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Old 15-07-2013, 12:20 PM   #21
VARSHNEY.009
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निहारिका मे सितारों का जन्म

ब्रह्मांडीय नर्सरी जहाँ तारों का जन्म होता है एक धूल और गैसों का बादल होता है जिसे हम निहारीका (Nebula) कहते है। सभी तारों का जन्म निहारिका से होता है सिर्फ कुछ दुर्लभ अवसरो को छोड़कर जिसमे दो न्यूट्रॉन तारे एक श्याम विवर बनाते है। वैसे भी न्यूट्रॉन तारे और श्याम विवर को मृत तारे माना जाता है।
निहारिका दो अलग अलग कारणों से बनती है। एक तो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ती है। ब्रह्माण्ड के जन्म के बाद ब्रह्माण्ड मे परमाणुओं का निर्माण हुआ और इन परमाणुओं से धूल और गैस के बादलों का निर्माण हुआ। इसका मतलब यह है कि गैस और धूल जो इस तरह से बनी है उसका निर्माण तारे से नही हुआ है बल्कि यह ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ निर्मित मूल पदार्थ है।
निहारिका के निर्माण का दूसरा तरीका किसी विस्फोटीत तारे से बने सुपरनोवा से है। इस दौरान सुपरनोवा से जो पदार्थ उत्सर्जित होता है उससे भी निहारिका बनती है। इस दूसरे तरीके से बनी निहारिका का उदाहरण वेल(Veil) और कर्क (Crab) निहारिकाये है। ध्यान रखे कि निहारिकाओ का निर्माण इन दोनो तरीकों के मिश्रण से भी हो सकता है।
निहारिकाओ के प्रकार
उत्सर्जन निहारिका (Emission): इस तरह की निहारिकाये सबसे सुंदर और रंग बिरंगी होती है। ये नये बन रहे तारों से प्रकाशित होती है। विभिन्न तरह के रंग भिन्न तरह की गैसों और धूल की संरचना के कारण पैदा होते है। सामान्यतः एक बड़ी दूरबीन (8+ इंच) से उत्सर्जन निहारीका के लगभग सभी रंग देखे जा सकते है। तस्वीर मे सभी रंगो को देखने के लिये लम्बे-एक्स्पोजर से तस्वीर लेनी पढ़ती है।
चील निहारिका

चील निहारिका(M16) और झील निहारिका (Lagoon या M8) इस तरह की निहारिका के उदाहरण है। M16 मे तीन अलग अलग गैसों के स्तंभ देखे जा सकते है। यह तस्वीर हब्बल से ली गयी है और इसे साधारण दूरबीन से इतना स्पष्ट नही देखा जा सकता। इस स्तंभो के अंदर नये बने तारे है, जिनसे बहने वाली सौर वायु आसपास की गैस और धूल को दूर बहा रही है। इसमे सबसे बड़ा स्तंभ १० प्रकाश वर्ष उंचा और १ प्रकाश वर्ष चौड़ा है। इसकी खोज १७६४ मे हुयी थी और यह हमसे ७००० प्रकाश वर्ष दूर है।
निचले दी गयी M 8 की तस्वीर भी हब्बल दूरबीन से ली गयी है। यह ५२०० प्रकाश वर्ष दूर है। इसकी खोज १७४७ मे हुयी थी। इसका आकार १४०X६० प्रकाश वर्ष है।
M8 निहारिका


परावर्तन निहारिका (Reflection): यह वह निहारीकाये है जो तारों के प्रकाश को परावर्तित करती है, ये तारे या तो निहारिका के अंदर होते है या पास मे होते है। प्लेइडेस निहारिका इसका एक उदाहरण है। इसके तारों का निर्माण लगभग १००० लाख वर्ष पूर्व हुआ होगा। हमारे सूर्य का निर्माण ५०,००० लाख वर्ष पूर्व हुआ था। ये सितारे धीरे धीरे निहारिकाओ से बाहर आ रहे है।
NGC 1333 - परावर्तन निहारीका


श्याम निहारिका (Dark): ऐसे तो सभी निहारिकाये श्याम होती है क्योंकि ये प्रकाश उत्पन्न नही करती है। लेकिन विज्ञानी उन निहारिकाओ को श्याम कहते है जो अपने पीछे से आने वाले प्रकाश को एक दीवार की तरह रोक देती है। यही एक कारण है कि हम अपनी आकाशगंगा से बहुत दूर तक नही देख सकते है।
घोडे के सर जैसी निहारिका

आकाशगंगा मे बहुत सारी श्याम निहारीकाये है, इसलिये विज्ञानियों को प्रकाश के अन्य माध्यमों का(x किरण, CMB) सहारा लेना होता है।
निचले चित्र मे प्रसिद्ध घोड़े के सर के जैसी निहारिका दिखायी दे रही है। यह निहारिका एक अन्य उत्सर्जन निहारिका IC434 के सामने स्थित है।
बिल्ली की आंखो वाली निहारिका

ग्रहीय निहारिका (Planetary): इन निहारिकाओ का निर्माण उस वक्त होता है जब एक सामान्य तारा एक लाल दानव (red gaint)तारे मे बदल कर अपने बाहरी तहों को उत्सर्जित कर देता है। इस वजह से इनका आकार गोल होता है। चित्र मे बिल्ली की आंखो जैसी निहारिका(Cat’s Eye NGC 6543) दिखायी दे रही है। इस तस्वीर मे तारे के बचे हुये अवशेष भी दिखायी दे रहे है।
नयनपटल निहारिका

दूसरी तस्वीर नयनपटल निहारिका(Retina IC 4406) मे वृताकार चक्र उसके बाजु मे दिखायी दे रहा है। तारे का घूर्णन और चुम्बकिय क्षेत्र इसे वृताकार बना रहा है ना कि एक गोलाकार।
ग्रहीय यह शब्द निहारिकाओ के लिये सही नही है। यह शब्द उस समय से उपयोग मे आ रहा है जब युरेनस और नेप्च्यून की खोज जारी थी। उस समय हमारी आकाशगंगा के बाहर किसी और आकाशगंगा के अस्तित्व की भी जानकारी नही थी।
सुपरनोवा अवशेष: ये निहारिकाये सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे हुये अवशेष है। सुपरनोवा किसी विशाल तारे की मृत्यु के समय उनमें होने वाले भयानक विस्फोट की स्थिति को कहते है। कर्क (Crab) निहारीका इसका एक उदाहरण है।
कर्क निहारिका

सितारों के जन्म की प्रक्रिया
सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमे कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।
जब कोई भारी पिंड निहारीका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमे लहरे और तरंगे उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर मे एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढका दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर मे एक जगह जमा हो जाते है।
ठीक इसी तरह निहारिका मे धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नही ले लेता।
इस स्थिति को पुर्वतारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढते जाता है, पुर्वतारा गर्म होने लगता है। जैसे साईकिल के ट्युब मे जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।
जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान १०,०००,००० केल्विन तक पहुंचता है नाभिकिय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पुर्वतारा एक तारे मे बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवाये बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष मे धकेल देती है।
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काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा

श्याम विवर की गहराईयो मे जाने से पहले भौतिकी और सापेक्षता वाद के कुछ मूलभूत सिद्धांतो की चर्चा कर ली जाये !

त्री-आयामी

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा

सामान्यतः अंतराल को तीन अक्ष में मापा जाता है। सरल शब्दों में लंबाई, चौड़ाई और गहराई, गणितिय शब्दों में x अक्ष, y अक्ष और z अक्ष। यदि इसमें एक अक्ष समय को चौथे अक्ष के रूप में जोड़ दे तब यह काल-अंतराल का गंणितिय माँडल बन जाता है।
त्री-आयामी भौतिकी में काल-अंतराल का अर्थ है काल और अंतराल संयुक्त गणितिय माडल। काल और अंतराल को एक साथ लेकर भौतिकी के अनेकों गूढ़ रहस्यों को समझाया जा सका है जिसमे भौतिक ब्रह्मांड विज्ञान तथा क्वांटम भौतिकी शामिल है।
सामान्य यांत्रिकी में काल-अंतराल की बजाय अंतराल का प्रयोग किया जाता रहा है, क्योंकि काल अंतराल के तीन अक्ष में यांत्रिकी गति से स्वतंत्र है। लेकिन सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार काल को अंतराल के तीन अक्ष से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि , काल किसी पिंड की प्रकाश गति के सापेक्ष गति पर निर्भर करता है।
काल-अंतराल की अवधारणा ने बहुआयामी सिद्धांतो(higher-dimensional theories) की अवधारणा को जन्म दिया है। ब्रह्मांड के समझने के लिये कितने आयामों की आवश्यकता होगी यह एक यक्ष प्रश्न है। स्ट्रींग सिद्धांत जहां १० से २६ आयामों का अनुमान करता है वही M सिद्धांत ११ आयामों(१० आकाशीय(spatial) और १ कल्पित(temporal)) का अनुमान लगाता है। लेकिन ४ से ज्यादा आयामों का असर केवल परमाणु के स्तर पर ही होगा।
काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा का इतिहास

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा आईंस्टाईन के १९०५ के विशेष सापेक्षता वाद के सिद्धांत के फलस्वरूप आयी है। १९०८ में आईंस्टाईन के एक शिक्षक गणितज्ञ हर्मन मिण्कोवस्की आईंस्टाईन के कार्य को विस्तृत करते हुये काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा को जन्म दिया था। ‘मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह काल और अंतराल को एकीकृत संपूर्ण विशेष सापेक्षता वाद के दो मूलभूत आयाम के रूप में देखे जाने का प्रथम प्रयास था।’मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह विशेष सापेक्षता वाद को ज्यामितीय दृष्टि से देखे जाने की ओर एक कदम था, सामान्य सापेक्षता वाद में काल अंतराल का ज्यामितीय दृष्टिकोण काफी महत्वपूर्ण है।
मूलभूत सिद्धांत

काल अंतराल वह स्थान है जहां हर भौतिकी घटना होती है : उदाहरण के लिये ग्रह का सूर्य की परिक्रमा एक विशेष प्रकार के काल अंतराल में होती है या किसी घूर्णन करते तारे से प्रकाश का उत्सर्जन किसी अन्य काल-अंतराल में होना समझा जा सकता है। काल-अंतराल के मूलभूत तत्व घटनायें (Events) है। किसी दिये गये काल-अंतराल में कोई घटना(Event), एक विशेष समय पर एक विशेष स्थिति है। इन घटनाओ के उदाहरण किसी तारे का विस्फोट या ड्रम वाद्ययंत्र पर किया गया कोई प्रहार है।

पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष

काल-अंतराल यह किसी निरीक्षक के सापेक्ष नहीं होता। लेकिन भौतिकी प्रक्रिया को समझने के लिये निरीक्षक कोई विशेष आयामों का प्रयोग करता है। किसी आयामी व्यवस्था में किसी घटना को चार पूर्ण अंकों(x,y,z,t) से निर्देशित किया जाता है। प्रकाश किरण यह प्रकाश कण की गति का पथ प्रदर्शित करती है या दूसरे शब्दों में प्रकाश किरण यह काल-अंतराल में होनेवाली घटना है और प्रकाश कण का इतिहास प्रदर्शित करती है। प्रकाश किरण को प्रकाश कण की विश्व रेखा कहा जा सकता है। अंतराल में पृथ्वी की कक्षा दीर्घ वृत्त(Ellpise) के जैसी है लेकिन काल-अंतराल में पृथ्वी की विश्व रेखा हेलि़क्स के जैसी है।
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष सरल शब्दों में यदि हम x,y,z इन तीन आयामों के प्रयोग से किसी भी पिंड की स्थिती प्रदर्शित कर सकते है। एक ही प्रतल में दो आयाम x,y से भी हम किसी पिंड की स्थिती प्रदर्शित हो सकती है। एक प्रतल में x,y के प्रयोग से, पृथ्वी की कक्षा एक दीर्घ वृत्त के जैसे प्रतीत होती है। अब यदि किसी समय विशेष पर पृथ्वी की स्थिती प्रदर्शित करना हो तो हमें समय t आयाम x,y के लंब प्रदर्शित करना होगा। इस तरह से पृथ्वी की कक्षा एक हेलिक्स या किसी स्प्रींग के जैसे प्रतीत होगी। सरलता के लिये हमे z आयाम जो गहरायी प्रदर्शित करता है छोड़ दिया है।
काल और समय के एकीकरण में दूरी को समय की इकाई में प्रदर्शित किया जाता है, दूरी को प्रकाश गति से विभाजित कर समय प्राप्त किया जाता है।
काल-अंतराल अन्तर(Space-time intervals)

