26-10-2012, 11:35 PM | #1 |
Diligent Member
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kisan ka dard
मलेथिया जी मैंने आपको बाद जवाब देने के लिए कहा था ! सो ध्यान दें , जैसा की आपने कहा की किसान अपने इस हालत के लिए खुद जिम्मेदार है मैं आपकी इस बात से असहमत हूँ क्यूंकि किसान जिस तरह से मेहनत करके फसल उगता है क्या उतना मूल्य उसे उसकी फसल का मिलाता है ? जो मुंग की फसल उसने पैदा की सर्कार ने समर्थन मूल्य ज्यादा से ज्यादा rs 3000 क्विंटल दे दिया लेकिन वो हमारी थाली तक आते 80 रुपये किलो कैसे हो गया ? मतलब पैदा करने वाले से ज्यादा मुनाफा तो दूकानदार आराम से बैठ कर कमा रहे है ! जब कोई भी साबुन कंपनी साबुन बना बाज़ार में बेचती है उसका भाव कंपनी तय करती है ना की सरकार अब लीजिये गवार की फसल को पिछले साल गवार का भाव फसल निकलने के समय 4 से 5 हजार होगा और वो ज्यादातर फसल इसी भाव में जमींदार के हाथ निकल गयी किसी किसी किसान को ज्यादा से 10000 का भाव मिल गया होगा उसके बाद उसी गवार का भाव 35000 तक पहुँच गया वो मुनाफा किसे मिला साहुकार या व्यापारी को ! क्या सरकार उस वक़्त रेट कण्ट्रोल नही कर सकती थी अगर कर सकती थी तो किया क्यों नही एक किसान जो आंधी बरसात और जहरीले जीवो से जूझ कर फसल पालता है उसका मुनाफा व्यापारी क्यों खाए या तो सरकार ने कण्ट्रोल रेट दिया क्यूँ या फिर उस रेट से ज्यादा व्यापारी को क्यों दिया हालाँकि ये सब कविता में ढाल पाना बहूत मुश्किल था इसलिए जवाब यहाँ दे रहा हूँ Quote: Originally Posted by sombirnaamdev धन्यवाद मलेथिया जी .बाकि आपकी बात का जवाब फुर्सत में दूंगा ठीक है जी।............. मैंने ये बात इसलिए कही की मैं भी एक किसान परिवार से हूँ।.............. |
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