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Old 10-12-2011, 08:12 AM   #1
abhisays
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Old 10-12-2011, 08:19 AM   #2
abhisays
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इस सूत्र में हम लोग भारतीय कानून के बारे में अधिक से अधिक जानकारी आदान प्रदान करने की कोशिश करेंगे..

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Old 10-12-2011, 08:58 AM   #3
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जी शुरुआत करें इन्तजार रहेगा
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Old 11-12-2011, 03:55 AM   #4
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Default Re: कानून की किताब

सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले पर हाल ही एक पत्रिका में प्रकाशित हुई मेरी टिप्पणी !

सम्पत्ति की रक्षा के लिए बलप्रयोग जायज़
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक मुकदमे पर फैसला सुनाते हुए ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ की एक नई और महत्वपूर्ण व्याख्या की । अब तक कानून यह कहता था कि किसी व्यक्ति से यदि आपकी जान को खतरा उत्पन्न होता है, तो आपके द्वारा किया गया बल प्रयोग जायज़ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा है कि अपनी चल-अचल सम्पत्ति की रक्षा के लिए किया गया बल प्रयोग भी जायज़ है। बलपूर्वक आत्मरक्षा का अधिकार केवल अपने आपको बचाने तक सीमित नहीं है, अगर कोई हमलावर आपकी सम्पत्ति चुरा रहा है या जबरन उस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है, तो उसे बचाने के लिए आप बल प्रयोग कर सकते हैं।
इस ऐतिहासिक फैसले की विस्तृत व्याख्या से पहले संबंधित केस की पृष्ठभूमि जान लेना बेहतर होगा। सिकंदर सिंह ने एक सम्पत्ति पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से अपने कुछ साथियों के साथ हमला किया । जवाब में सम्पत्ति के मालिक ने अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए हमलावर सिकंदर और उसके साथियों पर गोलियां चलाईं, जिससे इन लोगों को चोटें आई। इन चोटों के आधार पर सिकंदर सिंह तथा उसके साथियों ने सम्पत्ति मालिक के खिलाफ हिंसा एवं मारपीट का मुकदमा दर्ज करा दिया। निचली अदालत में शुरू हुआ मुकदमा अंतत: सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जहां सिकंदर की याचिका को ठुकरा दिया गया और उसे कोई राहत नहीं दी गई। सिकंदर की याचिका को ठुकराते हुए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी रक्षा के अधिकार के सिद्धांत के पीछे बुनियादी तथ्य यह है कि जब किसी व्यक्ति को या उसकी सम्पत्ति को खतरा हो और राज्य के अमले से तुरंत मदद नहीं पहुंच सके या उपलब्ध न हो, तो उस व्यक्ति को अपनी और अपनी सम्पत्ति की रक्षा करने का अधिकार है और इसके लिए वह उचित बल प्रयोग भी कर सकता है। न्यायाधीश डी. के. जैन और आर.एम. लोढ़ा की खण्डपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए यह नहीं बताया कि ‘उचित बलप्रयोग’ क्या है।
सवाल यह उठता है कि ‘उचित बलप्रयोग’ की परिभाषा क्या है? अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए व्यक्ति कितना बल प्रयोग कर सकता है। किन्तु यह सहज ही समझा जा सकता है कि यह सब परिस्थितियों पर निर्भर है। कहीं केवल लाठी ही आक्रमणकारियों के खिलाफ कारगर हो सकती है और कहीं इसके लिए गोली ही पर्याप्त होगी। संभवत: इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने यह परिभाषा निर्धारित नहीं की कि बल प्रयोग कैसा और कितना हो। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जाहिर है कि आत्मरक्षा में व्यक्ति परिस्थिति के अनुसार कम या ज्यादा बल का प्रयोग कर सकता है अर्थात् व्यक्ति को आत्मरक्षा में एक थप्पड़ से लेकर खून बहाने तक का अधिकार है, लेकिन यदि वह अपने इस अधिकार का दुरुपयोग करता है, तो यह दंडनीय होगा अर्थात् जहां केवल हवा में गोली चलाने से बात बन सकती थी, वहां यदि सीने पर गोली चलाई गई है, तो इसे ‘आत्मरक्षा का अधिकार’ नहीं मानकर व्यक्ति को अपराधी माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार अपनी या अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए किया गया बल प्रयोग हमलावर से उत्पन्न खतरे के समानुपाती होना चाहिए, उससे बहुत अधिक नहीं। निर्णय में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि आत्मरक्षा में बल प्रयोग की न्यायोचित प्रतीत होने वाली सीमा निर्धारित करना कठिन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, ‘‘जिस व्यक्ति को खतरा है, वह ठीक खतरे के वक्त अपने आपको या अपनी सम्पत्ति को बचाने के लिए किन साधनों और कितने बल का प्रयोग करता है, इसे सुनहरी तराजू पर नहीं तोला जा सकता। न यह संभव है और न ही विवेक इसकी अनुमति देता है कि यह जानने के लिए कि खतरे में फंसे हुए व्यक्ति ने आत्मरक्षा में उचित साधनों और जरूरत के मुताबिक बल का प्रयोग किया अथवा नहीं, अमूर्त पैमाने निर्धारित किए जाएं।’’
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सम्पत्ति पर कब्जे की नीयत से सिकंदर सिंह और उसके साथियों ने ही हमला किया था, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा, ‘‘आत्मरक्षा के अधिकार में आक्रामक होना अथवा हमलावर होना शामिल नहीं है... याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रहे हैं कि वे निजी रक्षा के अधिकार का प्रयोग कर रहे थे।’’
वर्तमान में देश में जो परिस्थितियां हैं और क़ानून व्यवस्था की जो स्थिति है, उसके मद्दे-नज़र यह सहज ही समझा जा सकता है कि ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई इस नई व्याख्या से जनता को काफी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आत्मरक्षा के निजी अधिकार का विस्तार चल-अचल सम्पत्ति की रक्षा तक आज की जरूरत के हिसाब से किया है, लेकिन इस फैसले का स्वागत करते हुए भी यह जरूरत साफ महसूस होती है कि संभ्रान्त लोगों को हथियार लाइसेंस देने में और नरमी बरतने की जरूरत है, क्योंकि इस महत्वपूर्ण फैसले का भले लोगों को पूरा लाभ तभी मिल सकता है, जब उन्हें शस्त्र लाइसेंस सुगमता से मिलें। सरकार को यह कदम शीघ्र उठाना चाहिए कि वह कम से कम शरीफ नागरिकों के लिए हथियारों का लाइसेंस उपलब्ध कराने की प्रक्रिया आसान करे, तभी आत्मरक्षा के अधिकार का सही अर्थ और लाभ सामने आ सकेगा ।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 04-05-2012, 04:00 PM   #5
abhisays
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Article 15 in The Constitution Of India 1949