काल-अंतराल यह दूरी की एक नयी संकल्पना को जन्म देता है। सामान्य अंतराल में दूरी हमेशा धनात्मक होनी चाहिये लेकिन काल अंतराल में किसी दो घटना(Events) के बीच की दूरी(भौतिकी में अंतर(Interval)) वास्तविक , शून्य या काल्पनिक(imaginary) हो सकती है। ‘काल-अंतराल-अन्तर’ एक नयी दूरी को परिभाषित करता है जिसे हम कार्टेशियन निर्देशांको मे x,y,z,t मे व्यक्त करते है।
s2=r2-c2t2
s=काल-अंतराल-अंतर(Space Time Interval) c=प्रकाश गति
r2=x2+y2+z2
काल-अंतराल में किसी घटना युग्म (pair of event) को तीन अलग अलग प्रकार में विभाजित किया जा सकता है
  • १.समय के जैसे(Time Like)- दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरत से ज्यादा समय व्यतित होना; s2 <0)
  • २.प्रकाश के जैसे(Light Like)-(दोनों घटनाओ के मध्य अंतराल और समय समान है;s2=0)
  • ३.अंतराल के जैसे (दोनों घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरी समय से कम समय का गुजरना; s2>0) घटनाये जिनका काल-अंतराल-अंतर ऋणात्मक है, एक दूसरे के भूतकाल और भविष्य में है।
================================================== ============
विश्व रेखा(World Line) : भौतिकी के अनुसार किसी पिंड का काल-अंतराल के चतुर्यामी तय किये गये पथ को विश्व रेखा कहा जाता है।
हेलि़क्स : स्प्रिंग या स्क्रू के जैसा घुमावदार पेंचदार आकार।
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स्टार वार की वापसी- अंतरिक्ष से जासूसी : अमरीकी अंतरिक्ष यान एक्स ३७

बोइंग एक्स ३७ अमरीकी मानवरहित अंतरिक्षयान है। यह अमरीकी वायु सेना द्वारा पृथ्वी की कक्षा मे पुनःप्रयोग किये जाने वाली तकनिको के प्रदर्शन मे उपयोग मे लाया गया है। इसकी लंबाई ८.९ मीटर है और इसमे पिछले हिस्से मे दो पंख लगे है।
अमरीका ने इस यान को गोपनिय रखा था लेकिन विश्व भर मे फैले शौकिया खगोल विज्ञानियो(Amateur Astronomers) ने इसे पृथ्वी की कक्षा मे देख लिया। शौकिया खगोल विज्ञानियो के अनुसार इस यान का लक्ष्य अंतरिक्ष से निगरानी तथा सैनिक सर्वेक्षण है। उनके अनुसार एक्स ३७बी उत्तर कोरीया, अफगानीस्तान के उपर से गुजरा था तथा यह यान हर चार दिनो मे उसी स्थान से गुजरता है। इस यान की कक्षा ४१० किमी है जो कि सैनिक सर्वेक्षण उपग्रहो की होती है।
एक्स ३७-अमरिकी मानव रहित अंतरिक्ष यान

पेंटागन के अनुसा एक्स ३७बी का उद्देश्य अंतरिक्ष हथियारो का निर्माण नही है।
एक्स ३७ का प्रारंभ नासा ने १९९९ मे किया था, २००४ मे इसे अमरीकी रक्षा विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया। इसकी पहली परिक्षण उड़ान ७ अप्रैल २००६ को एडवर्ड वायु सैनीक अड्डे पर की गयी थी। इस यान की पहली कक्षा मे उड़ान २२ अप्रैल २०१० को एटलस ५ से हुयी थी। ३ दिसंबर २०१० को यह यान पृथ्वी पर वापिस आया। यह इस यान के उष्मारोधको तथा हायपर्सोनीक एअरोडायनामिक नियत्रंण की पहली जांच थी।
यान का निर्माण
१९९९ मे नासा ने बोइंग इन्टेग्रेटेड डीफेन्स सिस्टम को इस यान की अभिकल्पना और निर्माण (Design and Development) के लिये चुना। इस यान का निर्माण बोइंग की कैलीफोर्निया स्थित फैंटम वर्कस शाखा मे हुआ। अगले चार वर्ष के दौरान नासा ने इस कार्य पर $१०९ मीलीयन, अमरीकी वायुसेना ने $१६ मीलीयन तथा बोइंग ने $६७ मीलीयन खर्च कीये। २००२ के अंत मे नासा के अंतरिक्षयात्रा की नयी रूपरेखा के अंतर्गत बोइंग को $ ३०१ मीलीयन का ठेका दिया गया।
१३ सितंबर २००४ को ए़स ३७ को नासा से DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) को हस्तांरित कर दिया गया। इस यान को इसके बाद गोपनिय घोषित कर दिया गया। नासा के अंतरिक्ष यात्रा के कार्यक्रम यात्री अन्वेषण यान केन्द्रित होते है लेकिन DARPA ने एक्स ३७ को रक्षा विभाग के अंतर्गत नयी अंतरिक्ष निती के अनुसार विकसित किया। यह नयी अंतरिक्ष निती चैलेंजर दुर्घटना के बाद मे बनायी गयी थी।
एक्स ३७ को मूल रूप से अंतरिक्ष शटल द्वारा कक्षा मे स्थापित करने के लिये अभिकल्पित(Design) किया गया था। लेकिन बाद मे इस विधी को अतयंत खर्चीला पाये जाने पर इस यान को पुनः अभिकल्पित (Re-Design) कर डेल्टा४ या उसके जैसे राकेट के लिये बनाया गया। एक्स ३७ का वायुगतिकीय अभिकल्पन (Aerodynamic Design) अंतरिक्ष शटल से लिया गया है।
अंतरिक्ष सहायता मिशन के लक्ष्यो के अंतर्गत एक्स ३७ को इस तरह से बनाया गया है कि यह उपग्रहो मे इण्धन भर सकता है या उनके सौर पैनलो को बदल या मरम्मत कर सकता है। यह कार्य वह अपनी यांत्रिक भूजा से कर सकता है। इसके अतिरिक्त इसकी भारवाही क्षमता अंतरिक्ष नियंत्रण , अंतरिक्ष युद्ध, अतरिक्ष आक्रमण, अंतरिक्ष बचाव मे प्रयोग की जा सकती है।

ग्लाईड(glide) जांच
ग्लाईड जांच के लिये प्रयुक्त यान मे प्रणोदन प्रणाली(Propulsion System) नही थी। इसके मुख्य धड़ वाले हिस्से (Fuselage) को दूसरे यान से बांधे जाने लायक बनाया गया था। सितंबर २००४ मे इसकी ग्लाईड प्रणाली की जांच के लिये अत्यंत उंचाई पर उड़ान भरने वाला यान ’स्केलड कम्पोजीट व्हाइट नाईट’ को चुना गया।
२१ जुन २००५ को इस यान को व्हाईट नाईट ले निचे बांध कर मोजेव अण्तरिक्ष केन्द्र से उड़ाया गया। २००५ के अंत मे एक्स ३७ के ढांचे ने बदलाव कर अगला चक्का लगाया गया। इसकी पहली सार्वजनिक उड़ान १० मार्च २००६ को थी लेकिन आर्कटिक तुफान के कारण रद्द कर दी गयी। अगली उड़ान १५ मार्च २००६ को थी जो तेज हवाओ से रद्द हो गयी।
२४ मार्च २००६ को इस यान की उड़ान की गयी लेकिन डाटा लिंक के काम ना करने से व्हाईट नाईट से मुक्त होकर स्वतण्त्र उड़ान नही हो पायी और यह यान व्हाईट नाईट से बधा हुआ ही वापिस आ गया। ७ अप्रेल २००६ को एक्स ३७ ने व्हाईट नाईट से मुक्त हो कर स्वतन्त्र उड़ान की लेकिन उतरते समय यह उड़ान पट्टी से आगे चला गया और यान मे मामूली क्षति आ गयी।
जब यान की मरम्मत हो रही थी इस कार्यक्रम को मोजेव अंतरिक्ष से वायुसेना के केन्द्र ४२ मे स्थानांतरित कर दिया गया। व्हाईट नाईट मोजेव मे ही रहता था लेकिन उड़ान के समय उसे केन्द्र ४२ लाया जाता था। इसके पश्चात ५ जांच उड़ान और की गयी जिसमे से २ उड़ानो मे एक्स ३७ व्हाईट नाईट से मुक्त होकर ग्लाईट करते हुये सही तरह से उतर गया।
एक्स ३७ कक्षिय जांच यान
१७ नवंबर २००६ को अमरीकी वायु सेना ने घोषणा की कि वह नासा के एक्स ३७ ए से एक्स३७ बी बनायेगी। वायु सेना संस्करण को एक्स ३७ बी कक्षिय जांच यान (Orbital Test Vehicle) नाम दिया गया। यह कार्यक्रम DARPA, नासा तथा वायुसेना का संयुक्त उपक्रम था जिसने बोइंग मुख्य ठेकेदार था। एक्स ३७बी अपनी कक्षा मे २७० दिन तक रह सकता है।
पृथ्वी की कक्षा मे एक्स ३७ (चित्रकार की कल्पना)

एक्स ३७बी मूल कार्यक्रम के अनुसार अंतरिक्ष शटल से उड़ान भरने वाला था लेकिन कोलंबिया शटल दुर्घटना के पश्चात इस कार्यक्रम मे बदलाव कर उसे डेलटा २-७९२० के साथ उड़ान भरने योग्य निर्माण किया गया। बाद मे उसे एटलस ५ के लिये परिवर्तन किये गये।
एक्स ३७ पृथ्वी पर वापिसी के दौरान २५ मैक की गति के लिये बनाया गया है। इस यान मे उन्नत उष्णतारोधी आवरण,वैमानिकी उपकरण, स्वचालित निदेशन उपकरण तथा उन्नत एअरफ़्रेम लगा हुआ है। इस यान मे राकेट्डायन एआर२-३ इण्जन लगे है।
वन्डेनबर्ग वायुसैनिक अड्डे पर एक्स ३७

एक्स ३७बी की पहली उड़ान (यु एस ए २१२) एटलस ५ राकेट से केप केनावेरल वायुसेना केन्द्र से २२ अप्रैल २०१० २३:५८ जी एम टी पर हुयी। यान को निम्न पृथ्वी कक्षा(LEO -Low Earth Orbit) मे रखा गया।
वायु सेना ने इस उड़ान के बारे मे ज्यादा जानकारीयां नही दी क्योंकि यह कार्यक्रम गोपनिय है। लेकिन विश्व भर के शौकिया खगोल विज्ञानियो ने इस यान को कक्षा मे पहचान लिया और जानकारी पूरे विश्व भर मे वितरित कर दी। इन शौकिया खगोल विज्ञानियो ने बताया कि २२ मई २०१० को यह यान ३९.९९ डीग्री झुकाव पर था और हर ९० मिनिट मे पृथ्वी की ४०१ गुणा ४२२ किमी की कक्षा मे चक्कर लगा रहा है।
एक्स ३७बी ३ दिसंबर २०१० को १:१६ PST को वेंडनबर्ग वायुसेना अड्डे पर उतर गया। सुरक्षा की दृष्टि से एडवर्ड्स वायु सेना अडडा यान के उतरने के लिये अतिरिक्त व्यवस्था के रूप मे चुना गया था।
तकनिकी जानकारियां
यात्री : कोई नही
लंबाई : ८.९ मीटर
पंखो की चौडाई :४.५ मीटर
उंचाई : २.९ मीटर
कुल वजन : ४९९० किग्रा
उर्जा निर्माण क्रेन्द्र : १ राकेट इंजन
उर्जा : गैलीयम आर्सेनाईड सोलर सेल्स जिन्मे लीथियम आयन बैटरी लगी है।
पेलोड और पेलोड बे : २२७ किग्रा. २.१ x १.२ मी
कक्षा मे गति : २८२०० किमी/घंटा
कक्षा :LEO – निम्न पृथ्वी कक्षा
कक्षा मे समय : २७० दिनो तक
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क्या समय यात्रा संभव है?


