही नही है। यह शब्द उस समय से उपयोग मे आ रहा है जब युरेनस और नेप्च्यून की खोज जारी थी। उस समय हमारी आकाशगंगा के बाहर किसी और आकाशगंगा के अस्तित्व की भी जानकारी नही थी। नयनपटल निहारिका सुपरनोवा अवशेष: ये निहारिकाये सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे हुये अवशेष है। सुपरनोवा किसी विशाल तारे की मृत्यु के समय उनमें होने वाले भयानक विस्फोट की स्थिति को कहते है। कर्क (Crab) निहारीका इसका एक उदाहरण है। कर्क निहारिका सितारों के जन्म की प्रक्रिया सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमे कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है। जब कोई भारी पिंड निहारीका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमे लहरे और तरंगे उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर मे एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढका दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर मे एक जगह जमा हो जाते है। ठीक इसी तरह निहारिका मे धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नही ले लेता। इस स्थिति को पुर्वतारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढते जाता है, पुर्वतारा गर्म होने लगता है। जैसे साईकिल के ट्युब मे जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है। जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान १०,०००,००० केल्विन तक पहुंचता है नाभिकिय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पुर्वतारा एक तारे मे बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवाये बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष मे धकेल देती है। |
22-11-2010, 09:39 AM | #6 |
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Re: विज्ञान विश्व
काल-अंतराल (space-time) अवधारणा
श्याम विवर की गहराईयो मे जाने से पहले भौतिकि और सापेक्षतावाद के कुछ मूलभूतसिद्धांतो की चर्चा कर ली जाये ! काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा सामान्यतः अंतराल को तिन अक्षो मे मापा जाता है। सरल शब्दो मेलम्बाई, चौडाई और गहराई, गणीतिय शब्दो मे x अक्ष, y अक्ष और z अक्ष। यदि इसमे एक अक्ष समय को चौथे अक्ष के रूप मे जोड दे तब यह काल-अंतराल का गंणितिय माडल बन जाता है। भौतिकि मे काल-अंतराल का अर्थ है काल और अंतराल संयुक्त गणितिय माडल। काल और अंतराल को एक साथ लेकर भौतिकि के अनेको गुढ रहस्यो को समझाया जा सका है जिसमे भौतिकब्रह्माण्डविज्ञान तथा क्वांटम भौतिकि शामिल है। सामान्ययांत्रिकी मे काल-अंतराल की बजाय अंतराल का प्रयोग किया जाता रहा है, क्योंकि काल अतराल के तिनो अक्षो मे यांत्रिकि गति से स्वतंत्र है। लेकिन सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार काल को अंतराल के तिनो अक्षो से अलग नही किया जा सकता क्योंकि , काल किसी पिंड की प्रकाशगति के सापेक्ष गति पर निर्भर करता है। काल-अंतराल की अवधारणा ने बहुआयामी सिद्धांतो(higher-dimensional theories) की अवधारणा को जन्म दिया है। ब्रम्हांड के समझने के लिये कितने आयामो की आवश्यकता होगी