29-10-2014, 04:01 PM | #951 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमीं ये दूध मगर सांप को पिलाते हैं
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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29-10-2014, 05:10 PM | #952 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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है कमज़ोर सीढ़ी मुहब्बत की लेकिन, ये चढ़नी पड़ेगी , संभलते -संभलते......... (हरकीरत हीर)
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29-10-2014, 09:38 PM | #953 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तिरी गली से गुज़रता हूँ इस तरह ज़ालिम कि जैसे रेत में......पानी की धार गुज़रे है (मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा)
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29-10-2014, 10:18 PM | #954 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हौसलों से मंज़िल मिलती है चींटी की तरह गिर कर फिर उठना तो सीखो, मंज़िल मिलेगी ' प्रतिबिम्ब ' ज़रा परिंदो की तरह उड़ान भर कर तो देखो.........
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29-10-2014, 10:36 PM | #955 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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खुशी भले पैताने रखना दुख लेकिन सिरहाने रखना जब तुम चाहो सच हो जाएँ कुछ तो ख़्वाब सयाने रखना
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29-10-2014, 10:55 PM | #956 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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जो तेरे दिल में है उस बात पर नहीं आये (हफ़ीज़ होशियारपुरी)
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31-10-2014, 04:44 AM | #957 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यहाँ तक आते -आते सूख जाती हैं कई नदियाँ , मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा | दुष्यन्त कुमार
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31-10-2014, 06:47 PM | #958 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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गो हैं उन मासूम आँखों में हज़ारों खूबियाँ कुछ शरारत भी मगर हस्बे-ज़रुरत चाहिये (फ़िराक गोरखपुरी)
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31-10-2014, 10:16 PM | #959 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बजरे की चांदनी ,ये गंगा की धार | भीतर -भीतर टीसता ,पहला -पहला प्यार || कैलाश गौतम
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31-10-2014, 11:56 PM | #960 | ||
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बिंदु जी, यहाँ 'य' से शे'र आरम्भ होना चाहिए था जिसे आपने 'ब' से शुरू किया है. 'य' से शे'र अर्ज़ करता हूँ: ये भी दौरे हाजिर की हम पे महरबानी है पहले जैसी चेहरे पर अब हँसी नहीं होती (असरार नसीमी)
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