एच जी वेल्स के उपन्यास “द टाईम मशीन” मे नायक एक विशेष कुर्सी पर बैठता है जिस पर कुछ जलते बुझते बल्ब लगे होते है, कुछ डायल होते है , नायक डायल सेट करता है, कुछ बटन दबाता है और अपने आपको भविष्य के हज़ारों वर्षों बाद में पाता है।
समय यान (Time Machine)- २००२ मे बनी हालीवुड की फिल्म मे दिखाया समय यान

उस समय तक इंग्लैड नष्ट हो चुका होता है और वहां पर मार्लाक और एलोई नामक नये प्राणीयों का निवास होता है। यह विज्ञान फतांसी की एक महान कथा है लेकिन वैज्ञानिकों ने समय यात्रा की कल्पना या अवधारणा पर कभी विश्वास नही किया है। उनके अनुसार यह सनकी,रहस्यवादी और धुर्तो के कार्यक्षेत्र की अवधारणा है , उनके पास ऐसा मानने के लिये ठोस कारण भी है। लेकिन क्वांटम गुरुत्व (Quantum Gravity) मे आश्चर्यजनक रूप से प्रगति इस अवधारणा की चूलो को हिला रही है।
समय यात्रा की अवधारणा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इससे जुड़े पहेलीयों जैसे ढेर सारे विरोधाभास (Paradox) है।
विरोधाभास १:
इस उदाहरण के अनुसार कोई व्यक्ति बिना माता पिता के भी हो सकता है। क्या होगा जब कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने पैदा होने से पहले अपने माता पिता की हत्या कर दे ? प्रश्न यह है कि यदि उसके माता-पिता उसके जन्म से पहले ही मर गये तो उनकी हत्या करने के लिये वह व्यक्ति पैदा कैसे हुआ ?
विरोधाभास २:
यह ऐसा विरोधाभास है जिसमे एक व्यक्ति का कोई भूतकाल नहीं है। उदाहरण के लिये मान लेते है कि एक युवा आविष्कारक अपने गैराज में बैठ कर समययान मशीन बनाने की कोशिश कर रहा है। अचानक एक वृद्ध व्यक्ति उसके सामने प्रकट होता है और उसे समययान बनाने की विधि देकर अदृश्य हो जाता है। युवा आविष्कारक समय यात्रा से प्राप्त जानकारीयो से शेयर मार्केट, घुड़दौड़, खेलों के सट्टे से काफी सारा पैसा कमाकर अरबपति बन जाता है। जब वह बूढ़ा हो जाता है तब वह समय यात्रा कर भूतकाल में जाकर अपनी ही युवावस्था को समययान बनाने की विधि देकर आता है। प्रश्न यह है कि समययान बनाने की विधि कहां से आयी ?
विरोधाभास ३:

इस विरोधाभास मे एक व्यक्ति अपनी ही माता है। ’जेन’ को एक अनाथालय में एक अजनबी छोड़ गया था। जब जेन युवा होती है उसकी मुलाकात एक अजनबी से होती है, उस अजनबी के संसर्ग से जेन गर्भवती हो जाती है। उस समय एक दुर्घटना घटती है। जेन एक बच्ची को जन्म देते समय मरते मरते बचती है लेकिन बच्ची का रहस्यमय तरीके से अपहरण हो जाता है। जेन की जान बचाते समय डाक्टरो को पता चलता है कि जेन के पुरुष और महिला दोनों जननांग है। डाक्टर जेन को बचाने के लिये उसे पुरुष बना देते है। अब जेन बन जाती है “जिम”।इसके बाद जिम शराबी बन जाता है। एक दिन उसे भटकते हुये एक शराबख़ाने में एक बारटेंडर मिलता है जो कि एक समययात्री होता है। जिम उस समययात्री के साथ भूतकाल मे जाता है वहां उसकी मुलाकात एक लड़की से होती है। वह लड़की जिम के संसर्ग में गर्भवती हो जाती है और एक बच्ची को जन्म देती है। अपराध बोध में जिम उस नवजात बच्ची का अपहरण कर उसे एक अनाथालय मे छोड़ देता है। बाद में जिम समययात्रीयो के दल में शामिल हो जाता है और भटकती जिन्दगी जीता है। कुछ वर्षों बाद उसे एक दिन उसे सपना आता है कि उसे बारटेंडर बनकर भूतकाल में एक जिम नामके शराबी से मिलना है। प्रश्न : जेन की मां, पिता, भाई, बहन, दादा, दादी, बेटा,बेटी, नाती, पोते कौन है?

इन्ही सभी विरोधाभासो के चलते समययात्रा को असंभव माना जाता रहा है। न्युटन ने समय को एक बाण के जैसा माना था, जिसे एक बार छोड़ दिया तब वह एक सीधी रेखा मे चलता जाता है। पृथ्वी पर एक सेकंड, मंगल पर एक सेकंड के बराबर था। ब्रह्मांड मे फैली हुयी घड़ीयां एक गति से चलती थी। आइंसटाईन ने एक नयी क्रांतिकारी अवधारणा को जन्म दिया। उनके अनुसार समय एक नदी के प्रवाह के जैसे है जो सितारो, आकाशगंगाओ के घुमावो से बहता है, इसकी गति इन पिंडो के पास से बहते हुये कम ज्यादा होती रहती है। पृथ्वी पर एक सेकंड मंगल पर एक सेकंड के बराबर नही है। ब्रह्मांड मे फैली हुयी घड़ीयां अपनी अपनी गति से चलती है। आइंस्टाईन की मृत्यु से पहले उन्हे एक समस्या का सामना करना पडा था। आइंस्टाइन के प्रिन्स्टन के पड़ोसी कर्ट गोएडल (जो शायद पिछले ५०० वर्षो के सर्वश्रेष्ठ गणितिय तर्क शास्त्री है) ने आईन्स्टाईन के समीकरणों का एक ऐसा हल निकाला जो समय यात्रा को संभव बनाता था। समय की इस नदी के प्रवाह मे अब कुछ भंवर आ गये थे जहां समय एक वृत्त मे चक्कर लगाता था ! गोयेडल का हल शानदार था, वह हल एक ऐसे ब्रह्मांड की कल्पना करता था जो एक घूर्णन करते हुये द्रव से भरा है। कोई भी इस द्रव के घूर्णन की दिशा मे चलता जायेगा अपने आपको प्रारंभिक बिन्दू पर पायेगा लेकिन भूतकाल मे !
अपने वृत्तांत मे आईन्स्टाईन ने लिखा है कि वे अपने समीकरणों के हल मे समययात्रा की संभावना से परेशान हो गये थे। लेकिन उन्होने बाद मे निष्कर्ष निकाला कि ब्रह्मांड घूर्णन नही करता है, वह अपना विस्तार करता है(महाविस्फोट – Big Bang Theory)। इस कारण गोएडल के हल को माना नही जा सकता। स्वाभाविक है कि यदि ब्रह्मांड घूर्णन करता होता तब समय यात्रा सारे ब्रह्मांड मे संभव होती।
१९६३ मे न्युजीलैंड के एक गणितज्ञ राय केर ने घूर्णन करते हुए ब्लैक होल के लिये आइंसटाईन के समीकरणों का हल निकाला। इस हल के कुछ विचित्र गुणधर्म थे। इसके अनुसार घूर्णन करता हुआ ब्लैक होल एक बिन्दु के रूप मे संकुचित ना होकर एक न्युट्रान के घुमते हुये वलय के रूप मे होगा। यह वलय इतनी तेजी से घुर्णन करेगा कि अपकेन्द्री बल(centrifugal force) इसे एक बिन्दु के रूप मे संकुचित नही होने देगा। यह वलय एक तरह से एलीस के दर्पण के जैसे होगा। इस वलय मे से जानेवाला यात्री मरेगा नही बल्कि एक दूसरे ब्रह्मांड मे चला जायेगा। इसके पश्चात आईन्सटाईन के समीकरणॊ के ऐसे सैंकड़ो हल खोजे जा चूके है जो समय यात्रा या अंतरिक्षीय सूराख़ों (Wormholes) की कल्पना करते है।

ये अंतरिक्षीय सूराख ना केवल अंतरिक्ष के दो स्थानो को जोड़ते है बल्कि दो समय क्षेत्रो को भी जोड़ते है। तकनीकी रूप से इन्हे समय यात्रा के लिये प्रयोग किया जा सकता है। हाल ही मे क्वांटम सिद्धांत मे गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जोड़ने के जो प्रयास हुये है उपर दिये गये विरोधाभासो के बारे मे कुछ और जानकारी दी है। क्वांटम भौतिकी मे किसी भी वस्तु की एक से ज्यादा अवस्था हो सकती है। उदाहरण के लिये एक इलेक्ट्रान एक समय मे एक से ज्यादा कक्षा मे हो सकता है(इसी तथ्य पर ही सारे रासायनिक सिद्धांत आधारित है)। क्वांटम भौतिकी के अनुसार स्क्राडीन्गर की बिल्ली एक साथ दो अवस्था मे हो सकती है, जीवित और मृत। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल मे जाकर उसमे परिवर्तन करने पर जो परिवर्तन होगे उससे एक समानांतर ब्रम्हाण्ड बनेगा। मौलिक ब्रम्हाण्ड वैसा ही रहेगा।
यदि हम भूतकाल मे जाकर महात्मा गांधी को बचाते है तब हम किसी और के भूतकाल को बचा रहे होंगे, हमारे गांधी फिर भी मृत ही रहेंगे। महात्मा गांधी को हत्यारे से बचाने पर ब्रह्मांड दो हिस्सो मे बंट जायेगा, एक ब्रह्मांड जहां गाधींजी की हत्या नही हुयी होगी, दूसरा हमारा मौलिक ब्रह्मांड जहां गांधीजी की हत्या हुयी है। इसका मतलब यह नही कि हम एच जी वेल्स के समय यान मे प्रवेश कर समय यात्रा कर सकते है! अभी भी कई रोड़े है !
पहली, मुख्य समस्या है उर्जा ! एक कार के लिये जिस तरह पेट्रोल चाहीये उसी तरह समययान के लिये काफी सारी मात्रा मे ऊर्जा चाहिये! इतनी मात्रा मे ऊर्जा प्राप्त करने के लिये हमे किसी तारे की संपूर्ण ऊर्जा का उपयोग करने के तरीके सीखने होगें या असाधारण पदार्थ जैसे ऋणात्मक पदार्थ(Negative Matter) (ऐसा पदार्थ जो गुरुत्वाकर्षण से उपर जाये, निचे ना गिरे) खोजना होगा या ऋणात्मक ऊर्जा(Negative Energy) का श्रोत खोजना होगा। (ऐसा माना जाता था कि ऋणात्मक ऊर्जा असंभव है लेकिन अल्प मात्रा मे ऋणात्मक ऊर्जा का प्रयोगिक सत्यापन कैसीमीर प्रभाव(Casimir effect) से हो चूका है।) ऋणात्मक ऊर्जा का बड़े पैमाने पर उत्पादन कम से कम अगली कुछ शताब्दीयो तक संभव नही है। ऋणात्मक पदार्थ अभी तक खोजा नही गया है। ध्यान दे ऋणात्मक पदार्थ प्रतिपदार्थ (Antimatter) या श्याम पदार्थ(Dark Matter) नही है।
इसके अलावा समस्या स्थायित्व की भी है। केर का ब्लैक होल अस्थायी हो सकता है, यह किसी के प्रवेश करने से पहले ही बंद हो सकता है। क्वांटम भौतिकी के अंतिरिक्षिय सूराख भी किसी के प्रवेश करने से पहले बंद हो सकते है। दुःर्भाग्य से हमारी गणित इतनी विकसित नही हुयी है कि वह इन अंतिरिक्षिय सूराखो(Wormholes) के स्थायित्व की गणना कर सके क्योंकि इसके लिये हमे “थ्योरी आफ एवरीथिंग(Theory of Everything)” चाहिये जो गुरुत्व और क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतो का एकीकरण कर सके। अभी तक थ्योरी आफ एवरीथिंग का एक ही पात्र सिद्धांत है सुपरस्ट्रींग थ्योरी(Super String Theory)। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो अच्छी तरह से परिभाषित अवश्य है लेकिन इसका हल अभी तक किसी के पास नही है।
स्याम विवर (Black Hole)