यह एक यक्ष प्रश्न है। स्ट्रींग सिद्धांत जहां १० से २६ आयामो का अनुमान करता है वंही M सिद्धांत ११ आयामो(१० आकाशीय(spatial) और १ कल्पित(temporal)) का अनुमान लगाता है। लेकिन ४ से ज्यादा आयामो का असर केवल परमाणु के स्तर पर ही होगा। काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा का इतिहास काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा आईंस्टाईन के १९०५ के विशेष सापेक्षतावाद के सिद्धांत के फलस्वरूप आयी है। १९०८ मेआईंस्टाईन के एक शिक्षक गणितज्ञ हर्मन मिण्कोवस्कीआईंस्टाईन के कार्य को विस्तृत करते हुये काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा को जन्म दिया था। ‘मिंकोवस्की अंतराल‘ की धारणा यह काल और अंतराल को एकीकृत संपुर्ण विशेष सापेक्षतावाद के दो मूलभूत आयाम के रूप मे देखे जाने का प्रथम प्रयास था। ‘मिंकोवस्की अंतराल‘ की धारणा यह विशेष सापेक्ष्तावाद को ज्यामितिय दृष्टी से देखे जाने की ओर एक कदम था, सामान्य सापेक्षतावाद मे काल अंतराल का ज्यामितिय दृष्टीकोण काफी महत्वपूर्ण है। (१)
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22-11-2010, 09:40 AM | #7 |
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Re: विज्ञान विश्व
मूलभूत सिद्धांत
काल अंतराल वह स्थान है जहां हर भौतिकि घटना होती है : उदाहरण के लिये ग्रहो का सुर्य की परिक्रमा एक विशेष प्रकार के काल अंतराल मे होती है या किसी घुर्णन करते तारे से प्रकाश का उत्सर्जन किसी अन्य काल-अंतराल मे होना समझा जा सकता है। काल-अंतराल के मूलभूत तत्व घटनायें(Events) है। किसी दिये गये काल-अंतराल मे कोई घटना(Event), एक विशेष समय परएक विशेष स्थिति है। इनघटनाओ के उदाहरण किसी तारे का विस्फोट या ड्रम वाद्ययंत्र पर किया गया कोई प्रहार है। काल-अंतरालयह किसी निरिक्षक के सापेक्ष नही होता। लेकिन भौतिकि प्रक्रिया को समझने के लिये निरिक्षक कोई विशेष आयामो काप्रयोग करता है।किसी आयामी व्यवस्था मे किसी घटना को चार पुर्ण अंको(x,y,z,t) से निर्देशीत किया जाता है। प्रकाश किरण यह प्रकाश कण की गति का पथ प्रदर्शित करती है या दूसरे शब्दो मे प्रकाश किरण यह काल-अंतराल मे होनेवाली घटना है और प्रकाश कण का इतिहास प्रदर्शित करती है। प्रकाश किरण को प्रकाश कण की विश्व रेखा कहा जा सकता है। अंतराल मे पृथ्वी की कक्षा दिर्घ वृत्त(Ellpise) के जैसी है लेकिन काल-अंतराल मे पृथ्वी की विश्वरेखा हेलि़क्स के जैसी है। सरल शब्दो मे यदि हम x,y,z इन तिन आयामो के प्रयोग से किसी भी पिंड की स्थीती प्रदर्शीत कर सकते है। एक ही प्रतल मे दो आयाम x,y से भी हम किसी पिंड की स्थिती प्रदर्शित हो सकती है। एक प्रतल मे x,y के प्रयोग से,पृथ्वी की कक्षा एक दिर्घ वृत्त के जैसे प्रतित होती है। अब यदि किसी समय विशेष पर पृथ्वी की स्थिती प्रदर्शित करना हो तो हमे समय t आयाम x,y के लंब प्रदर्शित करना होगा। इस तरह से पृथ्वी की कक्षा एक हेलिक्स या किसी स्प्रींग के जैसे प्रतित होगी। सरलता के लिये हमे z आयाम जो गहरायी प्रदर्शित करता है छोड दिया है। काल और समय के एकीकरण मे दूरी को समय की ईकाइ मे प्रदर्शित किया जाता