15. Prohibition of discrimination on grounds of religion, race, caste, sex or place of birth
(1) The State shall not discriminate against any citizen on grounds only of religion, race, caste, sex, place of birth or any of them
(2) No citizen shall, on grounds only of religion, race, caste, sex, place of birth or any of them, be subject to any disability, liability, restriction or condition with regard to
(a) access to shops, public restaurants, hotels and palaces of public entertainment; or
(b) the use of wells, tanks, bathing ghats, roads and places of public resort maintained wholly or partly out of State funds or dedicated to the use of the general public
(3) Nothing in this article shall prevent the State from making any special provision for women and children
(4) Nothing in this article or in clause ( 2 ) of Article 29 shall prevent the State from making any special provision for the advancement of any socially and educationally backward classes of citizens or for the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes
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Old 28-05-2012, 04:50 PM   #6
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Copyright Act, © 1957

‘कॉपीराईट एक्ट’ अथवा ‘प्रतिलिप्याधिकार अधिनियम ‘ श्रम, बुद्धि और कला के द्वारा उत्पन्न किसी कृति को वैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए सन 1957 में बनाया गया था. इस क़ानून को मुख्य रूप से कला और साहित्य के क्षत्र में नक़ल को रोकने के लिए बनाया गया है. कला और साहित्य के क्षेत्र में होने वाली अनाधिकृत नक़ल पर लगाम कसने के लिए ‘कॉपीराईट अधिनियम’ में कई नियम बनाए गए हैं.