मजेदार बात यह है कि स्टीफन हांकिन्ग ने समय यात्रा की अवधारणा का विरोध किया था। उन्होने यह भी कहा था कि उनके पास इसके अनुभवजन्य प्रमाण है। उनके अनुसार यदि समय यात्रा संभव है, तब भविष्य से आने वाले समय यात्री कहां है ? भविष्य से कोई यात्री नही है, इसका अर्थ है समय यात्रा संभव नही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो मे सैधांतिक भौतिकी मे काफी नयी खोज हुयी है ,जिससे प्रभावित होकर हाकिंग ने अपना मत बदल दिया है। अब उनके अनुसार समय यात्रा संभव है लेकिन प्रायोगिक(practical) नही !
हमारे पास भविष्य से यात्री इस कारण नही आते होंगे क्योंकि हम इतने महत्वपूर्ण नही है। समय यात्रा कर सकने में सफल सभ्यता काफी विकसीत होगी, वह किसी तारे की सम्पूर्ण ऊर्जा के दोहन में सक्षम होगी। जो भी सभ्यता किसी तारे की ऊर्जा पर नियंत्रण कर सकती है उनके लिये हम एक आदिम सभ्यता से बढकर कुछ नही है। क्या आप चिंटीयो को अपना ज्ञान, औषधी या ऊर्जा देते है ? आपके कुछ दोस्तो को तो शायद उनपर पैर रख कर कुचलने की ईच्छा होती होगी।
कल कोई आपके दरवाजे पर दस्तक दे और कहे कि वह भविष्य से आया है और आपके पोते के पोते का पोता है तो दरवाजा बंद मत करिये। हो सकता है कि वह सही हो।
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लाखों तारे आसमां मे

आप से एक मासूम सा प्रश्न है। कितने दिनों पहले आपने रात्रि में आसमान में सितारों को देखा है ? कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्ष पहले ? कब आप अपने घर की छत पर या आंगन में आसमानी सितारों के तले सोये है ? बच्चों को तारों को दिखाकर बताया है कि वह जो तारा दिख रहा है वह ध्रुव तारा है, उसके उपर सप्तऋषि है ? वो देखो आकाश के मध्य में व्याघ्र है ?

आज इन तारों के बारे में बात की जाये ।

आसमान में जो टिमटिमाते बिन्दु जैसे तारे दिखायी दे रहे है, वह हमारे सूर्य जैसे विशाल है। इनमें से कुछ तो सूर्य से हज़ारों गुणा बड़े और विशालकाय है। ये तारे हमारी पृथ्वी से हज़ारों अरबों किमी दूर है, इसलिये इतने छोटे दिखायी दे रहे है।

एक तारा एक विशालकाय चमकता हुआ गैस का पिण्ड होता है जो गुरुत्वाकर्षण के कारण बंधा हुआ होता है। पृथ्वी के सबसे पास का तारा सूर्य है, यही सूर्य पृथ्वी की अधिकतर ऊर्जा का श्रोत है। अन्य तारे भी पृथ्वी से दिखायी देते है लेकिन रात में क्योंकि दिन में वे सूर्य की रोशनी से दब जाते है। एक कारण हमारा वायुमंडल में होनेवाला प्रकाश किरणो का विकिरण है जो धूल के कणों से सूर्य की किरणों के टकराने से उत्पन्न होता है। यह विकिरण वायु मण्डल को ढंक सा लेता है जिससे हम दिन में तारे नहीं देख पाते है।

ऐतिहासिक रूप से इन तारों के समूहों को हमने विभिन्न नक्षत्रों और राशियों में विभाजित कर रखा है। सिंह राशि, तुला राशि, व्याघ्र, सप्तऋषि यह सभी तारों के समुह है। लेकिन इन तारा समूहों के तारे एक दूसरे के इतने पास भी नहीं है जितने हमें दिखायी देते है। इन तारा समूहों के तारों के मध्य में दूरी सैकड़ों हज़ारों प्रकाश वर्ष भी हो सकती है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ है प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। प्रकाश एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की दूरी तय करता है।

तारे अपने जीवन के अधिकतर काल में हायड्रोजन परमाणुओ के संलयन से प्राप्त उर्जा से चमकते रहते है। इस प्रक्रिया मे हायड़्रोजन परमाणु नाभिकों के संलयन से हिलीयम बनती है। हिलीयम और उससे भारी तत्वों का तारों में इसी नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से निर्माण होता है। जब इन तारों में हायड्रोजन खत्म हो जाती है तब इन तारों की भी मृत्यु हो जाती है। तारों की मृत्यु के प्रक्रिया में नाभिकीय संलयन से अधिक भारी तत्वों जैसे कार्बन , खनिजों का निर्माण होता है जो हमारे जीवन के लिये आवश्यक है। तारों की मृत्यु भी नया जीवन देती है ! एक मृत तारा अपनी मृत्यु के दौरान नये तारे को भी जन्म दे सकता है या एक भूखे श्याम विवर (Black Hole) मे भी बदल सकता है। हमारा सूर्य भी ऐसे किसी तारे की मृत्यु के दौरान बना था, उस तारे ने अपनी मृत्यु के दौरान न केवल सूर्य को जन्म दिया साथ में जीवन देने वाले आवश्यक तत्वों का भी निर्माण किया था।

तारों का जन्म

तारों का जन्म अंतरिक्ष में निहारिका में होता है, ये निहारिकायें गैस और धूल का विशालकाय (लम्बाई चौड़ाई सैकड़ों हज़ारों प्रकाश वर्ष में) बादल होती है। इन निहारीकाओं मे अधिकतर हायड्रोजन, २३-२८% हीलियम और कुछ प्रतिशत भारी तत्व होते है। ऐसे ही एक तारों की नर्सरी (निहारीका) ओरीयान निहारीका(Orion Nebula) है।
सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमें कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह हलचल सुपरनोवा(Supernova) से उत्पन्न लहर भी हो सकती है। यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।

एक तारे का जन्म

पूर्वतारा अवस्था (Prorostart State)
जब कोई भारी पिंड निहारिका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमें लहरे और तरंगें उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर में एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढ़का दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर में एक जगह जमा हो जाते है। ठीक इसी तरह निहारिका में धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नहीं ले लेता।

इस स्थिति को पूर्व तारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढ़ते जाता है, पूर्व तारा गर्म होने लगता है। जैसे साइकिल के ट्युब में जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।

जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान १०,०००,००० केल्विन तक पहुंचता है नाभिकीय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पूर्व तारा एक तारे में बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवायें बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष में धकेल देती है।

नव तारा जिसका द्र्व्यमान २ सौर द्रव्यमान से कम होता है उन्हे टी टौरी(T Tauri) तारे कहते है। उससे बड़े तारों को हर्बीग एइ/बीइ (Herbig Ae/Be) कहते है। ये नव तारे अपनी घूर्णन अक्ष की दिशा में गैस की धारा(Jet) उत्सर्जित करते है जिससे संघनित होते नव तारे की कोणीय गति(Angular Momentum) कम होते जाती है। इस उत्सर्जित गैस की धारा से तारे के आस पास के गैस के बादल के दूर होने में मदद मिलती है।

मुख्य क्रम (Main Sequence)
तारे का मुख्यक्रम

तारे अपने जीवन का ९०% समय अपने केन्द्र पर उच्च तापमान तथा उच्च दबाव पर हायड्रोजन के संलयन से हिलीयम बनाने में व्यतीत करते है। इन तारों को मुख्य क्रम का तारा कहा जाता है। इन तारों के केन्द्र में हिलीयम की मात्रा धीरे धीरे बढ़ती जाती है जिसके फलस्वरूप केन्द्र मे नाभिकिय संलयन की दर को संतुलित रखने के लिये तारे का तापमान और चमक बढ़ जाती है। उदाहरण के लिये सूर्य की चमक ४.६ अरब वर्ष पहले की तुलना में आज ४०% ज्यादा है। हर तारा कणों की एक खगोलीय वायु प्रवाहित करता है जिससे अंतरिक्ष में गैस की एक धारा बहते रहती है। अधिकतर तारों के लिये द्र्व्यमान का यह क्षय नगण्य होता है। सूर्य हर वर्ष अपने द्र्व्यमान का १/१००००००००००००००० वा हिस्सा इस खगोलीय वायु के रूप मे प्रवाहित कर देता है। लेकिन कुछ विशालकाय तारे १/१०००००००० से १/१०००००० सौर द्र्व्यमान प्रवाहित कर देते है। सूर्य से ५० गुना बड़े तारे अपने द्र्व्यमान का आधा हिस्सा अपने जीवन काल में खगोलीय वायु के रूप में प्रवाहित कर देते है।

तारों के मुख्य क्रम में रहने का समय उस तारे के कुल इंधन और इंधन की खपत की दर पर निर्भर करता है अर्थात उसके प्रारंभिक द्र्व्यमान और चमक पर। सूर्य के लिये यह समय १०१० वर्ष है। विशाल तारे अपना इंधन ज्यादा तेजी से खत्म करते है और कम जीवन काल के होते है। छोटे तारे (लाल वामन तारे-Red Dwarf) धीमे इंधन प्रयोग करते है और ज्यादा जीवन काल के होते है। यह जीवन काल १० अरब वर्ष से सैकड़ो अरब वर्ष हो सकता है। ये छोटे तारे धीरे धीरे मंद और मंद होते हुये अंत में बूझ जाते है। इन तारों का जीवन ब्रह्मांड की उम्र से ज्यादा होता है, आज तक कोई भी लाल बौना तारा इस अवस्था तक नहीं पहुँचा है।

तारे के अपने द्रव्यमान के अतिरिक्त तारे के विकास में हिलीयम से भारी तत्वों की भी भूमिका होती है। खगोल शास्त्र मे हिलियम से भारी सभी तत्व धातु माने जाते है तथा इन तत्वों के रासायनिक घनत्व को धात्विकता कहते है। यह धात्विकता तारे के इंधन के प्रयोग की गति को प्रभावित कर सकती है, चुंबकीय क्षेत्र के निर्माण को नियंत्रित कर सकती है, खगोलीय वायु के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है।

मुख्य क्रम के पश्चात
लाल दानव(Red Giant) तारा
तारे जिनका द्रव्यमान कम से कम सुर्य के द्र्व्यमान का ४०% होता है अपने केन्द्र की हायड्रोजन खत्म करने के बाद फूलकर लाल दानव तारे बन जाते है। आज से ५ अरब वर्ष बाद हमारा सूर्य भी एक लाल दानव बन जायेगा, उस समय वह बढकर अपने आकार का २५० गुणा हो जायेगा। सुर्य की परिधी हमारी पृथ्वी की कक्षा के बराबर होगी।
सूर्य के द्रव्यमान से २.२५ गुणा भारी लाल दानव तारे के केन्द्र की सतह पर हायड्रोजन के सलयंन की प्रक्रिया जारी रहती है। अंत मे तारे का केन्द्र संकुचित होकर हीलीयम संलयन प्रारंभ कर देता है। हीलीयम के खत्म होने के बाद कार्बन और आक्सीजन का संलयन प्रारंभ होता है। इसके बाद यह तारा भी लाल दानव की तरह फूलना शुरू कर देता है लेकिन ज्यादा तापमान के साथ।
लाल महादानव तारे
लाल महादानव(बीटल गूज)