है, दूरी को प्रकाशगति से विभाजित कर समय प्राप्त किया जाता है। काल-अंतरालअन्तर(Space-time intervals) काल-अंतराल यह दूरी की एक नयी संकल्पना को जन्म देता है। सामान्य अंतराल मे दूरी हमेशा धनात्मक होनी चाहिये लेकिन काल अंतराल मे किसी दो घटनाओ(Events) के बीच की दूरी(भौतिकी मे अंतर(Interval)) वास्तविक , शुन्य या काल्पनिक(imaginary) हो सकती है। ‘काल-अंतराल-अन्तर‘ एक नयी दूरी को परिभाषीत करता है जिसे हम कार्टेशियन निर्देशांको मे x,y,z,t मे व्यक्त करते है। s2=r2-c2t2 s=काल-अंतराल-अंतर(Space Time Interval) c=प्रकाश गति r2=x2+y2+z2 काल-अंतराल मेकिसी घटनायुग्म (pair of event) को तिन अलग अलग प्रकार मे विभाजित किया जा सकता है १.समय के जैसे(Time Like)- दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लियेजरूरत से ज्यादा समय व्यतित होना; s2 <0) २.प्रकाश के जैसे(Light Like)-(दोनो घटनाओ के मध्य अंतराल और समत समान है;s2=0) ३.अंतराल के जैसे (दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरीसमय से कम समय का गुजरना; s2 >0) घटनाये जिनकाकाल-अंतराल-अंतरऋणात्मक है, एक दूसरे के भूतकाल और भविष्य मे है, ================================================== ============ विश्व रेखा(World Line) : भौतिकि के अनुसार किसी पिंड का काल-अंतराल के चतुर्यामी तय किये गये पथ को विश्व रेखा कहा जाता है। हेलि़क्स : स्प्रिंग या स्क्रू के जैसा घुमावदार पेंचदार आकार। (२)
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23-11-2010, 05:14 AM | #8 |
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Re: विज्ञान विश्व
श्याम पदार्थ (DARK MATTER) भौतिकशास्त्र मे श्याम पदार्थ उस पदार्थ को कहते है जो विद्युत चुंबकियविकिरण(प्रकाश, क्षकिरण) का उत्सर्जन या परावर्तन पर्याप्त मात्रा मे नही करता जिससे उसे महसूस किया जा सके किंतु उसकी उपस्थिति साधारण पदार्थ पर उसके गुरुत्विय प्रभावसे महसूस की जा सकती है।श्याम पदार्थ की उपस्थिती के लिये किये गये निरिक्षणो मे प्रमुख है, आकाशगंगाओ की घुर्णनगति, किसी आकाशगंगाओ के समुहमे आकाशगंगा की कक्षा मे गति और आकाशगंगा या आकाश्गंगा के समुह मे गर्म गैसो मे तापमानका वितरण है। श्याम पदार्थ की ब्रम्हाण्ड के आकार ग्रहण प्रक्रिया(१)तथा महाविस्फोट केन्द्रीय संश्लेषण(Big Bang Ncleosynthesis)(२)प्रमुख भूमिका रही है।श्याम पदार्थ का प्रभाव ब्रम्हांडीय विकीरण के फैलाव और वितरण मे भी रहा है। यह सभी सबूत हमे यह बताते है कि आकाशगंगाये, आकाशगंगा समुह(Cluster) और ब्रम्हांड मे पदार्थ की मात्रा निरक्षित मात्रा से कही ज्यादा है, जो कि मुख्यतः श्याम पदार्थ है जिसे देखा नही जा सकता।
