03-04-2011, 05:19 PM | #1 |
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!!वसंत ऋतु के गीत!!
इस सूत्र के माध्यम से आपके लिए वसंत ऋतु के गीत प्रस्तुत किये जायेंगे आप सभी का सहयोग अपेछित है | सूत्र पर अपना अमूल्य योगदान देकर सूत्र की शोभा बढ़ाएं ............ धन्यवाद
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03-04-2011, 05:29 PM | #2 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
हवा, पानी और ऋतुओं में बदल कर समय
हेमंत और शिशिर का कल्याणकारी उत्पाती सहयोग ले कर अनुवांशिकी के लिए खोजता या ख़ाली करवाता है जगह संत या असंत आगंतुक वसंत ने वृक्षस्थ पूर्वज— वसंत के पीछे हेमंत—शिशिर दो वैरागियों को लगा रक्खा है जो पत्रस्थ गेरुवे को भी उतार अपने सहित सबको दिगम्बर किए दे रहे हैं और शीर्ण शिराओं से रक्तहीन पदस्थ पीलेपन के ख़ात्मे में जुटे हुए हैं हिम—शीत पीड़ित दो हथेलियों को करीब ले आने वाली रगड़ावादी ये दो ऋतुएँ जिनका काम ही है प्रभंजन से अवरोधक का भंजन करवा देना हवाओं को पेड़ों और पहाड़ों से लड़वा देना नोचा—खोंसी में सबको अपत्र करवा देना ताकि प्रकृति की लड़ाई भी हो जाए और बुहारी भी और परोपकार का स्वाभाविक ठेका छोड़ना भी न पड़े पिछला वसंत अगर एक ही महंत की तरह सब ऋतुओं को छेके रहे तो नवोदय कहाँ से होगा कैसे उगेगी नवजोत एक—एक पत्ती की हर ऋतु के अस्तित्व को कोई दूसरी ऋतु धकेल रही है चुटकी भर धक्के से ही फूटता है कोई नया फूल खिलती है कोई नई कली शुरु होता है कोई नया दिल चटकता है कोई नया फूट कछारों में ब्राह्म मुहूर्त में चटकता है पूरा जंगल रोंगटों—सी खड़ी वनस्पतियों के पोर—पोर में हेमंत और शिशिर की वैरागी हवाएँ रिक्तता भेंट कर ही शांत होती हैं जिनकी चाहें और बाहें स्त्रांत में पत्रांत ही मुख्य वस्त्रांत है जिनका वसनांत के बाद खलियाई जगहें ऐसे पपोटिया जाती हैं जैसे पेड़ भग-वान इन्द्र की तरह सहस्त्र नयन हो गए हों घावों पर वरदान-सी फिरतीं वसंत की रफ़ूगर उँगलियाँ काढ़ती हैं पल्लव सैंकड़ों बारीक पैरों से जितना कमाते हैं पादप उतना प्रस्फुटित हज़ारों मुखों को पहुँचाते हैं टहनियों के बीच खिल उठते हैं आकाश के कई चेहरे दो रागिये—वैरागिये हेमंत और शिशिर अधोगति के तम में जाकर पता लगाते हैं उन जड़ों का जिनके प्रियतम-सा ऊर्ध्वारोही दिखता है अगला वसंत पिछली पत्तियाँ जैसे पहला प्रारूप कविता का झाड़ दिये सारे वर्ण पंक्ति—दर—पंक्ति पेड़ों के आत्म विवरण की नई लिखावट फिर से क्षर —अक्षर उभार लाई रक्त में फटी, पुरती एड़ियों सहित हाथ चमकने लगे हैं पपड़ीली मुस्कान भी स्निग्ध हुई आत्मा के जूते की तरह शरीर की मरम्मत कर दी वसंत ने हर एक की चेतना में बैठे आदिम चर्मकार तुझको नमस्कार !
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03-04-2011, 05:32 PM | #3 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
आ ऋतुराज !