सूर्य के द्रव्यमान से नौ गुणा से ज्यादा भारी तारे हिलियम ज्वलन(संलयन-Fusion) की प्रक्रिया के बाद लाल महादानव बन जाते है। हिलियम खत्म होने के बाद ये तारे हीलीयम से भारी तत्वों का संलयन करते है। तारो का केन्द्र संकुचित होकर कार्बन का संलयन प्रारंभ करता है, इसके पश्चात नियान संलयन, आक्सीजन संलयन और सीलीकान संलयन होता है। तारे के जीवन के अंत में संलयन प्याज की तरह परतों पर होता है। हर परत पर एक तत्व का संलयन होता है। सबसे बाहरी सतह पर हायड़ोजन, उसके निचे हीलीयम और आगे के भारी तत्व। अंत में तारा लोहे का संलयन प्रारम्भ करता है। लोहे के नाभिक अन्य तत्वों की तुलना मे ज्यादा मजबूत रूप से बंधे होते है। लोहे के नाभिकों के संलयन से ऊर्जा नहीं निकलती है इसके उलटे ऊर्जा लेती है। पुराने विशालकाय तारों के केन्द्र में लोहे का बड़ी सी गुठली बन जाती है।
तारो का अंत
एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula) में तबदील हो जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के १.४ गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है जिसका आकार पृथ्वी के बराबर होता है जो धीरे धीरे मंद होते हुये काले वामन तारे के रूप में मृत हो जाता है।

सूर्य के द्र्व्यमान से १.४ गुणा से ज्यादा भारी तारे होते है अपने द्र्व्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित हो जाता है। इस अचानक संकुचन से एक महा विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते है। सुपरनोवा इतने चमकदार होते है कि कभी कभी इन्हें दिन मे भी देखा गया है।

सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये पदार्थ से निहारिका बनती है। कर्क निहारिका इसका उदाहरण है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। ये कुछ न्युट्रान तारे पल्सर तारे होते है। यदि बचे हुये तारे का द्रव्यमान ४ सूर्य के द्र्व्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) मे बदल जाता है।

कर्क निहारीका

सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये तारे की बाहरी परतो मे नये तारे के निर्माण की सामग्री होती है जिसमे भारी तत्वो का समावेश होता है। ये भारी तत्व पृथ्वी जैसे पथरीले ग्रह का निर्माण करते है।
तारों का वितरण
सूर्य के जैसे अकेले तारों के अलावा अधिकतर तारे दो या दो से ज्यादा तारों के समूह में होते है। ये तारे एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बन्धे होते है। अधिकतर तारे दो तारों के समूह में है, लेकिन तीन या उससे ज्यादा तारों के समूह भी पाये गये है।

ब्रह्मांड में तारे समान रूप से वितरित नहीं है। वे आकाशगंगाओं के रूप में गैस और धूल के साथ समुह में है। एक आकाशगंगा में अरबों तारे हो सकते है और हमारे द्वारा देखे जाने वाले ब्रह्मांड में अरबों आकाशगंगाये है। आमतौर पर माना जाता है कि तारे आकाशगंगाओं में ही होते है लेकिन कुछ तारे आवारा के जैसे आकाशगंगाओं से बाहर भी पाये गये है।

पृथ्वी के सबसे पास का तारा(सूर्य के अलावा) प्राक्सीमा सेन्टारी है जो ४.२ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।

तारों के गुणधर्म
उम्र
अधिकतर तारे १ अरब वर्ष से १० अरब वर्ष की उम्र हे है। कुछ तारे १३.७ अरब वर्ष के है जो कि ब्रम्हाण्ड की उम्र है। जितना विशाल तारा होता है उसकी उम्र उतनी कम होती है क्योंकि वह हायड्रोजन उतनी ज्यादा गति से जलाते है। विशाल तारे जहां १० लाख वर्ष तक जीते है वही लाल वामन तारे सैकड़ों अरबों वर्ष तक जी सकते है।

तारों का व्यास

सूर्य को छोड़ कर अन्य तारे एक बिन्दु जैसे दिखायी देते है। सूर्य हमारे काफी पास है इसलिये इतना बड़ा दिखायी देता है।

तारों के व्यास में जहां न्युट्रान तारो का व्यास २०-४० किमी होता है वही बीटलगूज का व्यास सूर्य के व्यास से ६५० गुणा है।

तारो का द्र्व्यमान

सबसे भारी ज्ञात तारों में से एक एटा कैरीने (Eta Carinae) है जो सूर्य से १००-१५० गुणा भारी है, कुछ लाख वर्ष उम्र का है। अभी तक यह माना जाता था कि सूर्य से १५० गुणा बड़ा होना तारों की उपरी सीमा होगी लेकिन नयी गणना के अनुसार आर एम सी १३६ए क्लस्टर का तारा आर१३६ए१ सूर्य से२६५ गुणा बड़ा है।

सबसे छोटा ज्ञात तारा एबी डोराडस सी(AB Doradus C) है जो बृहस्पति ग्रह से ९३ गुणा बड़ा है। यह माना जाता है कि छोटे तारे की सीमा बृहस्पति ग्रह से कम से कम ८७ गुणा(सूर्य के द्रव्यमान का ८.३%) बड़ा होना है। इन छोटे तारों और गैस महाकाय ग्रह के बीच के पिंडों को भूरे वामन(Brown Dwarf) कहा जाता है।

तारों का वर्गीकरण

तारों का वर्गीकरण उनके तापमान पर किया जाता है। तारों का वर्गीकरण नीचे दी गयी तालिका में दिया गया है। सभी तापमान डिग्री केल्वीन (K) में है।

वर्ग तापमान उदाहरण
ओ 33,000 K या ज्यादा जीटा ओफीउची Zeta Ophiuchi
बी 10,500–30,000 K रीगेल Rigel
ए 7,500–10,000 K अल्टेयर Altair
एफ़ 6,000–7,200 K रोच्यान ए Procyon A
जी 5,500–6,000 K सूर्य Sun
के 4,000–5,250 K एप्सीलान इन्डी Epsilon Indi
एम 2,600–3,850 K प्राक्सीमा सेन्टारी Proxima Centauri
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तारों का जीवन और मृत्यु

सितारे का जिवनचक्र
सामान्यतः सितारे का जीवनचक्र दो तरह का होता है और लगभग सभी तारे इन दो जीवन चक्र मे से किसी एक का पालन करते है। इन दो जीवन चक्र मे चयन का पैमाना उस तारे का द्रव्यमान होता है। कोई भी तारा जिसका द्रव्यमान तीन सौर द्रव्यमान(१ सौर द्रव्यमान: सूर्य का द्रव्यमान) के तुल्य हो वह मुख्य अनुक्रम (निले तारे से लाल तारे) मे परिवर्तित होते हुये अपनी जिंदगी बिताता है। लगभग ९०% तारे इस प्रकार के होते है। यदि कोई तारा अपने जन्म के समयतीन सौर द्रव्यमान से ज्यादा द्रव्यमान का होता है तब वह मुख्य जीवन अनुक्रम मे काफी कम समय के लिये रहता है, उसका जीवन बहुत कम होता है। जितना ज्यादा द्रव्यमान उतनी ही छोटी जिंदगी और उससे ज्यादा विस्फोटक मृत्यु जो एक न्यूट्रॉन तारे या श्याम वीवर को जन्म देती है।
तारों का अपने जीवन काल मे उर्जा उत्पादन
अपनी जिंदगी के अधिकतर भाग मे मुख्य अनुक्रम के तारे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न करते है। इस प्रक्रिया मे दो हाइड्रोजन के परमाणु हिलीयम का एक परमाणु निर्मित करते है। उर्जा का निर्माण का कारण है कि हिलीयम के परमाणु का द्रव्यमान दो हाइड्रोजन के परमाणु के कुलद्रव्यमान से थोड़ा साकम होता है। दोनो द्रव्यमानो मे यह अंतर उर्जा मे परिवर्तित होजाता है। यह उर्जा आईन्सटाईन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 जहाँE= उर्जा, m=द्रव्यमान और c=प्रकाश गति। हमारा सूर्य इसी प्रक्रिया से उर्जा उत्पन्न कर रहा है। हाइड्रोजन बम भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते है।
नीचे दी गयी तस्वीर मे दो प्रोटान(हाइड्रोजन का केण्द्रक) मिलकर एक ड्युटेरीयम (हाइड्रोजन का समस्थानिक) का निर्माण कर रहे है। इस प्रक्रिया मे एक पाजीट्रान और एक न्युट्रीनो भी मुक्त होते है। इस ड्युटेरीयम नाभीक पर जब एक प्रोटान से बमबारी की जाती है हिलीयम-३ का नाभिक निर्मित होता है साथ मे गामा किरण के रूप मे एक फोटान मुक्त होता है। इसके पश्चात एक हिलीयम ३ के नाभिक पर जब दूसरे हिलीयम-३ का नाभिक टकराता है स्थाई और सामान्य हिलीयम का निर्माण होता है और दो प्रोटान मुक्त होते है। इस सारी प्रक्रिया मे निर्मित पाजीट्रान किसी इलेक्ट्रान से टकरा कर उर्जा मे बदल जाता है और गामा किरण (फोटान) के रूप मे मुक्त होता है। हमारे सूर्य के केन्द्र से उर्जा इन्ही गामा किरणों के रूप मे वितरीत होती है।


तारो मे नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया
हमारा सूर्य अभी इसी अवस्था मे है, नीचे दिये गये आंकड़े सूर्य से संबधित ह॥ सूर्य बाकी अन्य तारों के जैसा ही होने की वजह से ये सभी तारों के प्रतिनिधि आंकड़े माने जा सकतेहै और हम तारों के कार्य पद्धति के बारे मे समझ सकते है। हर सेकंड सूर्य ५००० लाख टनहाइड्रोजन को हिलीयम मे बदलता है। इस प्रक्रिया मे हर सेकंड ५० लाखटनद्रव्यमान उर्जा मे तब्दील होता है। यह उर्जा लगभग १०२७ वाट की उर्जा के बराबर है। पृथ्वी पर हम इस उर्जा का लगभग २/,०००,०००,००० (२ अरबवां) हिस्सा प्राप्त करते है या x १०१८वाट उर्जा प्राप्त करते है। यह उर्जा १०० सामान्य बल्बो को ५० लाख वर्ष तक जलाये रखने के लिये काफी है। यह मानव इतिहास से भी ज्यादा समय है।
मुख्य अनुक्रम के तारे की मृत्यु
लगभग १० अरब वर्ष मे एक मुख्य अनुक्रम का तारा अपनी १०% हाइड्रोजनको हिलीयम मे परिवर्तित कर देता है। ऐसा लगता है कि तारा अपनी हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया को अगले ९० अरब वर्ष तक जारी रख सकता है लेकिन ये सत्य नही है। ध्यान दें कि तारे के केन्द्र मे अत्यधिक दबाव होता है और इस दबाव से ही संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है लेकिन एक निश्चित मात्रा मे। बड़ा हुआ दबाव मतलब बड़ा हुआ तापमान। केन्द्र के बाहर मे भी हाइड्रोजन होती है लेकिन इतना ज्यादा दबाव नही होता कि संलयन प्रारंभ हो सके।
अब हिलीयम से बना केन्द्र सिकुड़ना प्रारंभ करता है और बाहरी तह फैलते हुये ठंडी होना शुरू होती है, ये तह लाल रंग मे चमकती है। तारे का आकार बड जाता है। इस अवस्था मे वह अपने सारे ग्रहो को निगल भी सकता है। अब तारा लाल दानव(red gaint)कहलाता है। केन्द्र मे अब हिलीयम संलयन प्रारंभ होता है क्योंकि केन्द्रक संकुचित हो रहा है, जिससे दबाव बढ़ेगा और उससे तापमान भी। यह तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि हिलीयम संलयन प्रक्रिया से भारी तत्व बनना प्रारंभ होते है। इस समय हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन भी होता है क्योंकि हिलीयम कोर की सतह परहाइड्रोजन संलयन के लिये तापमान बन जाता है। लेकिन इस सतह के बाहर तापमान कम होने से संलयन नही हो पाता है। इस स्थिती मे तारा अगले १००,०००,००० वर्ष रह सकता है।