श्याम पदार्थ का संयोजन(३)अभी तक अज्ञात है लेकिन यह नये मुलभूत कणो जैसे विम्प (WIMP)(४) और एक्सीआन(Axions)(५), साधारण और भारी न्युट्रीनो , ड्वार्फ तारो और ग्रहो(MACHO)(६) तथा गैसो के बादल से बना हो सकता है। हालिया सबूतो के अनुसार श्याम पदार्थ की संरचना नये मूलभूत कणो जिसे नानबायरोनिक श्याम पदार्थ(nonbaryonic dark matter) कहते है से होना चाहिये। श्याम पदार्थ की मात्रा और द्रव्यमान साधारण दिखायी देने ब्रम्हाण्ड से कही ज्यादा है। अभी तक की खोजो मे ब्रम्हाण्ड मेबायरान और विकीरण का घन्त्व लगभग १ हायड्रोजन परमाणु प्रति घन मिटर है। इसकालगभग ४% उर्जा घन्तव देखा जा सकता है। लगभग २२% भाग श्याम पदार्थ का है ,बचा ७४% भाग श्याम उर्जा का है। कुछ मुश्कील से जांचे जा सकने वाले बायरानीक पदार्थ भी श्याम पदार्थ बनाते है लेकिन इसकी मात्रा काफी कम है। इस लापता द्रव्यमान की खोज भौतिकी और ब्रम्हाण्ड विज्ञान के सबसे बडे अनसुलझे रहस्यो मे से एक है। सबसे पहले श्याम पदार्थ के बारे मे सबूत देने वाले कैलीफोर्निया ईन्स्टीट्युट आफ टेक्नालाजी केएक स्वीस विज्ञानी फ्रीटज झ्वीस्की थे। उन्होने कोमा आकाशगंगा समुह पर वाइरियल प्रमेय(७) का उपयोग किया और उन्हे लापता द्र्व्यमान का ज्ञान हुआ।झ्वीस्की ने कोमाआकाशगंगा समुह के किनारे कीआकाशगंगाओ की गति के आधार पर कोमा आकाशगंगा समुह के द्रव्यमान की गणना की। जब उन्होने इस द्रव्यमान की तुलना आकाशगंगाओ और उनकी आकाश गंगा समुह (Cluster) की कुल प्रकाशदिप्ती के आधार पर ज्ञात द्रव्यमान से की तो उन्हे पता चला कि वहां पर अपेक्षा से ४०० गुना ज्यादा द्रव्यमान है। इस आकाशगंगा समुह मेदिखायी देने वाली आकाशगंगाओ का गुरुत्व इतनी तेज कक्षा के कारण काफी कम होना चाहिये, इन आकाशगंगाओ के पास अपने संतुलन के लिये कुछ औरद्रव्यमान होना चाहिये। इसे लापता द्रव्यमान रहस्य(Missisng Mass Problem) कहा जाता है।झ्वीस्की ने इन अनुमानो के आधार पर कहा कि वहां पर कुछ अदृश्य पदार्थ होना चाहीये जो इस आकाशगंगा समुह को उचित द्रव्यमान और गुरुत्व प्रदान कर रहा है जिससे यह आकाशगंगा समुह का विखण्डन नही हो रहा है। श्याम पदार्थ के बारे मे और सबुत आकाशगंगाओ की गति के अध्यन से प्राप्त हुये। इनमे से काफी आकाशगंगा एकसार है, इन पर वाइरियल प्रमेय लगाने पर इनकी कुल गतिज उर्जा(Kinetic Energy) इनके कुल गुरुत्व उर्जा का आधा होना चाहीये। प्रायोगिक नतिजो के अनुसार गतिज उर्जा इससे कहीं ज्यादा पायी गयी। आकाशगंगा केदृश्य द्रव्यमान के गुरुत्व को ही लेने पर , आकाशगंगा के केन्द्र से दूर तारो की गति वाइरियल्ल प्रमेय द्बारा गणित गति से कहीं ज्यादा पायी गयी। गैलेटीक घुर्णन वक्र कक्षा(८)जो घुर्णन गति और आकाशगंगा केन्द्र की व्याख्या करती है, इसे दृश्य द्रव्यमान से समझाया नही जा सकता। दृश्य पदार्थ आकाशगंगा समुह का एक एक छोटा सा ही हिस्सा है मान लेने पर इसकी व्याख्या की जा सकती है। आकाशगंगाये एक लगभगगोलाकार श्याम पदार्थ से बनी प्रतित होती है जिनके मध्य मे एक तश्तरी नुमा दृश्य पदार्थ है। कम चमकदार सतह वाली ड्वार्पह आकाशगंगाये श्याम पदार्थ के अध्यन के लिये जरूरी सुचनाओ का महत्वपूर्ण श्रोत है क्योंकि इनमे असाधारण रूप से साधारण पदार्थ और श्याम पदार्थ का अनुपात कम है और इनके केन्द्र मे कुछ ऐसेचमकिले तारे है जो बाहरी छोर पर स्थित तारो की कक्षा को विकृत कर देते है। अगस्त २००६ मे प्रकाशित परिणामो के आधार पर श्याम पदार्थ , साधारण पदार्थ से अलग पाया गया है। यह परिणाम बुलेट आकाशगंगा समुह (Bullet Cluster) जो दो अलग अलग आकाशगंगा समुह की १५०० लाख वर्ष पहले हुयी भिडंत से बना है के अध्यन से मिले है। (१) Last edited by sam_shp; 23-11-2010 at 05:19 AM. |