कॉपीराईट अधिनियम लेखकों और प्रकाशकों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है. इस क़ानून के अनुसार किसी भी लेखक अथवा प्रकाशक की रचना को बिना उनकी अनुमति के अपनी रचना बताकर प्रकाशित नहीं किया जा सकता. ऐसा करना कॉपीराईट अधिनियम का उल्लंघन माना जाता है. इस क़ानून का मूल अद्देश्य ही रचयिता के अधिकारों को वैधानिक मान्यता देकर उसकी रचना को अनाधिकृत नक़ल से बचाना है, ताकि इससे रचयिता को उसके लाभों से वंचित न रखा जा सके. किसी लेखक की रचना को यदि उसकी अनुमति के बिना रंगमंच पर प्रस्तुत किया जाता है तो भी इसे कॉपीराईट एक्ट की उल्लंघना माना जाता है. इस अधिनियम में लेखक की कविता, कहानी, नाटक, संगीत, चलचित्र, आदि के स्वामित्व को शामिल किया गया है. किसी भी लेखक अथवा रचयिता की कृतियों के कॉपीराईट पर ताउम्र स्वामित्व रहता है.

समाचार पत्रों के संपादकों तथा पत्रकारों को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि श्रम, बिद्दी, और कला के द्वारा उत्त्पन्न किसी भी कृति को कॉपीराईट एक्ट के अंतर्गत वैधानिक मान्यता प्रदान की गयी है. हालांकि समाचारों पर कृति-स्वामित्व क़ानून लागू तो नहीं होता, क्यूंकि समाचार पत्रों का तो काम ही समाचार पहुंचाना है, किन्तु फिर भी समाचारों को प्रस्तुत करने की शैली तथा शब्द चयन पर ध्यान देकर इस क़ानून के उल्लंघन से बचा जा सकता है. कॉपीराईट अधिनियम किसी विशेष व्यक्ति की कही अथवा लिखी गयी पंक्तियों, और राजनीतिक नेताओं के भाषण पर भी लागू नहीं होता है, परन्तु समाचार पत्रों में प्रकाशित लेकों तथा चित्रों पर यह क़ानून लागू होता है. यदि समाचार पत्रों में आपसी समझौता है तो, ऐसे चित्र एक से अधिक पत्रों में प्रकाशित किये जा सकते हैं.

यह क़ानून उस परिस्थिति में भी लागू नहीं होता जब किसी पुस्तक की समीक्षा के जा रही हो. समीक्षा करते समय कथनों की पुष्टी के लिए उदाहरणों के तौर पर किसी लेखक की लिखित सामग्री से कुछ कॉपी किया जा सकता है लेकिन उसमें पूरक स्त्रोत, पुस्तक का नाम, लेखक का नाम आदि का उल्लेख करना आवश्यक है.

कॉपीराईट अधिनियम में सन 1991 और 1994-95 में संशोधन किये गये थे. 1991 में संशोधन के तहत कॉपीराईट अवधि लेखक के पूरे जीवनकाल और उसकी मृत्यु के बाद 50 वर्ष से बढाकर 60 वर्ष कर दी गई. इसी प्रकार फिल्मों, चित्रों तथा सार्वजनिक व सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा प्रकाशित कार्यों के लिए भी कॉपीराईट संरक्षण 60 वर्ष किया गया.
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Old 28-05-2012, 05:07 PM   #7
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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार द्वारा 1972 में पारित किया गया था| 1972 से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे| अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है|
भारत सरकार के वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 अधिनियमित प्रभावी ढंग से इस देश के वन्य जीवन की रक्षा और तस्करी, अवैध शिकार और वन्य जीवन और उसके डेरिवेटिव में अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य के साथ. जनवरी 2003 में अधिनियम में संशोधन किया गया था और सजा और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना और अधिक कठोर बना दिया है. मंत्रालय अधिक कठोर उपायों को शुरू करने के लिए अधिनियम को मजबूत बनाने के द्वारा कानून में और संशोधन का प्रस्ताव किया है. उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव और पारिस्थितिकी महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों के लिए सुरक्षा प्रदान करना है.

यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है| यह जम्मू और कश्मीर जिसका अपना ही वन्यजीव क़ानून है को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है| इसमें ६ अनुसूचिय है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है|

अनुसूची-१ तथा अनुसूची-२ के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है| इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है|
अनुसूची-३ और अनुसूची चतुर्थ भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं|
अनुसूची-५ मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है|
छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है|
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Old 28-05-2012, 05:07 PM   #8
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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार द्वारा 1972 में पारित किया गया था| 1972 से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे| अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है|
भारत सरकार के वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 अधिनियमित प्रभावी ढंग से इस देश के वन्य जीवन की रक्षा और तस्करी, अवैध शिकार और वन्य जीवन और उसके डेरिवेटिव में अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य के साथ. जनवरी 2003 में अधिनियम में संशोधन किया गया था और सजा और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना और अधिक कठोर बना दिया है. मंत्रालय अधिक कठोर उपायों को शुरू करने के लिए अधिनियम को मजबूत बनाने के द्वारा कानून में और संशोधन का प्रस्ताव किया है. उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव और पारिस्थितिकी महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों के लिए सुरक्षा प्रदान करना है.

यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है| यह जम्मू और कश्मीर जिसका अपना ही वन्यजीव क़ानून है को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है| इसमें ६ अनुसूचिय है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है|

अनुसूची-१ तथा अनुसूची-२ के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है| इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है|
अनुसूची-३ और अनुसूची चतुर्थ भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं|
अनुसूची-५ मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है|
छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है|
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Old 08-11-2012, 07:00 PM   #9
anjana
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पोर्न वीडियो अपलोड किया तो कड़ी सजा


नई दिल्ली। अश्लील वीडियो इंटरनेट पर अपलोड करने या फिर एमएमएस
द्वारा भेजने पर सात वर्ष तक की सजा और पांच लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं की छवि गलत तरीके से पेश करने वालों के खिलाफ
कार्रवाई से सम्बंधित कानून में उक्त प्रावधान करने वाले संशोधन को गुरूवार को
मंजूरी दे दी। अब इसे संसद में पेश किया जाएगा।

महिलाओं की छवि गलत तरीके से
पेश करने वालों को भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक कड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी। साथ ही इसके
दायरे में श्रव्य-दृश्य और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी आएंगे। प्रधामनंत्री मनमोहन सिंह
की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सरकार की ओर से जारी बयान में
कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरूवार को महिला अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध)
अधिनियम, 1986 में संशोधन को मंजूरी दे दी।

बयान में कहा गया है कि कानून
में जिन संशोधनों का उद्देश्य प्रिंट एवं श्रव्य-दृश्य मीडिया के अलावा संचार के नए
साधनों जैसे इंटरनेट एवं एमएमएस के जरिए महिलाओं के गलत चित्रण को रोकना है। मौजूदा
कानून के दायरे में केवल प्रिंट मीडिया को ही शामिल किया गया है। इससे महिलाओं की
आपत्तिजनक छवि पेश करने से सम्बंधित समस्याओं का समाधान हो सकेगा, जिससे उनकी गरिमा
बनाए रखी जा सकेगी।

संशोधित कानून के तहत इसके लिए पहली बार दोषी ठहराए जाने
पर तीन साल की कैद तथा 50,000 से एक लाख रूपए तक का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार
दोषी ठहराए जाने पर इस कानून के तहत कम से कम दो साल कैद की सजा हो सकती है, जो सात
वर्षो तक बढ़ाई जा सकती है और दोषी व्यक्ति पर एक लाख से पांच लाख रूपये तक
जुर्माना लगाया जा सकता है।

कानून के तहत राज्य तथा केंद्र सरकार द्वारा
अधिकार प्राप्त अधिकारियों के अतिरिक्त केवल इंस्पेक्टर तथा इससे ऊपर के अधिकारियों
को ही तलाशी लेने व जब्ती का अधिकार होगा। इस अधिनियम को संशोधित करने की आवश्यकता
महसूस की गई। इस विधेयक के प्रारूप को अंतिम रूप देने से पहले अधिवक्ताओं, नागरिक
संगठनों सहित इस कानून से जुड़े लोगों से विचार विमर्श किया गया।
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Old 08-11-2012, 07:03 PM   #10
anjana
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भारत का संविधान दुनिया का सबसे बडा लिखित संविधान है
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