मीरा (Meera Red Gaint) लाल दानव
इतना समय बीत जाने के बाद लाल दानव का ज्यादातर पदार्थ कार्बन से बना होता है। यह कार्बन हिलीयम संलयन प्रक्रिया मे से बना है। अगला संलयन कार्बन से लोहे मे बदलनेका होगा। लेकिन तारे के केन्द्र मे इतना दबाव नही बन पाता कि यह प्रक्रिया प्रारंभ हो सके। अब बाहर की ओर दिशा मे दबाव नही है, जिससे केन्द्र सिकुड जाता है और केन्द्र से बाहर की ओर झटके से तंरंगे (Shock wave)भेजना शुरू कर देता है। इसमे तारे की बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फैल जाती है, इससे ग्रहीय निहारीका का निर्माण होता है। बचा हुआ केन्द्र सफेद बौना(वामन) तारा(white dwarf) कहलाता है। यह केन्द्र शुध्दकार्बन(कोयला) से बना होता हैऔर इसमे इतनी उर्जा शेष होती है कि यह चमकीलेसफेद रंग मे चमकता है। इसका द्रव्यमान भी कम होता है क्योंकि इसकी बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फेंक दी गयी है। इस स्थिति मे यदि उस तारे के ग्रह भी दूर धकेल दिये जाते है, यदि वे लाल दानव के रूप मे तारे द्वारा निगले जाने से बच गये हो तो।

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Old 15-07-2013, 12:36 PM   #27
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गतांक से आगे



सफेद बौने(वामन) तारे
सफेद बौना तारा की नियती इस स्थिति मे लाखोंअरबों वर्ष तक भटकने की होती है। धीरे धीरे वह ठंडा होते रहता है। अंत मे वह पृथ्वी के आकार (८००० किमी व्यास) मे पहुंच जाता है। इसका घन्त्व अत्यधिक अधिक होता है, एक माचिस की डिब्बी के बराबर पदार्थ एक हाथी से ज्यादा द्रव्यमान रखेगा ! इसका अधिकतम द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से १. (चन्द्रशेखर सीमा) गुना हो सकता है। ठंडा होने के बाद यह एक काले बौने(black dwarf) बनकर कोयले के ढेरके रूप मे अनंत काल तक अंतरिक्ष मे भटकते रहता है। इस कोयले के ढेर मे विशालकाय हीरे भी हो सकते है।

महाकाय तारे की मौत
सूर्य से काफी बड़े तारे की मौत सूर्य(मुख्य अनुक्रम के तारे) की अपेक्षा तीव्रता से होगी। इसकी वजह यह है कि जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा उतनी तेजी से केन्द्रक संकुचित होगा, जिससेहाइड्रोजन संलयन की गति ज्यादा होगी।
लगभग १०० से १५० लाख वर्ष मे (मुख्य अनुक्रम तारे के लिये १० अरब वर्ष) एक महाकाय तारे की कोर कार्बन की कोर मे बदल जाती है और वह एक महाकाय लाल दानव(gignatic red gaint) मे परिवर्तित हो जाता है। मृग नक्षत्र मे कंधे की आकृती बनाने वाला तारा इसी अवस्था मे है। यह लाल रंग मे इसलिये है कि इसकी बाहरी तहे फैल गयी है और उसे गर्म करने के लिये ज्यादा उर्जा चाहिये लेकिन उर्जा का उत्पादन ढा नही है। इस वजह से वह ठंडा हो रहा है और चमक लाल हो गयी है। ध्यान दे निले रंग के तारे सबसे ज्यादा गर्म होते है और लाल रंग के सबसे कम।
इस स्थिति मे मुख्य अनुक्रम के तारे और महाकाय तारे मे अंतर यह होता है कि महाकाय तारे मे कार्बन को लोहे मे परिवर्तित करने के लायक दबाव होता है जो कि मुख्य अनुक्रम के तारे मे नही होता है। लेकिन यहसंलयन उर्जा देने की बजाय उर्जा लेता है। जिससेउर्जा का ह्रास होता है, अब बाहर की ओर के दबाव और अंदर की तरफ के गुरुत्वाकर्षण का संतुलन खत्म हो जाता है। अंत मे गुरुत्वाकर्षण जीत जाता है, ताराकेन्द्र एक भयानक विस्फोट के साथ सिकुड जाता है , यह विस्फोट सुपरनोवा कहलाता है। ४ जुलाई १०५४ मे एक सुपरनोवा विस्फोट २३ दिनो तक दोपहर मे भी दिखायी देते रहा था। इस सुपरनोवा के अवशेष कर्क निहारीका के रूप मे बचे हुये है।


कर्क निहारीका(सुपरनोवा विस्फोट के अवशेष)
इसके बाद इन तारों का जीवन दो रास्तों मे बंट जाता है। यदि तारे का द्र्व्यमान ९ सौर द्रव्यमान से कम लेकिन १.४ सौर द्रव्यमान से ज्यादा हो तो वह न्यूट्रॉन तारे मे बदल जाता है। वही इससे बड़े तारे श्याम वीवर (black hole)मे बदल जाते है जिसका गुरुत्वाकर्षण असीम होता है जिससे प्रकाश भी बच कर नही निकल सकता।

बौने (वामन) तारे की मौत
सूर्य एक मुख्य अनुक्रम का तारा है, लेकिन यह पिले बौने तारे की श्रेणी मे भी आता है। इस लेख मे सूर्य से छोटे तारों को बौना (वामन) तारा कहा गया है।
बौने तारो मे सिर्फ लाल बौने तारे ही सक्रिय होते है जिसमे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया चल रही होती है। बाकी बौने तारों के प्रकार , भूरे, सफेद और काले है जो मृत होते है। लाल बौने का आकार सूर्य के द्रव्यमान से १/३ से १/२ के बीच और चमक १/१०० से १/,०००,००० के बीच होती है। प्राक्सीमा सेंटारी, सूर्य के सबसे नजदिक का तारा एक लाल बौना है जिसका आकार सूर्य से १/५ है। यदि उसे सूर्य की जगह रखे तो वह पृथ्वी पर सूर्य की चमक १/१० भागही चमकेगा ,उतना हीजितना सूर्य प्लूटो पर चमकता है।


प्राक्सीमा (लाल वामन तारा- Red Dwarf) केन्द्र मे सबसे चमकिला लाल तारा
लाल बौने अपने छोटे आकार के कारण अपनी हाइड्रोजन धीमे संलयन करते है और कई सैकडोखरबो वर्ष तक जीवित रह सकते है।
जब ये तारे मृत होंगे ये सरलता से ग़ायब हो जायेंगे, इनके पास हिलीयम संलयन के लिये दबाव ही नही होगा। ये धीरे धीरे बुझते हुये अंतरिक्ष मे विलीन हो जायेंगे।
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Old 15-07-2013, 12:37 PM   #28
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पराया हो गया सूरज


स्पेन की एक महिला अन्गेलेस दुरन(Angeles Duran) सूर्य के स्वामित्व का दावा करती है !
हाँ यह सच है ! उस महिला के दावे के अनुसार वह सौर मंडल को उष्णता और प्रकाश देने वाले सबसे नज़दीक के तारे सूर्य की स्वामिनी है ! उस महिला के शब्दों में
वह पृथ्वी से १४९,६००,००० किलो मीटर दूरी पर सौर मंडल के केंद्र में स्थित वर्णक्रमीय प्रकार जी २ के तारे सूर्य की स्वामिनी है !


चलो मान लिया कि वह सूर्य की स्वामिनी है ! लेकिन क्या यह स्वामित्व वैध है ? उस महिला के अनुसार
इस में कोई परेशानी नहीं है। यह पूरी तरह से वैध स्वामित्व है। मै बेवकूफ नहीं हूँ। मुझे कानूनों का ज्ञान है। कोई भी ऐसा करे उसके पहले मैंने ऐसा किया है।
वह बेवकूफ़ तो नहीं है लेकिन गलत ज़रूर है ! यह स्वामित्व कानूनी तरह से अवैध है और उस महिला को कानूनों की जानकारी नहीं है। जोन गैब्र्य्नोवीच ( Joanne Gabrynowicz) जो कि नेशनल सेन्टर फार रीमोट सेंसींग, एअर एन्ड स्पेस ला ओले मिस्स (director of the National Center for Remote Sensing, Air and Space Law, at Ole Miss) के संचालक के साथ कानून के व्याख्याता भी है और अंतरिक्ष क़ानूनों मे २५ वर्ष का अनुभव रखते है। जोन के अनुसार
“मेरी राय मे इस समय जो उभरता हुआ अंतरराष्ट्रीय मत है उसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी खगोलीय पिण्ड के स्वामित्व का दावा नही कर सकता।”
१९६७ मे १०० से ज्यादा राष्ट्रो द्वारा की गयी बाह्य अंतरिक्ष संधी (The Outer Space Treaty) के अनुसार कोई भी संप्रभू राष्ट्र किसी खगोलीय पिंड जैसे सूर्य या चन्द्रमा के स्वामित्व का दावा नही कर सकता है। लेकिन कुछ व्यक्तियो ने इस संधी मे एक कमी ढूंढ निकाली है। उनके अनुसार यह संधि किसी व्यक्ति के द्वारा खगोलिय पिण्डो के स्वामित्व के बारे मे मौन है। तकनिकि तौर पर यह सही है कि यह संधि किसी व्यक्ति को किसी खगोलीय पिण्ड के स्वामित्व से रोकती नही है। श्रीमती दूरन के अनुसार उनका सूर्य के स्वामित्व का दावा करना भर सूर्य पर उनके दावे को सिद्ध करने काफी है।
भूतकाल मे डेनीस होप ने विभिन्न देशो की सरकारो को चन्द्रमा के स्वामी होने का नोटीस भेजा था। इस नोटीस मे उन्होने कहा था कि यदि वे सरकारें उनके नोटिस का जवाब नही देती है तो वे डेनीस के चन्द्रमा के स्वामी होने के दावे को मान्यता देती है। यह कोई आश्चर्य नही है कि किसी भी सरकार ने इस नोटीस का कोई जवाब नही दिया। डेनीश महोदय ने एक कदम आगे जाये हुये चन्द्रमा पर प्लाट बेच दिये और अरबो कमाये !
प्रफेसर जोन के अनुसार स्वामित्व के दावे मे कोई दम नही है। उनके अनुसार अंतराष्ट्रीय कानून प्रथा और राय(practice and opinion) पर आधारित है कि विभिन्न देश किसी मुद्दे पर क्या राय रखते है और क्या कदम उठाते है। कुछ राष्ट्रो के अनुसार कोई भी व्यक्ति अंतरिक्ष मे किसी भी पिण्ड का स्वामी नही हो सकता। कनाडा मे चन्द्रमा पर प्रापर्टी बेचने वाले व्यक्ति को धोकाधड़ी के आरोप मे जेल हो चूकी है। अंतराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर करने वाला कोई भी राष्ट्र यह कदम उठा सकता है, यह उस राष्ट्र पर निर्भर करता है।
श्रीमती दूरन जो कि स्पेन की निवासी है। स्पेन ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये है। इस संधि के आर्टीकल छः के अनुसार
चन्द्रमा या अन्य खगोलिय पिण्ड पर की जाने वाली किसी भी गतिविधी की जिम्मेदारी संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रो की है चाहे यह गतिविधी किसी सरकारी एजेंसी या अ-सरकारी एजेन्सी द्वारा की गयी हो। राज्य इस बात का आश्वाशन देते है कि यह गतिविधी इस संधि के विभिन्न मानको के अनुरूप है। किसी भी अ-सरकारी निकाय द्वारा अंतरिक्ष(चन्द्रमा और अन्य खगोलिय पिण्ड सहित) के संदर्भ मे की जाने वाली किसी भी गतिविधि के लिये राज्य कि पुर्वानुमति तथा निरिक्षण अनिवार्य है। यदि अंतरिक्ष(चन्द्रमा और अन्य खगोलिय पिण्ड सहित) के संदर्भ मे की जाने वाली गतिविधि किसी अन्तराष्ट्रीय संस्था द्वारा हो तब इसकी जिम्मेदारी इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले सभी राष्ट्र तथा अंतराष्ट्रीय संस्था की है।
अब यह स्पष्ट है कि यह संधि सूर्य या चन्द्रमा पर स्वामित्व के दावो के लिये राष्ट्र सरकारो की पूर्वानुमति के लिये बाध्य करती है, चाहे यह दावा किसी व्यक्ति के द्वारा हो। यदि आपको एक राकेट बनाकर अंतरिक्ष मे भेजना हो और आप भारत के निवासी है, आपको भारत सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक है। यह अंतरिक्ष के किसी भी पिण्ड पर स्वामित्व के दावे पर भी लागू होता है। सरकार को यह नोटीस भेज देना कि “यदि आपने नोटीस का जवाब नही दिया उसे मेरे ब्रह्माण्ड के स्वामित्व को मान्यता देना माना जायेगा” पर्याप्त नही है।
सो अंत मे निष्कर्ष
  1. श्रीमती दूरन का दावे मे कोई योग्यता नही है।
  2. इस दावे मे कोई योग्यता हो तब उन्हे स्पेन सरकार से अनुमति लेनी चाहिये।
  3. स्पेन सरकार सूर्य पर ऐसा कोई दावा नही कर सकती है क्योंकि ……………

अब यह स्पष्ट होगा कि कोई भी व्यक्ति जो चन्द्रमा या सूर्य पर दावा करता है वह गलत है। यदि वह आपको चन्द्रमा पर कोई प्लाट बेचता है वह धोखाधड़ी भले ही ना हो लेकिन कानूनी नही है।
वैसे श्रीमती दूरन पर त्वचा कैन्सर के रोगी या लू के मरीज मुवावजे के लिये दावा कर सकते है क्योंकि ये सूर्य के कारण है! नासा भी श्रीमती दूरन पर दावा कर सकता है, श्रीमती दूरन की प्रापर्टी से निकले सौर फ्लेयर के कारण उसके इतने सारे उपग्रह जो खराब हुये है!
और हां श्रीमती दूरन आपको सौर उर्जा के प्रयोग का बील भेज दे तो यहां टिप्पणी ज़रूर कर दिजियेगा !
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Old 15-07-2013, 12:44 PM   #29
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सरल क्वांटम भौतिकी: ब्रह्माण्ड किससे निर्मित है – भाग 1?