23-11-2010, 05:15 AM | #9 |
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Re: विज्ञान विश्व
आकाशगंगा की घुर्णन वक्रकक्षा
झ्वीस्की के निरिक्षण के ४० वर्षो बाद तक ऐसा कोई निरिक्षण नही मिला जिसमे प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात ईकाई से अलग हो। अधिक प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात श्याम पदार्थ की उपस्थिती दर्शाता है। १९७० के दशक की शुरूवात मे कार्नेगी इन्सीट्युट आफ वाशिण्गटन के एक विज्ञानी वेरा रूबीन ने एक नये ज्यादा संवेदनशील स्पेक्ट्रोग्राफ (जो कुंड्ली नुमा आकाशगंगा के सीरे की गति कक्षा को ज्यादा सही तरीके से माप सकता था) की मदद से कुछ नये परिणाम प्राप्त किये। इस विस्यमयकारी परिणाम के अनुसार किसी कुंडली नुमा आकाशगंगा के अधिकतरतारे एक जैसी गति से आकाशगंगा केकेन्द्र की परिक्रमा करते है। इसका अर्थ यह था कि द्रव्यमान घनत्व अधिकतर तारो(आकाशगंगा केन्द्र) से दूर भी एकसार था। इसका एक अर्थ यह भी था कि यातोन्युटन का गुरुत्व नियम हर अवस्था मे लागु नही किया जा सकता या इन आकाशगंगा का ५०% से अधिक द्रव्यमान श्याम पदार्थ से बना है। इस परिणाम की पहले खिल्ली उडायी गयी लेकिन बाद मे ये मान लिया गया कि आकाशगंगा का अधिकतर भाग श्याम पदार्थ से बना है। बाद मे इसी तरह के परिणाम इलीप्स के आकार की आकाशगंगाओ मे भी पाये गये। रूबीन के द्वारा ५०% प्रतिशत द्रव्यमान की गणना अब बडकर ९५% हो गयी है। कुछ ऐसे भी आकाशगंगा समुह है जो श्याम उर्जा की उपस्थिती नकारते है। ग्लोबुलर आकाशगंगा समुह एक ऐसा ही आकाशगंगा समुह है। हाल ही मे कार्डीफ विद्यापिठ के विज्ञानीयो ने एक श्याम उर्जा की बनी हुयी आकाशगंगा की खोज की है। यह कन्या आकाशगंगा समुह (Virgo Cluster) से ५० प्रकाशवर्ष दूर है, इस आकाशगंगा का नाम VIRGOHI21 है। इस आकाशगंगा मे तारे नही है। इसकी खोज हायड्रोजन की रेडीयो तरण्गो के निरिक्षण से हुयी है। इसके घुर्णन कक्षा के अध्यन से वैज्ञानिको का अनुमान है कि इसमे हायडोजन के द्रव्यमान से १००० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ है। इसका कुल द्रव्यमान हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के द्रव्यमान का दंसवा भाग है। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी मे भी दृस्य पदार्थ के द्रव्यमान से १० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ मौजुद है। श्याम पदार्थ आकाशगंगा समुह पर भी प्रभाव डालता है। एबेल २०२९ आकाशगंगा समुह जो की हजारो आकाशगंगाओ से बना है, इसके आसपास चारो ओर गरम गैसो और श्याम पदार्थ का आवरण फैला हुआ है। इस श्याम पदार्थ का द्रव्यमान १०१४सुर्यो के द्रव्यमान के बराबर है। इस आकाशगंगा समुह के केन्द्र मे एक इलीप्स के आकार की आकाशगंगा (जो कुछ आकाशगंगाओ के मिलन से बनी है) है। इस आकाशगगां समुह की कक्षा की गति श्याम उर्जा निरिक्षणो के अनुरूप है। श्याम उर्जा के निरिक्षण के लिये दूसरा साधन गुरुत्विय वक्रता (gravitational lensing)(९)है। यह प्रक्रिया सापेक्षतावाद के सिद्धांत के द्रव्यमान गणनापर आधारित है जो गतिज उर्जा पर निर्भर नही करती है। यह पूरी तरह श्याम उर्जा के द्रव्यमान की गणना के लिये स्वतण्त्र सिद्धांत है। एबेल १६८९ के आसपासप्रबलगुरुत्विय वक्रता पायी गयी है। इस वक्रता को माप कर उस आकासगंगा समुह का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। द्रव्यमान और प्रकाश के अनुपात से स्याम पदार्थ की उपस्थिती जांची जा सकती है। (२)