पेड़ों की नंगी टहनियां देख, तू क्यों लाया हरित पल्लव बासंती परिधान ? अपने कुल, अपने वर्ग का मोह त्याग, आ,ऋतुराज! विदाउट ड्रेस मुर्गा बने पीरिये के रामले को सजा मुक्त कर दे। पहिना दे भले ही परित्यक्त, पतझड़िया, बासी परिधान। क्यों लगता है लताओं को पेड़ों के सान्निध्य में ? उनको आलिंगनबद्ध करता है। अहंकार में आकाश की तरफ तनी लताओं के भाल को रक्तिम बिन्दिया लगा, क्यों नवोढ़ा सी सजाता है ? आ ऋतुराज ! बाप की खाली अंटी पर आंसू टळकाती, सुरजी की अधबूढ़ी बिमली के बस, हाथ पीले कर दे। पहिना दे भले ही धानी सा एक सुहाग जोड़ा। तूं कहां है- डोलती बयार में, सूरज की किरणों में ? कब आता है ? कब जाता है विशाल प्रकति को ? लेकिन तू आता है आधीरात के चोर सा ; यह शाश्वत सत्य है। तेरी इस चोर प्रवृति पर मुझे कोई ऐतराज नहीं, पर चाहता हूं ; थोड़ा ही सही आ ऋतुराज खाली होने के कारण, आगे झुकते नत्थू के पेट में कुछ भर दे। भर दे भले ही, रात के सन्नाटे में पत्थर का परोसा।
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03-04-2011, 05:35 PM | #4 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
धूप खिली थी
और रिमझिम वर्षा छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी वह जीवन को आलिंगन में भर कर रहा था प्यार नव-अरुण की ऊष्मा से हिम सब पिघल गया था जमा हुआ जीवन सारा तब जल में बदल गया था वसन्त कहार बन बहंगी लेकर हिलता-डुलता आया ऎसे दो बाल्टियों में भर लाया हो दो कम्पित सूरज जैसे
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03-04-2011, 05:39 PM | #5 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
जीवन से गायब
मगर अख़बारों में छप जाता है छा जाता है खेतों में आजकल का वसन्त कुछ इसी तरह आता है फ़ोन पर बात करता हुआ एक आदमी किसी एक गर्म आलिंगन के लिए तरसता है और तरसते-तरसते ही मर जाता है कुछ इसी तरह आता है आजकल का वसन्त!
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03-04-2011, 05:43 PM | #7 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
आया बसंत, आया बसंत
रस माधुरी लाया बसंत आमों में बौर लाया बसंत कोयल का गान लाया बसंत आया बसंत आया बसंत टेसू के फूल लाया बसंत मन में प्रेम जगाता बसंत कोंपले फूटने लगी राग-रंग ले आया बसंत आया बसंत आया बसंत नव प्रेम के इज़हार का मौसम ले आया बसंत बसंती बयार में झूमने लगे तन-मन सोये हुए प्रेम को आके जगाया बसंत आया बसंत आया बसंत कविता गौड़
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03-04-2011, 05:56 PM | #9 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
आया वसंत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत। सरसों खेतों में उठी फूल बौरें आमों में उठीं झूल बेलों में फूले नये फूल पल में पतझड़ का हुआ अंत आया वसंत आया वसंत। लेकर सुगंध बह रहा पवन हरियाली छाई है बन बन, सुंदर लगता है घर आँगन है आज मधुर सब दिग दिगंत आया वसंत आया वसंत। भौरे गाते हैं नया गान, कोकिला छेड़ती कुहू तान हैं सब जीवों के सुखी प्राण, इस सुख का हो अब नही अंत घर-घर में छाये नित वसंत। सोहनलाल द्विवेदी
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03-04-2011, 06:11 PM | #10 |
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Re: !!वसंत ऋतु के गीत!!
इन ढलानों पर वसंत आएगा
हमारी स्मृति में ठंड से मरी हुई इच्छाओं को फिर से जीवित करता धीमे-धीमे धुँधुवाता खाली कोटरों में घाटी की घास फैलती रहेगी रात को ढलानों से मुसाफ़िर की तरह गुज़रता रहेगा अँधकार चारों ओर पत्थरों में दबा हुआ मुख फिर से उभरेगा झाँकेगा कभी किसी दरार से अचानक पिघल जाएगा जैसे बीते साल की बर्फ़ शिखरों से टूटते आएँगे फूल अंतहीन आलिंगनों के बीच एक आवाज़ छटपटाती रहेगी चिड़िया की तरह लहूलुहान मंगलेश डबराल
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गीत, वसंत ऋतु के गीत |
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