क्वार्क और लेप्टान

अभी तक आपने पढा़ है कि आकाशगंगा से लेकर पर्वत से लेकर अणु तक सब कुछ क्वार्क और लेप्टान से बना है। लेकिन यह पूरी कहानी नही है। क्वार्क का व्यवहार लेप्टान से भिन्न होता है। हर पदार्थ कण का एक प्रतिपदार्थ कण(antimatter particle) होता है।
आकाशगंगा, पर्वत तथा जल अणु
यदि आपने इस श्रृंखला का प्रारंभिक लेख नही पढा़ है, तो आगे बढ़ने से पहले उसे पढ़ें।
  1. मूलभूत क्या है ?
पदार्थ और प्रतिपदार्थ

अभी तक हमने जितने भी पदार्थ कण खोजे है, उन सभी पदार्थ कणो का एक प्रतिपदार्थ कण या प्रति कण मौजूद है
प्रति कण अपने संबधित कण के जैसे ही दिखते और व्यवहार करते है लेकिन उनका आवेश विपरीत होता है। उदाहरण के लिए प्रोटान का धनात्मक आवेश होता है लेकिन प्रतिप्रोटान का आवेश ऋणात्मक होता है। गुरुत्वाकर्षण आवेश से प्रभावित नही होता है लेकिन द्रव्यमान से प्रभावित होता है इसलिये पदार्थ और प्रतिपदार्थ दोनो पर गुरुत्वाकर्षण का समान व्यवहार होता है। पदार्थ कण का द्रव्यमान प्रतिपदार्थ कण के समान ही होता है।
जब पदार्थ कण प्रति-पदार्थ कण से टकराता है, दोनो नष्ट होकर ऊर्जा मे बदल जाते है।
अप क्वार्क तथा प्रति अप क्वार्क का टकराव

प्रतिपदार्थ क्या है?

बबल चैम्बर

रूकीये रूकीये, थोड़ा धीमे! “प्रति-पदार्थ ?”,”ऊर्जा ?” यह सब क्या है, स्टार ट्रेक ?
प्रतिपदार्थ की संकल्पना विचीत्र है। यह उस समय और विचीत्र हो जाती है सारा का सारा ब्रह्मान्ड पदार्थ से निर्मित लगता है। सामान्य बुद्धि के अनुसार पदार्थ की मात्रा और प्रति-पदार्थ की मात्रा समान होना चाहीये लेकिन ऐसा नही है। हम जितना भी ब्रह्मांड दे सकते है, सारा का सारा ब्रह्मांड पदार्थ से निर्मित है। प्रति-पदार्थ हमारी ब्रह्माण्ड से संबधित हर जानकारी के विपरीत लगता है।
लेकिन आप प्रतिपदार्थ के प्रमाण शुरुवाती बबल चैम्बर( bubble chamber )के चित्र मे देख सकते है। इस कक्ष मे उपस्थित चुंबकीय क्षेत्र ऋण आवेश के कणो को बांये मोड़ता है तथा धन आवेश के कणो को दायें। इस चित्र मे कई इलेक्ट्रान और पाजीट्रान युग्म अज्ञात से उत्पन्न होते दिखायी देते है, लेकिन वास्तविकता मे वे फोटान से निर्मित है और फोटान अपनी कोई निशानी नही छोड़ता है। पाजीट्रान वस्तुतः प्रति-इलेक्ट्रान है, वह इलेक्ट्रान के जैसे ही है लेकिन धन आवेश युक्त होने के कारण दायें मुड़ता है। चित्र मे एक इलेक्ट्रान-पाजीट्रान युग्म को दिखाया गया है।
यदि प्रतिपदार्थ और पदार्थ एक जैसे ही है लेकिन विपरीत आवेश के है, तब ब्रह्माण्ड मे प्रतिपदार्थ की तुलना मे पदार्थ ज्यादा क्यों है?
ह्म्म … इसका उत्तर हम अभी अच्छी तरह से नही जानते है। इस प्रश्न से कई भौतिक वैज्ञानिकों की नींद उड़ी हुयी है।
(सामान्यतः किसी प्रतीकण का चिह्न उससे संबधित कण के उपर एक रेखा(बार) बनाकर होता है।) उदाहरण के लिए “अप क्वार्क u” से संबधित “अप प्रति क्वार्क” को ü से दर्शाया जाता है, इसे यु-बार पढ़ते है। क्वार्क का प्रति कण प्रति-क्वार्क है, प्रोटान का प्रतिकण प्रतिप्रोटान और ऐसे ही सभी कणो के अपने अपने प्रतिकण है। प्रतिइलेक्ट्रान को पाजीट्रान कहते है और इसे e+ से दर्शाते है।)
क्वार्क क्या है?

क्वार्क परिवार

क्वार्क पदार्थ कणो का एक मूलभूत प्रकार है, इसे और तोड़ा नही जा सकता है। अधिकतर पदार्थ जो हम अपने आसपास देखते है वह प्रोटान और न्युट्रान से निर्मित है। और ये प्रोटान तथा न्युट्रान क्वार्क से बने होते है। हमारे आस पास का समस्त पदार्थ इन्ही क्वार्को से निर्मित है।
कुल छः क्वार्क होते है लेकिन भौतिकवैज्ञानिक उन्हे तीन युग्मो मे रखते है : अप/डाउन, चार्म/स्ट्रेन्ज तथा टाप/बाटम। (इन सभी क्वार्को के अपने प्रति-क्वार्क भी होते है।) इन क्वार्को के नाम विचित्र है इसलिये इन्हे याद रखना आसान है।
क्वार्क एक असामान्य गुण रखते है, इनका विद्युत आवेश भिन्न मे होता है, जोकि प्रोटान(+1) और इलेक्ट्रान(-1) के पूर्णांक आवेश से अलग है। क्वार्क का एक और भिन्न गुणधर्म होता है, रंग आवेश(colour charge)। इसे हम आगे देखेंगे।
सबसे दुर्लभ क्वार्क टाप है, जो 1995 मे खोजा गया लेकिन इसकी संकल्पना इसके 20 वर्षो पहले ही हो चुकी थी।
क्वार्को का नामकरण

1964 मे मुर्रे गेलमन और जार्ज झ्वीग ने सुझाया कि उस समय तक के ज्ञात सैकड़ो कणो तीन मूलभूत कणो से निर्मित हो सकते है। गेलमन ने उन्हे क्वार्क नाम दिया। क्वार्क शब्द का कोई अर्थ नही है, इस शब्द को जेम्स जायस(James Joyce ) के उपन्यास ’फ़ीनेगन्स वेक(Finnegan’s Wake)’ के एक वाक्य से लिया गया है।
“Three quarks for Muster Mark!”
सही रूप से गणना करने के लिए क्वार्को को भिन्नात्मक आवेश 2/3 तथा -1/3 दिया गया। क्वार्को से पहले ऐसा भिन्नात्मक आवेश नही पाया गया था, इलेक्ट्रान और प्रोटान का आवेश हमेशा पूर्णांक अर्थात (+1, -1) था। इसके पहले क्वार्को का निरीक्षण भी नही हुआ था, तब यह माना गया कि ये एक गणितीय कल्पना मात्र होंगे। लेकिन उसके बाद के प्रयोगो से प्रमाणित हो गया कि क्वार्को का आस्तीत्व है और वे तीन नही छः तरह के है।
क्वार्को को विचित्र नाम कैसे दिये गए ?

क्वार्क के छः प्रकार है। इनमे से सबसे हल्के क्वार्को को अप और डाउन नाम दिया गया।

तीसरे क्वार्क को स्ट्रेंज(विचित्र) कहा गया क्योंकि यह विचित्र रूप से लबी आयु वाले K कण मे पाया गया, जोकि इस क्वार्क से निर्मित प्रथम ज्ञात कण था।

चौथे क्वार्क को ऐसे ही मस्ती मे चार्म कहा गया। वैज्ञानिक भी मानव ही है, जो मन मे आया नाम रख दिया। इसे 1974 मे एक साथ स्टैनफर्ड रैखीक कण त्वरक(Stanford Linear Accelerator Center – SLAC) तथा ब्रूकहेवन राष्ट्रीय प्रयोगशाला(Brookhaven National Laboratory) मे खोजा गया।

पांचवे और छठे क्वार्क को किसी समय ट्रुथ(सत्य) और ब्युटी(सुंदरता) कहा जाता था।
बाटम क्वार्क को फ़र्मीलैब मे 1977 मे खोजा गया, इसे एक मिश्रित कण ‘अपसीलान(Υ)’ मे पाया गया था।
टाप क्वार्क सबसे अंत मे फर्मीलैब मे ही 1995 मे पाया गया। यह सबसे भारी क्बार्क है। यह अपनी संकल्पना के 20 वर्षो बाद खोजा गया।
हेड्रान, बारयान और मेसान

सामाजिक हाथीयों की तरह क्वार्क हमेशा समूह मे रहते है, वे कभी भी अकेले नही पाये जाते है। क्वार्क से बने यौगिक कण हेड्रान कहलाते है।
हेड्रान
एक क्वार्क का विद्युत आवेश भिन्नात्मक होता है लेकिन वे इस तरह मिलकर किसी कण का निर्माण करते है कि कुल विद्युत आवेश हमेशा पूर्णांक होता है। हेड्रान का एक और गुणधर्म यह है कि इन रंग हमेशा रंगहीन होता है, जबकि क्वार्को का अपना रंग होता है। इसे हम आगे देखेंगे।
हेड्रान के दो प्रकार होते है :बारयान और मेसान
बारयान
बारयान यह तीन क्वार्क से बने होते है। प्रोटान और न्युट्रान भी बारयान है। प्रोटान(uud) दो अप और एक डाउन क्वार्क से बना होता है। वहीं न्यूट्रॉन(ddu) दो डाउन और एक अप क्वार्क से बना होता है।
बारयान कण सारणी (पोष्टर आकार के लिये क्लीक करें)

मेसान
मेसान एक क्वार्क(q) और एक प्रतिक्वार्क(q bar) से बना होता है।
मेसान का एक उदाहरण पाइआन(pion π+) है,जोकि एक अप क्वार्क और एक डाउन प्रतिक्वार्क से बना होता है। मेसान का प्रतिकण मे क्वार्क और प्रतिक्वार्क की स्थिती परिवर्तित हो जाती है इसलिए प्रति-पाइआन(π-) एक डाउन क्वार्कऔर एक अप प्रतिक्वार्क बना होता है।
मेसान एक कण और एक प्रतिकण से बने होते है और अस्थायी होते है। केआन(K-) मेसान की आयु सभी मेसान मे सबसे ज्यादा होती है जो कि विचित्र है। इसलिए इसके एक घटक क्वार्क को विचित्र (स्ट्रेन्ज) नाम दिया गया है।
मेसान कण सारणी (पोष्टर आकार के लिए क्लीक करें)

क्या आप जानते है?
हेड्रान के बारे मे सबसे विचित्र तथ्य यह है कि इसका द्रव्यमान इसे बनाने वाले क्वार्को के कुल द्रव्यमान से ज्यादा होता है, इसके कुल द्रव्यमान का एक छोटा भाग ही इसके क्वार्को के द्रव्यमान से आता है। उदाहरण के लिए एक प्रोटान (uud) का द्रव्यमान इसके तीनो क्वार्को के द्रव्यमान से कहीं ज्यादा है।
हेड्रान का अधिकतर द्रव्यमान उसकी गतिज(kinetic) और विभुव(potential) ऊर्जा से आता है। यह ऊर्जायें हेड्रान के द्रव्यमान के रूप मे परिवर्तित हो जाती है। ऊर्जा और द्रव्यमान के मध्य यह संबध आइंस्टाइन के समीकरण से स्पष्ट है।
E = mc2
अगले भाग मे लेप्टान
यह लेख श्रृंखला माध्यमिक स्तर(कक्षा 10) की है। इसमे क्वांटम भौतिकी के सभी पहलूओं का समावेश करते हुये आधारभूत स्तर पर लिखा गया है। श्रृंखला के अंत मे सारे लेखो को एक ई-बुक के रूप मे उपलब्ध कराने की योजना है।
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सरल क्वांटम भौतिकी: ब्रह्माण्ड किससे निर्मित है – भाग 2?