Last edited by sam_shp; 23-11-2010 at 05:18 AM. |
23-11-2010, 05:16 AM | #10 |
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Re: विज्ञान विश्व
श्याम पदार्थ की संरचना
अगस्त २००६ मे श्याम पदार्थ को प्रकाशीय पद्धती से जांच लिया गया है लेकिन अभी भी यह अटकलो के घेरे मे है। आकाशगंगा घुर्णन वक्र कक्षा, गुरुत्विय वक्रता, ब्रम्हांडीय पदार्थ का विभीन्न आकार बनाना(Structure Formation), आकाश गंगा समुह मेबायरान की अल्प उपस्थिती जैसे सबुत यह बताते है कि ८५-९०% पदार्थ विद्युत चुंबकिय बल से प्रतिक्रिया नही करता है। यह श्याम पदार्थ अपने गुरुत्विय बल से अपनी मौजुदगी दर्शाता है। इस श्याम पदार्थ की निम्नलिखित श्रेणीया हो सकती है। बायरानीक श्याम पदार्थ अबायरानीक श्याम पदार्थ (यह तिन तरह का हो सकता है) १.अत्याधिकगर्म श्याम पदार्थ २.गर्म श्याम पदार्थ ३.शितल श्याम पदार्थ अत्याधिक गर्म श्याम पदार्थ मे कण सापेक्ष गति(relativistic velocities)(१०) से गतिमान रहते है। न्युट्रीनो इस तरह का कण है। इस कण का द्रव्यमान कम होता है और इस पर विद्युत चुम्बकिय बल और प्रबल आणवीक बल का प्रभाव नही पड्ता है। इनकी जांच एक दूष्कर कार्य है। यह भी श्याम उर्जा के जैसा है। लेकिन प्रयोग यह बताते है कि न्युट्रीनो श्याम पदार्थ का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है। गर्म श्याम पदार्थ महाविस्फोट के सिद्धांत पर खरे नही उतरते है लेकिन इनका आस्तित्व है। शितल श्याम पदार्थ जिसके कण सापेक्ष गति नही करते है। बडे द्रव्यमान वाले पिंड जैसे आकाशगंगा के आकार के श्याम विवरो को गुरूतविय वक्रता के आधार पर अलग कर सकते है। संभव उम्मीदवारो मे सामान्य बायरोनिक पदार्थ वाले पिड जैसे भूरे ड्वार्फ या माचो (MACHO भारी तत्वो के अत्यंत घन्तव वाले पिंड) भी है। लेकिन महाविस्फोट के आणविक संयुग्मन (big bang nucleosynthesis ) प्रक्रिया ने विज्ञानीयो को यह विश्वास दिला दिया है कि MACHO जैसे बायरानिक पदार्थ कुल श्याम पदार्थ के द्रव्यमान का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हो सकते है। आज की स्थिती मे श्याम पदार्थ की संरचना अबायरानिक कणो, इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान, न्युट्रीनो जैसे कणो के अलावा, एक्सीआन, WIMP(Weakly Interacting Massive Particles कमजोर प्रतिक्रिया वाले भारी कण जिसमे न्युट्रलिनो भी शामील है), अचर न्युट्रीनो (sterile neutrinos)(१०)से बनी हुयीमानी जाती है। इनमे से कोई भी कण साधारण भौतिकी की आधारभूत संरचना का कण नही है। श्याम पदार्थ की संरचना के उम्मीदवार कणो की खोज के लिये प्रयोग जारी है। (३)
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