अभी तक हम क्वार्क और क्वार्क से निर्मित यौगिक कण बारयान और हेड्रान को देख चुके है। अब हम कहानी के दूसरे भाग लेप्टान पर नजर डालते है।
यदि आपने इस श्रृंखला के प्रारंभिक लेख नही पढ़े है, तो आगे बढ़ने से पहले उन्हे पढ़ें।
  1. मूलभूत क्या है ?
  2. ब्रह्माण्ड किससे निर्मित है – भाग 1?
लेप्टान

लेप्टान बिल्लीयाँ

दूसरी तरह के पदार्थ कणो को लेप्टान कहा जाता है।
लेप्टान छः तरह के होते है जिनमे से तीन का विद्युत आवेश होता है बाकि तीन मे नही। ये बिंदु के जैसे लगते है जिनकी कोई आंतरिक संरचना नही होती है। सबसे प्रमुख लेप्टान (e-) है, जिसे हम इलेक्ट्रान कहते है। अन्य दो आवेशीत लेप्टान म्युआन(μ) और टाउ(τ) है जो कि इलेक्ट्रान के जैसे आवेशीत है लेकिन इनका द्रव्यमान बहुत अधिक होता है। अन्य तीन लेप्टान तीन तरह के न्युट्रीनो(ν) है। इनमे कोई आवेश नही होता है, बहुत कम द्रव्यमान होता है और इन्हे खोजना कठिन होता है।
क्वार्क हमेशा समूह मे होते है और हमेशा यौगिक कणो मे अन्य क्वार्क के साथ होते है लेकिन लेपटान एकाकी कण है। आवेशीत लेप्टान को स्वतंत्र बिल्लीयों के जैसे माना जा सकता है जिनके साथ न्युट्रीनो जैसी चिपकी हुयी मख्खीयाँ होती और इन मख्खीयों को देखना कठिन होता है।
अन्य कणो की तरह ही हर लेप्टान का एक प्रतिलेप्टान(प्रतिपदार्थ होता है। प्रतिइलेक्ट्रान के लिए एक विशेष नाम है “पाजीट्रान“।
लेप्टान ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ हैकम द्रव्यमान। लेकिन यह एक असंगत शब्द है?
उत्तर : लेप्टान का अर्थ कम द्रव्यमान हो लेकिन टाउ लेप्टान इलेक्ट्रान से 3000 गुणा भारी होता है।
फर्मीयान

पदार्थ का निर्माण करने वाले बारयान तथा लेप्टान को संयुक्त रूप फर्मीयान कहा जाता है।
फर्मीयान कण

पदार्थ के घटकों की संपूर्ण तस्वीर

पदार्थ का निर्माण करने वाले मूलभूत घटक



लेप्टान क्षय(Lepton decay) क्यों होता है ?

भारी लेप्टान म्युआन और टाउ, साधारण पदार्थ मे नही पाये जाते हैं। ये कण अस्थायी होते है और क्षय हो कर हल्के लेप्टान मे परिवर्तित हो जाते है। कभी कभी टाउ लेप्टान क्षय हो कर एक क्वार्क, एक प्रतिक्वार्क और एक टाउ न्युट्रीनो मे परिवर्तित होता है। इलेक्ट्रान और अन्य तीन न्युट्रीनो स्थायी है और उन्हे हम अपने आसपास देखते है।
लेप्टान क्षय

जब एक भारी लेप्टान का क्षय होता है तब हमेशा एक संबधित न्युट्रीनो बनता है। इस क्षय द्वारा निर्मित दूसरे कणो मे क्वार्क और प्रतिक्वार्क या दूसरा लेप्टान और प्रतिलेप्टान युग्म हो सकता है। वैज्ञानिको के निरीक्षण के अनुसार कुछ तरह के लेप्टान का क्षय संभव है और कुछ का नही। इसे समझाने के लिए उन्होने लेप्टान को तीन लेप्टान परिवारो मे बांटा:
  1. इलेक्ट्रान और इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो,
  2. म्युआन और म्युआन-न्युट्रीनो
  3. टाउ और टाउ-न्युट्रीनो।
किसी भी लेप्टान क्षय मे लेप्टान परिवार के सदस्य की संख्या स्थिर रहना चाहीये। एक परिवार मे एक कण और उसका प्रतिकण एक दूसरे को रद्द कर देते है और उनका योग शून्य होता है।
लेप्टान एकाकी होते है लेकिन अपने परिवार के लिये वफादार होते है।
लेप्टान क्षय अविनाशिता

लेप्टान को तीन लेप्टान परिवारो मे बांटा गया है इलेक्ट्रान और इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो, म्युआन और म्युआन-न्युट्रीनो तथा टाउ और टाउ-न्युट्रीनो। इन लेप्टान परिवारों के संदर्भ मे हम इलेक्ट्रान संख्या, म्युआन संख्या और टाउ संख्या का प्रयोग करते है। म्युआन संख्या म्युआन और म्युआन-न्युट्रीनो के लिये और टाउ संख्या टाउ और टाउ-न्युट्रीनो के लिये है।
  • इलेक्ट्रान और इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो की इलेक्ट्रान संख्या +1 है, पाजीट्रान और पाजीट्रान-प्रतिन्युट्रीनो की इलेक्ट्रान संख्या -1 है। अन्य सभी कणो की इलेक्ट्रान संख्या 0 है।
  • म्युआन और म्युआन-न्युट्रीनो की म्युआन संख्या +1 है, प्रति-म्युआनऔर प्रतिम्युआन-न्युट्रीनो की म्युआन संख्या -1 है। अन्य सभी कणो की म्युआन संख्या 0 है।
  • टाउ और टाउ-न्युट्रीनो की टाउ संख्या +1 है, प्रति-टाउ और प्रतिटाउ -न्युट्रीनो की टाउ संख्या -1 है। अन्य सभी कणो की टाउ संख्या 0 है।
लेप्टान के बारे मे एक महत्वपूर्ण नियम है किसी भारी लेप्टान के हल्के लेप्टान मे क्षय की प्रक्रिया मे उसकी इलेक्ट्रान संख्या, म्युआन संख्या और टाउ संख्या समान रहती है।
एक लेप्टान क्षय का उदाहरण लेते हैं:
एक म्युआन के क्षय मे एक म्युआन-न्युट्रीनो, एक इलेक्ट्रान और एक इलेक्ट्रान प्रति न्युट्रीनो बनता है।
म्युआन का क्षय

सारणी मे देख सकते है कि इलेक्ट्रान संख्या, म्युआन संख्या और टाउ संख्या समान रहती है। यह और अन्य अविनाशिता के नियम किसी लेप्टान के क्षय को संभव या असंभव निर्धारित करते है।


लेप्टान क्षय प्रश्नोत्तरी

निम्नलिखित मे से कौनसे लेप्टान क्षय संभव है ? क्यों और क्यों नही ?
एक टाउ लेप्टान का क्षय होकर एक इलेक्ट्रान , एक इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो और एक टाउ-न्युट्रीनो बनता है।

उत्तर : हाँ ! आवेश, टाउ संख्या, इलेक्ट्रान संख्या और ऊर्जा का संरक्षण हो रहा है।
एक टाउ लेप्टान का क्षय होकर म्युआन और टाउ-न्युट्रीनो बनता है।

उत्तर : नही! म्युआन संख्या का संरक्षण नही हो रहा है। एक म्युआन की म्युआन संख्या 1 है इसलिए समीकरण के दाये पक्ष मे 1 है लेकिन बायें पक्ष मे म्युआन संख्या 0 है।
अब एक जटिल
एक इलेक्ट्रान का क्षय होकर एक म्युआन , एक म्युआन-प्रतिन्युट्रीनो और एक इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो का निर्माण होता है।

उत्तर : नही! आश्चर्य ! इलेक्ट्रान संख्या और म्युआन संख्या का संरक्षण हो रहा है। लेकिन ऊर्जा का संरक्षण नही हो रहा है। म्युआन का द्रव्यमान इलेकट्रान से कई गुणा ज्यादा होता है और एक लेप्टान अपने से भारी लेप्टान मे क्षय नही हो सकता है।
न्युट्रीनो

न्युट्रीनो को लेप्टान का एक प्रकार माना जाता है। इनका कोई आवेश नही होता जिससे ये किसी भी अन्य कण से कोई भी प्रतिक्रिया नही करते है। अधिकतर न्युट्रीनो पृथ्वी के आरपार किसी भी परमाणु से प्रतिक्रिया किये बीना चले जाते है।

न्युट्रीनो का निर्माण बहुत सी प्रक्रियाओं मे होता है, विशेषतः कणो के क्षय मे। तथ्य यह है रेडीयो सक्रिय पदार्थो के क्षय के दौरान वैज्ञानिको ने न्युट्रीनो के आस्तित्व की संकल्पना प्रस्तुत की थी। उदाहरण के लिए
  1. एक रेडीयो सक्रिय परमाणु केन्द्र मे, एक न्युट्रान का क्षय होता है, जिससे एक प्रोटान और इलेक्ट्रान का उत्सर्जन होता है।
  2. संवेग के संरक्षण के नियम के अनुसार इस क्षय से उत्पन्न कणो का संवेग शून्य होना चाहीये लेकिन निरीक्षित प्रोटान और इलेक्ट्रान मे नही है।.
  3. इसलिये एक और कण की उपस्थिति अनिवार्य है जो संवेग को समान कर सके।
  4. इसलिये संकल्पना की गयी कि इस दौरान एक एन्टीन्युट्रीनो का उत्सर्जन होना चाहीये, जो बाद के प्रयोगों से प्रमाणित हो गया।
न्युट्रीनो का निर्माण


शुरूआती ब्रह्माण्ड मे न्युट्रीनो का बड़े पैमाने मे निर्माण हुआ था और वे पदार्थ से कोई प्रतिक्रिया नही करते है, जिससे ब्रह्माण्ड मे उसकी बहुतायत है। उनका द्रव्यमान नगण्य है लेकिन बड़ी संख्या मे होने से कुल द्रव्यमान काफी अधिक हो सकता है। वह ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का एक प्रमुख भाग हो तो वह ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति पर प्रभाव डाल सकता है।

प्रश्नोत्तरी

प्रोटान किससे बने है ?
उत्तर : प्रोटान दो अप क्वार्क और एक डाउन क्वार्क से बने है। प्रोटान को uud लिखा जाता है।
इलेक्ट्रान किससे बने है?
उत्तर : किसी से नही! अब तक की जानकारी के अनुसार इलेक्ट्रान मूलभूत कण है।
निम्नलिखितमे से कौन से कण क्वार्क से बने है
बारयान?
उत्तर : हाँ, वे तीन क्वार्क से बनते है।
मेसान?
उत्तर : हाँ वे एक क्वार्क और एक प्रतिक्वार्क से बने है।
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